भारत और पाकिस्तान ने इस साल एक साथ स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे किए हैं। पर दोनों के तौर-तरीकों में अंतर है। भारत प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ता जा रहा है, और पाकिस्तान दुर्दशा के गहरे गड्ढे में गिरता जा रहा है। जुलाई के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तान सरकार ने देश चलाने के लिए विदेशियों को संपत्ति बेचने का फैसला किया है। एक अध्यादेश जारी करके सरकार ने सभी प्रक्रियाओं और नियमों को किनारे करते हुए सरकारी संपत्ति को दूसरे देशों को बेचने का प्रावधान किया है। यह फैसला देश के दिवालिया होने के खतरे को टालने के लिए लिया है, पर सच यह है कि पाकिस्तान दिवालिया होने के कगार पर है। अध्यादेश में कहा गया है कि इस फैसले के खिलाफ अदालतें भी सुनवाई नहीं करेंगी।
आर्थिक-संकट के अलावा
पाकिस्तान में आंतरिक-संकट भी है। बलूचिस्तान और अफगानिस्तान से लगे पश्तून इलाकों
में उसकी सेना पर विद्रोहियों के हमले हो रहे हैं। हाल में 2 अगस्त को बलूचिस्तान
में बाढ़ राहत अभियान में तैनात पाकिस्तानी सेना का एक हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त
हो गया, जिसमें सवार एक लेफ्टिनेंट जनरल और पांच वरिष्ठ फौजी अफसरों सैन्य
अधिकारियों की मौत हो गई। पता नहीं यह दुर्घटना थी या सैबोटाज, पर सच यह है कि इस
इलाके में सेना पर लगातार हमले हो रहे हैं।
बलूच
स्वतंत्रता-सेनानियों के निशाने पर पाकिस्तान और चीन के सहयोग से चल रहा सीपैक
कार्यक्रम है। इससे जुड़े चीनी लोग भी इनके निशाने पर हैं। पंजाब को छोड़ दें, तो
देश के सभी सूबों में अलगाववादी आंदोलन चल रहे हैं। बलूचिस्तान, वजीरिस्तान, गिलगित-बल्तिस्तान और
सिंध में अलगाववादी आँधी चल रही है। भारत से गए मुहाजिरों का पाकिस्तान से मोह भंग
हो चुका है। वे भी आंदोलनरत हैं।
हम क्या करें?
पाकिस्तान जब संकट से घिरा है, तब हमें क्या
करना चाहिए? जब लोहा गरम हो, तब वार करना चाहिए। तभी वह
रास्ते पर आएगा। पाकिस्तान के रुख और रवैये में बदलाव करना है, तो उसपर भीतर और
बाहर दोनों तरफ से मार करने की जरूरत है। बेशक
हमें गलत तौर-तरीकों पर काम नहीं करना चाहिए, पर लोकतांत्रिक और मानवाधिकार से जुड़े
आंदोलनों को समर्थन जरूर देना चाहिए।
क्या हम पाकिस्तानी कब्जे से कश्मीर को मुक्त
करा पाएंगे? गृह मंत्री अमित शाह ने नवम्बर 2019
में एक कार्यक्रम में कहा कि पाक अधिकृत कश्मीर और जम्मू-कश्मीर के लिए हम जान भी
दे सकते हैं और देश में करोड़ों ऐसे लोग हैं, जिनके
मन में यही भावना है। साथ ही यह भी कहा कि इस सिलसिले में सरकार का जो भी ‘प्लान
ऑफ एक्शन’ है, उसे टीवी डिबेट में घोषित नहीं किया जा
सकता। ये सब देश की सुरक्षा से जुड़े संवेदनशील मुद्दे हैं, जिन्हें
ठीक वैसे ही करना चाहिए, जैसे अनुच्छेद 370 को हटाया गया। इसके
समय की बात मत पूछिए तो अच्छा है।
15 अगस्त, 2016 को लालकिले
के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाक अधिकृत कश्मीर, गिलगित और बलूचिस्तान के बिगड़ते हालात का और वहाँ के
लोगों की हमदर्दी का जिक्र किया। उन्होंने पाक अधिकृत कश्मीर और बलूचिस्तान में
मानवाधिकारों के हनन का मामला भी उठाया। उनकी बात से बलूचिस्तान के लोगों के मन
में उत्साह बढ़ा था। यह पहला मौका था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस तरह
खुले-आम बलूचिस्तान का ज़िक्र किया था। इसपर स्विट्ज़रलैंड में रह रहे बलूच
विद्रोही नेता ब्रह्मदाग़ बुग्ती ने कहा था, प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने हमारे बारे में बात कर हमारी मुहिम को बहुत मदद पहुंचाई है।
पाकिस्तानी
तिकड़म
इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान ने तिकड़म करके कश्मीर और बलूचिस्तान पर कब्जा किया है। 1947 में बलूचिस्तान और पश्तूनिस्तान भी पाकिस्तान से जुड़ना नहीं चाहते थे। भारतीय उपमहाद्वीप से अंग्रेजी शासन की वापसी के दौरान, बलूचिस्तान को दूसरी देसी रियासतों की तरह भारत में शामिल होने, पाकिस्तान में शामिल होने या स्वतंत्र रहने का विकल्प दिया गया था। उस दौर के इतिहास को पढ़ें तो पाएंगे कि भारत के तत्कालीन नेतृत्व ने इस इलाके की उपेक्षा की, जिसका दुष्प्रभाव यह हुआ कि पाकिस्तान के हौसले बढ़ते गए।
उस समय बलूचिस्तान
यानी कलात के खान (कबायली सरदार) ने स्वतंत्र देश के रूप में रहना चाहा। यह इलाका लगभग
साढ़े सात महीने तक स्वतंत्र देश रहा। 27 मार्च 1948 में पाकिस्तान सरकार
ने फौज भेजकर कलात के खान का अपहरण किया और दबाव डालकर विलय-पत्र पर दस्तखत करवाए।
जबकि उसके पहले कलात के खान ने भारत में विलय की पेशकश की थी। तबसे बलूच (या बलोच लोग) अपनी आज़ादी
की लड़ाई लड़ रहे हैं।
सवाल है कि इस समय हम
क्या करें? पाकिस्तान जब संकट से घिरा है, तब क्या हम उसपर
पलट वार करें? वैसे ही जैसे उसने 1962 में भारत पर चीनी हमले के बाद अक्साईचिन की
जमीन चीन को सौंपकर भारत विरोधी मोर्चाबंदी की और कश्मीर पर कब्जे के लिए 1965 में
अभियान चलाया? क्या हमें भी पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को हासिल
करने के तरीकों पर विचार करने की जरूरत है?
1971 जैसी स्थिति
लगता है कि जैसे 1971 में बांग्लादेश बना वैसे
ही पाकिस्तान के कुछ और टुकड़े होंगे। कुछ साल पहले ‘वॉयस फॉर बलोच मिसिंग पर्संस’ के उपाध्यक्ष मामा क़दीर भारत
आए थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उन्होंने कहा कि उन्होंने
कहा कि सात दशक से आजादी के लिए लड़ रहे बलूचिस्तान के लोगों को भारत से बड़ी
उम्मीद है। भारत को हमें वैसा ही समर्थन देना चाहिए जैसा कि 1971 में मुक्ति
वाहिनी को दिया गया था। बलूच मानते हैं कि जिस तरह से उन्हें ज़बरदस्ती पाकिस्तान
में मिलाया गया वह ग़ैरकानूनी था।
ऐतिहासिक तौर पर कलात
की क़ानूनी स्थिति भारत के दूसरे रजवाड़ों से भिन्न थी। भारत सरकार और कलात के बीच
संबंध 1876 में हुई संधि पर आधारित थे, जिसके अनुसार ब्रिटिश सरकार कलात को एक
स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा देती थी। जहाँ 560 रजवाड़ों को 'ए' सूची में रखा गया था, कलात को नेपाल, भूटान और सिक्किम के
साथ 'बी' सूची में रखा
गया था।
1946 में कलात के खान
ने अपने प्रतिनिधि को दिल्ली भेजा था, ताकि भारत अपनी स्वतंत्रता के बाद उसे देश
के रूप में स्वीकार करे। तब जवाहर लाल नेहरू ने कलात के उस दावे को अस्वीकार कर दिया था कि वह एक आज़ाद देश है। जब अंग्रेज गए तो बलूचों ने
अपनी आज़ादी घोषित कर दी थी और पाकिस्तान ने यह बात क़बूल भी कर ली थी। बाद में वे
इस बात से मुकर गए। बलूचिस्तान की कबायली संसद ने पाकिस्तान में विलय को नामंजूर
कर दिया। इस बात के प्रमाण हैं कि दस्तखत करने के पहले वे चाहते थे कि उनका विलय भारत के साथ कर दिया जाए। इस सिलसिले में वीपी मेनन के एक
संवाददाता सम्मेलन का विवरण भी इतिहास में दर्ज है। बहरहाल उस समय भारत ने इस
मामले में दिलचस्पी नहीं दिखाई।
मुहाजिरों का
मोहभंग
पिछले दिसंबर में पाकिस्तान
के मुत्तहिदा क़ौमी मूवमेंट (एमक्यूएम) के नेता अल्ताफ हुसैन ने कहा, पाकिस्तान की
'राक्षसी' सेना सिंध और
बलूचिस्तान में जुल्म ढा रही है। भारत इसे आजाद कराए। अल्ताफ हुसैन काफी लंबे समय
से लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय संसद और ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन से
पाकिस्तान के कब्जे से सिंध और बलूचिस्तान को आजाद कराने की मांग की है। उन्होंने
कहा कि पाकिस्तान के कब्जे वाले इन दो क्षेत्रों के लोग दयनीय स्थिति में हैं और
मदद के लिए संयुक्त राष्ट्र, ब्रिटेन और दुनिया के
सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की ओर देख रहे हैं। सिंध में एक तरफ मुहाजिर बगावत पर
उतारू हैं, वहीं सिंध के लोग ‘जिए सिंध’ के तहत स्वतंत्रता आंदोलन चला रहे हैं।
बलूचिस्तान पाकिस्तान
का सबसे बड़ा प्रांत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह पाकिस्तान का 44 प्रतिशत है, जबकि आबादी केवल-पांच
प्रतिशत के आसपास है। जनसंख्या का घनत्व यहां मात्र 36 व्यक्ति प्रति वर्ग
किलोमीटर है। कुल आबादी सवा करोड़ के आसपास है। शिक्षा, स्वास्थ्य
और रोजगार की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत अधिक पिछड़ा हुआ है। दूसरी तरफ बलूचिस्तान
प्राकृतिक गैस और तेल का प्रमुख स्रोत है। ग्वादर का पोर्ट बलूचिस्तान में ही है, जिसे चीन ने विकसित किया है।
बलूचों के प्रतिरोध ने
पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए सिरदर्द पैदा कर दिया है। बलोच लड़ाकों के पास
आधुनिक हथियार और ट्रेनिंग नहीं है, फिर भी अब वे लड़ने के नए-नए तरीके खोज रहे
हैं। उनकी आत्मघाती माजिद ब्रिगेड ने हाल में कई हमले करके पाकिस्तानी सेना में
दहशत पैदा कर दी है। इस आत्मघाती दस्ते में पुरुष और महिला दोनों फिदायीन शामिल
हैं। उनकी गतिविधियां सिर्फ बलूचिस्तान तक सीमित नहीं हैं। वे दूसरे सूबों में भी निशाना
साधने लगे हैं। माजिद ब्रिगेड का गठन खास तौर पर सीपैक और चीन से जुड़े अन्य
ठिकानों को निशाना बनाने के लिए किया गया है।
बलूचिस्तान के अलावा पश्तून
तहफ्फ़ुज़ मूवमेंट या पश्तून रक्षा आन्दोलन पाकिस्तान के
खैबर-पख़्तूनख्वा में चल रहा है। इसका उद्देश्य पश्तूनों या पख्तूनों के
मानवाधिकारों की रक्षा करना है। पहले इसका नाम महसूद तहफ्फ़ुज़ था। जनवरी 2018 में
यह आन्दोलन बहुत मुखर हुआ, जब इसने नक़ीबुल्ला महसूद की हत्या के विरोध में आंदोलन
शुरू किया। पाकिस्तानी सेना में पश्तूनों की संख्या बहुत बड़ी है, पर वे भी देश
में पंजाबी आधिपत्य के खिलाफ हैं। उनके युवा नेता मंजूर पश्तीन से भी पाकिस्तानी
सत्ता-प्रतिष्ठान को डर लगता है।
कश्मीर
तीन साल पहले 5 अगस्त, 2019
को भारत ने कश्मीर पर अनुच्छेद 370 और 35 को निष्प्रभावी करके लंबे समय से चले आ
रहे एक अवरोध को समाप्त कर दिया। राज्य का पुनर्गठन भी हुआ है और लद्दाख को
जम्मू-कश्मीर से अलग कर दिया गया है। पर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर का मामला अब भी
अधूरा है। कश्मीर हमारे देश का अटूट अंग है, तो
हमें उस हिस्से को भी वापस लेने की कोशिश करनी चाहिए, जो
पाकिस्तान के कब्जे में है। क्या यह सम्भव है? कैसे
हो सकता है यह काम?
विदेशमंत्री एस जयशंकर ने सितम्बर 2019 में एक
मीडिया कॉन्फ्रेंस में कहा था कि पाकिस्तान के कब्जे में जो कश्मीर है, वह भारत का हिस्सा है और हमें उम्मीद है कि एक दिन इस पर हमारा
अधिकार हो जाएगा। जनवरी 2020 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल मनोज मुकुंद नरवणे ने
सेना दिवस के पहले एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यदि देश की संसद पाकिस्तान
अधिकृत कश्मीर को वापस लेने का आदेश देगी तो हम कारवाई कर सकते है। उन्होंने कहा,
संसद इस बारे में प्रस्ताव पास कर चुकी है कि पीओके भारत का अभिन्न
अंग है। इन बयानों के पीछे क्या कोई संजीदा सोच-विचार था? क्या
भविष्य में हम कश्मीर को भारत के अटूट अंग के रूप में देख पाएंगे? ये सवाल आज शिद्दत से पूछे जा रहे हैं।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-08-2022) को "सभ्यता पर ज़ुल्म ढाती है सुरा" (चर्चा अंक-4534) पर भी होगी।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'