शुक्रवार की
दोपहर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के विलय की घोषणा के
लिए जो समय चुना था, वह सरकार की समझदारी को भी बताता है. इस प्रेस कांफ्रेंस के
समाप्त होते ही खबरिया चैनलों के स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज थी कि इस वित्तवर्ष की
पहली तिमाही में जीडीपी की दर घटकर 5 फीसदी हो गई है. बैंकों के विलय की घोषणा ने
जो सकारात्मक माहौल पैदा किया था, उसके कारण जीडीपी की खबर से लगने वाला धक्का,
थोड़ा धीरे से लगा. बेशक मंदी की खबरें चिंताजनक हैं, पर सरकार यह संदेश देना
चाहती है कि हम सावधान हैं और अर्थव्यवस्था की तस्वीर बदल कर रखेंगे. कई बार संकट
के बीच से ही समाधान भी निकलते हैं.
वित्तमंत्री ने
बैंकों के महाविलय की जो घोषणा की है, उससे सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की संख्या 18 से घटकर 12
रह जाएगी. वित्त मंत्री निर्मला पंजाब नेशनल बैंक, ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स और
यूनाइटेड बैंक ऑफ इंडिया का अधिग्रहण करेगा. इसी तरह वहीं केनरा बैंक में सिंडीकेट
बैंक का, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया
में आंध्रा बैंक और कॉर्पोरेशन बैंक तथा इंडियन बैंक में इलाहाबाद बैंक का विलय
होगा. अब इन 10 बैंकों के विलय के बाद चार बैंक बन जाएंगे. बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक
ऑफ इंडिया के रूप में दो बड़े बैंक पहले से हैं. इंडियन ओवरसीज बैंक, यूको बैंक, बैंक ऑफ महाराष्ट्र और पंजाब एंड सिंध बैंक पहले की तरह काम
करते रहेंगे क्योंकि ये मजबूत क्षेत्रीय बैंक हैं. बैंक-राष्ट्रीयकरण के पचास वर्ष
बाद उन्हें लेकर यह सबसे बड़ा फैसला है.
विलय के साथ-साथ बैंकों
के नए परिचालन सुधारों की भी घोषणा की गई है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के
निदेशक मंडल अब महाप्रबंधक से ऊपर के दर्जे के अधिकारियों का प्रदर्शन आधारित
मूल्यांकन करेंगे. इन बैंकों में मुख्य जोखिम अधिकारियों की नियुक्ति होगी, जो
कर्ज देते वक्त पूँजी की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे. बैंकों को बोर्डों को वरिष्ठ
प्रबंधन के कार्यकाल की योजना तय करने की आजादी होगी. बड़े सरकारी बैंकों में
कार्यकारी निदेशकों की संख्या मौजूदा तीन से बढ़ाकर चार की जाएगी.
वित्तमंत्री की
दूसरी घोषणा यह थी कि सरकार चालू वित्त वर्ष के दौरान 70,000 करोड़ रुपये के पुनर्पूंजीकरण
में से करीब 55,250 करोड़ रुपये की पूंजी इन्हीं चार बैंकों में डालेगी. प्रस्तावित
विलय की समय सीमा इन दस बैंकों के बोर्डों से परामर्श करने के बाद तय की जाएगी.
सार्वजनिक बैंकों के पुनर्गठन के दो चरण पहले ही किए जा चुके हैं. सबसे पहले स्टेट
बैंक ऑफ इंडिया में उसके अनुषंगी बैंकों
और महिला बैंक का विलय किया गया. उसके बाद बैंक ऑफ बड़ौदा, विजया बैंक और देना बैंक का आपस में विलय किया
गया.
52 लाख करोड़
रुपये के कारोबार के साथ स्टेट बैंक अब दुनिया के 50 सबसे बड़े बैंकों की सूची में
शामिल हो गया है. सरकार चाहती है कि सार्वजनिक क्षेत्र के भारतीय बैंक अब वैश्विक
प्रतियोगिता में शामिल हों. चूंकि उन्हें तकनीक और कौशल पर निवेश करना होगा, इसलिए
उन्हें अपने आधार का विस्तार करना ही होगा. विलय के बाद इन बैंकों के ग्राहकों का बेस, मार्केट में पहुंच और संचालन में दक्षता
बढ़ेगी. अलावा ग्राहकों को अच्छी सेवाएं भी मिलेंगी. बड़े बैंकों को अपने आकार का
लाभ मिलता है. वे कम खर्च पर बेहतर सेवाएं दे सकते हैं. उनकी कर्ज देने की क्षमता
भी बढ़ेगी.
इस वक्त सरकार के
सामने सबसे बड़ी समस्या बाजार में पूँजी निवेश और तरलता की है. पिछले एक दशक से
ज्यादा समय से सार्वजनिक बैंकों ने कर्ज देने में जो असावधानियाँ बरतीं, उनके कारण
करीब 10 लाख करोड़ रुपये की पूँजी फँस गई. उसे वापस लाने के लिए कानूनी बदलाव के
साथ-साथ बैंकिंग प्रणाली में सुधार की जरूरत भी है. यह निर्णय उसी दिशा में एक बड़ा
कदम है.
वित्तमंत्री ने
अपने संवाददाता सम्मेलन में बताया कि बैंकिंग सेक्टर में पिछले वित्त वर्ष में
करीब 8 लाख करोड़ रुपये का एनपीए था, जो अब 7.90 लाख करोड़ रुपये रह गया है. कमजोर बैंकों के
विलय का मतलब यह भी है कि बैंकों की तादाद कम होगी, लेकिन वे पूंजीगत आधार पर बेहतर होंगे और उनकी निगरानी में
आसानी होगी. उनके विलय से उनका सम्मिलित कारोबार काफी बढ़ जाता है. इससे उनका
एनपीए कुल मिलाकर संभालने लायक हो जाता है. मजबूत बैंक ग्राहकों को लंबी अवधि की
जमा पर ज्यादा आकर्षक ब्याज दे सकते हैं और कर्ज की दरें भी कम कर सकते हैं.
हालांकि विलय की
प्रक्रिया पूरी होने में समय लगेगा. इसलिए इस विलय का असर नजर आने में भी समय
लगेगा. पर विशेषज्ञों का कहना है कि नए और विशाल बैंक लंबी अवधि में जमा पर अच्छी
ब्याज दर की पेशकश करेंगे. नए बैंकों की परिसंपत्ति ज्यादा होगी, एनपीए कम होगा और कारोबार बढ़ेगा. बैंक होम लोन, ऑटो लोन जैसी कर्ज की दरों को घटा सकते हैं. सामान्य
ग्राहकों के नजरिए से कुछ चीजें बदलेंगी. उनकी चेकबुक बदल सकती हैं, बैंक के
आईएफसी कोड बदल सकते हैं. शाखाओं के नाम बदल सकते हैं. बैंक की शाखाएं ज्यादा
होंगी और सुविधाएं भी ज्यादा. बैंकों के पास ज्यादा पूँजी होगी, तो वे ज्यादा बड़ी
संख्या में एटीएम वगैरह स्थापित कर सकेंगे.
चूंकि मुद्रा और
जनधन जैसी सरकारी योजनाओं का विस्तार हो रहा है और बैंकों का कार्यक्षेत्र काफी हद
तक ग्रामीण इलाकों में होने जा रहा है, इसलिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के
सामने नई चुनौतियाँ भी हैं. एक बड़ी चुनौती कर्मचारियों को भरोसे में लेने की है. विलय
की घोषणा करते हुए वित्तमंत्री और वित्त सचिव राजीव कुमार ने बार-बार दोहराया कि
इस निर्णय से किसी कर्मचारी की नौकरी नहीं जाएगी. जिन बैंकों में इनका विलय होगा, वे विलीन होने वाले बैंकों के कर्मचारियों को
बनाए रखेंगे. बड़े बैंक फायदे में आएंगे, तो लाभ कर्मचारियों को मिलेगा.
दूसरी तरफ कर्मचारी
यूनियनों ने अपने संदेह व्यक्त किए हैं. भारतीय मजदूर संघ से संबद्ध नेशनल
ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स ने विलय को बैंकों के निजीकरण की ओर उठाया गया कदम
बताया है. कर्मचारियों का कहना है कि बैंक कर्मचारियों की छंटनी होगी, शाखाएं बंद होंगी, नए भरती पर रोक भी लग सकती
है. बैंकों का एकीकरण तो हो जाएगा लेकिन कर्मचारियों व अधिकारियों की सेवा शर्तों, प्रमोशन, सीनियॉरिटी, ट्रांसफर वगैरह का एकीकरण मुश्किल होगा. कर्मचारी लंबे समय
से वेतन वृद्धि न होने कारण नाराज हैं.
अर्थव्यवस्था
भावनाओं और धारणाओं के सहारे भी चलती है. पिछले कुछ वर्षों से देश में मंदी, बेरोजगारी, नौकरियां और खासतौर से ग्रामीण क्षेत्र से अच्छी खबरें न आने की वजह से
नकारात्मक है. जब धारणा नकारात्मक होती है, लोग कम खर्च करते हैं. कम से कम उनका विवेकाधीन खर्च रुक जाता है. इससे आर्थिक मंदी और बढ़ती है. हाल में ब्रिटानिया लिमिटेड के प्रबंध निदेशक वरुण बेरी ने कहा था कि ग्राहक
अगर 5 रुपये का सामान खरीदने के पहले
दो बार सोच रहे हों तो यकीनन अर्थव्यवस्था में कुछ गंभीर मसला है.
इस नकारात्मकता को भी तोड़ने की जरूरत है. शुक्रवार को वित्तमंत्री की घोषणा के फौरन बाद देश में मंदी
के आँकड़े प्रकाशित हुए, तो विशेषज्ञों की पहली प्रतिक्रिया यही थी कि आर्थिक
सुधारों में तेजी लाने की जरूरत है. बैंकिग पुनर्गठन और एफडीआई से जुड़े फैसलों के
साथ इसकी शुरुआत हो गई है. उम्मीद है और सरकार ने कहा भी है कि कुछ बड़े फैसले और
होंगे. फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत है कि ग्रामीण और शहरी बाजारों में माँग और
अर्थव्यवस्था में विश्वास का माहौल पैदा हो.
अर्थशास्त्रियों के नजरिए से इस धीमी संवृद्धि की बड़ी वजह
है ग्रामीण क्षेत्र से घटती माँग. कृषि उत्पादों की कम कीमतों और खेती के लगातार
अलाभकारी होते जाने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता सामग्री की माँग कम
हुई है. कई वजहों से ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी का माहौल है. इससे लाखों श्रमिक
बेरोजगार हो गए हैं या उन्हें कम पगार पर काम करना पड़ रहा है. गाँवों की माँग
घटने का पता दोपहिया वाहनों की बिक्री से और शहरी माँग का पता कारों की बिक्री से
लगता है. दोनों में गिरावट है. इस गिरावट को रोकने में बैंकिंग की भी एक भूमिका
है. उसे निभाने का समय आ रहा है.
वाह बेहतरीन रचनाओं का संगम।एक से बढ़कर एक प्रस्तुति।
ReplyDeleteबेखयाली में भी तेरा ही ख्याल आये क्यूँ बिछड़ना है ज़रूरी ये सवाल आये