Wednesday, October 28, 2020

भारत-अमेरिका के बीच हुए ‘बेका’ समझौते का व्यावहारिक अर्थ क्या है?


भारत और अमेरिका के बीच रक्षा से जुड़े निम्नलिखित
समझौते हुए हैं। इनमें GSOMIA, LEMOA और COMCASA के बाद BECA चौथा सबसे महत्वपूर्ण समझौता है। सैनिक गतिविधियाँ बारहों महीने और चौबीसों घंटे चलती हैं। सारी दुनिया सो जाए, पर सेना कहीं न कहीं जागती रहती है। बेका उसी जागते रहने का समझौता है। जिस तरह हमारी सेना जागती है, उसी तरह अमेरिकी सेना भी जागती रहती है।

अभी तक हमारे जागने से जो जानकारियाँ हासिल होती थीं, वे हमारे पास रहती थीं और अमेरिका की जानकारियाँ अमेरिका के पास। हो सकता है कि हम बाद में जानकारियों का आदान-प्रदान भी करते रहे हों, पर यह रियल टाइम में निरंतर चलने वाली गतिविधि नहीं थी। अब यह रियल टाइम में निरंतर चलने वाली गतिविधि बन गई है।

मसलन अमेरिकी नौसेना ने दक्षिण चीन सागर से रवाना हुई किसी चीनी पनडुब्बी को डिटेक्ट किया, तो उसी वक्त भारतीय नौसेना को भी पता लग जाएगा कि एक पनडुब्बी चली है। यदि वह हिंद महासागर की ओर आ रही होगी, तो भारत के पी-8आई विमान अपनी गश्त के दायरे में आने पर उसका पीछा करने लगेंगे। इस तरह अमेरिकी नौसेना हिंद महासागर में भी उसपर निगाहें रख सकेगी। यह केवल एक उदाहरण है। सैनिक गतिविधियाँ जमीन, आसमान, अंतरिक्ष और समुद्र के अलावा अब सायबर स्पेस में भी चलती हैं। इसलिए इस निगहबानी का दायरा बहुत बड़ा है।

पिछले साल फरवरी में बालाकोट पर हमला करते समय भारतीय वायुसेना के विमान पूरे बालाकोट तक नहीं गए थे। उन्होंने काफी दूरी से प्रिसीशन बमों को प्रक्षेपित किया था। चूंकि बम के साथ उसे निर्देशित करने वाला नेवीगेशन सिस्टम भी काम करता है, इसलिए बम की मार अचूक होती है।  

कहा जाता है कि सन 1999 में करगिल युद्ध के समय अमेरिका ने भारत को अपनी जीपीएस सेवाएं देने पर रोक लगा दी थी। यह रोक भारत और पाकिस्तान दोनों पर थी। अमेरिका को डर था कि कहीं एटमी युद्ध न हो जाए। उस वक्त भारत और अमेरिका के बीच कोई रक्षा समझौता नहीं था। आज है। पर अमेरिका ने 2012 में ब्रह्मोस मिसाइल के एक परीक्षण के समय पर भी हमें यह सुविधा नहीं दी। आज हमें जीपीएस की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारत के पास अब अपना नेवीगेशन सिस्टम NAVIC है। हमारे उपग्रह अंतरिक्ष में परिक्रमा कर रहे हैं। साथ ही आज भारत और अमेरिका के बीच एक समझौता है।

रक्षा समझौतों में शस्त्रास्त्र के इस्तेमाल और उनसे जुड़ी गोपनीयता का भी खासा महत्व होता है। हमारे पास रूसी और अमेरिकी तकनीक दोनों हैं। रूसी तकनीक के गोपनीय कोड हम अमेरिका से साथ साझा नहीं कर सकते। ऐसा ही हम अमेरिकी तकनीक के बाबत रूस के साथ नहीं कर सकते। कई प्रकार की शस्त्र प्रणालियाँ ऐसी हैं, जिन्हें हम किसी एक देश की प्रणाली के साथ जोड़ नहीं सकते। मसलन रूसी सुखोई विमान पर अमेरिकी मिसाइल तैनात नहीं की जा सकती। इस तरह की तमाम पेचीदगियों से भी निपटना होता है।

दोनों देशों के बीच हुए रक्षा समझौते इस प्रकार हैं:

 

·      GSOMIA सन 2002 में दोनों देशों के बीच पहला समझौता हुआ, जिसका नाम था जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिटरी इनफॉर्मेशन एग्रीमेंट। भारत की सरकारें अमेरिका के साथ सैनिक समझौते करने से हमेशा झिझकती रही हैं। जिस समय यह समझौता हुआ, देश में अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार थी। वह सरकार भी झिझकती थी, पर परिस्थितियाँ ऐसी बनती चली गईं कि भारत उस समझौते में शामिल हुआ।

·      LEMOA  2016 में दोनों के बीच लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट (लेमोआ) हुआ। इस समझौते के बाद दोनों देशों की सेनाओं ने एक-दूसरे के सैनिक अड्डों की सुविधाओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया था।

·      HOSTAC सन 2017 में दोनों देशों के बीच हुआ हेलिकॉप्टर ऑपरेशंस फ्रॉम शिप्स अदर दैन एयरक्राफ्ट कैरियर्स समझौता हालांकि सामान्य समझौता था, पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों के बढ़ते सहयोग का वह एक बड़ा कदम था।

·      COMCASA सितंबर 2018 में दोनों देशों के बीच टू प्लस टू वार्ता शुरू होने पर कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा) हुआ, जो रक्षा के क्षेत्र में आपसी समन्वय से जुड़ा है।

·      ISA दिसंबर 2019 में अमेरिका में हुई प्लस टू वार्ता में इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी एनेक्स हुआ, जो औद्योगिक सुरक्षा से जुड़ा है।

·      BECA तीसरी टू प्लस टू वार्ता के दौरान हुआ बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) के साथ सामरिक सहयोग का एक दौर पूरा हो गया है।

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