पिछले महीने खबर थी कि यूक्रेन की सेना ने मारियुपोल स्थित भंडार से टनों अनाज जला दिया। ऐसा इसलिए किया, क्योंकि रूसी सेना की बढ़त के कारण मारियुपोल पर से धीरे-धीर यूक्रेन की सेना का कब्जा खत्म हो रहा था। यह अनाज दोनेत्स्क और रूसी सेना के कब्जे में न चला जाए, इसलिए उसे फूँकना उचित समझा गया। इसमें गेहूँ और मक्का दोनों अनाज थे। इसमें कई दिन तक आग लगी रही।
यूक्रेन और रूस के
युद्ध के कारण दुनिया के अनेक देशों में अन्न का संकट पैदा हो गया है। मसलन मिस्र का
उदाहरण लें, जो पिछले कई वर्षों से अपने इस्तेमाल का 80 फीसदी अनाज रूस और यूक्रेन
से खरीदता रहा है। लड़ाई के कारण इन दोनों देशों से अनाज लाने में दिक्कतें हैं। यूक्रेन की गिनती दुनिया के सबसे बड़े अनाज निर्यातक देशों में होती
है। यूक्रेन और रूस दुनिया को 30 प्रतिशत गेहूं, 20 प्रतिशत मक्का और सूरजमुखी के बीज
के तेल के 75 से 80 प्रतिशत की आपूर्ति करते हैं।
विश्व खाद्य कार्यक्रम, अपनी
सेवाओं के लिए 50 प्रतिशत अनाज यूक्रेन से खरीदता है, पर जिन खेतों में ट्रैक्टर
चलते थे, उनमें टैंक चल रहे हैं। 2021 में यूक्रेन में 10.6 करोड़ टन अन्न और
तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था। इसमें 4.21 करोड़ टन मक्का और 3.22 टन गेहूँ था।
अब वहाँ की सरकार का कहना है कि इस साल करीब साढ़े छह टन अनाज और तिलहन ही पैदा हो
पाएगा। चूंकि ब्लैक सी की रूसी सेना ने नाकेबंदी कर रखी है, इसलिए निर्यात में भी
दिक्कतें हैं।
पर्याप्त अन्न
है
ऐसे में यह बात मन में आती है कि रूस और यूक्रेन की कमी को पूरा करने के लिए दुनिया के दूसरे इलाकों में अन्न-उत्पादन बढ़ाना चाहिए। विश्व में इतना अनाज है कि सारे इंसानों का पेट भरने के बाद भी वह बचा रहेगा। यूक्रेन और रूस में जितना अन्न उत्पादन होता है, उसका छह गुना या उससे भी ज्यादा दुनिया जानवरों को खिला देती है, या बायोफ्यूल के रूप में फूँक देती है। दुनिया में पैदा होने वाला आधे से ज्यादा अनाज मनुष्यों की भूख मिटाने के काम नहीं आता।
हाल में ‘इकोनॉमिस्ट’ ने एक रिपोर्ट में बताया कि दुनिया में करीब
290.7 करोड़ टन अन्न का सकल उत्पादन है, जिसमें से केवल 133.7 करोड़ टन मनुष्यों
के पेट में जाता है और करीब 157 करोड़ टन पशुओं के भोजन, बायोफ्यूल तथा अन्य
इस्तेमालों में लगता है। गेहूँ के उत्पादन के उपलब्ध नवीनतम यानी 2019 के आँकड़ों
पर नजर डालें। रूस और यूक्रेन ने करीब 10.3 करोड़ टन गेहूँ का उत्पादन किया, जबकि
12.9 करोड़ टन जानवरों को खिलाने और 2.2 करोड़ टन बायोफ्यूल बनाने के काम आया।
इतना ही नहीं मक्का के वैश्विक उत्पादन का केवल 13 फीसदी मनुष्यों के पेट में जाता
है।
कार और गोश्त
पिछले दशक में दुनिया
में अन्न उत्पादन में 17 फीसदी की वृद्धि हुई है, जो जनसंख्या-वृद्धि की तुलना में
करीब 6 फीसदी ज्यादा है। पर यह अतिरिक्त अनाज मनुष्यों के पेट में नहीं गया, बल्कि
कारों को चलाने के काम आया। 2019 में सुअरों ने ही 43.1 करोड़ टन अनाज खाया। किसी
एक देश की बड़ी आबादी यानी चीन के सकल उपभोग से 45 प्रतिशत ज्यादा। 2010 में
जानवरों के पेट में 77 करोड़ टन अनाज गया, जिसकी मात्रा 2019 में बढ़कर 98.7 करोड़
टन हो गई।
ऐसा इसलिए क्योंकि
चारागाह खत्म हो रहे हैं और मनुष्यों के बीच गोश्त खाने की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
जानवरों को अन्न खिलाने से मनुष्यों के लिए परोक्ष भोजन भी तैयार होता है, मसलन
गोश्त, दूध और अंडों के रूप में, पर इसमें बरबादी बहुत ज्यादा है। उस जमीन पर
गैर-कृषि कार्य होने लगे हैं, जिसपर चारागाह थे या खेती होती थी।
संरा महासचिव एंतोनियो
गुटेरेश ने 24 जून को एक वीडियो संदेश में कहा, इस साल कई देशों में अकाल घोषित होंगे। अगले साल
और भी बुरा हाल हो सकता है। पूरे एशिया, अफ्रीका और अमेरिका
में फसलों को नुकसान होगा,
क्योंकि उर्वरकों और
ऊर्जा की कीमतों में भारी वृद्धि होगी। कोई भी देश इस तबाही के सामाजिक और आर्थिक
नतीजों से बचेगा नहीं।
अनाज की
बरबादी
भारत की स्थिति
अपेक्षाकृत बेहतर है, क्योंकि हमारे पास यथेष्ट अन्न-भंडार है। भारत ने शुरू में
गेहूँ के निर्यात का फैसला किया था, पर बाद में आंतरिक-संकट के अंदेशे को देखते
हुए निर्यात पर रोक लगा दी। कृषि मंत्रालय की फसल अनुसंधान इकाई सीफैट की रिपोर्ट
के अनुसार देश में करीब 67 लाख टन खाद्य सामग्री की बरबादी हर साल
होती है। इसकी वजह है उचित परिवहन और भंडारण का नहीं होना। सीफैट के अनुसार भारत
में हर साल करीब 16.2 करोड़ टन सब्जियों और 8.1 करोड़ टन फलों का उत्पादन होता है, लेकिन कोल्ड स्टोरेज
और प्रसंस्करण के अभाव में इनमें से लगभग 20 से 22 फीसदी तक फल और सब्जियां खराब हो जाते हैं।
हाल में चीन ने घोषणा
की है कि वह मक्का से इथेनॉल बनाने
पर कठोर नियंत्रण करने जा रहा है। ऐसी ही घोषणाएं जर्मनी और बेल्जियम ने की हैं,
ताकि मनुष्यों के लिए ज्यादा अनाज उपलब्ध हो। उधर ईंधन की कीमतें बढ़ती जा रही
हैं। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि इस साल बायोफ्यूल की माँग 5
फीसदी और बढ़ेगी। रास्ता है कि
ऊर्जा के नए स्रोत खोजे जाएं, खासतौर से अक्षय-ऊर्जा के। बरबादी रोकने के लिए सही
भंडारण ही सबसे अच्छा विकल्प है। उसपर ध्यान देना चाहिए।
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