Friday, September 27, 2019

भारत-पाक नजरियों का अंतर क्या है?


संयुक्त राष्ट्र महासभा में आज भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषण होने वाले है. दोनों देशों में मीडिया की निगाहें इस परिघटना पर हैं. क्या कहने वाले हैं, दोनों नेता?  पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने इस अधिवेशन के लिए अमेरिका रवाना होने के पहले अपने देश के निवासियों से कहा था, मैं मिशन कश्मीर पर जा रहा हूँ. इंशा अल्लाह सारी दुनिया हमारी मदद करेगी. पर हुआ उल्टा महासभा में अपने भाषण के पहले ही उन्होंने स्वीकार कर लिया कि पाकिस्तान कश्मीर मुद्दे के अंतरराष्ट्रीयकरण के अपने प्रयासों में फेल रहा है. दूसरी तरफ भारत के प्रधानमंत्री ने हाउडी मोदी रैली में केवल एक बात से सारी कहानी साफ कर दी. उन्होंने कहा, दुनिया जानती है कि 9/11 और मुंबई में 26/11 को हुए हमलों में आतंकी कहाँ से आए थे।
संरा महासभा के भाषणों का औपचारिक महत्व बहुत ज्यादा नहीं होता. अलबत्ता उनसे इतना पता जरूर लगता है कि देशों और उनके नेतृत्व की विश्व दृष्टि क्या है. फिलहाल आज की सुबह लगता यही है कि महासभा के भाषण में इमरान खान केवल और केवल भारत-विरोधी बातें बोलेंगे और भारत के प्रधानमंत्री भारत की विश्व दृष्टि को दुनिया के सामने रखेंगे. भारत चाहता है कि पाकिस्तान भी एक सकारात्मक और दोस्ताना कार्यक्रम लेकर दुनिया के सामने आए, ताकि इस इलाके की गरीबी, मुफलिसी, अशिक्षा और बदहाली को दूर किया जा सके. आप खुद देखिएगा दोनों भाषणों के अंतर को.

इस भाषण के पहले एक बात इमरान खान ने पहले ही स्पष्ट कर दी है. उन्होंने अमेरिका में ही यह स्वीकार कर लिया है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के भारतीय फैसले का ज्यादातर देशों ने समर्थन किया है और किसी भी मंच पर पाकिस्तान को समर्थन नहीं मिल पाया है, यहाँ तक कि मुस्लिम देशों का भी नहीं. अमेरिका जाने के पहले इमरान खान सऊदी अरब गए थे, वहाँ से भी उन्हें कुछ मिला नहीं. पाकिस्तान दो तरह से घिरा हुआ है. एक तरफ वह आर्थिक संकट में है और दूसरी तरफ इस्लामिक आतंकवाद का केंद्र बनने के फेर में ऐसा फँसा है कि उससे बाहर निकलने का रास्ता खोज नहीं पा रहा है. उसके सिर पर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) का तलवार अलग लटकी हुई है.
पाकिस्तानी नेताओं के उन्मादी बयान अब केवल अपने देश की जनता को भरमाने के लिए रह गए हैं. पाकिस्तानी अखबार डॉन ने इस बात को अपने संपादकीय में स्वीकार किया है. अखबार ने लिखा है, ‘दुनिया ने पाकिस्तान की गुहार पर वैसी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की, जिसकी उम्मीद थी, बल्कि अमेरिका और यूएई ने तो भारत की इस बात को माना है कि यह उसका आंतरिक मामला है.’ इमरान खान ने भारत के आर्थिक कद और वैश्विक प्रमुखता को स्वीकार करते हुए कहा कि इसी वजह से कश्मीर पर पाकिस्तान के बयान की अनदेखी की जा रही है. उन्होंने कहा, लोग भारत को सवा अरब लोगों के बाजार के रूप में देखते हैं. पिछले महीने पाकिस्तान के गृह मंत्री ब्रिगेडियर एजाज़ अहमद शाह ने कहा था कि, लोग हम पर विश्वास नहीं करते हैं, लेकिन वे उनपर (भारत) भरोसा करते हैं. इसकी क्या वजह है?
प्रधानमंत्री के साथ अमेरिका गए विदेशमंत्री एस जयशंकर ने न्यूयॉर्क में एशिया सोसायटी के एक समारोह में कहा, हमें पाकिस्तान के साथ बातचीत करने में कोई दिक्कत नहीं है, पर टेररिस्तान के साथ बात करने में जरूर दिक्कत है. पाकिस्तान ने आतंक का पूरा एक उद्योग खड़ा कर लिया है और वह इसके सहारे कश्मीर समस्या का समाधान करना चाहता है. उसे पहले यह स्वीकार करना होगा कि उसने अपने देश का जो मॉडल तैयार किया है, वह गलत है. पाकिस्तान ने पिछले 70 साल में जिस चीज पर सारे साधनों का निवेश किया है, उससे हल नहीं निकलेगा. चूंकि हल नहीं निकल रहा है, इसलिए वह कुंठित और परेशान है.
सवाल केवल कश्मीर का नहीं है. पाकिस्तान ने 2008 में मुम्बई पर हमला किया, जो कश्मीर से कहीं दूर है. इसका मतलब है कि पाकिस्तान कहीं भी, कुछ भी करेगा. यह उनके माइंडसेट का मामला है. जब भी वहाँ सरकार बदलता है, नया नेता कहता है कि हम तो नए हैं. पर उनकी समझ भी वही पुरानी होती है. विदेशमंत्री ने कौंसिल ऑन फॉरेन अफेयर्स के एक कार्यक्रम में कहा, आप दुनिया के किसी इलाके में ऐसा देश नहीं पाएंगे, जो अपने पड़ोसी के खिलाफ अपने आतंकी कारखानों का इतनी बेशर्मी से खुलेआम इस्तेमाल करता हो. ऐसा कत्तई संभव नहीं कि हम दिन में क्रिकेट खेलें और आप रात में टेरर-टेरर का खेल.
पाकिस्तानी डिप्लोमेसी को इसबार सबसे बड़ा धक्का मुस्लिम देशों से लगा है. खासतौर से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात तथा ओमान जैसे देशों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मिले सम्मान से यह बात साबित भी हुई. इस साल इस्लामिक देशों के संगठन के सम्मेलन में भारतीय विदेशमंत्री को निमंत्रण दिए जाने के बाद इन रिश्तों में और खटास आई है. विदेश मंत्रियों की परिषद का यह 46वां सत्र 1 और 2 मार्च को अबू धाबी में हुआ.
भारत की तत्कालीन विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस सत्र में ‘गेस्ट ऑफ ऑनर’ के तौर पर शरीक हुईं. उन्होंने वहाँ कहा कि चरमपंथ के ख़िलाफ़ लड़ाई किसी मज़हब के ख़िलाफ़ नहीं है. जो देश आतंकवाद को पनाह देते हैं, उन्हें निश्चित ही उनकी धरती से आतंकी शिविरों को समाप्त करने के लिए कहा जाना चाहिए. पाक विदेश मंत्री शाह महमूद क़ुरैशी ने सुषमा की उपस्थिति की वजह से इस सम्मेलन में हिस्सा नहीं लिया. यह पाकिस्तानी डिप्लोमेसी की हार थी.
बहुत अच्छा हो कि पाकिस्तान इस क्षेत्र में शांति का माहौल बनाए और सहयोग के रास्ते खोले. हालत यह है कि जो रास्ते खुले थे, उन्हें भी वह बंद कर रहा है. दोनों देशों के नजरिए का फर्क आज के भाषणों में आपको साफ नजर आएगा, देख लीजिएगा. 


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