संसद के दोनों सदनों में पूरे सप्ताह गतिरोध जारी रहा। जिस तरह के हालात हैं, उन्हें देखते हुए लगता नहीं कि सोमवार को भी स्थिति में सुधार होगा। कांग्रेस के नेतृत्व में विरोधी दल अडाणी-हिंडनबर्ग विवाद में जेपीसी की मांग पर अडिग हैं। दूसरी तरफ राहुल गांधी के बयानों को बीजेपी राष्ट्रीय-अपमान का विषय और विदेशी जमीन से भारतीय संप्रभुता पर हमला बता रही है। वह चाहती है कि लंदन में कही गई अपनी बातों पर राहुल गांधी माफी माँगें। लगता यह भी है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही इस गतिरोध को जारी रखना चाहते हैं।
इस गतिरोध के ज्यादातर प्रसंग 2024 के चुनाव में दोनों तरफ के तीरों का काम करेंगे। गृहमंत्री अमित शाह ने शुक्रवार को कहा कि विपक्ष वार्ता के लिए आगे आए तो गतिरोध को दूर किया जा सकता है। दोनों पक्ष लोकसभा अध्यक्ष के साथ बैठें। उन्हें दो कदम आगे आना चाहिए और हम उससे भी दो कदम आगे बढ़ाएंगे, तब संसद चलेगी। उन्होंने इसके बाद कहा, आप केवल संवाददाता सम्मेलन कीजिए और कुछ न कीजिए, ऐसा नहीं चलता।
दोनों तरफ से हंगामा
हंगामा दोनों तरफ से है। ऐसा कम होता है, जब
सत्तापक्ष गतिरोध पैदा करे। खबर यह भी है कि बीजेपी लंदन की टिप्पणी के लिए राहुल
गांधी को सदन से निलंबित या निष्कासित करने पर भी विचार कर रही है। यह गंभीर बात
है, पर ऐसा क्यों सोचा जा रहा है? इससे तो राहुल गांधी का राजनीतिक कद
बढ़ेगा? एक धारणा है कि विरोधी दलों का मुख्य चेहरा
राहुल गांधी को बनाने से बीजेपी को लाभ है, क्योंकि इससे विपक्ष में बिखराव होगा। दूसरे
बीजेपी खुद को राष्ट्रवाद की ध्वजवाहक और कांग्रेस को राष्ट्रवाद-विरोधी साबित
करने में सफल होगी। राष्ट्रवाद के प्रश्न पर बीजेपी खुद को ‘उत्पीड़ित’ साबित करती है। 2019 में पुलवामा कांड के बाद ऐसा ही हुआ। राहुल पर
ध्यान केंद्रित करने से अडाणी प्रसंग से भी ध्यान हटेगा। देखना यह भी होगा कि
कांग्रेस पार्टी अडाणी-हिंडनबर्ग मामले को कितनी दूर तक ले जाएगी? इससे लगता है कि संसदीय
गतिरोध दोनों पक्षों के लिए उपयोगी है। दोनों पार्टियों ने शुक्रवार और शनिवार को
अगले सप्ताह की गतिविधियों और रणनीतियों पर विचार किया है। इस ब्रेक के बाद यह
देखना रोचक होगा कि गतिरोध आगे बढ़ेगा या मामला सुलझेगा।
मोदी बनाम राहुल
कानून मंत्री किरण रिजिजू का यह बयान ध्यान देने योग्य है कि ‘देश से जुड़ा कोई मसला हम सब के लिए चिंता का विषय है…अगर कोई देश का अपमान करेगा तो हम इसे सहन नहीं कर सकते।’ उधर कांग्रेस के राज्यसभा के सांसद के सी वेणुगोपाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ गरिमा हनन से संबंधित कार्रवाई करने की मांग की है। वेणुगोपाल ने कहा कि प्रधानमंत्री ने संसद में राहुल और पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ अपमानजनक और असंसदीय भाषा का इस्तेमाल किया है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री ने ‘परिवार’ और ‘नेहरू’ नाम का जो उल्लेख किया था, उसे पार्टी ने उठाया है। बहरहाल कांग्रेस पार्टी के पास संसद में लड़ने की सीमित शक्ति है, वह इस मामले को सड़क पर ले जाएगी। राजनीतिक दृष्टि से बीजेपी भी चाहेगी कि मामला ‘मोदी बनाम राहुल गांधी’ बनकर उभरे।
राहुल गांधी पर प्रहार
खबरें हैं कि बीजेपी अब राहुल के खिलाफ
कार्रवाई करने पर गंभीरता से विचार कर रही है। राहुल का संसद से निलंबन या
बर्खास्तगी। इसके दो रास्ते हैं। एक, विशेषाधिकार समिति की सिफारिश और दूसरा
रास्ता है सदन की अनुमति के बाद लोकसभा अध्यक्ष के आदेश से एक विशेष समिति का गठन।
यह समिति राहुल के बयानों का अध्ययन करने के बाद किसी निष्कर्ष पर पहुंचेगी। देश
की संसद और राष्ट्र की गरिमा से जुड़े सवालों के संदर्भ में यह विचार होगा। 1978
में इंदिरा गांधी को जनता पार्टी ने गरिमा के उल्लंघन के मुद्दे पर संसद से
निलंबित कर दिया था। उस समय अंततः इंदिरा गांधी को राजनीतिक रूप से लाभ मिला था,
पर आज क्या वैसी ही स्थिति है?
विशेषाधिकार हनन
बिहार से भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने
लोकसभा अध्यक्ष को एक पत्र लिखा है कि सदन की गरिमा को क्षति पहुंचाने के लिए
राहुल गांधी को दंडित किया जाए। उन्होंने नियम 223 का हवाला दिया है, जिसके तहत
किसी विशेष समिति के गठन का प्रावधान नहीं है। यह मामला केवल प्रवर समिति के समक्ष
रखा जाता सकता है। राहुल के खिलाफ संसद के विशेषाधिकार हनन का मामला पहले ही चल
रहा है। अगर लोकसभा अध्यक्ष मामला विशेष समिति को भेज देते हैं तो यह गांधी के
खिलाफ ऐसा दूसरा मामला हो जाएगा। लोकसभा
सदस्यों के पास कुछ विशेषाधिकार होते हैं। पर यदि कोई सदस्य संसद की गरिमा का
उल्लंघन करता है तो उससे लिए कई तरह के दंड के प्रावधान हैं। संसद परिसर में केवल
अध्यक्ष/सभापति के आदेशों का पालन होता है। विशेषाधिकार भंग करने या सदन की
अवमानना करने वाले को भर्त्सना, ताड़ना या निर्धारित अवधि के लिए
कारावास की सज़ा दी जा सकती है। सदन अन्य दो प्रकार के दंड दे सकता है। सदस्यता से
निलंबन या बर्खास्तगी। सभी बातों का फैसला संसद को ही करना है। और इसके लिए दोनों
तरफ से विशेषज्ञ विचार कर रहे हैं। न्यायपालिका भी संसद के काम में हस्तक्षेप नहीं
कर सकती है।
संसद में बहस
राहुल गांधी का कहना है कि मुझे संसद में जवाब
देने का मौका मिलना चाहिए। संसद के संचालन की जिम्मेदारी सरकार की होती है, पर
अमित शाह कहते हैं कि आपको बात करने से कोई नहीं रोक रहा, पर संसद में बहस नियमों
के तहत होती है। हम किससे बात करें? वे मीडिया से
बातचीत कर रहे हैं। वे नारेबाजी कर रहे हैं कि संसद में बोलने की आजादी होनी
चाहिए। संसद में बोलने की पूरी आजादी है। आप सड़क चलते व्यक्ति की तरह संसद में
नहीं बोल सकते। दूसरी तरफ कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि हमारी पहली
प्राथमिकता राहुल गांधी को संसद में बोलते देखना है। वे रोजाना कोशिश करेंगे और
सत्र चलने तक स्पीकर से मुलाकात भी करेंगे। अनुमति नहीं मिली तो वे अपने विचार
रखने के लिए मीडिया को संबोधित करेंगे।
गतिरोध पर गतिरोध
बजट सत्र का दूसरा चरण 13 मार्च को शुरू हुआ था,
लेकिन हंगामे की वजह से सदन की कार्यवाही एक दिन भी पूरी नहीं हो पाई
है। यह चरण 6 अप्रैल तक चलेगा। इस दौरान बजट पर चर्चा करके उसे पास करने की
प्रक्रिया को पूरा करना है। राजनीतिक स्थिति यह है कि अबतक पिछले 8 सत्रों का किसी
न किसी कारण से समय से पहले सत्रावसान करना पड़ा है। संसद के इस चरण में पास करने
के लिए 35 विधेयक विचाराधीन हैं। 26 बिल राज्यसभा में और 9 बिल लोकसभा में। शुक्रवार
को लोकसभा में कार्यवाही स्थगित करने से पहले अध्यक्ष ओम बिरला ने सभी सदस्यों से
सदन चलने देने की अपील की। उन्होंने कहा कि सदन आप सभी चलने दीजिए। जैसे ही सदन की
कार्यवाही गति पकड़ेगी, हम सभी को बोलने का मौका देंगे। इसी
बीच दोनों तरफ के सदस्यों ने शोर मचाना शुरू कर दिया और फिर किसी कारण से टीवी
प्रसारण म्यूट हो गया। बाद में बताया गया कि ऐसा तकनीकी खराबी के कारण हुआ।
विधेयक और बजट
बजट सत्र हमारी संसद का सबसे महत्त्वपूर्ण सत्र
होता है और इसीलिए यह सबसे लंबा चलता है। राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद
प्रस्ताव और बजट प्रस्तावों के बहाने महत्त्वपूर्ण प्रश्नों पर जन-प्रतिनिधियों को
अपने विचार व्यक्त करने का मौका मिलता है। फिलहाल लगता है कि संसदीय-कर्म पर
राजनीति का ग्रहण लग गया है। इस वर्ष बजट सत्र के दूसरे चरण में 13 मार्च से 17
मार्च तक लोकसभा की कार्यवाही सिर्फ 42 मिनट और राज्यसभा की 55 मिनट तक ही चल पाई।
इस दौरान न तो किसी बिल पर चर्चा हुई और न प्रश्नकाल और शून्यकाल हुए। दिसंबर में
संसद का शीतकालीन सत्र भी हंगामे की भेंट चढ़ गया था। एक अमेरिकी अखबार की पेगासस
पर रिपोर्ट आने के बाद विरोधी दलों ने हंगामा किया था, जिसके कारण कार्यवाही
प्रभावित हुई। हंगामे को देखते हुए सत्र को समय से सात दिन पहले ही खत्म कर दिया
गया। 2022 में मॉनसून सत्र भी हंगामे की वजह से कमोबेश स्थगित रहा।
2024 का प्रस्थान बिंदु
यह पूरा प्रकरण आगामी लोकसभा चुनाव की बहस का
आगाज़ कर रहा है। बेहतर हो कि इस विषय पर संसद में बहस हो। राहुल गांधी को भी अपनी
बात संसद में कहने का मौका मिले। राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी है कि वे संसद को
विचार का मंच बनाएं, पर ऐसा हो नहीं रहा है। पिछले साल फरवरी में राष्ट्रपति के
अभिभाषण पर चर्चा के दौरान राहुल गांधी ने कहा था कि संविधान के अनुसार, भारत राष्ट्र नहीं यूनियन ऑफ स्टेट है। यानी कि तमिलनाडु के एक भाई
के पास महाराष्ट्र के मेरे भाई के समान अधिकार हैं। यह बात जम्मू-कश्मीर, मणिपुर, लक्षद्वीप पर भी लागू होती है। किस ने
कहा कि ऐसा नहीं है? मई में उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में
फिर यही बात कही। और अब फिर से लंदन में उन्होंने यही कहा है। राज्यों की
स्वायत्तता के संदर्भ में शायद वे
इस बात का उल्लेख कर रहे हैं, पर उन्हें स्पष्ट करना होगा। हमें क्षेत्रीय दलों से भी पूछना होगा। क्या यह उनकी आवाज़
है?
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