नोएडा की ट्विन-टावर गिरा दी गईं, पर अपने पीछे कुछ सवाल छोड़ गई हैं। पहला सवाल है कि इनका निर्माण अवैध था, तो उन्हें बनने क्यों दिया गया? इन्हें गिराकर एक गलत काम की सजा तो मिल गई, पर इनके निर्माण की अनुमति देने वालों का क्या हुआ? एक बात यह भी कही जा रही है कि करोड़ों रुपये खर्च करके जब ये इमारतें बन ही गई थीं, तो इन्हें बनाने वालों को सजा देने के बाद इन इमारतों का कोई इस्तेमाल कर लेते। इन्हें गिराने से क्या मिला?
इमारतें गिर जाने के बाद एमराल्ड कोर्ट को
विशाल गार्डन मिलेगा। पर ज्यादा महत्वपूर्ण विषय यह है कि इससे जुड़े अफसरों पर
हुई क्या कार्रवाई हुई। एमराल्ड कोर्ट में रहने वालों में सरकारी अफसर, वकील और
रिटायर्ड जज भी हैं। उनके प्रयासों से यह कानूनी-उपचार संभव हो पाया। देखना होगा
कि संबद्ध अफसरों पर कार्रवाई के लिए भी क्या कोई मुहिम चलेगी?
पूरे एनसीआर क्षेत्र में तमाम सोसाइटियों के निवासी अब इस बात पर विचार कर रहे हैं कि वे किस प्रकार अपने मसलों को उठाएं। इस पूरे क्षेत्र में बिल्डरों ने जबर्दस्त निर्माण-कार्य किया है, जिसमें कई तरह के नियम-विरुद्ध काम हुए हैं। इन कार्यों में अफसरों की मिली-भगत रही है। ट्विन-टावरों ने चेतना जगाने का काम किया है। अब जरूरत इस बात की है कि इनमें रहने वाले मिलकर कानूनी उपाय खोजें।
पृष्ठभूमि
नोएडा के सेक्टर 93-ए के एमराल्ड कोर्ट में बने
दो टावरों सेयेन (29 फ्लोर) और एपेक्स (32 फ्लोर) का मामला करीब नौ साल तक चला। इनमें
करीब साढ़े आठ सौ फ्लैट बने थे। इनके निर्माण में कई प्रकार के नियमों का उल्लंघन
किया गया। न्यू ओखला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी (नोएडा) ने 2005 में इसके
बिल्डर सुपरटेक को इस जमीन पर नौ-नौ फ्लोर के 14 टावर, एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और
गार्डन विकसित करने की अनुमति प्रदान की। सन 2009 में इस परियोजना में बदलाव करके
दो हाई-राइज़ टावर एपेक्स और सेयेन बनाने की अनुमति दे दी गई। नोएडा अथॉरिटी की इस
अनुमति का एमराल्ड कोर्ट ओनर्स रेज़ीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्लूए) ने विरोध
किया और 2012 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की कि यह निर्माण अवैध
है।
2014 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि
ये टावर अवैध हैं और इन्हें गिरा दिया जाए। नोएडा अथॉरिटी और सुपरटेक ने इस फैसले
के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की। 31 अगस्त, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट
के फैसले को सही ठहराया और इमारतों को गिराने का आदेश दिया। अदालत ने इमारतों के
बीच की दूरी को नियम-विरुद्ध माना। इसके साथ ही फ्लैट-निवासियों की सहमति के बगैर
गार्डन के लिए नियत जमीन पर दो टावर बनाना भी उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट्स एक्ट-2010
के तहत नियम-विरुद्ध बताया।
अफसरों पर कार्रवाई
सुप्रीम कोर्ट ने इमारतों को गिराने का आदेश
देने के अलावा एक काम और किया। उसने कहा कि इनका निर्माण नोएडा के अफसरों और कंपनी
की साठगाँठ से हुआ है, इसलिए उत्तर प्रदेश इंडस्ट्रियल एरिया डेवलपमेंट एक्ट-1976
और उत्तर प्रदेश अपार्टमेंट्स एक्ट-2010 के तहत संबद्ध अधिकारियों के विरुद्ध मुकदमा
चलाया जाए।
31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और 2
सितंबर को सीएम योगी ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए एक विशेष कार्यबल (एसआईटी)
का गठन करके हफ्ते भर में अपनी रिपोर्ट देने का निर्देश दिया। एसआईटी की रिपोर्ट के
आधार पर विजिलेंस ने एफआईआर दर्ज की। इसमें नोएडा अथॉरिटी के पूर्व सीईओ समेत 30
लोगों को नामजद किया गया है। सुपरटेक के अधिकारियों के खिलाफ भी मुकदमे दर्ज हुए
हैं।
आईआईडीसी संजीव मित्तल की अध्यक्षता में चार
सदस्यीय एसआईटी बनाई गई थी। एसआईटी ने 4 आईएएस समेत 26 अफसरों की संलिप्तता बताई
थी। उसी एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक सिविल सर्विसेज रूल्स की धारा-351 (ए) के
तहत रिटायरमेंट से चार साल के अंदर नोएडा अथॉरिटी खुद अनुशासनात्मक कार्रवाई कर
कसती है।
इसके तहत दोषियों की पेंशन से नुकसान की राशि
की रिकवरी भी की जा सकती है। जिन्हें रिटायर हुए चार साल से ज्यादा का वक्त हो
चुका है, उनके खिलाफ सिविल सूट के जरिए कार्रवाई की जाएगी। ट्विन टावर को अनापत्ति
प्रमाण पत्र (एनओसी) देने में कथित तौर पर अनियमितता बरतने के आरोप में गौतमबुद्ध
नगर के तीन पूर्व प्रमुख दमकल अधिकारियों (सीएफओ) के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है।
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