सायबर खतरे-3
लड़ाई की विनाशकारी प्रवृत्तियों के
बावजूद तीसरे विश्व-युद्ध का खतरा हमेशा बना रहेगा। अमेरिकी लेखक पीटर सिंगर और
ऑगस्ट के 2015 में प्रकाशित उपन्यास ‘द गोस्ट फ्लीट’ का
विषय तीसरा विश्व-युद्ध है, जिसमें अमेरिका, चीन और रूस की हिस्सेदारी होगी।
उपन्यास के कथाक्रम से ज्यादा रोचक है उस तकनीक का वर्णन जो इस युद्ध में काम आई।
यह उपन्यास भविष्य के युद्ध की झलक दिखाता है।
आने वाले वक्त की लड़ाई में शामिल सारे
योद्धा परम्परागत फौजियों जैसे वर्दीधारी नहीं होंगे। बड़ी संख्या में लोग कम्प्यूटर कंसोल के पीछे बैठकर काम करेंगे। यह उपन्यास आने वाले दौर के युद्ध के
सामाजिक-आर्थिक और तकनीकी पहलुओं को उजागर करता है। लेखक बताते हैं कि भावी युद्ध दो ऐसे ठिकानों
पर लड़े जाएंगे, जहाँ
आज तक कभी लड़ाई नहीं हुई। ये जगहें हैं स्पेस और सायबर स्पेस।
इज़रायली हमले
इसी साल की बात है शनिवार 4 मई को इजरायली
सेना ने गज़ा पट्टी में हमस के ठिकानों पर जबर्दस्त हमले किए। हाल के वर्षों में इतने बड़े हमले इज़रायल ने पहली बार किए थे।
हालांकि लड़ाई ज्यादा नहीं बढ़ी, महत्वपूर्ण बात यह थी कि इन इज़रायली हमलों में दूसरे ठिकानों के अलावा हमस के
सायबर केन्द्र को निशाना बनाया गया। हाल में हमस ने सायबर-स्पेस पर हमले बोले थे।
इज़रायल ने इस बात का ज्यादा विवरण नहीं दिया कि हमस
ने सायबर हमला कब और किस तरह से किया, पर यह साफ कहा कि यह सायबर हमला था, जिसका
जवाब हमने हवाई हमले से किया। इज़रायल के
इस हमले में खुफिया एजेंसी ‘शिन बेट’ भी
शामिल थी, जिसे इज़रायल की अदृश्य एजेंसी माना जाता है।
इसके पहले अगस्त 2015 में अमेरिका ने ब्रिटिश नागरिक जुनैद हुसेन की
हत्या के लिए सीरिया के रक्का में ड्रोन हमला किया था। जुनैद हुसेन इस्लामिक स्टेट
का सायबर एक्सपर्ट था, जिसने अमेरिका सेना के कुछ भेद ऑनलाइन उजागर कर दिए थे।
माना जाता है कि वह सायबर वॉर की शुरुआत थी। इज़रायल और हमस के बीच लगातार चल रहे रॉकेट युद्ध के बीच के बीच इस परिघटना
से भावी युद्धों के संकेत मिलने लगे हैं।
सेनाओं का
पुनर्गठन
हाल में अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका की अंतरिक्ष कमान की औपचारिक शुरुआत करते हुए
कहा कि हमने भूमि, हवा, समुद्र और सायबर जगत को युद्ध क्षेत्र के रूप में पहचाना है और अब
हम अंतरिक्ष को एक स्वतंत्र क्षेत्र मानेंगे जिस पर एकीकृत लड़ाकू कमान निगरानी
रखेगी। अमेरिका और चीन इन दिनों एक अघोषित सायबर युद्ध लड़ भी रहे हैं।
सैनिक पुनर्गठन केवल अमेरिका या चीन में ही नहीं हो रहा है।
भारतीय सेना भी नई तकनीक के अनुसार अपना पुनर्गठन कर रही है। अगस्त के महीने में भारतीय
सेना की नॉर्दर्न कमांड में एक वरिष्ठ ऑफिसर के कंप्यूटर में सायबर घुसपैठ की खबर आई थी। इसका पता इसलिए लग पाया, क्योंकि
अब हमारी सेना भी सायबर हमलों की निगरानी कर रही है। इन दिनों मैलवेयर आतंकवादियों
के स्लीपर सैल की तरह कंप्यूटरों में छिपकर बैठ जाते हैं और किसी खास समय पर हमला
बोलते हैं।
राष्ट्रीय सायबर सुरक्षा नीति
जिस तरह नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ होती है, वैसी ही घुसपैठ
अब सेना के कंप्यूटरों में होने का खतरा बढ़ रहा है। भारतीय सेना अब तेजी से सायबर
सुरक्षा की तरफ ध्यान दे रही है। जनवरी 2020 में देश की सायबर सुरक्षा नीति की घोषणा की जाएगी। राष्ट्रीय
सुरक्षा नीतियों के कोऑर्डिनेटर राजेश पंत ने हाल में यह जानकारी दी। हमें अपने न
केवल अपने आर्थिक ढाँचे की सुरक्षा के बारे में विचार करना है, बल्कि अपनी सेनाओं
के आधुनिकीकरण की दिशा में भी विचार करना है।
हाल में भारतीय सेनाओं ने अंतरिक्ष और सायबर सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल
स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से अपने भाषण में ‘चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ’ (सीडीएस) के नए पद के सृजन की घोषणा की है। इस पद की
आवश्यकता राष्ट्रीय सुरक्षा के बदलते परिदृश्य में जरूरी है। खासतौर से स्पेस और
सायबर सुरक्षा के आयाम जुड़ जाने के बाद आक्रमण अब केवल जल, थल और आकाश तक ही
सीमित नहीं रह गए हैं। अब किसी भी कोण से हमला हो सकता है। सीडीएस के अधीन ही देश
की सायबर और स्पेस सुरक्षा कमान होंगी।
अदृश्य युद्ध
सायबर
हमले सैनिकों की जान नहीं लेते, पर वे व्यवस्था को ध्वस्त करते हैं। मनुष्य समाज
सिस्टम्स, यानी व्यवस्थाओं की बुनियाद पर टिका है। हमारा समूचा कार्य-संचालन
आर्थिक, व्यावसायिक, बैंकिंग, शैक्षिक, ऊर्जा, परिवहन, यातायात, न्यायिक,
नागरिक-सुविधाओं यहाँ तक की रक्षा-व्यवस्थाओं पर टिका है। सायबर हमला इन
व्यवस्थाओं को घाल करता है या पूरी तरह ध्वस्त कर सकता है। इससे पूरा सामाजिक जीवन
एकबारगी ध्वस्त हो सकता है। सुरक्षा सेनाओं के तकनीकी
सिस्टम पर हमला करके उसे पंगु किया जा सकता है। आमतौर पर इसे भौतिक-युद्ध से फर्क ‘अदृश्य-युद्ध’ का अंग माना
जाता है।
तीन साल पहले नेटो ने घोषित किया था कि
भविष्य की लड़ाइयों का मैदान ‘सायबर स्पेस’ होगा। हाल में नेटो के सेक्रेटरी जनरल जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने अपने एक लेख में कहा कि
एक मिनट के सायबर हमले से हमारी अर्थव्यवस्थाओं
को अरबों डॉलर का नुकसान हो सकता है। यह खतरा आने वाले वर्षों में बढ़ता ही जाएगा।
नेटो संधि के अनुच्छेद 5 के तहत यदि किसी सदस्य देश पर सायबर हमला हुआ, तो सामूहिक
सुरक्षा के सिद्धांत के तहत नेटो उसका जवाब देगा।
चीन के अलावा इन
दिनों अमेरिका का ईरान के साथ सायबर टकराव चल रहा है। हाल में अमेरिका सायबर
सुरक्षा से जुड़े अधिकारियों ने दावा किया कि हमने जून में ईरान के खुफिया विभाग
पर इतना तगड़ा वार किया है कि उसे संभलने
में काफी समय लगेगा। अधिकारियों के अनुसार फारस की खाड़ी क्षेत्र में ईरान अमेरिका
के व्यापारिक पोतों को निशाना बना रहा था।
स्टक्सनेट का
विकास
सायबर
हमलों की खास बात यह है कि इसमें हमलावर का पता लगाना बेहद मुश्किल काम है। सन 2010 में ‘स्टक्सनेट’ के बारे में दुनिया को जानकारी मिली। यह
कंप्यूटर वायरस है जो किसी औद्योगिक प्रणाली को पूरी तरह ठप कर सकता है। कहा जाता है कि अमेरिका ने ईरान
के यूरेनियम परिष्करण ठिकानों में इस वायरस की घुसपैठ करा दी थी। इस मैलवेयर के बारे में दुनिया को जानकारी भी नहीं थी।
लम्बे समय तक यह काम करता रहा।
ईरानी नाभिकीय संयंत्रों की खराबी तो
विशेषज्ञों की जानकारी में आ गईं, पर उसकी वजह वे समझ नहीं पाए। यह सायबर अटैक था,
पर एकदम अलग किस्म का। सामान्यतः हमें लगता है कि सायबर अटैक किसी कम्प्यूटर सिस्टम
को हैक करता है। बैंक से पैसा निकालने के लिए या गोपनीय दस्तावेजों को पढ़ने के
लिए, इंजीनियरी की डिजाइनें चोरी करने के लिए। ज्यादातर वायरस कुछ चुराने के लिए
थे, पर यह वायरस कुछ चलाने के लिए बना था। यानी कि सिस्टम-संचालकों के दिमाग में
ही कीड़ा बैठा दिया गया।
माना जाता है कि अमेरिका और इज़रायल ने इस वायरस का इस्तेमाल किया था। न जाने कितने किस्म के वायरसों की ईजाद इस बीच हो गई है।
ये वायरस आपके कम्प्यूटरों के व्यवहार को बदल सकते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो
आपके दिलो-दिमाग में झोल डाल सकते हैं। आपको गलत फैसले करने पर मजबूर कर सकते हैं।
दुरुपयोग कैसे
रुकेगा?
हम रासायनिक, नाभिकीय और अंतरिक्ष
युद्धों के बाबत अंतरराष्ट्रीय संधियाँ कर रहे हैं। जैसे-जैसे हथियारों का विकास
होता जाएगा, हम उनके दुरुपयोग को रोकने के लिए वैश्विक संधियाँ करेंगे, पर व्यक्ति
या समाज की दुर्बुद्धि रोकने की संधि तो नहीं हो पाएगी। युद्ध का मतलब है अनैतिकता।
क्या नैतिकता का वैश्वीकरण भी होगा? होगा तो कैसे? धीरे-धीरे दुनिया डिजिटल तकनीक पर जा रही है। सारे
औद्योगिक और व्यापारिक काम-काज इस तकनीक के हवाले होने वाले हैं। इसलिए इनपर हमला
करके किसी भी व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ाई जा सकती हैं।
महाभारत का युद्ध न्यायपूर्ण व्यवस्था
की स्थापना के लिए लड़ा गया था। सभी युद्ध न्याय की स्थापना के लिए लड़े जाते हैं।
पर कैसे पता लगेगा कि न्याय किसके साथ है? अभी विश्व समुदाय का इतना एकीकरण नहीं हुआ है कि
राष्ट्रीय टकराव खत्म हो जाए, पर युद्ध में शामिल होने के इच्छुक नए लड़ाके
जरूर सामने आए हैं। ये आमने-सामने की बड़ी लड़ाई लड़ने के बजाय अचानक किसी खास
इलाके में हमला करके भागने वाले और खासतौर से नई तकनीक का इस्तेमाल करने वाले लोग
होंगे। एक हद तक सीमा-विवादों के कारण राष्ट्रीय टकरावों का खतरा भी बना ही रहेगा, पर
उन्हें टालने का मिकैनिज्म भी विकसित होना चाहिए। क्या वैश्विक स्तर पर सायबर युद्ध
रोकने की संधि संभव है?
तीन लेखों की
शृंखला में इसके पहले के दो लेख:
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