कांग्रेस और
बीजेपी के बीच राजनीतिक प्रतिस्पर्धा स्वाभाविक है। ज्यादातर सरकारी फैसलों के
दूसरे पहलू पर रोशनी डालने की जिम्मेदारी कांग्रेस की है, क्योंकि वह सबसे बड़ा
विरोधी दल है। पार्टी की जिम्मेदारी है कि वह अपने वृहत्तर दृष्टिकोण या नैरेटिव
को राष्ट्रीय हित से जोड़े। उसे यह विवेचन करना होगा कि पिछले छह साल में उससे
क्या गलतियाँ हुईं, जिनके कारण वह पिछड़ गई। केवल इतना कहने से काम नहीं चलेगा कि
जनता की भावनाओं को भड़काकर बीजेपी उन्मादी माहौल तैयार कर रही है।
कांग्रेसी
नैरेटिव के अंतर्विरोध कश्मीर में साफ नजर आते हैं। इस महीने का घटनाक्रम गवाही दे
रहा है। अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का आदेश पास होने के 23 दिन बाद राहुल
गांधी ने कश्मीर के सवाल पर महत्वपूर्ण ट्वीट किया, जिसमें उन्होंने लिखा, ‘सरकार के साथ हमारे कई मुद्दों को लेकर मतभेद हो सकते हैं, लेकिन साफ है कि कश्मीर हमारा आंतरिक
मामला है। पाकिस्तान वहां
हिंसा फैलाने के लिए आतंकियों का समर्थन कर रहा है। इसमें पाकिस्तान समेत किसी भी
देश के दखल की जरूरत नहीं है।’
राहुल गांधी का
यह बयान स्वतः नहीं है, बल्कि पेशबंदी में है। यही इसका दोष है। इसके पीछे संयुक्त
राष्ट्र को लिखे गए पाकिस्तानी ख़त का मजमून है, जिसमें पाकिस्तान ने आरोप लगाया कि
कश्मीर में हालात सामान्य होने के भारत के दावे झूठे हैं। इन दावों के समर्थन में
राहुल गांधी के एक बयान का उल्लेख किया गया है, जिसमें राहुल ने माना कि 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' और वहां हालात सामान्य नहीं हैं। राहुल गांधी
को अपने बयानों को फिर से पढ़ना चाहिए। क्या वे देश की जनता की मनोभावना का
प्रतिनिधित्व करते हैं?
राहुल कहें कि ‘हालात सामान्य नहीं हैं’ तब यह सामान्य वक्तव्य है। देश में काफी लोग
मानते हैं कि कश्मीर में हालात सामान्य नहीं है। सरकार भी यह बात मानती है। पर 'कश्मीर में लोग मर रहे हैं' कहने पर मतलब कुछ और निकलता है। तथ्य यह है
कश्मीर में किसी आंदोलनकारी के मरने की खबर अभी तक नहीं है। यह बात केवल
पाकिस्तानी दुष्प्रचार में है।
पाकिस्तानी चिट्ठी
में नाम आने से राहुल गांधी का राजनीतिक गणित उलट गया है। उन्होंने अपने दृष्टिकोण
को स्पष्ट करने में देर की है। इस बात को उन्हें 23 दिन पहले ही कहना चाहिए था।
पार्टी की कश्मीर नीति को स्पष्ट करने की जिम्मेदारी भी उनकी है। इस अफरातफरी में
कांग्रेस ने सफाई देनी शुरू कर दी है। रणदीप सुरजेवाला कहा, पाकिस्तान सरकार संयुक्त राष्ट्र में जम्मू-कश्मीर
मुद्दे पर अपने झूठ को सच साबित करने के लिए राहुल गांधी का नाम ले रही है। पाकिस्तान
राहुल के नाम पर गलत संदेश फैला रहा है। इसी कारण राहुल ने साफ कर दिया है कि
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख भारत के अभिन्न अंग हैं और हमेशा बने रहेंगे।
इस प्रतिक्रिया
पर पाकिस्तानी मंत्री फवाद चौधरी ने राहुल गांधी को कनफ्यूज्ड बताया है। उनके
अनुसार राहुल को अपने रुख पर कायम रहना चाहिए। काहे का रुख? कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, यह कांग्रेस का ही
नहीं, पूरे देश का दृष्टिकोण है। आज किसी को क्यों लगता है कि यह दृष्टिकोण अब नहीं
है? कांग्रेस को इस सवाल पर
जिस गहराई से विचार करना चाहिए, वह नहीं किया गया है। पार्टी ने कश्मीर समस्या को
पिछले पाँच साल की राजनीति में समेट लिया है और जिन मसलों पर उसे अपने परंपरागत
दृष्टिकोण पर दृढ़ रहने की जरूरत थी, उन्हें उसने बिसरा दिया है।
गत 6 अगस्त को
लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि जम्मू-कश्मीर का मसला 1948
से संयुक्त राष्ट्र (यूएन) देख रहा है और ऐसे में क्या यह मामला अंदरूनी हो सकता
है? पार्टी की ओर से किसी ने
नहीं कहा कि यह गलत बात है। बाद में चौधरी ने अपने बयान की सफाई दी, पर वे भारी
गलती कर चुके थे। इस गलती को पार्टी ने तभी महसूस किया, जब पाकिस्तान ने अपने पत्र
में राहुल गांधी का नाम लिख दिया। जबकि जरूरत उसके पहले थी। पार्टी को अब भी समझ
नहीं आता कि उसके नैरेटिव में क्या खामी है, तो यकीनन उसका बेड़ा गर्क होने में अब
ज्यादा देर नहीं है।
अनुच्छेद 370 को
लेकर पार्टी का दृष्टिकोण समझ में आता है, नागरिक अधिकारों के हनन पर भी उसकी
धारणा सही है। कोई नहीं कहेगा कि कश्मीर में दमन हो, पर क्या वहाँ दमन हो रहा है? अशांत क्षेत्र में स्थितियों पर नियंत्रण पाने
के प्रयासों का समर्थन करके कांग्रेस जनता का विश्वास जीतेगी या विरोध करके? साथ ही कश्मीरी अलगाववाद के बारे में उसे अपनी
नजरिए को स्पष्ट करना होगा। कश्मीर में इस्लामिक स्टेट, अलकायदा, लश्करे तैयबा,
जैशे मोहम्मद, हिज्बुल मुजाहिदीन से लेकर हुर्रियत कांफ्रेंस सबका एक नारा है,
कश्मीर बनेगा पाकिस्तान। और पाकिस्तान का मतलब क्या ‘ला इलाहा लिल्लल्लाह।’ यह आंदोलन न तो
कश्मीरियत से जुड़ा है और न धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था से।
संभव है कि वह किसी वक्त कश्मीरी राष्ट्रीयता को लेकर किसी ने एक स्वतंत्र,
स्वायत्त देश की परिकल्पना की हो, पर 1989 के बाद से कश्मीर में ऐसा कोई आंदोलन
नहीं हुआ है। सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव भी स्वायत्त देश बनाने के लिए नहीं थे। सच
यह है कि कश्मीर का आंदोलन आईएसआई चला रही है और धार्मिक भावनाएं भड़काकर वह
कश्मीरियों का इस्तेमाल कर रही है। वे मरते हैं, तो उसकी बला से। कश्मीर के भीतर
कोई यह बात कहता है, तो मार दिया जाता है।
कांग्रेस को लगता है कि भारतीय मुसलमानों का दिल जीतने के लिए कश्मीरी
आंदोलनकारियों का समर्थन जरूरी है, तो यह गलतफहमी है। भारतीय मुसलमानों का हित इस
बात में है कि कश्मीर भारत की धर्मनिरपेक्ष व्यवस्था में बना रहे। देश के एक और
सांप्रदायिक विभाजन की कल्पना ही भयावह है और इसके दुष्परिणामों पर कांग्रेस ने
विचार नहीं किया है। उसकी इस नासमझी का फायदा बीजेपी को मिला है।
भारतीय सेना पर पत्थर मारने का समर्थन नहीं किया जा सकता। कांग्रेस को यह बात
समझनी चाहिए। कश्मीरी पत्थरबाज अनुच्छेद 370 के लिए नहीं लड़ रहे थे। और न उनका
आंदोलन बीजेपी के खिलाफ है। उन्होंने सन 2010 में पत्थर बरसाना शुरू किया था। तब
केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी। दरअसल समस्या उस नैरेटिव की है, जिसे कांग्रेस स्पष्ट नहीं कर पा रही है।
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