रविवार को अमेरिका में ह्यूस्टन शहर के एनआरजी स्टेडियम में
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के लिए 50,000 से ज्यादा लोग आने वाले
हैं। इनमें से ज्यादातर भारतीय मूल को अमेरिकी होंगे, जिनका संपर्क भारत के साथ
बना हुआ है। यह रैली कई मायनों में असाधारण है। इसके पाँच साल पहले न्यूयॉर्क के
मैडिसन स्क्वायर में उनकी जो रैली हुई थी, वह भी असाधारण थी, पर इसबार की रैली में
आने वाले लोगों की संख्या पिछली रैली से तिगुनी या उससे भी ज्यादा होने वाली है।
रैली का हाइप बहुत ज्यादा है। इसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और अनेक
अमेरिकी राजनेता शिरकत करने वाले हैं।
हालांकि भारत में होने वाली मोदी की रैलियाँ प्रसिद्ध हैं,
पर उनकी जैसी लोकप्रियता प्रवासी भारतीयों के बीच है उसका जवाब नहीं। अमेरिकी
रैलियों के अलावा नवंबर 2015 में लंदन के वैम्बले स्टेडियम में हुई रैली भी इस बात
की गवाही देती है। विदेश में मोदी कहीं भी जाते हैं तो लोग उनसे हाथ मिलाने, साथ में फोटो खिंचवाने और सेल्फी लेने को आतुर होते हैं।
ऐसी लोकप्रियता आज के दौर में विश्व के बिरले राजनेताओं की है। शायद इसके पीछे
भारत की विशालता और उसका बढ़ता महत्व भी है, पर पिछले पाँच वर्ष में मोदी ने
लोकप्रियता के जो झंडे गाड़े हैं, उनका जवाब नहीं। यह सब तब है, जब उनके खिलाफ
नफरती अभियान कम जहरीला नहीं है।
मोदी की
लोकप्रियता का विवेचन एक अलग विषय है, पर ऐसे वक्त में जब दो कारणों से वैश्विक
राजनीति में भारत के ग्राफ को लेकर कई तरह की आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं, 'हाउडी मोदी' का एक खास संदेश है। पहला कारण है जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के
निष्प्रभावी होने का बाद से सतत भारत-विरोधी प्रचार। इसमें पाकिस्तान के साथ
अमेरिकी मुख्यधारा के मीडिया की भूमिका भी है। विदेश में रह रहे पाकिस्तानी नागरिक
इन दिनों जहाँ भी मौका मिलता है, भारत-विरोधी गतिविधियों में लगे हैं। हाल में दो
बार लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग पर पाकिस्तानी नागरिकों ने हमले किए, जिन्हें लंदन
की पुलिस रोक नहीं पाई। खबरें हैं कि ह्यूस्टन में भी दुनियाभर से पाकिस्तानी
नागरिक जमा हुए हैं, जो मोदी के खिलाफ कुछ करेंगे। पिछले हफ्ते भारतीय डिप्लोमेसी
ने जिनीवा स्थित संरा मानवाधिकार परिषद में पाकिस्तान को दो बार शिकस्त दी है।
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान जो प्रस्ताव लाना चाहता था, उसमें वह बुरी तरह विफल हुआ
है। देखना यह है कि अब 27 को संरा महासभा में नरेंद्र मोदी इमरान खान को किस तरह
से जवाब देते हैं। भारतीय रुख की आक्रामकता ह्यूस्टन रैली से साबित होने जा रही
है।
इस पाकिस्तान फैक्टर के अलावा दूसरी नकारात्मक बात है
भारतीय अर्थव्यवस्था में मंदी की खबरें। अप्रेल से जून की तिमाही में अर्थव्यवस्था
की संवृद्धि दर पाँच फीसदी रह जाने के बाद इस नकारात्मकता को बल मिला है।
अर्थव्यवस्था भावनाओं और धारणाओं पर भी चलती है। नकारात्मकता की खबरें आने के बाद
भारतीय उपभोक्ताओं ने अपने खर्चों में कमी करनी शुरू कर दी। इससे धारणाएं और कमजोर
हुईं। इस लिहाज से ह्यूस्टन रैली के ठीक पहले भारत की आर्थिक नीति से जुड़े कुछ
फैसलों की घोषणा के महत्व को भी हमें समझना चाहिए। वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने
शुक्रवार को देश में कंपनी कर की दर 30 से घटाकर 22 फीसदी करने की घोषणा की है।
इतना ही नहीं वित्तमंत्री ने सन 2023 से पहले उत्पादन शुरू करने वाली नई कंपनियों
की दर 15 फीसदी करके एक बड़ा कदम उठाया है, जिसका दूरगामी असर होगा।
वैश्विक राजनीति में पाकिस्तान को माकूल जवाब और भारतीय
शेयर बाजार में जबर्दस्त उछाल के बाद होने जा रही यह रैली दुनिया के नाम एक संदेश
है। भारत तैयार है। अमेरिका और चीन के टकराव के दौर में निर्मला सीतारमण की घोषणा का संदेश यह भी है कि अमेरिकी कंपनियाँ भारत में पूँजी निवेश करें। भारतीय
कंपनी कर की दर अब वैश्विक प्रतियोगिता में आ गई है। एशियाई देशों में कंपनी करों
की औसत दर 23 फीसदी है। सिंगापुर में तो यह 17 फीसदी ही है। भारत सरकार अब करों के
सरलीकरण की राह में प्रवेश कर रही है। जिन आर्थिक सुधारों की सरकार से उम्मीद थी,
यह कदम इस ‘बिग
बैंग’ के साथ उनकी शुरुआत कर रहा है।
इन बड़े कदमों के साथ भारत के एक और नए अभियान की शुरुआत
होती नजर आ रही है। इसमें दुनियाभर में फैले करीब तीन करोड़ भारतवंशियों की
महत्वपूर्ण भूमिका है। ह्यूस्टन की 'हाउडी मोदी' रैली उसके संकेत भर है। अमेरिका के अलावा यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया,
ऑस्ट्रेलिया और अफ्रीका के तमाम देशों में भारतवंशी व्यापारिक गतिविधियों से जुड़े
हैं। हालांकि देश की आंतरिक राजनीति के कारण भारतवंशियों के बीच भी दरार डालने की
कोशिशें होती हैं। यह बात अतीत में भी देखने को मिली है। इस वक्त पाकिस्तान अपने
लोगों (डायस्पोरा) का इस्तेमाल अपनी विदेश नीति के पक्ष में कर रहा है। इसमें वह
मुस्लिम भावनाओं का सहारा लेकर दूसरे देशों के लोगों से भी मदद लेता है। पर सच यह
है कि विदेशों में रह रहे पाकिस्तानी समुदाय को भी भारत के साथ रिश्ते बनाने में
लाभ है।
संयोग से इन
दिनों भारत और अमेरिका के बीच कारोबारी रिश्तों को लेकर मतभेद हैं। इस यात्रा के
दौरान कुछ रोचक बातें देखने को मिलेंगी। अमेरिका के 44 सांसदों ने ट्रंप प्रशासन
से अनुरोध किया है कि जनरलाइज्ड सिस्टम प्रिफरेंस (जीएसपी) के तहत भारत का दर्जा
बहाल किया जाए। ट्रंप प्रशासन ने जून में भारत का दर्जा खत्म कर दिया था। मोदी की
अमेरिकी ऊर्जा कंपनियों से होने वाली मुलाकात में ऊर्जा क्षेत्र में बड़े निवेश का
रास्ता खुलेगा। ‘मेक इन इंडिया’ के तहत अमेरिकी कंपनियों को
भारत में निवेश के लिए राजी करने की योजना पर काम चल रहा है।
‘हाउडी मोदी’ में
ट्रंप की मौजूदगी भी महत्वपूर्ण होगी। यह पहला मौका है, जब कोई अमेरिकी राष्ट्रपति
भारतवंशियों के कार्यक्रम में हिस्सा लेगा। भारत और अमेरिका के रिश्ते सिर्फ़
व्यापार तक सीमित नहीं हैं। दोनों देशों की बहुत बड़ी सामरिक साझेदारी है, ख़ासतौर से सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी लड़ाई के क्षेत्र
में। इस रैली में आने के ट्रंप के कारण राजनीतिक भी हैं। ट्रंप के लिए टेक्सास को
अपने पास रखना अहम है। यहाँ के दो शहरों ह्यूस्टन और डलेस में भारतीय मूल के 2 लाख 70 हज़ार लोग रहते हैं। बहरहाल
इस रैली के अनेक संदेश हैं, जिन्हें पढ़ने की कोशिश करनी चाहिए।
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