चंद्रयान-2 का
लैंडर विक्रम सफल और सुरक्षित तरीके से चंद्रमा पर उतर जाता तो शायद इस आलेख की
शुरूआत दूसरे तरीके से होती, पर क्या इसका विषय बदलता? नहीं बदलता। यह अभियान विफल नहीं हुआ है। इसका
एक हिस्सा गंतव्य तक नहीं पहुँचा, पर यह इस यात्रा का छोटा सा अंश था। मुख्य
चंद्रयान तो चंद्रमा की परिक्रमा कर ही रहा है। वैज्ञानिक प्रवृत्ति जिज्ञासु होती
है। अब हमें समझना होगा कि लैंडर क्यों नहीं उतरा। यह भी एक चुनौती है, पर अभियान
की सबसे बड़ी सफलता है समूचे देश की भागीदारी।
पूरे देश ने रात
भर जागकर जिस तरह से अपने अंतरिक्ष यान की प्रगति को देखा, वह है सफलता। इस अभियान
ने पूरे देश को जगा दिया है। सफल तो हमें होना ही है। चंद्रमा की सतह को लेकर बहुत
सी जानकारियां हमारे पास हैं। जिस हिस्से में लैंडर विक्रम पहुंचा, वहां पहले कोई नहीं गया। उसने अपनी अधूरी रह गई
यात्रा में भी कुछ न कुछ जानकारियाँ भेजी हैं। ये जानकारियाँ आगे काम आएंगी। मिशन
का सिर्फ पांच प्रतिशत-लैंडर विक्रम और प्रज्ञान रोवर-का नुकसान हुआ है। बाकी 95 प्रतिशत-चंद्रयान-2 ऑर्बिटर-अभी एक साल
चंद्रमा की तस्वीरें भेजेगा।
कल्पना करें कि विक्रम लैंडर सही तरीके से उतर जाता, तो वह सफलता कितनी बड़ी
होती। पहली बार में एक बेहद जटिल तकनीक के शत-प्रतिशत सफल होने की वह महत्वपूर्ण
कहानी होती। इसरो अध्यक्ष के सिवन ने पहले ही कहा था कि इस अभियान के अंतिम 15
मिनट बहुत कठिन होंगे। प्रस्तावित 'सॉफ्ट लैंडिंग' दिलों की धड़कन थाम देने वाली होगी, क्योंकि इसरो ने ऐसा पहले कभी नहीं किया
है। चंद्रयान-2 की मूल योजना में लैंडर और रोवर रूस से बनकर आने वाले थे, पर रूस का चीन के सहयोग से
मंगल मिशन ‘फोबोस ग्रंट’ विफल हो गया। रूस ने चंद्रयान-2
से हाथ खींच लिया, क्योंकि इसी तकनीक पर वह चंद्रयान के लैंडर का विकास कर रहा था।
वह इसकी विफलता का अध्ययन करना चाहता था। इस वजह से इसरो पर लैंडर को विकसित करने
की जिम्मेदारी भी आ गई। यह असाधारण काम था, जिसे इसरो ने तकरीबन पूरी तरह से सफल
करके दिखाया।
इसी साल अप्रेल
में एक इजरायली चंद्र अभियान लगभग इन्हीं स्थितियों में विफल हुआ है। इजराइल की एक
निजी कंपनी का यान बेरेशीट चंद्रमा की सतह पर उतरने की कोशिश में क्रैश हो गया। यह
दुनिया का पहला निजी चंद्र अभियान था। उसे इजराइली कंपनी स्पेस आईएल ने अमेरिकी
कंपनी स्पेस एक्स के फाल्कन-9 रॉकेट से रवाना किया था। यान ने 4 अप्रैल को चंद्रमा
की कक्षा में प्रवेश किया था और 11 अप्रेल को इंजन में तकनीकी समस्या आने के बाद
इसका ब्रेकिंग सिस्टम नाकाम हो गया था।
इजरायली यान चंद्रमा
की सतह से 10 किलोमीटर की दूरी पर था कि पृथ्वी से इसका संपर्क टूट और यह रोवर
चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसके बाद नासा ने मई में बताया कि चंद्रमा
की परिक्रमा कर रहे उसके ल्यूनर रिकोनेसां ऑर्बिटर (एलआरओ) ने बेरेशीट के दुर्घटना
क्षेत्र की तस्वीरें भेजी थीं और बताया था कि वह कहाँ है। संभव है कि हमारा
ऑर्बिटर अब बताए कि विक्रम कहाँ और किस स्थिति में है।
सफलता के जिस भी पैमाने
से आकलन करें, तो पाएंगे कि चंद्रयान-2 अभियान अंतरिक्ष में भारत की उपस्थिति का
एक महत्वपूर्ण पड़ाव है। हमें अभी कई पड़ाव और देखने हैं। सूर्य और शुक्र अभियान
भी जल्द ही सामने आने वाले हैं। अलबत्ता इस बीच चंद्रमा को लेकर दुनिया के कई
देशों की दिलचस्पी जागी है। इस साल जनवरी में चीन का एक लैंडर चाँद पर उतरा था।
साल के अंत तक एक और जाने वाला है। जापान भी अपना यान भेजने वाला है। और अब
अमेरिकी सरकार और निजी कम्पनियों के चाँद-केन्द्रित कार्यक्रमों की बाढ़ आने वाली
है।
अप्रेल में जो
इजरायली यान चंद्रमा की सतह पर गिरा था, वह गूगल ल्यूनर एक्स प्राइज स्पर्धा में
भी शामिल हुआ था। यह अपने किस्म की रोचक स्पर्धा थी, जिसमें केवल निजी टीमें शामिल
हो सकती थीं। शुरुआती मुकाबले में 32 टीमों ने प्रतिस्पर्धा की थी, जिनमें से बाद में घटकर 16 रह गईं और आखिर में
कुल पांच टीमें बचीं। हालांकि दुनिया की कोई भी टीम निर्धारित समय सीमा में यह काम
नहीं कर पाई, इसलिए वह पुरस्कार किसी को नहीं मिला, पर इजरायली टीम को दस लाख डॉलर
का प्रोत्साहन पुरस्कार मिला था।
इस प्रतियोगिता
में एक भारतीय टीम इंडस भी शामिल हुई थी, जो अंतिम पाँच तक पहुँची थी। बेंगलुरु की
इस टीम इंडस ने अपने रोवर का नाम ईसीए रखा था, जो ‘एक छोटी-सी आशा’ के पहले अक्षरों से मिलकर बना संक्षिप्त रूप था।
यह अभियान अब एक कहानी के रूप में ही शेष है, पर इससे एक बात उभर कर आई कि भारत
में इसरो ही नहीं, निजी क्षेत्र के युवा वैज्ञानिक भी चुनौतियाँ स्वीकार करने को
तैयार हैं।
चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के ठीक पहले दुनिया चंद्रमा पर
मनुष्य के उतरने की पचासवीं वर्षगाँठ मना रही थी। अपोलो-11 के यात्रियों नील
आर्मस्ट्रांग और बज़ एल्ड्रिन के अभियान के बाद से 10 और यात्री चंद्रमा पर विचरण
कर चुके हैं। उस दौर में रूस और अमेरिका के बीच यह प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था।
कैनेडी के सपने
के 43 साल बाद सन 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने घोषणा की कि 2020 तक
अमेरिका फिर से चाँद पर जाएगा। वहाँ जाकर वापस लौटने के लिए नहीं, बल्कि सौर मंडल में और आगे जाने के लिए चाँद पर
अड्डा बनाने के वास्ते।
भारत के
चंद्रयान-2 के लांच के साथ यह बात भी सामने आई कि दुनिया के तमाम नए देशों की
दिलचस्पी अंतरिक्ष में जागी है। हाल में अमेरिकी उपराष्ट्रपति माइक पेंस ने घोषणा
की कि अमेरिका का इरादा सन 2024 में चंद्रमा पर अपने यात्री फिर से उतारने का है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने ट्वीट किया, हम फिर से चाँद पर जाने वाले हैं। जिस समय लैंडर विक्रम का संपर्क टूटा उस समय पीएम मोदी और इसरो प्रमुख समेत
तमाम वैज्ञानिक इसरो के कक्ष में मौजूद थे। इसरो प्रमुख के भावुक होने पर मोदी ने
उन्हें ढाढस बँधाया और कहा, हमारा हौसला अब और मजबूत हुआ है। चंद्रमा को छूने की हमारी
इच्छा-शक्ति और दृढ़ हुई है, संकल्प और प्रबल
हुआ है। यह दृढ़ विश्वास इस अभियान की देन है।
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