आगामी चुनाव 59 वें चुनाव होंगे, जो हरेक चार साल में होते हैं। मतदाता सीधे राष्ट्रपति को नहीं चुनते, बल्कि 3 नवंबर को मतदाता 538 सदस्यों के एक मतदाता मंडल (इलेक्टोरल कॉलेज) का चुनाव करेंगे, जो 14 दिसंबर 2020 को राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव करेगा। यदि किसी भी प्रत्याशी को 270 या उससे ज्यादा वोट नहीं मिले, तो सबसे ज्यादा वोट पाने वाले तीन प्रत्याशियों में से एक का चुनाव राष्ट्रपति पद के लिए करने की जिम्मेदारी प्रतिनिधि सदन की होगी। उपराष्ट्रपति पद के लिए पहले दो प्रत्याशियों में से किसी एक का चुनाव सीनेट करेगी।
निर्वाचक मंडल
चुनाव राष्ट्रपति का नहीं उसके निर्वाचकों का होता है। कैलिफोर्निया से सबसे ज्यादा 55 निर्वाचक आते हैं और वायोमिंग, अलास्का और नॉर्थ डकोटा (और वॉशिंगटन डीसी) से सबसे कम तीन-तीन। चुनाव की पद्धति यह है कि जब किसी प्रत्याशी को किसी राज्य में बहुमत मिल जाता है, तो उस राज्य के सभी निर्वाचक उसके खाते में आ जाते हैं। मसलन यदि टेक्सास से रिपब्लिकन पार्टी को बहुमत मिला, तो राज्य से रिपब्लिकन पार्टी के सभी 38 निर्वाचक जीत जाएंगे। फिर भी दो राज्य मेन और नेब्रास्का ऐसे हैं, जो प्रत्याशियों को मिले वोटों के अनुपात में निर्वाचकों की संख्या तय करते हैं। प्रत्याशियों की रणनीति स्विंग स्टेट्स को जीतने की होती है। स्विंग स्टेट्स मतलब जिनका रुख साफ नहीं है। यदि किसी राज्य का पलड़ा किसी तरफ भारी है, तो वहाँ अपने वोट बढ़ाने से कोई फायदा नहीं।
निर्वाचक पाला
बदल लें तो?
कुछ राज्य अपने
प्रतिनिधियों को मनमर्जी के प्रत्याशी को वोट देने की अनुमति देते हैं, पर आमतौर पर निर्वाचक पाला नहीं बदलते। वे हमेशा उसी
प्रत्याशी को वोट देते हैं, जिसे उनके राज्य में
बहुमत मिलता है। यदि कभी कोई निर्वाचक राज्य से जीते प्रत्याशी को वोट नहीं देता, तो उसे ‘फेथलैस’ करार दिया जाता है। सन 2016 में सात वोट ऐसे पड़े थे, पर उससे परिणाम
पर असर नहीं पड़ा।
प्रत्याशियों का चयन
प्रत्याशियों को चुनने के लिए राजनीतिक दलों की अपनी प्रक्रियाएं हैं, जिन्हें प्राइमरी और कॉकस कहते हैं। यह प्रक्रिया इस साल फरवरी से शुरू होकर अगस्त तक चली थी। राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी चुने जाने के बाद वह व्यक्ति अपने सहयोगी उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का चयन खुद करता है। अलबत्ता लिबरटेरियन पार्टी उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी का चयन भी करती है। सितंबर और अक्तूबर के महीने में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के दोनों प्रमुख प्रत्याशियों के बीच डिबेट होती है। राष्ट्रपति पद की एक डिबेट अबतक हो चुकी है और दूसरी 15 अक्तूबर को मायामी में प्रस्तावित है।
डोनाल्ड ट्रंप और
माइक पेंस रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी हैं और जो बिडेन और कमला हैरिस
डेमोक्रेटिक पार्टी के। इनके अलावा जो जोरगेनसेन लिबरटेरियन पार्टी की प्रत्याशी
हैं और उनके साथ स्पाइक गोहेन उपराष्ट्रपति पद के प्रत्याशी हैं। चौथी ग्रीन
पार्टी के प्रत्याशी हैं हॉवी हॉकिंस जिनके साथ हैं एंजेला निकोल वॉकर
उपराष्ट्रपति पद की प्रत्याशी। राष्ट्रपति पद के विजेता प्रत्याशी की घोषणा होने
के बाद 20 जनवरी 2021 को नए राष्ट्रपति शपथ
लेंगे। अमेरिकी संविधान के अनुच्छेद 2 के अनुसार देश का
राष्ट्रपति बनने के लिए वह व्यक्ति अमेरिका में जन्मा हो, उसकी आयु 35 वर्ष या उससे ज्यादा हो
साथ ही वह कम से कम पिछले 14 साल से अमेरिका में
निवास कर रहा हो।
कितनी पार्टियाँ?
कई बार हम समझते
हैं कि अमेरिका में केवल दो पार्टियां ही हैं। ऐसा नहीं है। अमेरिका में 50 से ज्यादा राजनीतिक दल हैं। पर व्यावहारिक रूप से दो दलों
की प्रणाली है। ये दो हैं रिपब्लिकन पार्टी और डेमोक्रेटिक पार्टी। पर ये
पार्टियाँ शुरू से नहीं हैं। अमेरिकी संविधान में पार्टियों के बारे में कोई
व्यवस्था नहीं है। समय के साथ उनका विकास हुआ है। संविधान 1787 में लिखा गया और विभिन्न राज्यों ने 1788 में इसकी पुष्टि की और 1789 में इसे लागू
किया गया।
देश के पहले राष्ट्रपति
थे जॉर्ज वॉशिंगटन, जिन्होंने संविधान सभा की अध्यक्षता की थी।
उनकी कोई पार्टी नहीं थी। जब संविधान को स्वीकार किया जा रहा था तब उसकी पुष्टि के
पक्षधर फेडरलिस्ट और उसके विरोध एंटी-फेडरलिस्ट कहलाने लगे। देश के दूसरे
राष्ट्रपति जॉन एडम्स फेडरलिस्ट पार्टी से ताल्लुक रखते थे। उसी दौरान डेमोक्रेटिक
रिपब्लिकन सोसाइटीज नाम से एक और समूह उभरने लगा।
देश के तीसरे
राष्ट्रपति टॉमस जैफ़रसन इसी से ताल्लुक रखते थे। उनके बाद के तीन राष्ट्रपति इसी
पार्टी से थे। सन 1820 के दशक में डेमोक्रेटिक
पार्टी बनी और देश के सातवें राष्ट्रपति एंड्रयू जैक्सन डेमोक्रेटिक पार्टी की और
से पहली बार राष्ट्रपति बने। सन 1854 में रिपब्लिकन पार्टी की
स्थापना के पहले ह्विग पार्टी के भी चार राष्ट्रपति बने। गुलामी की प्रथा के विरोध
में खड़ी हुई रिपब्लिकन पार्टी के पहले राष्ट्रपति थे अब्राहम लिंकन, जो 1861 में राष्ट्रपति बने।
उसके बाद से देश में या तो रिपब्लिकन पार्टी के प्रत्याशी को जीत मिली है या
डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रत्याशी को।
संसदीय चुनाव
हालांकि देश में
हरेक चार साल पर राष्ट्रपति पद के चुनाव होते हैं, जिसके साथ संसदीय
चुनाव भी होते हैं। यानी कि प्रतिनिधि सदन और सीनेट के सदस्यों के चुनाव भी होंगे। प्रतिनिधि सदन का कार्यकाल दो साल का होता है। सीनेट के एक तिहाई सदस्य हरेक दो साल बाद होने वाले चुनावों में नए चुनकर आते हैं। इनके अलावा राज्यों की विधायिकाओं और गवर्नरों के चुनाव भी इसके साथ होंगे। इसके
दो साल बाद मध्यावधि चुनाव होंगे, जिसमें सीनेट के एक तिहाई
सदस्यों के अलावा प्रतिनिधि सदन के चुनाव होंगे।
अमेरिकी संसद के
दो सदन हैं। हाउस ऑफ़ रिप्रेजेंटेटिव्स में 435 सदस्य होते हैं। और
दूसरा है, सीनेट। इसमें 100 सदस्य होते हैं।
सीनेट की चक्रीय व्यवस्था के तहत हर दो साल पर एक तिहाई सीटों पर चुनाव होते हैं।
इसबार 33 सदस्यों का चुनाव होगा, जो छह साल के लिए चुने जाएंगे। इन 33 के अलावा दो सदस्यों के निधन के कारण खाली हुई सीटों पर भी
चुनाव होगा।
सन 2016 के चुनाव के बाद से रिपब्लिकन पार्टी का दोनों सदनों में
बहुमत हो गया था। वे बिना रोक-टोक के अपनी सरकार चला रहे थे, पर 2018 में प्रतिनिधि सदन में
डेमोक्रेटिक पार्टी का बहुमत हो गया। दूसरी ओर सीनेट में रिपब्लिकन पार्टी के
बहुमत में इज़ाफा हुआ। डेमोक्रेट्स ने गवर्नरों के चुनाव में भी कई प्रांतों में
कामयाबी हासिल की थी।
देश के 50 राज्यों के 435 जिलों से 434 सदस्य प्रतिनिधि सदन में चुनकर आएंगे, जिनसे देश की 117 वीं कांग्रेस होगी, जो 3 जनवरी 2021 से 3 जनवरी 2023 तक काम करेगी। इस चुनाव के बाद पता लगेगा कि दोनों सदनों
पर किसी एक दल का वर्चस्व है या नहीं।
अधिकारों के
मामले में सीनेटर ज्यादा ताकतवर होते हैं। प्रशासन के कुछ उच्च पदों पर नियुक्ति
के लिए अधिकारियों की सीनेट में मंज़ूरी ज़रूरी होती है। अदालतों के जजों की
नियुक्ति भी सीनेट को मंज़ूर करना ज़रूरी होता है। महत्वपूर्ण संधियों की पुष्टि
सीनेट से करानी होती है। पिछले दिनों ट्रंप के खिलाफ प्रतिनिधि सदन ने महाभियोग
पास कर दिया, पर सीनेट ने रोक दिया।
अमेरिकी संसद का
गठन इस प्रकार है कि जहाँ प्रतिनिधि सदन में जनसंख्या के अनुपात में सदस्य आते हैं, वहीं सीनेट में भौगोलिक अनुपात में। देश 435 चुनाव क्षेत्रों में विभाजित है, जो हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स के लिए सदस्य भेजते हैं, जबकि हरेक राज्य दो-दो सदस्य सीनेट में भेजता है। इससे होता
यह है कि कई बार बहुत से राज्य किसी एक खास दल के पाले में होते हैं और कई बार
दूसरे दल के पाले में।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (11-10-2020) को "बिन आँखों के जग सूना है" (चर्चा अंक-3851) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह , बहुत अच्छी जानकारी दी आपने।
ReplyDeleteसुन्दर जानकारी।
ReplyDeleteयहआ टीवी पर दोनो पक्षों की डिबेट भी प्रत्याशी की मानसिकता और उसके स्तर का द्योतन कर देती है.
ReplyDeleteसरल सा नहीं है.
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