कर्नाटक के दो ईदगाह मैदानों में गणेश पूजा की खबरों को कुछ लोग शायद ठीक से पढ़ नहीं पाए हैं। कुछ लोगों को लगता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी रात में कर्नाटक हाईकोर्ट ने आदेश क्यों दे दिया। एक मैदान बेंगलुरु में और दूसरा हुब्बली में है। मंगलवार (30 अगस्त) को सुप्रीम कोर्ट के तीन सदस्यों के पीठ ने बेंगलुरु के मैदान में यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया। यानी कि वहाँ गणेश चतुर्थी से जुड़े समारोह नहीं हो सकेंगे।
राज्य सरकार ने इस मैदान पर 31 अगस्त और 1 सितंबर
को गणेश चतुर्थी से जुड़े समारोह की अस्थायी अनुमति दी थी। यह संपत्ति वक्फ बोर्ड
की है या सरकार की, इसे लेकर विवाद है। अदालत ने इस मामले से जुड़े पक्षों से कहा
कि वे इस मसले पर कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने अपना पक्ष रखें। हाईकोर्ट में इस
मामले पर 23 सितंबर को सुनवाई होगी।
हुब्बली
दूसरी तरफ मंगलवार की रात कर्नाटक हाईकोर्ट ने
हुब्बली के मेयर द्वारा शहर के ईदगाह में गणेश चतुर्थी के समारोह की अनुमति देने
से जुड़े आदेश को रोकने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि हुब्बली के ईदगाह मैदान
के स्वामित्व को लेकर कोई विवाद नहीं है। दोनों मामलों के तथ्य अलग-अलग हैं। अंजुमन-ए-इस्लाम को बेंगलुरु के मामले में दिए
गए सुप्रीम कोर्ट के आदेश का लाभ नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के
आधार पर अंजुमन ने हाईकोर्ट में अर्जी दी थी।
रात 10 बजे, न्यायमूर्ति अशोक एस किनागी ने चैंबर में मामले की सुनवाई की और कहा कि विचाराधीन भूमि हुबली धारवाड़ नगर निगम के स्वामित्व में है। यह ज़मीन 999 साल के पट्टे पर अंजुमन को दी गई है। फिर भी म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के पास ज़मीन के इस्तेमाल का अधिकार है। अदालत ने रात 1 बजकर 45 मिनट पर याचिका खारिज करने का आदेश जारी किया।
बेंगलुरु का मामला
इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु के ईदगाह
मैदान पर गणेश चतुर्थी के समारोह को आयोजित करने की अनुमति
देने से इनकार कर दिया और उस जगह पर दोनों पक्षों को यथास्थिति बनाकर रखने का
आदेश दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि पिछले 200 साल में ईदगाह मैदान में गणेश चतुर्थी
का ऐसा कोई समारोह आयोजित नहीं हुआ है। उसने मामले के पक्षों से विवाद के निवारण
के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट में जाने को कहा।
तीन जजों की बेंच
जस्टिस इंदिरा बनर्जी, जस्टिस
अभय एस ओका और जस्टिस एमएम सुंदरेश की तीन जजों की बेंच ने शाम 4:45 बजे विशेष
सुनवाई में कहा कि पूजा कहीं और की जाए। पीठ ने कहा, ‘रिट
याचिका हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष लंबित है और सुनवाई के लिए 23 सितंबर,
2022 की तारीख तय हुई है। सभी सवाल/विषय हाईकोर्ट में उठाये जा सकते
हैं।…इस बीच इस जमीन के संबंध में दोनों पक्ष आज जैसी यथास्थिति बनाकर रखेंगे।’
वक्फ बोर्ड की ओर से बहस करते हुए कपिल सिब्बल
ने कहा कि 200
साल से ये संपत्ति हमारे पास है और किसी दूसरे समुदाय ने यहां कभी कोई धार्मिक
समारोह नहीं किया। सिब्बल ने कहा, सुप्रीम कोर्ट हमारे हक में फैसला
सुना चुका है और पहले कभी किसी ने इसे चुनौती नहीं दी और अब 2022 में कहा जा रहा
है कि ये विवादित है।
कर्नाटक हाईकोर्ट के एक खंडपीठ ने 26 अगस्त को
राज्य सरकार को चामराजपेट में ईदगाह मैदान का इस्तेमाल करने के लिए बेंगलुरु
(शहरी) के उपायुक्त को मिले आवेदनों पर विचार करके उचित आदेश जारी करने की अनुमति
दी थी। सरकार ने इसके आधार पर समारोह की अनुमति दी थी। अब यह समारोह यहाँ नहीं हो
सकेंगे।
कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सेंट्रल मुस्लिम एसोसिएशन ऑफ कर्नाटक तथा कर्नाटक वक्फ बोर्ड की अपील पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। पहले इसपर दो सदस्यों के पीठ ने विचार किया। इस पीठ ने इस मामले को तीन सदस्यों की बेंच को संदर्भित किया। जिसके बाद इससे पहले मंगलवार को चीफ जस्टिस यूयू ललित ने सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों के पीठ का गठन किया था।
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