बिहार में जेडीयू और बीजेपी गठबंधन की दरार अब साफ दिखाई पड़ रही है। रविवार 7 अगस्त को नीतीश कुमार के नीति आयोग की बैठक में नहीं गए और सोमवार को जेडीयू ने आरोप लगाया है कि नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ साज़िश रची जा रही है। इस विवाद के शुरू होने के साथ ही दोनों पार्टियों के लोकसभा चुनाव साथ में लड़ने को लेकर भी सवाल खड़े हो गए थे। बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 में होंगे, पर तबतक गठबंधन चलेगा या नहीं, यह सवाल खड़ा हो रहा है। इस समय राज्य के राजनीतिक-गठबंधन के टूटने को लेकर कयास जरूर है, पर यह टूट आसान नहीं लग रही है। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि टूट चाहता कौन है।
भाजपा और जदयू के बीच दूरी बढ़ने की शुरुआत कुछ
महीने पहले हुई थी। जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर नीतीश कुमार भाजपा से अलग-थलग
नजर आए और उन्होंने विपक्षी दलों के साथ जाति आधारित जनगणना की मांग की। कुछ महीने
पूर्व नीतीश पीएम की कोरोना पर बुलाई गई बैठक से दूर रहे। हाल में पूर्व
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के सम्मान में दिए गए भोज, राष्ट्रपति
द्रौपदी मुर्मू के शपथ ग्रहण समारोह से भी दूरी बनाई। इससे पहले गृह मंत्री अमित
शाह की ओर से बुलाई गई मुख्यमंत्रियों की बैठक से दूरी बनाने के बाद अब नीति आयोग
की बैठक से भी दूर रहे।
सोनिया गांधी से बात
ताजा विवाद जेडीयू के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष
आरसीपी सिंह पर बेहिसाब संपत्ति और अनियमितताओं के आरोपों से शुरू हुआ है और आज
खबरें हैं कि नीतीश कुमार ने सोनिया गांधी से फोन पर बात की है। मीडिया में खबरें
हैं कि पिछले 15 दिनों में उनकी एकबार नहीं तीन बार सोनिया गांधी बात हुई है। मंगलवार
को राजद और जदयू ने विधानमंडल दल की बैठक बुलाई है। पहले राजद और फिर जदयू की बैठक
होगी।
जेडीयू ने शनिवार को आरसीपी सिंह को कारण बताओ
नोटिस भेजा था, जिसके बाद आरसीपी सिंह ने पार्टी से इस्तीफ़ा दे दिया। आरसीपी सिंह
ने कहा कि जेडीयू डूबता हुआ जहाज़ है, हमारे जितने
साथी हैं वे जल्द ही कूद जाएँगे और जहाज़ जल्दी डूब जाएगा। आरसीपी सिंह जेडीयू से
एकमात्र नेता थे, जो पार्टी की ओर से केंद्र में मंत्री बने थे, जिसके लिए नीतीश
कुमार की सहमति नहीं थी।
इस बार जेडीयू ने उन्हें राज्यसभा का टिकट नहीं दिया और वे मंत्री भी नहीं रहे। आरसीपी सिंह के बयान पर जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजीव रंजन सिंह उर्फ़ ललन सिंह ने रविवार को कहा, ''जदयू डूबता हुआ जहाज़ नहीं, बल्कि दौड़ता हुआ जहाज़ है और आने वाले समय में पता लग जाएगा। कुछ लोग उस जहाज़ में छेद करना चाहते थे। नीतीश कुमार ने ऐसे षड्यंत्रकारियों को पहचान लिया।
नाराज नीतीश
इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक
रिपोर्ट के अनुसार पटना में गत 30-31 जुलाई को हुई बीजेपी के सभी सात मोर्चों
की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में जिस तरह से बढ़-चढ़कर बातें कही गईं, उनसे
नीतीश कुमार नाराज हैं। हालांकि उस बैठक में अमित शाह ने कहा था कि उनकी पार्टी
2024 के लोकसभा और 2025 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू के साथ मिलकर लड़ेगी, पर कुछ
छोटे नेताओं के बयानों को लेकर नीतीश कुमार की नाराजगी थी।
जेडीयू का मानना है कि चिराग पासवान और आरसीपी
सिंह का इस्तेमाल नीतीश कुमार के खिलाफ किया जा रहा है। पार्टी ने यह भी कहा कि
2024 के चुनाव के बारे में कोई फैसला नहीं किया गया है। इसके पहले गत 12 जुलाई को
बिहार विधानसभा के शताब्दी समारोह में नरेंद्र मोदी ने भाग लिया। उस आयोजन के लिए
विधानसभा के अध्यक्ष की ओर से जो निमंत्रण पत्र जारी किया गया, उसमें नीतीश कुमार
का नाम नहीं था।
चिराग मॉडल
जेडीयू की ओर से ललन सिंह ने कहा कि नीतीश
कुमार के ख़िलाफ़ दो साज़िशें हुई हैं। एक 2020 का
चिराग मॉडल, जिसके कारण हमारी सीटें 43 पर आ गईं। एक
और साज़िश बुनी जा रही थी जिसे शुरू में ही रोक दिया गया। दूसरी साज़िश में ललन
सिंह का इशारा आरसीपी सिंह की तरफ़ था। उन्होंने माना कि आरसीपी सिंह ने नीतीश
कुमार की सहमति के बगैर बीजेपी सरकार में मंत्री पद लिया। चिराग पासवान ने 2020 का विधानसभा चुनाव एनडीए गठबंधन से अलग लड़ा था। उन्होंने उन सीटों
पर उम्मीदवार खड़े किए, जहाँ से जेडीयू लड़ रही थी।
पार्टी में कई लोगों को लगता है कि चिराग
पासवान के पीछे बीजेपी का हाथ था। ललन सिंह ने मंत्री पद को लेकर स्पष्ट किया कि हम
अपनी 2019 की स्थिति पर कायम है कि हम केंद्र में मंत्री
पद नहीं लेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जेडीयू ने अभी तक बीजेपी का साथ दिया था।
हमने राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद के लिए एनडीए के प्रत्याशियों का समर्थन किया
था।
मिट्टी में मिल जाएंगे
इसके पहले नीतीश कुमार ने 2013 में भी बीजेपी
के साथ संबंध तोड़े थे। ऐसा तब हुआ, जब यह साफ हो गया था कि नरेंद्र मोदी बीजेपी
की ओर से प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी होंगे। उसके बाद नीतीश कुमार ने ‘संघ-मुक्त भारत’ बनाने का
आह्वान किया था। उन्होंने घोषणा की कि ‘मिट्टी में मिल
जाएंगे, बीजेपी के साथ वापस नहीं जाएंगे।’
नवंबर 2015 में हुए
बिहार विधानसभा की 243 सीटों के लिए हुए चुनाव में राजद और कांग्रेस के साथ मिलकर
चुनाव लड़ा। उनके इस गठबंधन को 178 सीटें मिलीं। इसके बाद नीतीश कुमार फिर से
मुख्यमंत्री बने। तेजस्वी यादव उनके उप मुख्यमंत्री बने।
यह गठबंधन दो साल भी नहीं चला और नवंबर 2017 में नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ
गठबंधन कर लिया। पर बीजेपी धीरे-धीरे उनके प्रभाव और सीटों को कम करती रही। 2020
के विधानसभा चुनाव में उनकी सीटें 43 रह गईं, जबकि उसके पहले 2010 में 115 और 2015
में 71 थीं। अपनी इस स्थिति के लिए नीतीश कुमार ने चिराग पासवान को जिम्मेदार
माना।
महाराष्ट्र मॉडल
बिहार में अब दो संभावनाएं हैं। एक, राजद के
साथ मिलकर नीतीश कुमार सरकार बनाएं। दूसरी तरफ अंदेशा यह भी है कि नीतीश कुमार के
सहयोगी विधायक टूट जाएंगे। दावा किया जा रहा है कि जेडीयू के कुछ विधायक आरसीपी सिंह
के संपर्क में हैं। कयास है कि बिहार में महाराष्ट्र की कहानी दोहराई जा सकती है। पर
बीजेपी शायद ऐसी कोशिश नहीं करेगी, क्योंकि एक तो आरसीपी सिंह एकनाथ शिंदे जितने
प्रभावशाली नहीं हैं और दूसरे बीजेपी को बिहार की जटिल सामाजिक संरचना में जेडीयू
के साथ गठबंधन उपयोगी है। 243 सीटों वाली विधानसभा में 122 सीट बहुमत के लिए चाहिए। फिलहाल सत्ताधारी गठबंधन में बीजेपी 77,
जेडीयू के 45, अन्य के 5
जोड़कर कुल 127 विधायक हैं। विरोधी दलों में राजद 79,
कांग्रेस 19 और अन्य के पास 17 सीटें हैं जिनका योग 115 है।
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