Sunday, October 25, 2020

कश्मीर में विरोधी दलों का मोर्चा


कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने यह कहकर सनसनी फैला दी है कि जबतक अनुच्छेद 370 की वापसी नहीं होगी, तबतक मैं तिरंगा झंडा नहीं फहराऊँगी। उनका कहना है कि जब हमारे झंडे की वापसी होगी, तभी मैं तिरंगा हाथ में लूँगी। उनके इस बयान की आलोचना केवल भारतीय जनता पार्टी ने नहीं की है। साथ में कांग्रेस ने भी की है।

करीब 14 महीने की कैद के बाद हाल में रिहा हुई महबूबा ने शुक्रवार 23 अक्तूबर को कहा कि जबतक गत वर्ष 5 अगस्त को हुए सांविधानिक परिवर्तन वापस नहीं लिए जाएंगे, मैं चुनाव भी नहीं लड़ूँगी। महबूबा की प्रेस कांफ्रेंस के दौरान पूर्व जम्मू-कश्मीर राज्य का झंडा भी मेज पर रखा था। पिछले साल महबूबा ने कहा था कि यदि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया गया, तो कोई भी तिरंगा उठाने वाला नहीं रहेगा। अब उन्होंने कहा है कि हमारा उस झंडे से रिश्ता इस झंडे ने बनाया है। वह इस झंडे से अलग नहीं है।

महबूबा मुफ्ती का आशय कश्मीर की स्वायत्तता से है। भारतीय संघ में अलग-अलग इलाकों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भौगोलिक विशेषता को बनाए रखने की व्यवस्थाएं हैं। जम्मू कश्मीर की स्वायत्तता का सवाल काफी हद तक राजनीतिक है और उसका सीधा रिश्ता देश के विभाजन से है। यह सच है कि विभाजन के समय कश्मीर भौगोलिक रूप से पाकिस्तान से बेहतर तरीके से जुड़ा था। गुरदासपुर और फिरोजपुर भारत को न मिले होते तो कश्मीर से संपर्क भी कठिन था। पाकिस्तान का कहना है कि कश्मीर चूंकि मुस्लिम बहुल इलाका है, इसलिए उसे पाकिस्तान में होना चाहिए। इसका क्या मतलब निकाला जाए?

कश्मीर की विशेष स्थिति

क्या भारत में ऐसा कोई इलाका नहीं होना चाहिए, जहाँ रहने वालों में मुसलमान ज्यादा हों? कश्मीर की सबसे बड़ी परीक्षा भारतीय धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में ही है। महबूबा मुफ्ती ने कहा कि हमने उदार, लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष भारत में विलय किया है। हम आज के भारत के साथ सहज नहीं हैं, जहाँ अल्पसंख्यक और दलित सुरक्षित नहीं हैं।

इसके जवाब में जम्मू कश्मीर भाजपा के अध्यक्ष रविंदर रैना ने कहा, पृथ्वी पर कोई ताकत ऐसी नहीं है, जो राज्य के झंडे और अनुच्छेद 370 की वापसी कर सके। यदि कश्मीरी नेता भारत में खुद को सुरक्षित पाते हैं, तो वे पाकिस्तान जा सकते हैं। जम्मू कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्य प्रवक्ता रविंदर शर्मा ने कहा कि जैसा बयान महबूबा ने दिया है, वह किसी भी समाज में स्वीकार्य नहीं होगा।  

उधर कश्मीर में विरोधी दलों के गठबंधन की तैयारियाँ हो रही हैं। सात दलों का गुपकार गठबंधन धीरे-धीरे औपचारिक शक्ल ले रहा है। इस गठबंधन में एक कार्यकारी परिषद होगी, जिसके एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष, महासचिव, मुख्य कोऑर्डिनेटर, एक मुख्य प्रवक्ता और सभी पार्टियों के अलग-अलग प्रवक्ता होंगे। शनिवार 24 अक्तूबर को महबूबा मुफ्ती के घर पर हुई बैठक में इस गठबंधन को और साफ शक्ल दी गई। फारूक अब्दुल्ला इसके अध्यक्ष बनाए गए और पीडीपी की प्रमुख महबूबा मुफ्ती को उपाध्यक्ष बनाया गया। सीपीएम के नेता एमवाई तरिगामी इसके संयोजक और हसनैन मसूदी कोऑर्डिनेटर बनाए गए। इस गठबंधन का नाम है पीपुल्स एलायंस फॉर गुपकार डिक्लरेशन (पीएजीडी)। पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी लोन इस गठबंधन के प्रवक्ता होंगे।

गठबंधन की 15 अक्तूबर को हुई पहली बैठक में नेशनल कांफ्रेंस, पीपीपी, पीपुल्स कांफ्रेंस, माकपा और अवामी नेशनल कांफ्रेंस ने 4 अगस्त 2019 की गुपकार घोषणा से अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। कांग्रेस और भाकपा के प्रतिनिधि इस बैठक में नहीं थे, पर दोनों पार्टियों ने भी अपने समर्थन को दोहराया है।

गुपकार गठबंधन क्या है?

यह गुपकार घोषणा जम्मू-कश्मीर की छह मुख्य पार्टियों की ओर से अगस्त 2019 में शुरू की गई साझा मुहिम का विस्तार है। जब इस अभियान की घोषणा हुई थी तब इसका लक्ष्य पूर्ववर्ती जम्मू और कश्मीर राज्य के विशेष दर्जे और अनुच्छेद 35 ए और अनुच्छेद 370 को बचाना और राज्य के विभाजन को रोकना था, जो कि अब हो चुका है। गुपकार घोषणा के अगले दिन ही केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर का राज्य का दर्जा ही खत्म कर इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित कर दिया था। अब इन पार्टियों ने 2019 की गुपकार घोषणा को बरकरार रखा है और इस गठबंधन को नाम दिया है पीपुल्स अलायंस फॉर गुपकार डिक्लरेशन। एनसी और पीडीपी के अलावा इसमें सीपीआई(एम), पीपुल्स कांफ्रेंस (पीसी), जेकेपीएम और एएनसी शामिल हैं।

अभियान की घोषणा करते हुए जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने कहा, "हमारी लड़ाई एक संवैधानिक लड़ाई है। हम चाहते हैं कि भारत सरकार जम्मू और कश्मीर के लोगों को उनके वे अधिकार वापस लौटा दे जो उनके पास 5 अगस्त 2019 से पहले थे। 2019 की 'गुपकार घोषणा' वाली बैठक की तरह यह बैठक भी अब्दुल्ला के श्रीनगर के गुपकार इलाके में उनके घर पर हुई।

जनता से संवाद

कश्मीर मामलों के जानकार बताते हैं कि अभी तो इन पार्टियों का लक्ष्य है जम्मू, कश्मीर और लद्दाख इलाकों में जनता के बीच जाना, उनसे संवाद स्थापित करना और फिर उनके समर्थन से आगे की योजना बनाना। इस अभियान के तहत एक दूसरे की विरोधी रही इन पार्टियों का साथ आना और एक साझा लक्ष्य के लिए अपने मतभेदों को एक ओर रख देना बड़ा कदम माना जा रहा है।

अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कांग्रेस इस गठबंधन में औपचारिक रूप से शामिल है या नहीं। 2019 में फारूक अब्दुल्ला के निवास पर हुई बैठक में प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष ताज मोहिउद्दीन शामिल हुए थे। इस बार ना मोहिउद्दीन ने बैठक में हिस्सा लिया न प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर ने। बैठक के बाद की घोषणाओं में भी सिर्फ बाकी छह पार्टियों का जिक्र है, और कांग्रेस का नहीं है। मीर ने कहा कि उन्हें बैठक में शामिल होने का निमंत्रण मिला था लेकिन वो स्वास्थ्य कारणों से शामिल नहीं हो सके। कश्मीरी कांग्रेस नेता सलमान सोज ने एक ट्वीट में कहा कि भले ही कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा न हो, लेकिन व्यक्तिगत रूप से मैं इस पहल का समर्थन करता हूँ।

इन पार्टियों का औपचारिक गठबंधन तो तैयार हो गया है, पर भी कोई साझा कार्यक्रम सामने नहीं आया है। सवाल है कि यदि चुनाव की घोषणा हुई, तो ये दल उसमें शामिल होंगे या नहीं। अलबत्ता इन पार्टियों के नेता अंदरूनी तौर पर अब जम्मू कश्मीर और लद्दाख इलाकों में जनता के बीच जाकर उनसे संवाद स्थापित करके उनकी राय जानने का प्रयास करेंगे। अभी तक इन दलों को जनता पसंद नहीं करती थी, पर अनुच्छेद 370 हटने के कारण इन दलों की साख भी बहाल हुई है।

यह मोर्चा घाटी में सक्रिय रह सकता है, पर जम्मू और लद्दाख में इसकी स्थिति क्या होगी, यह अभी स्पष्ट नहीं है। चूंकि यह राज्य अभी केंद्र शासित क्षेत्र है, इसलिए सरकार बनी भी तो उसकी ताकत सीमित होगी। दिल्ली की तरह यहाँ विधानसभा तो होगी, पर कानून-व्यवस्था केंद्र के हाथ में होगी। हालांकि केंद्र ने कहा था कि इसे पूर्ण राज्य का दर्जा दिया जाएगा, पर यह तभी संभव होगा, जब यहाँ के राजनीतिक दल 370 की बहाली की माँग से पीछे हटेंगे।

 

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