फाइनेंशियल एक्शन
टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की सूची में पाकिस्तान फिलहाल फरवरी तक ‘ग्रे लिस्ट’ में बना रहेगा। पेरिस में
हुई बैठक में यह फैसला हुआ है। इस फैसले में पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी भी दी गई
है। कहा गया है कि यदि फरवरी 2020 तक पाकिस्तान सभी 27 कसौटियों पर खरा नहीं उतरा
तो उसे काली सूची में डाल दिया जाएगा। यह चेतावनी आमराय से दी गई है। पाकिस्तान का नाम काली
सूची में रहे या भूरी में, इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता। ज्यादा महत्वपूर्ण है
जेहादी संगठनों के प्रति उसका रवैया। क्या वह बदलेगा?
पिछले महीने संरा
महासभा में इमरान खान ने कश्मीर में ‘खून की नदियाँ’ बहाने और नाभिकीय युद्ध छेड़ने की
जो धमकी दी है, उससे उनकी विश्व-दृष्टि स्पष्ट हो जाती है। ज्यादा बड़ा प्रश्न यह
है कि अब क्या होगा? पाकिस्तान की इस उन्मादी
और जुनूनी मनोवृत्ति पर नकेल कैसे डाली जाएगी? एफएटीएफ ने पाकिस्तान को आतंकी वित्तपोषण और धन
शोधन जैसे मुद्दों से निपटने के लिए अतिरिक्त कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। क्या वह इनका
अनुपालन करेगा?
पाकिस्तान की
कोशिश अपनी वित्तीय संस्थाओं के खातों में हेर-फेर करके यह साबित करने की है कि हम
आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। वह यह भी कहता है कि हम आतंकवाद के खुद शिकार
हैं। सवाल है कि आतंकवाद की उसकी अपनी परिभाषा क्या है? उसकी न्याय-व्यवस्था में आतंकवादियों के साथ
क्या सलूक किया जाता है? मुंबई कांड के 11
साल बाद भी वहाँ चल रहे मुकदमों की प्रगति क्या है? जब अमेरिका यात्रा पर जाना होता है, तो किसी के
खिलाफ कार्रवाई की खबरें प्रकाशित करा
दीं, एफएटीएफ की बैठक है, तो दो-चार गिरफ्तारियाँ करा दीं और फिर उन्हें
छोड़ दिया।
पाकिस्तानी पाखंड
हाल में दो
प्राप्त दो समाचारों को एक साथ पढ़ें तो पाकिस्तानी पाखंड की पोल खुल जाती है। एक
खबर यह है कि देश के आतंक-विरोधी विभाग ने हाफिज सईद के खिलाफ 23 मुकदमे दर्ज किए हैं। दूसरी खबर
यह है कि हाफिज सईद के बैंक खाते पर से पाबंदी हटाने की पाकिस्तान सरकार की
प्रार्थना संरा सुरक्षा परिषद ने मंजूर कर ली। इतना ही नहीं उसे
हर महीने 45,700 रुपये की पेंशन भी मिलती है। सुरक्षा परिषद से प्रतिबंधित यह कैसा
आतंकवादी है, जिसपर अमेरिका ने एक करोड़ डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है?
पाकिस्तान के
मीडिया और आम व्यवहार में हाफिज सईद को आतंकवादी माना भी नहीं जाता, बल्कि देशभक्त माना जाता है। जिस देश में आतंकवाद का मतलब
देशभक्ति हो, उसका एफएटीएफ क्या बिगाड़ लेगा? सच यह है कि हाफिज सईद पाकिस्तान की उस विचारधारा का सच्चा
प्रतिनिधि है, जिसका
सिंहनाद इमरान खान संयुक्त राष्ट्र महासभा में करके आए हैं। इमरान ने हाल में खुद
कहा है कि देश में तीस से चालीस हजार
प्रशिक्षित आतंकवादी मौजूद हैं।
उनका डबल गेम
पाकिस्तानी
राज-व्यवस्था इस मामले में डबल गेम खेलती रही है। जुलाई 2017 में जब अमेरिकी
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बड़े गर्व के साथ घोषणा की कि दस साल की तलाश के बाद
मुम्बई कांड के मास्टरमाइंड को पकड़ लिया गया है, अमेरिकी संसद की विदेशी मामलों
की समिति ने ट्वीट किया कि यह बंदा 2001, 2002,
2006, 2008, 2009 और 2017 में कई बार पकड़ा गया और रिहा किया गया है। यह डबल गेम 9/11 के बाद से शुरू हुआ,
जब परवेज मुशर्रफ
ने अमेरिकी नाराज़गी से बचने के लिए पाकिस्तान को औपचारिक रूप से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में शामिल कर लिया। अब
इमरान खान कह रहे हैं कि उस लड़ाई में हमारा शामिल होना गलत
था। यानी सच क्या है?
सच यह है कि जनरल
ज़िया-उल-हक इस भस्मासुर के लिए सैद्धांतिक ज़मीन तैयार कर गए थे। इस जेहादी जुनून
का परिणाम है यह आतंकी व्यवस्था। देश वहाबी विचारधारा का केंद्र बन गया है। किसी
की ताकत उन्हें रोक पाने की नहीं है। पाकिस्तान का आतंकी नेटवर्क कई टुकड़ों में
बँटा है। विशेषज्ञ इसे पाँच वर्गों में बाँटते हैं:-
1.साम्प्रदायिक:
सुन्नी संगठन सिपह-ए-सहाबा, लश्कर-ए-झंगवी और शिया
तहरीक-ए-ज़फरिया। 2.भारत-विरोधी: कश्मीर को आधार बनाकर सक्रिय
गिरोह जिन्हें पाकिस्तानी सेना की खुफिया शाखा आईएसआई का समर्थन प्राप्त है। इनमें
लश्करे तैयबा, जैशे मोहम्मद, हरकत-उल-मुज़ाहिदीन
और हिज्ब-उल-मुज़ाहिदीन प्रमुख हैं। 3. अफगान तालिबान: मूल
तालिबान जिसका नेता मुल्ला मोहम्मद उमर था। इनके साथ ही इन दिनों अमेरिका की बात
चल रही है, जिसमें पाकिस्तान मध्यस्थ है। 4.अल कायदा और उसके सहयोगी:
ओसामा बिन लादेन का मूल संगठन जिसका नेता आयमान अल जवाहिरी है। 5.पाकिस्तानी तालिबान: फाटा में सक्रिय गिरोहों का समूह, जिसका मुखिया मुल्ला फज़लुल्ला था, जिसे मुल्ला रेडियो के नाम से भी जाना जाता था।
पाकिस्तानी सेना
इसी समूह के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। यह समूह कट्टर इस्लामी व्यवस्था को लागू
करना चाहता है। यह भी पाकिस्तानी भस्मासुरी व्यवस्था की देन है। इन समूहों के
अलावा इस्लामी स्टेट, जिसे उसके अरबी नाम ‘दाएश’
से जाना है, पाकिस्तान में सक्रिय है। बदले हुए नामों से अलकायदा भी इनके साथ है। इनके अलावा
पाकिस्तान का हक्कानी नेटवर्क है, जो तालिबान के साथ है।
भारत-विरोधी समूह
पाकिस्तानी सेना
भारत-विरोधी संगठनों को संरक्षण देती है, भले ही विश्व समुदाय उन्हें आतंकवादी
मानता हो। इन समूहों के संरक्षण की व्यवस्था की लेखा-परीक्षा एफएटीएफ के मार्फत चल
रही है। एफएटीएफ की स्थापना जी-7
देशों ने की है। यह संगठन सन 1989 में जी-7 देशों के पेरिस
शिखर सम्मेलन की देन है। शुरू में तो यह मनी लाउंडरिंग रोकने के लिए बना था,
पर 11 सितम्बर 2001 के आतंकवादी हमले के बाद से इसने सन
2001 में आतंकवादी गतिविधियों के लिए धन उपलब्ध कराने के खिलाफ भी सिफारिशें देना
शुरू किया।
इससे जुड़े क्षेत्रीय संगठन भी हैं, जिनमें एशिया पैसिफिक
ग्रुप (एपीजी) भी एक है। एफएटीएफ
के गठन के वक्त 16 देश इसके सदस्य थे, जिनकी संख्या अब 37 है. भारत एफएटीएफ और एपीजी दोनों का
सदस्य है और इसके संयुक्त समूह का संयुक्त सभापति भी है। अगस्त में एशिया-प्रशांत समूह (एपीजी) ने पाकिस्तान को एनहांस्ड एक्सपेडाइटेड फॉलो अप (ईईएफयूपी) लिस्ट में डाल दिया
था। एफएटीएफ एपीजी बैठक ऑस्ट्रेलिया की राजधानी कैनबरा में 22 और 23 अगस्त को हुई।
एपीजे ने पाया कि धन शोधन और आतंकियों की मदद से जुड़े 40 अनुपालन मानकों में
से 32 पर और 11 प्रभावी मानकों में से 10 पर पाकिस्तान खरा नहीं उतरा। वह एफएटीएफ
की ग्रे सूची में जून 2018 से है। उसे
ग्रे लिस्ट से बाहर करने के लिए एफएटीएफ के 37 में से कम से कम 15 के समर्थन की जरूरत होगी। और काली
सूची से बचाने के लिए कम से कम तीन वोटों की। पाकिस्तानी अखबार डॉन की रिपोर्ट के मुताबिक, एफएटीएफ की बैठक में चीन, तुर्की और मलेशिया ने पाकिस्तान द्वारा उठाए गए कदमों की सराहना
की। शायद वह इसबार वह इन तीन देशों के समर्थन से बच भी गया है, पर क्या अगली बार
भी बचेगा? अगली बार वह काली सूची में आ गया, तो उसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा
कोष से कर्ज मिलना मुश्किल हो जाएगा।
चूंकि पाकिस्तान इस समय आर्थिक
संकट से भी जूझ रहा है, इसलिए वह किसी भी कीमत पर काली सूची से बचना चाहता है।
ज्यादा बड़ा सवाल यह है कि पाकिस्तान क्या अपने आतंकवादी ताने-बाने को बनाए रखेगा? संरा महासभा में इमरान खान ने जिस तरह खुद को मुस्लिम उम्मा का नेता बनाने की
कोशिश की और जिस तरह से उनके भाषण का देश के एक तबके ने स्वागत किया है, उससे लगता
नहीं कि उनकी रीति-नीति में कोई बदलाव आएगा।
आतंकवाद का केन्द्र
पाकिस्तान ने जिस तरह से 2001 में पलटी खाई थी, उसी तरह कुछ
अब होगा। वह अपने अफगानिस्तान कार्ड का इस्तेमाल करके अमेरिकी हमदर्दी प्राप्त
करने की कोशिश कर रहा है। दूसरी तरफ उसे चीन का पूरा राजनयिक समर्थन हासिल है। माना
जाता है कि इससे चीन की साख कम होगी, पर इससे क्या? चीन ने लम्बे
समय तक मसूद अज़हर के मामले को रोक कर रखा। उससे चीन का क्या बिगड़ गया?
इस बात का जवाब देना भी आसान नहीं है। एफएटीएफ की आंतरिक
संरचना में देशों की राय मायने रखती है, पर क्या सामने रखे सच की अनदेखी की जा
सकती है? 1 जुलाई 2019 से एफएटीएफ की
अध्यक्षता का भार चीन पर है। इस समय पीपुल्स बैंक ऑफ चायना के विधि विभाग के
महानिदेशक शियांगमिन ल्यू इस संगठन के अध्यक्ष हैं। इन कार्यों में अध्यक्ष का
विशेष भूमिका नहीं है, पर देश की है।
ज्यादा बड़ा सवाल पाकिस्तान को लेकर है। क्या वह दुनिया के आतंकी प्रतिष्ठान का केन्द्र बना रहेगा? क्या इससे उसकी आर्थिक दशा लगातार बिगड़ती नहीं जाएगी? पाकिस्तान के कुछ अखबारों ने इस बात को कहना शुरू
किया है कि ऐसे संगठनों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती, जिनपर दुनिया की निगाहें हैं? एक अखबार ने यह भी लिखा है कि ग्रे लिस्ट में बने रहने का भी मतलब है
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के सामने हमारी साख का गिरना। हमारी दिलचस्पी इस बात में
है कि पाकिस्तान का रुख अपने जेहादी समूहों के प्रति कैसा रहता है। जब तक वहाँ जेहादियों की
हरकतें जारी रहेंगी, और वे हमारे खिलाफ हिंसक गतिविधियाँ जारी रखेंगे, हमारे जीवन
में भी शांति संभव नहीं है।
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