Sunday, July 13, 2025

मीनाक्षी जैन

इतिहासकार डॉ मीनाक्षी जैन को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राज्यसभा के लिए मनोनीत किया है। जैन दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर रह चुकी हैं। उन्होंने भारतीय सभ्यता, धर्म और राजनीति से संबंधित कई पुस्तकें लिखी हैं। इस तथ्य का उल्लेख ज्यादा नहीं हुआ है कि वे  टाइम्स ऑफ इंडिया के पूर्व संपादक गिरिलाल जैन की पुत्री हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की है। सामाजिक आधार और जाति एवं राजनीति के बीच संबंधों पर उनका शोध प्रबंध 1991 में प्रकाशित हुआ था। इतिहास के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए 2020 में उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया था। उनकी कुछ पाठ्य पुस्तकों को स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।

डॉ जैन नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय और भारतीय ऐतिहासिक अनुसंधान परिषद की शासी परिषद की पूर्व सदस्य भी हैं । संप्रति वे भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद की वरिष्ठ अध्येता हैं। उनके शोध के क्षेत्रों में मध्यकालीन और प्रारंभिक आधुनिक भारत में सांस्कृतिक और धार्मिक विकास शामिल हैं।

डॉ जैन ने विभिन्न ऐतिहासिक विषयों पर व्यापक शोध किया है और मध्यकालीन एवं आधुनिक भारतीय इतिहास से संबंधित मुद्दों पर उनका व्यापक शोधकार्य है। उनकी ऐतिहासिक कृतियों में शामिल हैं, फ्लाइट ऑफ डेटीस एंड रिबर्थ ऑफ टेंपल्स (देवताओं की उड़ान और मंदिरों का पुनर्जन्म) (2019), द बैटल फॉर राम: केस ऑफ द टेंपल एट अयोध्या (राम के लिए युद्ध: अयोध्या में मंदिर का मामला) (2017), सती: इवेंजेलिकल बैप्टिस्ट्स मिशनरीज़ एंड चेंजिंग कॉलोनियल डिसकोर्स (सती: इंजीलवादी बैप्टिस्ट मिशनरी और बदलते औपनिवेशिक विमर्श (2016), राम एंड अयोध्या (राम और अयोध्या) (2013), पैरलल पाथवेज़: एसेज़ ऑन हिंदू-मुस्लिम रिलेशंस (1707-1857) (समानांतर रास्ते: हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर निबंध) (1707-1857) (2010) और हिंदूज़ ऑफ हिंदुस्तान: अ सिविलिज़ेशनल जर्नी (हिंदुस्तान के हिंदू: एक सभ्यतागत यात्रा) (2023)।

2019 में अयोध्या विवाद पर चले सर्वोच्च न्यायालय के मुकदमे में उनकी पुस्तक का संदर्भ भी दिया गया था, जिसमें कहा गया है कि जन्मभूमि स्थल पर ऐतिहासिक रूप से राम मंदिर मौजूद था। उनका कहना है कि अंग्रेजों द्वारा इस स्थल को राम का जन्मस्थान मानने के बाद वामपंथी  इतिहासकारों ने ऐतिहासिक और सरकारी दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ की। जैन के अनुसार, 1989 से पहले के सभी साहित्यिक साक्ष्य, इस तथ्य की ओर इशारा करते थे। उन्होंने यह भी लिखा है कहा कि मुसलमानों का एक वर्ग चाहता था कि अयोध्या में राम मंदिर स्थल हिंदुओं को सौंप दिया जाए, लेकिन वामपंथी इतिहासकारों ने मुसलमानों को यह विश्वास दिलाकर विवाद को ज़िंदा रखा कि उनके पास राम मंदिर के ख़िलाफ़ एक मज़बूत तर्क है और उन्हें इसके लिए सबूत देने का वादा किया।

अपनी नवीनतम पुस्तक, "विश्वनाथ राइज़ एंड राइज़" (2024) में, जैन ने काशी के इतिहास के बारे में लिखा है। इस पुस्तक में, उन्होंने प्रारंभिक इस्लामी आक्रमणों से लेकर 1669 में काशी विश्वनाथ मंदिर के विध्वंस तक, सदियों के आक्रमणों और अपवित्रीकरण का विवरण दिया है।

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