पिछले तीन साल से चल रहे लोकतांत्रिक आंदोलन का दमन करने के बाद चीन ने हांगकांग की व्यवस्था के अपनी मर्जी के रूपांतरण का इरादा खुलकर ज़ाहिर कर दिया है। इसके पहले 2 जनवरी, 2019 को राष्ट्रपति शी चिनफिंग ताइवान के लोगों से कह चुके हैं कि उनका हर हाल में चीन के साथ 'एकीकरण' होकर रहेगा। भले ही हमें फौजी कार्रवाई करनी पड़े। अब पिछली 1 जुलाई को हांगकांग के नए चीफ एक्जीक्यूटिव जॉन ली को शपथ दिलाने राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने खुद जाकर अपने इरादों का इज़हार कर दिया है।
हांगकांग-हस्तांतरण के 25 वर्ष पूरे होने पर इन
दिनों समारोह मनाए जा रहे हैं। हांगकांग में शी चिनफिंग दो दिन रहे। उस दौरान उनकी
सुरक्षा में जबर्दस्त घेरा बनाकर रखा गया, पर उनके जाते ही
हजारों की संख्या में लोकतंत्र समर्थक सड़कों पर निकल आए। पश्चिमी मीडिया को शी
चिनफिंग के कार्यक्रमों की कवरेज के लिए नहीं बुलाया गया। पिछले कुछ साल से 1
जुलाई को ये प्रदर्शन हो रहे हैं। 1 जुलाई 1997 को हांगकांग का हस्तांतरण हुआ था।
ब्रिटिश-हांगकांग
हांगकांग चीन के दक्षिण तट पर सिंकियांग नदी के
मुहाने पर स्थित एक द्वीप है। सन 1842 में पहले अफीम युद्ध की समाप्ति के बाद चीन
के चिंग राज्य ने हांगकांग को अपने से अलग करना स्वीकार कर लिया। वह ब्रिटिश
उपनिवेश बन गया। दूसरे अफीम युद्ध के बाद 1860 में काउलून खरीदकर इसमें जोड़ दिया
गया। सन 1898 में न्यू टेरिटरीज़ को 99 साल के पट्टे पर ले लिया गया।
आज हांगकांग एक विशेष प्रशासनिक क्षेत्र है। ग्लोबल
महानगर और वित्तीय केंद्र होने के साथ-साथ यहाँ एक उच्च विकसित पूंजीवादी
अर्थव्यवस्था है। साठ के दशक में ही वह महत्वपूर्ण कारोबारी केन्द्र के रूप में उभर
आया था। जबकि उन दिनों चीन में भयानक अकाल और सांस्कृतिक क्रांति का दौर था। फिर
भी हांगकांग के नागरिक खुद को पराधीन मानते थे। उनकी सांस्कृतिक जड़ें चीन में
थीं। हांगकांग में भी प्रतिरोध आंदोलन चला, जो
अपने सबसे उग्र रूप में 1967 में सामने आया।
हांगकांग वासी चीन जैसी व्यवस्था भी नहीं चाहते
थे। वे रोजगार, शिक्षा और नागरिक सुविधाओं में बेहतरी
चाहते थे। साठ और सत्तर के दशक में काम के घंटे कम हुए, अनिवार्य
और निशुल्क शिक्षा-व्यवस्था की शुरुआत हुई, सार्वजनिक
आवास योजनाएं, स्वास्थ्य सेवाएं तथा अन्य कल्याण
योजनाएं शुरू हुईं।
यह सब चीन की मुख्य भूमि के नागरिकों की तुलना में एक अलग तरह का अनुभव था। स्वतंत्र न्याय-व्यवस्था, फ्री प्रेस और नागरिक अधिकारों का प्रवेश उस व्यवस्था में हो गया था। वहाँ प्रगतिशील चीन की अवधारणा जन्म ले रही थी, जो न तो ब्रिटिश हो और न कम्युनिस्ट। सत्तर के उत्तरार्ध से देंग श्याओ फेंग के नेतृत्व में चीन का रूपांतरण भी हो रहा था, जिसके अंतर्विरोध 3-4 जून, 1989 को तिएन-अन-मन चौक पर हुए टकराव के रूप में सामने आए। इसकी प्रतिक्रिया हांगकांग में भी हुई थी।
देंग श्याओपिंग ने जब चीन में विदेशी निवेश के
द्वार खोले, तब हांगकांग में बनने वाली तमाम वस्तुओं का
उत्पादन चीन आया। देंग की दिलचस्पी हांगकांग को चीन से जोड़ने में थी। सन 1984 में
उन्होंने ब्रिटेन से इस सिलसिले में बात की और एक रूपरेखा तैयार की। ब्रिटिश सरकार
ने उसे मान लिया। हस्तांतरण की तारीख तय हुई 1997।
एक देश, दो
प्रणालियाँ
इस समझौते के तहत हांगकांग की मुद्रा और
सांविधानिक-न्यायिक प्रणाली 50 साल तक वही बनी रहेगी, जो
1997 के पहले थी। यानी कि 2047 तक उसका वही स्वरूप रहेगा, पर
चीन में धैर्य नहीं है। वह अपनी सम्प्रभुता को लेकर बेचैन है। जिसकी वजह से यहाँ
के नागरिक परेशान हैं। वे समझते थे कि हांगकांग की लोकतांत्रिक व्यवस्था बनी रहेगी,
पर अब उन्हें तानाशाही का खतरा नजर आने लगा है।
सिद्धांततः रक्षा और विदेश नीति चीन के हाथों
में है, बाकी मामलों में नागरिकों की सहमति होनी चाहिए। उम्मीद तो यह थी
कि हांगकांग की देखादेखी चीनी व्यवस्था भी लोकतांत्रिक बनेगी। 2017 के चुनाव के
तीन साल पहले हांगकांग को लोकतांत्रिक अधिकार देने की जो पेशकश की गई, वह नागरिकों को अपर्याप्त लगी। विरोध में एक सविनय अवज्ञा आंदोलन
शुरू हुआ जिसे अम्ब्रेला आंदोलन या 'ऑक्युपाई
सेंट्रल' नाम दिया गया। आंदोलनकारी पीले रंग के बैंड और
छाते अपने साथ लेकर आए थे। इसलिए इसका नाम 'यलो
अम्ब्रेला प्रोटेस्ट' रखा गया। वह आंदोलन कमजोर पड़ गया,
क्योंकि इसे नागरिकों के बड़े वर्ग का समर्थन नहीं मिला। अब 2019 से
जो आंदोलन खड़ा हुआ है, वह जबर्दस्त है।
दमन-नीति
चीनी न्याय-व्यवस्था और हांगकांग की व्यवस्था
में जमीन-आसमान का फर्क है। चीनी व्यवस्था में तमाम गोपनीय बातें हैं, जबकि हांगकांग की व्यवस्था ब्रिटिश मॉडल पर तैयार हुई है। चीन सरकार
इसे सुधारने के बजाय कठोर बना रही है। 30 जून, 2020
को चीनी संसद ने सुरक्षा की आड़ में कुछ ऐसे कानून बना दिए हैं, जिनके कारण केवल ‘देश-भक्त’, यानी कम्युनिस्ट
पार्टी समर्थक लोग, ही चुनाव लड़ सकेंगे। ऐसे लोग, जो ‘सुरक्षा के लिए खतरा’ हों, चुनाव
नहीं लड़ सकेंगे।
जॉन ली नाम के जो चीफ एक्जीक्यूटिव चुनकर आए
हैं, वे इसके पहले वर्दीधारी सुरक्षा अधिकारी थे।
1500 सदस्यों की जिस चुनाव समिति ने उन्हें चुना है उसमें शामिल होने के लिए चीन
समर्थक होना जरूरी है। जॉन ली चुनाव में अकेले प्रत्याशी थे। चीन का सुरक्षा कानून
पास होने के बाद अमेरिकी सीनेट ने जून 2020 में ही हांगकांग की सम्प्रभुता की
रक्षा के लिए दो प्रस्तावों को पास किया था। उससे हांगकांग की स्वतंत्र
अर्थव्यवस्था को धक्का लग रहा है और भविष्य में भी लगेगा। उधर यूक्रेन में रूसी
हस्तक्षेप के बाद हांगकांग और ताइवान को लेकर चीनी तेवर तीखे होने से बेचैनी बढ़
गई है।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल बुधवार (13-07-2022) को चर्चा मंच "सिसक रही अब छाँव है" (चर्चा-अंक 4489) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चीनी दमन का कलुषित दंश कई छोटे देशों के लिए ग्रहण बन गया है।
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