बिहार इन दिनों
बारिश और बाढ़ की मार से जूझ रहा है. पटना शहर डूबा पड़ा है. मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार के सुशासन पर तंज कसे जा रहे हैं. उन्होंने भी पलट कर कहा है कि क्या बिहार
में बाढ़ ही सबसे बड़ी समस्या है? कभी हम सूखे का
सामना करते हैं और कभी बाढ़ का. जब उनसे बार-बार सवाल किया गया तो वे भड़क गए.
उन्होंने कहा, ‘मैं पूछ रहा हूं कि देश और दुनिया के और कितने
हिस्से में बाढ़ आई है. अमेरिका का क्या हुआ?’
उनकी पार्टी बिहार
में बाढ़ प्रबंधन की आलोचना होने पर मुंबई और चेन्नई की बाढ़ का हवाला दे चुके
हैं. अब नीतीश कुमार ने अमेरिका का जिक्र करके मौसम की अनिश्चितता की ओर इशारा
किया है. बेशक इससे बाढ़ प्रबंधन और जल भराव से जुड़े सवालों का जवाब नहीं मिलता,
पर यह सवाल इस बार शिद्दत के साथ उभर कर आया है कि जब मॉनसून की वापसी का समय होता
है, तब इतनी भारी बारिश क्यों हुई? इससे जुड़ा दूसरा सवाल यह
है कि मौसम दफ्तर की भविष्यवाणी थी कि इस साल सामान्य से कम वर्षा होगी, तब
सामान्य से ज्यादा वर्ष क्यों हुई?
केवल बिहार ही नहीं उत्तर प्रदेश में भी इस साल आखिरी दिनों
की इस बारिश ने जन-जीवन अस्त-व्यस्त कर दिया. देश के मौसम दफ्तर के अनुसार दक्षिण
पश्चिम मॉनसून को इस साल सोमवार 30 सितंबर को समाप्त हो जाना चाहिए था, बल्कि
आधिकारिक तौर पर वह वापस चला गया है. पर सामान्य के मुकाबले 110 प्रतिशत वर्षा के
बावजूद बरसात जारी है और अनुमान है कि मॉनसून की वापसी 10 अक्तूबर से शुरू होगी.
संभवतः यह पिछले एक सौ वर्षों का सबसे लंबा मॉनसून साबित होगा. इसके पहले सन 1961
में मॉनसून की वापसी 1 अक्तूबर को हुई थी और 2007 में 30 सितंबर को.
चूंकि इस साल मॉनसून (8 जून को) देर से आया था, इसलिए उसके
देर तक टिकने की बात समझ में आती है, पर बारिश अनुमान से ज्यादा क्यों हुई? फिर जून के महीने में सामान्य से 33 फीसदी की कमी रहने के बाद जुलाई में 105 फीसदी,
अगस्त में 115 फीसदी और सितंबर में 152 फीसदी वर्षा का होना किसी असामान्य परिघटना
की ओर भी इशारा कर रहा है. यह भारी वर्षा तब हुई है, जब यह अल नीनो का साल बताया
जा रहा था. यानी बारिश कम होनी चाहिए थी. मई में देश के मौसम कार्यालय ने कहा था
कि इस साल तकरीबन सामान्य यानी कि करीब 96 फीसद रहेगा. उसकी अवधि के बारे में उसने
कुछ भी नहीं कहा था. हाँ यह जरूर कहा था कि पूर्वार्ध के मुकाबले उसके उत्तरार्ध
में वर्षा बेहतर होगी. पर इतनी बेहतर होगी, इसका अनुमान नहीं था.
देश के मौसम विभाग के निदेशक एम मोहपात्रा ने कहा है कि
हमारा विभाग मॉनसून के महीने जून, जुलाई, अगस्त और सितंबर मानता है. अब हम इसे
मॉनसून-उत्तर (पोस्ट मॉनसून) वर्षा के रूप में दर्ज करेंगे. पिछले एक दशक में हर
साल 20 सितंबर के आसपास मॉनसून की वापसी शुरू हो जाती है. देश में उत्तर पूर्व
मॉनसून (सर्दियों की वर्षा) अक्तूबर में आती है. मॉनसून कार्यालय के अनुसार इस साल
देश के 36 मेट्रोलॉजिकल सब डिवीजन में से दो में भारी वर्ष (सामान्य से 60 फीसदी
ज्यादा), 10 में ज्यादा (20 से 59 फीसदी ज्यादा), 19 में सामान्य (19 फीसदी कम या
19 फीसदी ज्यादा) और केवल 5 में सामान्य से कम वर्ष हुई.
दूसरी तरफ हरियाणा, दिल्ली और चंडीगढ़ में 42 फीसदी कम
वर्षा हुई. यानी देश में वर्षा या तो आत्यंतिक रूप से बहुत ज्यादा हुई या बहुत कम.
मौसम कार्यालय इस परिघटना का अपने तरीके से अध्ययन करेगा, पर इतना साफ नजर आता है
कि यह सब मौसम में आ रहे बदलाव की निशानी है. एक और बात इस साल देखने को मिली है.
देश में मॉनसून की वापसी पश्चिमोत्तर से होती है. मौसम कार्यालय इस वापसी की घोषणा
तभी करता है, जब लगातार पाँच दिन तक बारिश नहीं हो और वातावरण में नमी खत्म हो
जाए. ऐसा कुछ नहीं हुआ.
इस वर्षा के कुछ सकारात्मक पहलू भी हैं. यह देखा गया है कि
जब जून में 30 फीसदी के आसपास वर्षा कम होती है, तो उस साल सामान्य से कम ही रहती
है. यानी शेष समय में कमी पूरी नहीं हो पाती. पर इस साल सारी रिकॉर्ड टूट गए हैं. क्या
इस साल की वर्षा का कोई राजनीतिक संदेश भी है. अच्छे मॉनसून का मतलब अच्छी पैदावार
होता है. सन 1994 के बाद का यह सबसे अच्छा मॉनसून रहा है और सितंबर की वर्षा के
लिहाज से 102 साल बाद ऐसा हुआ है. भले ही बिहार में बाढ़ आई हो, पर पानी वितरण
पूरे देश में हुआ है. खास तौर से गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के ऐसे इलाकों
में अच्छा पानी गिरा है, जहाँ जल-संकट रहता है. इससे जमीन के नीचे पानी का स्तर
बढ़ेगा और तालाब भरेंगे. यानी आगामी रबी की फसल के लिए बेहतर आसार बनेंगे. देश में
मंदी की स्थिति को देखते हुए इसे अच्छी खबर भी माना जा सकता है, क्योंकि इस साल
मानकर चल रहे थे कि मॉनसून अच्छा नहीं होगा.
मौसम विज्ञानी इस परिघटना का विश्लेषण करेंगे, और
अर्थशास्त्री इसके हानि-लाभ पर विचार करेंगे, पर इसमें दो राय नहीं कि मौसम का
बदलाव वैश्विक विचार का विषय है. पिछले हफ्ते इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट
चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि दुनिया के समुद्र गर्म होते जा रहे
हैं. सन 2100 तक वे पाँच से सात गुना ज्यादा गर्मी को जज्ब करेंगे. इससे समुद्रों
का स्तर एक मीटर ज्यादा ऊँचा हो जाएगा. इससे जलवायु में असाधारण बदलाव आएंगे. इस
साल देर तक हुई वर्षा इसका संकेत दे रही है.
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