संयुक्त राष्ट्र
महासभा में भारत और पाकिस्तान के प्रधानमंत्रियों के भाषणों में वह अंतर देखा जा
सकता है, जो दोनों देशों के वैश्विक दृष्टिकोण को रेखांकित करता है। दोनों देशों
के नेताओं के पिछले कुछ वर्षों के भाषणों का तुलनात्मक अध्ययन करें, तो पाएंगे कि
पाकिस्तान का सारा जोर कश्मीर मसले के अंतरराष्ट्रीयकरण और उसकी नाटकीयता पर होता
है। इसबार वह नाटकीयता सारी सीमाएं पार कर गई। इमरान खान के विपरीत भारत के
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कश्मीर और पाकिस्तान का एकबार भी जिक्र किए बगैर एक
दूसरे किस्म का संदेश दिया है।
नरेंद्र मोदी ने
न केवल भारत की विश्व-दृष्टि को पेश किया, बल्कि कश्मीर के संदर्भ में यह संदेश भी
दिया कि वह हमारा आंतरिक मामला है और किसी को उसके बारे में बोलने का अधिकार नहीं
है। पिछले आठ साल में पहली बार संरा महासभा में प्रधानमंत्री या विदेशमंत्री ने
पाकिस्तान का नाम नहीं लिया है। दुनिया के सामने पाकिस्तान के कारनामों का जिक्र
हम बार-बार करते रहे हैं। इसबार नहीं कर रहे हैं, क्योंकि पाकिस्तान खुद चीख-चीखकर
अपने कारनामों का पर्दाफाश कर रहा है। इमरान खान ने एटमी युद्ध, खूनखराबे और बंदूक
उठाने की खुली घोषणा कर दी।
चूंकि इमरान खान
ने भारत और कश्मीर के बारे में अनाप-शनाप बोल दिया, इसलिए उन्हें जवाब भी मिलना
चाहिए। भारत के विदेश
मंत्रालय की प्रथम सचिव विदिशा मित्रा ने ‘उत्तर देने के अधिकार’ का इस्तेमाल करते हुए कहा कि क्या पाकिस्तान इस बात को नहीं मानेगा
कि वह दुनिया का अकेला ऐसा देश है, जो संयुक्त राष्ट्र द्वारा घोषित आतंकवादी को
पेंशन देता है? क्या वह इस बात से इंकार
करेगा कि फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स ने अपने 27 में से 20 मानकों के उल्लंघन पर
उसे नोटिस दिया है? क्या इमरान खान न्यूयॉर्क
शहर से नहीं कहेंगे कि उन्होंने ओसामा बिन लादेन का खुलकर समर्थन किया है?
इमरान खान ने कुछ
समय पहले अमेरिकी इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में कहा था कि सन 2011 में जब अमेरिकी सेना
ने पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को मारा था, तो उन्होंने अपमानित महसूस
किया था। विदिशा मित्रा ने यह भी कहा कि इमरान क्या इस बात की पुष्टि करेंगे कि
संरा द्वारा घोषित 130 आतंकवादी और 25 आतंकवादी संगठनों का डेरा पाकिस्तान में है?अब जब उन्होंने दुनिया के
पर्यवेक्षकों को पाकिस्तान आने का निमंत्रण दिया है कि वे देखें कि कोई भी
आतंकवादी संगठन उनके यहाँ नहीं है, तो उम्मीद है कि दुनिया उनसे इस वायदे को पूरा
करने का अनुरोध करेगी। इमरान खान ने जो एटमी धमकी दी है, वह धमकी है, सदाशयता
नहीं। पाकिस्तान ने जहाँ एक तरफ से आतंकी धमकियाँ और दूसरी तरफ से नफरती जहर उगला
है, वहीं भारत ने कश्मीर में विकास की बात कही है। आपके देश ने 1971 में कैसा
नरसंहार किया था? कृपया अपने इतिहास-ज्ञान
को दुरुस्त करें।
बहरहाल प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में यह जिम्मेदारी दुनिया पर डाली है कि वह
आतंकवाद के खिलाफ साझा कार्रवाई के बारे में विचार करे। संयुक्त राष्ट्र के
शांति-अभियानों में सबसे ज्यादा हमारे लोग शहीद हुए हैं। उन्होंने प्राचीन तमिल
कवि कानियन पुंगुंद्रनार की एक पंक्ति का उद्धरण देते हुए कहा कि हमारी दृष्टि से
सारा विश्व हमारा है। भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं, बुद्ध दिया है। पर हमारी आवाज़ में
आतंक के ख़िलाफ़ दुनिया को सतर्क करने की गंभीरता है और आक्रोश भी। यह किसी एक देश की जिम्मेदारी नहीं है। हम इस खतरे से सावधान कर रहे हैं।
मोदी ने कहा, संयुक्त
राष्ट्र महासभा में हम इसलिए हैं क्योंकि भारत में लोगों ने जनतांत्रिक तरीक़े से
उनके हक़ में अपना जनादेश दिया है। हमारे लिए यह साल इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि
हम इस साल महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहे हैं। देश में चल रही बहुत सी योजनाओं
का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, हमारा मंत्र है जन
भागीदारी से जन कल्याण और जन कल्याण से जग कल्याण। उन्होंने स्वच्छ भारत, आयुष्मान
भारत, बैंक खातों, डिजिटल पहचान वगैरह का जिक्र करते हुए बताया कि हम विकास और
बदलाव का एक मॉडल तैयार कर रहे हैं।
मोदी के इस
सकारात्मक संबोधन के बाद इमरान खान ने तैश, आवेश और धमकियों की झड़ी लगा दी।
उन्होंने माना कि दुनिया हमारी बात नहीं सुन रही, बल्कि भारत की बात को सुन रही
है। इसके पीछे उन्होंने 1.3 अरब लोगों के बाजार की बात कही। यह नहीं बताया कि
पाकिस्तान जेहादी कारखाने में तब्दील हुआ है, तो कौन जिम्मेदार है? संयुक्त राष्ट्र महासभा को वे धार्मिक सम्मेलन
मानकर आए थे, इसलिए उन्होंने कश्मीर के सवाल को ‘इस्लामोफोबिया’ के रूप में पेश किया और बढ़ते आतंकवाद के लिए दुनिया
जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा आत्मघाती हमले तमिल टाइगरों ने
किए, जो हिंदू थे। जापानी कामीकाजे भी तो धार्मिक थे।
उनके भाषण को
बारीकी से पढ़ें, तो साफ होगा कि एक बिगड़ा, बिफरा, निरंकुश, मध्य युगीन मूल्यों
से लैस और दिशाहीन मन इन विचारों को व्यक्त कर रहा है। मुकर्रर वक्त की सीमाओं को
पार करते हुए वे बोलते रहे। शायद उन्हें लगता था कि महासभा उनके विलाप से प्रभावित
हो जाएगी। उनके विदेश विभाग ने अपने कुछ लोगों को बैठा भी रखा था, जिन्होंने
तयशुदा मौकों पर तालियाँ बजाईं।
इमरान ने अपनी
आंतरिक राजनीति का भी जिक्र किया, जिसकी कोई जरूरत नहीं थी। ‘टैक्स हेवन’ का उल्लेख करके उन्होंने नवाज शरीफ जैसे अपने
प्रतिस्पर्धियों पर हमला बोला। वे अपनी सेना के मंतव्य को व्यक्त कर रहे थे, जिसका
मुकाबला करने की नवाज शरीफ ने कोशिश की थी। उन्होंने धमकी दी है कि कर्फ्यू हटने पर कश्मीर में खून-खराबा होगा। पुलवामा
जैसा हमला फिर हो सकता है, जिसकी जिम्मेदारी भारत हमपर डालेगा। दोनों देशों के बीच
लड़ाई हो जाएगी। चूंकि पाकिस्तान छोटा देश है, इसलिए हम हारे तो समर्पण नहीं
करेंगे, बल्कि लड़ेंगे। एटम बम का इस्तेमाल भी हो सकता है, जिसका सारी दुनिया पर
असर होगा। कल्पनाएं ही कल्पनाएं। सब इसलिए, क्योंकि भारत ने अनुच्छेद 370 हटा दिया
है। सौ बात की एक बात है कि उन्होंने मान लिया है कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने के भारतीय फैसले का ज्यादातर
देशों ने समर्थन किया है। पाकिस्तान बुरी तरह घिर चुका है। अब उनकी उन्मादी बातें
समस्याओं को बढ़ाएंगी, कम नहीं करेंगी।
Modi Hai To Har cheej Mumkin Hain.
ReplyDeleteTodayPK 2020
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Tamil Rockers 2020