Wednesday, March 22, 2023

इस माहौल में क्या भारत-पाक वार्ता संभव है?


 देस-परदेश

पाकिस्तान अपने आर्थिक-संकट और आंतरिक राजनीतिक-विवादों में उलझा हुआ है, पर बीच-बीच में भारत-पाकिस्तान बातचीत शुरू होने की सुगबुगाहट सुनाई पड़ती है. ऐसा पिछले साल अप्रेल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से चल रहा है. पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक टकराव के दौरान भी कई बार यह बात सुनाई पड़ी है कि भारत के साथ रिश्ते सुधारने चाहिए.

पाकिस्तान में यह मानने वाले भी हैं कि भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को कायम करना देशहित में है. खासतौर से जब अमेरिका और ईयू में मंदी है, तब भारत के साथ कारोबारी संबंध बनाने से पाकिस्तान की गिरती दशा को सुधारा जा सकता है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि 2019 में व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना गलत था.

भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलती है. किसी भी क्षण जबर्दस्त झटका लगता है और सब कुछ बिखर जाता है. फिर भी एक आस बँधी रहती है कि शायद अब कुछ सकारात्मक हो. दूसरी तरफ पाकिस्तान में एक पूरा प्रतिष्ठान भारत-विरोध के नाम पर खड़ा है. उसका मूल स्वर है ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान.’ कश्मीर के मामले पर पूरा देश बेहद ऊँचे तापमान पर गर्म रहता है.

अस्थिर दृष्टिकोण

यह तस्वीर दो साल पहले फरवरी-मार्च 2021 में हमने देखी, जब रिश्ते सुधरते दिखाई पड़े और फिर सब कुछ बदल गया. पाकिस्तान को हर तरह के भारतीय संदर्भों से काट कर एक कृत्रिम देश बसाने की कामना उसे धीरे-धीरे तबाही की ओर ले जा रही है. इस प्रयास में इस देश ने अपनी सांस्कृतिक-सामाजिक पहचान तक को मिटाना शुरू कर दिया है.

बावजूद इसके दोनों देशों की बातचीत फिर से शुरू करने की बातें होने लगी हैं. यह जानते-बूझते हुए कि कश्मीर में अनुच्छेद 370 की वापसी अब संभव नहीं है. गत 9 मार्च को अमेरिकी विदेश विभाग की एक प्रेस ब्रीफिंग में कहा गया कि अमेरिका लंबे समय से चले आ रहे विवादों को हल करने के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच रचनात्मक बातचीत का समर्थन करता है। विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने कहा कि इस बारे में फैसला भारत और पाकिस्तान को ही करना है.

पिछले कई वर्षों से भारत और पाकिस्तान के बीच आधिकारिक और राजनेता स्तर के अधिकारियों का सामान्य आवागमन भी नहीं हो रहा है. 9 अगस्त, 2019 को जब भारत ने जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 और 35ए को निष्प्रभावी किया तब पाकिस्तान ने भारत स्थित अपने उच्चायुक्त को वापस बुला लिया और साथ ही व्यापारिक संबंध भी समाप्त करने की घोषणा की.

एशिया कप

क्या कारोबारी रिश्ते फिर से जुड़ेंगे और क्या दोनों देशों के उच्चायुक्तों की बहाली होगी? ऐसे सवाल फौरन मन में आते हैं. कुछ घटनाएं ऐसी हो रही हैं, जो ध्यान खींचती हैं. इनमें पहली घटना क्रिकेट से जुड़ी है. इस साल होने वाले एक दिनी क्रिकेट एशिया कप को लेकर विवाद है. प्रतियोगिता के आयोजन का भार इसबार पाकिस्तान पर है, लेकिन बीसीसीआई अध्यक्ष जय शाह पहले ही कह चुके हैं कि टीम इंडिया टूर्नामेंट के लिए पाकिस्तान नहीं जाएगी.

फिलहाल इसके आयोजन को लेकर कोई निर्णय नहीं हुआ है, लेकिन टीम के पूर्व कप्तान शाहिद अफरीदी ने भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) से आग्रह किया है कि वह एशिया कप भाग लेने के लिए अपनी टीम को पाकिस्तान भेजे. उन्होंने ऐसी ही अपील नरेंद्र मोदी से भी की है. खबरें हैं कि प्रतियोगिता का आयोजन किसी अन्य स्थान पर कराया जा सकता है. इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक संभवतः यह फैसला हो चुका होगा कि यह कहाँ होगी. दोनों देशों के रिश्तों को बनाने या बिगाड़ने में क्रिकेट की बड़ी भूमिका है.

व्यापारिक संबंध

पिछले हफ्ते इस सिलसिले में भारत की ओर से भी एक महत्वपूर्ण बयान सामने आया, जिसे भारत में उतना महत्व नहीं दिया गया, पर पाकिस्तान में नोट किया गया. अखबार डॉन के मुताबिक, पाकिस्तान में भारत के उप उच्चायुक्त सुरेश कुमार ने 17 मार्च को लाहौर चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एलसीसीआई) के एक कार्यक्रम में कहा कि भारत ने पाकिस्तान के साथ व्यापारिक संबंध कभी बंद नहीं किए और हमारा देश व्यापारिक संबंधों को सामान्य बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहता है।

उन्होंने कहा, भारत हमेशा पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध चाहता है, क्योंकि हम अपना भूगोल नहीं बदल सकते। हमने पाकिस्तान के साथ व्यापार रोका भी नहीं, पाकिस्तान ने ही ऐसा किया था। हमें सोचना चाहिए कि हम अपनी समस्याओं और स्थितियों को कैसे बदल सकते हैं।

इस खबर के दो पहलुओं पर ध्यान देने की जरूरत है. एक, लाहौर चैंबर ने भारतीय उप उच्चायुक्त सुरेश कुमार को अपने कार्यक्रम में बुलाया और दूसरे, उन्होंने भारत के सकारात्मक मंतव्य को प्रकट किया.

सुरेश कुमार ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान भारतीय दूतावास द्वारा पाकिस्तानियों को जारी किए जाने वाले वीजा की संख्या में कमी आई थी, लेकिन अब यह संख्या अब बढ़ गई है. उप उच्चायुक्त का यह बयान उनकी निजी राय नहीं हो सकती है. उनकी बात को पाकिस्तान में किस तरह से सुना गया है, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है.

एससीओ की बैठकें

एक और खबर यह है कि भारत ने शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के रक्षामंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए पाकिस्तान के रक्षामंत्री ख्वाजा आसिफ को आमंत्रित किया है। यह बैठक  अप्रैल में नई दिल्ली में होगी. इस साल एससीओ के अध्यक्ष के रूप में भारत में इसकी कई बैठकें होनी हैं, इसलिए यह औपचारिक निमंत्रण बनता है. ऐसी ही एक बैठक विदेशमंत्रियों की गोवा में होगी. सवाल है कि क्या उसमें भाग लेने के लिए पाकिस्तान के विदेशमंत्री बिलावल भुट्टो जरदारी भारत आएंगे?

पाकिस्तान की प्रतिक्रिया इस विषय में क्या है, अभी स्पष्ट नहीं है. अलबत्ता गत 10-12 मार्च को नई दिल्ली में हुई एससीओ के मुख्य न्यायाधीशों की बैठक में पहले तो पाकिस्तान ने शामिल नहीं होने का फैसला किया है, पर बाद में बजाय मुख्य न्यायाधीश के स्थान पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस मुनीब अख्तर इसमें वीडियो माध्यम से शामिल हुए. इसे एक कदम आगे आना माना जा सकता है.

राजनेताओं के दौरे

पाकिस्तानी विदेशमंत्री यदि एससीओ की बैठक में भाग लेंगे, तो यह 2011 के बाद से इस्लामाबाद की तरफ से भारत की पहली ऐसी यात्रा होगी। 2011 में पाकिस्तानी विदेशमंत्री हिना रब्बानी खार ने भारत का दौरा किया था। खार इस समय विदेशी मामलों की राज्यमंत्री के रूप में कार्य कर रही हैं.

मई 2014 में पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत का दौरा किया था. इसके बाद दिसंबर 2015 में विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान का दौरा किया था और फिर 25 दिसंबर को पीएम मोदी ने लाहौर का एक छोटा सा दौरा किया था, जो बड़ी खबर बना और उसके कुछ बाद ही नए साल पर पठानकोट एयरबेस पर हमला हुआ और सारी कहानी देखते ही देखते बदल गई.

गोलाबारी रुकी

फरवरी 2021 में दोनों देशों ने नियंत्रण रेखा पर गोलाबारी रोकने का फैसला किया था. तब लगा कि शायद अब बातचीत की ज़मीन तैयार होगी. इसके बाद इमरान खान और नरेंद्र मोदी के बयानों से लगा कि रिश्ते सुधार की दिशा में बढ़ रहे हैं. 23 मार्च को ‘पाकिस्तान दिवस’ पर नरेंद्र मोदी ने इमरान खान को बधाई का पत्र भेजा कि पाकिस्तान के साथ भारत दोस्ताना रिश्ते चाहता है. साथ ही यह भी कि दोस्ती के लिए आतंक मुक्त माहौल जरूरी है.

जवाब में इमरान खान की चिट्ठी आई, 'हमें भरोसा है कि दक्षिण एशिया में शांति और स्थिरता के लिए दोनों देश सभी मुद्दों को सुलझा लेंगे, खासकर जम्मू-कश्मीर को सुलझाने लायक बातचीत के लिए सही माहौल बनना जरूरी है.' दोनों पत्रों में रस्मी बातें थीं, पर दोनों ने अपनी सैद्धांतिक शर्तों को भी लिख दिया था। फिर भी लगा कि माहौल ठीक हो रहा है.

उसके बाद 31 मार्च को जब खबर मिली कि पाकिस्तान की इकोनॉमिक कोऑर्डिनेशन काउंसिल (ईसीसी) ने भारत से चीनी और कपास मँगाने का फैसला किया है, तो लगा कि रिश्तों को बेहतर बनाने का जो ज़िक्र एक महीने से चल रहा है, यह उसका पहला कदम है.

तेज यू-टर्न

उस वक्त खबर थी कि यूएई की सरकार ने बीच में पड़कर माहौल को बदला है. तीन महीनों से दोनों देशों के बीच बैक-चैनल बात चल रही है वगैरह. यूएई के अमेरिका स्थित राजदूत ने ऐसा दावा भी किया. आंशिक-व्यापार शुरू करने के ऐलान पर प्रतिक्रियाएं आई नहीं थीं कि वहाँ की कैबिनेट ने इस फैसले को रोक दिया और कहा कि जब तक भारत 5 अगस्त, 2019 के फैसले को रद्द करके जम्मू-कश्मीर में 370 की वापसी नहीं करेगा, तब तक कारोबार नहीं होगा। इतने तेज यू-टर्न की उम्मीद किसी को नहीं थी।

दोनों के रिश्तों में उतार-चढ़ाव बहुत तेजी से आता है, इसलिए इस पलटी से हैरान होने की जरूरत नहीं है, पर इसके पीछे की कहानी और वैश्विक परिस्थितियों को पढ़ने की जरूरत है. प्रधानमंत्रियों की चिट्ठियों के पहले 17 मार्च को इमरान खान ने पाकिस्तान के थिंकटैंक नेशनल सिक्योरिटी डिवीजन के ‘इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग’ का उद्घाटन करते हुए कहा, हम भारत से रिश्तों को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं.

बीती बातों को भूलें

बाद में उसी कार्यक्रम में जनरल कमर जावेद बाजवा ने ‘बीती बातों को भुलाने’ की सलाह दी थी। उन्होंने रस्मी तौर पर कश्मीर का जिक्र जरूर किया, पर 5 अगस्त, 2019 से पहले की स्थिति बहाल करने और सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का जिक्र नहीं किया. उसके आगे-पीछे जनरल बाजवा का यह विचार पाकिस्तानी मीडिया में व्यक्त हुआ कि 370 भारत का अंदरूनी मामला है.

नई बात यह हुई कि पाकिस्तानी सरकार और सेना ‘एक पेज’ पर नजर आने लगी. अतीत की भारत-पाकिस्तान वार्ताओं में ‘कांफिडेंस बिल्डिंग मैजर्स (सीबीएम)’ का सबसे ज्यादा इस्तेमाल होता है. इस सीबीएम का रास्ता आर्थिक है. बाजवा ने उसपर जोर दिया. दोनों के आर्थिक-सहयोग की जबर्दस्त सम्भावनाएं हैं, पर पाकिस्तान का ‘कश्मीर कॉज़’ आड़े आता है.

शांति और स्थिरता

दोनों देशों के बीच व्यापार की जबर्दस्त सम्भावनाएं हैं. इससे दोनों को फायदा होगा, लोगों का आना-जाना बढ़ेगा. दोनों देश संगीत, सिनेमा, क्रिकेट, हॉकी और टीवी धारावाहिकों के अलावा शादी के जोड़ों, सलवार-कमीजों, खान-पान, आयुर्वेदिक और यूनानी दवाओं, मिर्च-मसालों और अचारों के मार्फत ही नहीं जुड़े हुए हैं. सगे भाई-बहनों, मामा-भांजों, चचा-भतीजों वगैरह-वगैरह के मार्फत जुड़े हैं.

पाकिस्तानी सेना ने दोनों देशों के बीच व्यापार की पहल की थी, पर इमरान खान ने पहले उसे स्वीकार करके और फिर ‘यू-टर्न’ लेकर सारे मामले को गड्ड-मड्ड कर दिया. हाल में फिर से इस बात का जिक्र हो रहा है कि दोनों देशों के बीच बातचीत की संभावना है.

पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी ने अपनी किताब ‘नीदर ए हॉक नॉर ए डव’ में लिखा है कि परवेज़ मुशर्रफ और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच कश्मीर पर चार-सूत्री समझौता होने जा रहा था, जिससे इस समस्या का स्थायी समाधान हो जाता. शायद अब उसी तर्ज पर अब कुछ हो सकता है. शायद कश्मीर के मसले को बीस साल तक पीछे रखने की बात है वगैरह.

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

 

 

 

 

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