Sunday, July 17, 2022

आई2यू2 यानी भारत की ‘लुक-वेस्ट’ नीति


भारत-इजराइल-अमेरिका और यूएई के बीच नवगठित समूह आई2यू2 की गुरुवार 14 जुलाई को हुई पहली शिखर बैठक में भारत के लिए नए अवसर खुले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, इजरायल के प्रधानमंत्री येर लेपिड और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नाह्यान की इस वर्चुअल बैठक में दो अहम परियोजनाओं को हरी झंडी दिखाई गई, जो भारत में शुरू होंगी। भारत और यूएई के बीच फूड एक कॉरिडोर बनाया जाएगा। दूसरे भारत के द्वारका में अक्षय ऊर्जा हब बनाया जाएगा। यह आर्थिक कार्यक्रम है, पर इसके पीछे पश्चिम एशिया की भावी राजनीति और इसमें भारत की भूमिका को भी देखा जा सकता है। 

बैठक में अमेरिकी राष्ट्रपति और इजराइल के प्रधानमंत्री तेल अवीव से शामिल हुए थे। जो बाइडेन 13 से 16 जुलाई तक पश्चिम एशिया के दौरे पर थे। उनकी इस यात्रा के पीछे पश्चिम एशिया में अपने मित्र देशों के आधार को मजबूत करने के अलावा यूक्रेन युद्ध के कारण इस समय दुनिया में पेट्रोलियम की कीमतों में तेजी को रोकना भी है। इस तेजी का लाभ रूस को मिल रहा है। अमेरिका की कोशिश है कि सऊदी अरब के सहयोग से इस तेजी पर काबू पाया जाए।
फलस्तीन की समस्या

बाइडेन चाहते हैं कि इजरायल और फलस्तीनियों के बीच दीर्घकालीन समझौता हो जाए। पर यह समझौता फलस्तीनी अथॉरिटी के महमूद अब्बास के साथ होगा। जो बाइडेन टू स्टेट अवधारणा क समर्थन कर रहे हैं। उनकी महमूद अब्बास से मुलाकात भी हुई है। पर समझौता आसान नहीं है। खासतौर से हमस का रुख काफी कड़ा है और गज़ा पट्टी पर हमस का ही दबदबा है। महमूद अब्बास के संगठन और इजरायल दोनों के साथ भारत के रिश्ते अच्छे हैं, जिनका लाभ लिया जा सकता है।

हमस मूलतः उग्रवादी संगठन है, पर 2005 के बाद से उसने गज़ा पट्टी के इलाके में राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सा लेना भी शुरू कर दिया। वह फलस्तीनी अथॉरिटी के चुनावों में शामिल होने लगा। गज़ा में फतह को चुनाव में हराकर उसने प्रशासन अपने अधीन कर लिया है। अब फतह गुट का पश्चिमी तट पर नियंत्रण है और गज़ा पट्टी पर हमस का। अंतरराष्ट्रीय समुदाय पश्चिमी तट के इलाके की अल फतह नियंत्रित फलस्तीनी अथॉरिटी को ही मान्यता देता है। 

शिखर बैठक के बाद भारत के विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि शुरूआती दौर में फिलहाल गुजरात और मध्य प्रदेश में यह पार्क बनाने की कवायद आगे बढ़ी है। उन्होंने बताया कि भारत की केला, चावल, आलू, प्याज और मसालों की फसलों को आरंभिक दौर में चिह्नित भी किया गया है। इन परियोजनाओं के जरिए भारतीय किसानों के उत्पादों को बड़ा बाजार मिलेगा, वहीं रोजगार के नए अवसर भी बनेंगे।

दो अरब डॉलर का निवेश

इस शिखर बैठक के बाद संयुक्त अरब अमीरात ने घोषणा की कि वह एकीकृत फूड पार्कों की श्रृंखला का विकास करने के लिए भारत में दो अरब डॉलर का निवेश करेगा। इसका उद्देश्य दक्षिण और पश्चिम एशिया में खाद्य असुरक्षा की समस्या का सामना करना है। बैठक के बाद जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि इस कार्य के लिए भूमि और किसानों को जोड़ने का काम भारत करेगा। इस बैठक में इस इलाके की खाद्य-सुरक्षा और स्वच्छ ऊर्जा, खाद्य उत्पादन तथा वितरण प्रणाली में बदलावों को सुनिश्चित करने पर विचार हुआ, ताकि वैश्विक खाद्य-सामग्री का भंडार बनाया जा सके।

इस कार्य में अमेरिका और इजराइल से निजी क्षेत्रों को आमंत्रित किया जाएगा और उनकी विशेषज्ञता का लाभ उठाया जाएगा। वे परियोजना की कुल वहनीयता में योगदान देते हुए नवोन्मेषी समाधानों की पेशकश भी करेंगे। पूँजी निवेश से उपज बेहतर होगी और इससे दक्षिण एशिया एवं पश्चिम एशिया में खाद्य असुरक्षा से निपटा जा सकेगा।

आई2यू2 ग्रुप

आई2यू2 यानी अंग्रेजी आई 2 (इंडिया और इजरायल) और यू 2 (यानी यूएसए और यूएई)। इसे पश्चिम एशिया का क्वॉड भी कहा जा रहा है। इस अनौपचारिक समूह की शुरुआत अक्तूबर 2021 में विदेशमंत्री एस जयशंकर की इजरायल यात्रा के दौरान उपरोक्त चारों देशों के विदेशमंत्रियों की एक पहल के रूप में हुई थी। उस समय इसे आर्थिक सहयोग का अंतरराष्ट्रीय फोरम भी कहा गया था।

आई2यू2 समूह को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि पश्चिम एशिया में भारत के साथ अमेरिकी साझेदारी गेम चेंजर हो सकती है। यह बात पूर्व इजरायल के पूर्व एनएसए मेजर जनरल याकोव अमिद्रोर ने गत 14 जुलाई को फोरम की पहली उच्च स्तरीय बैठक से पहले कही। भारत सरकार ने मंगलवार 12 जुलाई को आई2यू2 नेताओं के वर्चुअल शिखर सम्मेलन की घोषणा करते हुए कहा कि यह समूह पानी, ऊर्जा, परिवहन, अंतरिक्ष, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा जैसे छह पारस्परिक रूप से पहचाने गए क्षेत्रों में संयुक्त निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए काम करेगा।

इजरायल  के पूर्व एनएसए ने कहा,  आई2यू2 दुनिया के हितों को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसमें इजरायल  और यूएई में रणनीतिक साझेदारी की घोषणा की उम्मीद है। उन्होंने कहा, भारत की भूमिका यूरोप और इजरायल  के साथ एक सेतु की है और पूरे संदर्भ में भारत एक बड़ा व्यापारिक भागीदार है।

नया क्वॉड

इसमें दो राय नहीं कि हाल के वर्षों में भारत ने इस इलाके में सम्पर्क बढ़ाया है। हाल में जर्मनी में हुई जी-7 की शिखर-बैठक में शामिल होने के बाद प्रधानमंत्री मोदी यूएई की संक्षिप्त-यात्रा पर भी गए थे। अमेरिका की दिलचस्पी इस बात में भी है कि इजरायल के रिश्ते इस क्षेत्र के देशों के साथ बेहतर हों। इसमें यूएई के अलावा सऊदी अरब की भूमिका भी है। इसमें यूएई, मोरक्को और बहरीन के साथ हुआ अब्राहमिक समझौता मददगार होगा। इस प्रक्रिया को आई2यू2 समूह बढ़ाएगा।

अक्तूबर 2021 में भारत, इसराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की वर्चुअल बैठक के दौरान एक नए चतुष्कोणीय फोरम की पेशकश को पश्चिम एशिया में एक नए सामरिक और राजनीतिक ध्रुव के रूप में देखा गया था। राजनयिक क्षेत्र में इसे 'न्यू क्वॉड' या नया 'क्वॉडिलेटरल सिक्योरिटी डायलॉग' कहा गया। 18 अक्तूबर, 2021 को यह बैठक उस दौरान हुई, जब भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर, इसराइल के दौरे पर थे।

इस बैठक में वे इसराइल के विदेशमंत्री येर लेपिड के साथ यरुसलम में साथ-साथ बैठे। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकेन और यूएई के विदेश मंत्री शेख अब्दुल्ला बिन ज़ायेद अल नाह्यान वर्चुअल माध्यम से इसमें शामिल हुए। बैठक में  एशिया और पश्चिम एशिया में अर्थव्यवस्था के विस्तार, राजनीतिक सहयोग, व्यापार और समुद्री सुरक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा हुई। कुल मिलाकर इस समूह का कार्य-क्षेत्र बहुत व्यापक है।

पश्चिम पर निगाहें

एक अरसे से भारतीय विदेश-नीति की दिशा पूर्व-केन्द्रित रही है। पूर्व यानी दक्षिण-पूर्व और सुदूर पूर्व, जिसे पहले ‘लुक-ईस्ट’ और अब ‘एक्ट-ईस्ट पॉलिसी’ कहा जा रहा है। पिछले कुछ समय से भारत ने पश्चिम की ओर देखना शुरू किया है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान भी हमारे पश्चिम में हैं। वैदेशिक-संबंधों के लिहाज से यह हमारा ‘समस्या-क्षेत्र’ रहा है। बहुसंख्यक इस्लामी देशों के कारण कई प्रकार के जोखिम रहे हैं। एक तरफ इसराइल और अरब देशों के तल्ख-रिश्तों और दूसरी तरफ ईरान और सऊदी अरब के अंतर्विरोधों के कारण काफी सावधानी बरतने की जरूरत भी रही है।

भारतीय विदेश-नीति को सबके साथ रिश्ते बनाए रखने का श्रेय दिया जा सकता है। पाकिस्तान की नकारात्मक गतिविधियों के बावजूद। खासतौर से मुस्लिम देशों के संगठन ओआईसी में पाकिस्तान ने भारत के हितों पर चोट करने में कभी कसर नहीं रखी। भारतीय नजरिए से पश्चिम एशिया ‘समस्या-क्षेत्र’ रहा है। एक वजह यह भी थी कि भारत और अमेरिका के दृष्टिकोण में साम्य नहीं था। अमेरिका ने भी पश्चिम-एशिया में भारत को अपने साथ नहीं रखा। पर अब हवा का रुख बदल रहा है। पूर्वी और पश्चिमी दोनों क्वॉड में भारत और अमेरिका साथ-साथ हैं।

अब्राहमिक समझौता

केवल भारत की भूमिका ही नहीं, पश्चिम एशिया के देशों के आपसी रिश्तों में तेज बदलाव आया है, जिसकी शुरुआत अगस्त-सितंबर 2020 में इसराइल, संयुक्त अरब अमीरात और अमेरिका के बीच हुए एक वक्तव्य से हुई, जिसे ‘अब्राहमिक समझौता’ कहा जाता है। पश्चिम एशिया के दृश्य-परिवर्तन में इस समझौते की महत्वपूर्ण भूमिका थी। अमेरिका केवल अफगानिस्तान से ही नहीं हटा, बल्कि वह इसके पहले सीरिया और इराक से भी हटा है। वह अब हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर ध्यान दे रहा है। पर वह छोड़कर कहीं चला नहीं जाएगा। यह क्षेत्र उसके लिए महत्वपूर्ण रहेगा। इसराइल उसका प्रमुख सहयोगी देश है। नई बात यह है कि अब भारत भी इस क्षेत्र के ‘प्रमुख-प्लेयर’ के रूप में शामिल हो रहा है। प्रतीक रूप में इसे ‘इंडो-अब्राहमिक गठबंधन’ भी कहा गया था।

अब्राहमिक समझौते के निहितार्थ सीमित थे, जबकि भारत के इसमें शामिल हो जाने के बाद इसका जियो-पोलिटिकल क्षेत्र विस्तार हो गया है। इस सहयोग का सुझाव सबसे पहले वॉशिंगटन में रहने वाले मिस्री विद्वान मोहम्मद सोलीमान ने दिया था। ‘नए क्वॉड’  का मतलब है कि भारत और पश्चिम यानी भूमध्य सागर क्षेत्र के देशों के साथ भी रिश्ते बनाएगा, जहाँ प्राकृतिक गैस के स्रोत हैं। यानी रिश्तों की श्रृंखला में ग्रीस, तुर्की, साइप्रस, मिस्र, सीरिया, लेबनॉन, जॉर्डन जैसे देश भी शामिल होंगे।

संभावनाओं का क्षेत्र

भारत के लिए पश्चिम एशिया अब ‘समस्याओं की जगह संभावनाओं का क्षेत्र’ बन सकता है। इलाके में अब युद्ध के बजाय सहयोग की बातें हो रही हैं। क्षेत्रीय देशों को तनाव को दूर करने और अपने पड़ोसियों के साथ जीने की जरूरत है। इसी विश्वास के कारण यूएई, बहरीन, मोरक्को और सूडान ने इसराइल के साथ रिश्ते सुधारे हैं। सऊदी अरब के साथ भी संवाद स्थापित हो गया है। पिछले साल मई में हमस और इसराइल के टकराव के बीच अरब देशों की प्रतिक्रिया काफी हद तक संतुलित थी।

अमेरिका यहाँ से हटना चाहता है, तो चीन यहाँ प्रवेश करना चाहता है। चीन और ईरान के बीच समझौता हुआ है, जिसके तहत वह ईरान में 400 अरब डॉलर से ज्यादा का पूँजी निवेश करेगा। एक तरफ मुस्लिम देशों का नया ब्लॉक बनाने की बातें हैं, वहीं सऊदी अरब और ईरान के बीच रिश्ते सुधारने के प्रयास भी हैं। सऊदी अरब अपनी अर्थव्यवस्था को पेट्रोलियम के कारोबार से बाहर निकाल कर नए रास्ते पर डालना चाहता है। उधर तुर्की ने इस्लामिक देशों का नेतृत्व करने में दिलचस्पी दिखाई है।  

सऊदी अरब और ईरान के बीच भी सम्पर्क स्थापित हुआ है। जानकारों के अनुसार अमेरिका के नए राष्ट्रपति जो बाइडेन का ईरान के साथ परमाणु समझौते को दोबारा बहाल करने की कोशिश करना और ईरान में 400 अरब डॉलर के चीनी निवेश के फ़ैसले के कारण सऊदी अरब के रुख़ में बदलाव है। सऊदी और तुर्की रिश्तों में भी बदलाव आने वाला है। इस प्रक्रिया में भारत की नई भूमिका उभर कर आ रही है और यह भविष्य में और स्पष्ट नजर आएगी।

इस्लामिक देश

इस्लामिक देशों के बीच भी भारतीय राजनय ने पैठ जमाई है। मार्च, 2019 में तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज को अबू धाबी के सम्मेलन में शामिल होने का निमंत्रण दिया गया और पाकिस्तान के विरोध की अनदेखी की गई। पाकिस्तान के विदेशमंत्री ने उस सम्मेलन का बहिष्कार किया था। हाल में सऊदी अरब, यूएई और बहरीन के साथ भारत के रिश्तों में सुधार हुआ है।

ओआईसी में बांग्लादेश और नाइजर समेत अनेक देश भारत को भी ओआईसी का सदस्य बनाने का समर्थन करते हैं। इसकी वजह यह है कि भारत में 20 करोड़ के आसपास मुसलमान रहते हैं। यह संख्या पाकिस्तानी आबादी के आसपास की है। बहरहाल पाकिस्तान नहीं चाहता कि भारत को सदस्य बनाया जाए।

झगड़े निपटाने की जरूरत

इस्लामिक देशों की दिलचस्पी अब आर्थिक, तकनीकी और वैज्ञानिक सहयोग को बढ़ाने में है। इसके लिए जरूरी है कि झगड़ों को दूर किया जाए। खासतौर से सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के रिश्ते भारत के साथ सुधरे हैं। उधर हमें समुद्री और जमीनी रास्तों की जरूरत है। ईरान और अफगानिस्तान की जरूरत मध्य एशिया के देशों से जुड़ने के लिए रास्तों के कारण है। इन दोनों देशों के साथ हमने ‘उत्तर-दक्षिण कॉरिडोर’ का समझौता किया है। पिछले साल अगस्त में अफगानिस्तान में शासकों का बदलाव होने के बाद से परिस्थितियाँ बदली हैं, पर तालिबान के साथ भारत का सम्पर्क कायम हो गया है। विदेश-नीति में यह बेहद महत्वपूर्ण मोड़ है।

भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं के लिए पश्चिम एशिया जहाँ महत्वपूर्ण है, वहीं तकनीकी, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी इस इलाके का भारत के लिए महत्व है। लाखों की संख्या में भारत के प्रवासी कामगार खाड़ी देशों में रोजगार पाते हैं। भारत ने यूएई के साथ वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग के समझौते किए हैं। यूएई के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी भारत की भागीदारी है। सऊदी अरब और यूएई समेत पश्चिम एशिया के देश पेट्रोलियम के बाद की आर्थिक संभावनाओं को देख रहे हैं। इन देशों ने भारत में पूँजी निवेश की घोषणाएं की हैं।

आवाज़ द वॉयस में प्रकाशित

1 comment:

  1. ज्ञानवर्धक प्रेरक प्रस्तुति



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