पाकिस्तान की दिलचस्पी
कश्मीर समस्या के अंतरराष्ट्रीयकरण में है. इसके लिए पिछले तीन महीनों में उसने
अपनी पूरी ताकत लगा दी है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने संयुक्त
राष्ट्र महासभा में खून की नदियाँ बहाने की साफ-साफ धमकी दी थी. हाल में
पाक-परस्तों ने सेब के कारोबार से जुड़े लोगों की हत्या करने का जो अभियान छेड़ा
है, उससे उनकी पोल खुली है.
पाक-परस्त ताकतों ने भारत की लोकतांत्रिक,
धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी व्यवस्था को लेकर उन देशों में जाकर सवाल उठाए हैं, जो
भारत के मित्र समझे जाते हैं. वे जबर्दस्त प्रचार युद्ध में जुटे हैं. ऐसे में हमारी
जिम्मेदारी है कि हम कश्मीर के संदर्भ में भारत के रुख से सारी दुनिया को परिचित
कराएं और पाकिस्तान की साजिशों की ओर दुनिया का ध्यान खींचें. इसी उद्देश्य से हाल
में भारत ने यूरोपियन संसद के 23 सदस्यों को कश्मीर बुलाकर उन्हें दिखाया कि
पाकिस्तान भारत पर मानवाधिकार हनन के जो आरोप लगा रहा है, उनकी सच्चाई वे खुद आकर
देखें.
संयोग से यह दौरा ऐसे समय हुआ है जब कश्मीर में राज्य के
पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू हुई है. गत 5 अगस्त के बाद सरकार ने जो पाबंदियाँ
हालात पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए लगाई थीं, वे भी हटाई जा रही हैं. मोबाइल फोन
शुरू हो चुके हैं और आने-जाने पर कोई रोक नहीं है. यह बात पाकिस्तान को पसंद नहीं
आ रही है.
कश्मीर को लेकर
वैश्विक चिंता का सबसे ताजा उदाहरण है ‘दक्षिण एशिया में मानवाधिकार’ विषय पर अमेरिकी संसद
में हुई सुनवाई, जिसमें पाकिस्तानी लॉबी ने भारत पर निशाना लगाने की कोशिश की थी.
इस सुनवाई में अमेरिका सरकार ने अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी बनाए जाने को भारत का
आंतरिक मामला बताया. दक्षिण एशिया मामलों की सहायक मंत्री एलिस वैल्स ने सांसदों
को बताया कि नरेंद्र मोदी लगातार दूसरी बात चुनाव जीतकर आए हैं. और यह भी कि
अनुच्छेद 370 के बारे में निर्णय भारत की संसद ने किया है, जिसमें विरोधी दलों ने
भी इसका समर्थन किया है. उन्होंने यह भी कहा कि देश के सुप्रीम कोर्ट के सामने यह
मामला विचाराधीन है और देश की सांविधानिक संस्थाएं अपना काम कर रही हैं. वैल्स की
यह बात महत्वपूर्ण है कि कश्मीरी शांतिपूर्ण तरीकों से विरोध करने के हकदार हैं,
पर हिंसक विरोध और दूसरों को डराने का अधिकार किसी को नहीं है.
कश्मीर को लेकर
विश्व समुदाय के सामने अपना पक्ष रखने के लिए भारत सरकार ने यूरोपियन यूनियन के
सांसदों को आमंत्रित करके अपने पक्ष को उनके सामने रखा है. यूरोपीय सांसदों का यह
दौरा देश की आंतरिक राजनीति का शिकार हुआ है. कुछ विरोधी दलों ने इन सांसदों के
दौरे की आलोचना की है. उनका आरोप है कि ज्यादातर यूरोपीय सांसद दक्षिणपंथी
पार्टियों के प्रतिनिधि हैं. वे व्यक्तिगत आधार पर आए हैं. ईयू या अपने देश के
प्रतिनिधि के रूप में नहीं. सच यह है कि उन्हें जनता ने चुना है और उनकी राय भी
महत्वपूर्ण है.
यूरोपियन सांसदों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी ने पाकिस्तान की भूमिका की ओर साफ इशारा किया था. यूरोपियन सांसदों के दल में
शामिल एक सांसद ने मीडिया से कहा, ''हमलोग
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधिमंडल के हिस्सा हैं. भारत शांति स्थापित करने के लिए
आतंकवाद को ख़त्म करने की कोशिश कर रहा है और हम इसका पूरा समर्थन करते हैं.'' इन सांसदों ने कश्मीर में राजनीतिक दलों के
नेताओं के अलावा सामाजिक जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण व्यक्तियों से भी मुलाकात की
है. उन्होंने जो भी देखा, उसे व्यक्त करने के वे हकदार हैं.
विदेश मंत्रालय का कहना है कि यह उसका अधिकार है कि वह
सिविल सोसायटी के लोगों को आमंत्रित करे. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि कई
बार लोग अपने निजी यात्रा पर आते हैं तब भी कई बार राष्ट्रीय हित में हम उनसे
आधिकारिक तौर पर मिलते हैं भले ही वो निजी यात्रा पर हों. यूरोपियन सांसदों ने
भारत को जानने और समझने की इच्छा जताई थी.
गत 31 अक्तूबर से राज्य का नक्शा बदल गया है और वह दो केंद्र
शासित राज्यों में तब्दील हो चुका है. इस प्रक्रिया को पूरा होने में अभी समय
लगेगा. कश्मीर को राजनीतिक विवाद नहीं बनाना चाहिए. इस विषय पर राजनीतिक स्तर पर आम
सहमति भी होनी चाहिए. विडंबना है कि ऐसा हो नहीं पाया.
इस दौरान आतंकवादियों
ने पाँच मज़दूरों की हत्या कर दी थी. इन सांसदों ने इसकी भी निंदा की. कश्मीर
मामले को राष्ट्रीय नजरिए से ही देखा जाना चाहिए, राजनीतिक नजरिए से नहीं. इस बात
को कहना आसान है, पर इसे व्यावहारिक रूप देना आसान नहीं है. यह स्पष्ट है कि
यूरोपियन सांसदों के दौरे से कश्मीर की जमीनी हकीकत और आतंकवाद के खतरे को दुनिया
ने देखा है.
इन सांसदों ने
कहा कि अनुच्छेद 370 भारत का आंतरिक मामला है और वैश्विक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई
में हम भारत के साथ खड़े हैं. हमारी चिंता का विषय आतंकवाद है जो दुनियाभर में
परेशानी का विषय है. इस लड़ाई में हमें भारत के साथ खड़ा होना चाहिए. आतंकवादियों
ने पांच निर्दोष मजदूरों की हत्या की, यह घटना दुर्भाग्यपूर्ण है और हम इसकी कड़ी निंदा करते हैं.’
यह दौरा आंखें खोलने वाला रहा है और जो कुछ हमने ग्राउंड जीरो पर देखा है हम उससे
दुनिया को परिचित कराएंगे.
पोलैंड के सांसद
रेजार्ड जारनेकी ने कहा, हमने जो देखा है, अपने देश लौटकर हम उसकी जानकारी देंगे. फ्रांस के सांसद
थियेरी मारियानी ने कहा कि आतंकवादी एक देश को बरबाद कर सकते हैं. मैं अफगानिस्तान
और सीरिया जा चुका हूं और आतंकवाद ने वहां जो किया है वह देख चुका हूं. इन सांसदों
की बातों को हवा में नहीं उड़ाया जा सकता. दुनिया को पता लगना चाहिए कि कश्मीर के
पीछे का सच क्या है.
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