इस महीने के पहले हफ्ते से चल रहा घटनाक्रम देश की विदेश और रक्षा
नीति के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण है. जम्मू कश्मीर में अनुच्छेद 370 को
निष्प्रभावी बनाने के बाद सरकार ने राज्य के पुनर्गठन की घोषणा की है, जो अक्तूबर
से लागू होगा. पर उसके पहले अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत को अपनी नीतियों को
प्रभावशाली तरीके से रखना होगा. इस लिहाज से एक परीक्षा सुरक्षा परिषद की बैठक के
रूप में हो चुकी है.
अब प्रधानमंत्री फ्रांस,
यूएई और बहरीन की यात्रा पर गए हैं. इस दौरान वे दो बार फ्रांस जाएंगे. वे 22-23
को द्विपक्षीय संबंधों पर बात करेंगे और फिर 25-26 को जी-7 की बैठक में भाग लेंगे.
यह पहला मौका है, जब जी-7 की बैठक में भारत को बुलाया गया है. इसकी बड़ी वजह
आर्थिक है, पर इस मौके पर भारत को अपनी कश्मीर नीति के पक्ष में दुनिया का ध्यान
खींचना होगा.
खबरें हैं कि प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा के दौरान फ्रांस राफेल विमान के
दो और स्क्वॉड्रन भारत को देने की पेशकश करेगा. इसका मतलब है कि 36 और विमान खरीदे
जा सकते हैं. वायुसेना के पास इस वक्त विमानों की भारी कमी है. पुराने पड़ते
मिग-21 विमानों का स्थान लेने के लिए नए विमान आ नहीं पाए हैं. एक अनुमान है कि
मोदी की राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के साथ होने वाली मुलाकात में इस विषय पर भी
चर्चा हो सकती है.
सन 2016 में 36 विमानों का सौदा 7.87 अरब यूरो पर हुआ था, पर अब 36 और विमान 6
अरब यूरो से कम में प्राप्त हो सकते हैं, क्योंकि इस विमान में भारतीय वायुसेना की
जरूरतों के हिसाब से बदलाव करने लिए कुछ फिक्स्ड व्यवस्थाएं करनी पड़ी थीं. इनपर
अब व्यय नहीं करना होगा. जिन दो हवाई अड्डों पर इन्हें तैनात किया जा रहा है वहाँ
ज्यादा विमानों की तैनाती का इंतजाम भी है.
राफेल विमान की तमाम दूसरी क्षमताओं के मुकाबले उसपर तैनात मीटियर बियांड
विजुअल रेंज एयर-टु-एयर मिसाइल है, जो 300 किलोमीटर तक मार कर सकती है. इस किस्म
की मिसाइल चीन के पास भी नहीं है. इसके साथ ही इसमें स्कैल्प एयर-टु-ग्राउंड
मिसाइल लगी है, जो 300 किलोमीटर दूर तक जमीन पर मार कर सकती है. इसका अर्थ है कि
भारतीय विमान अपनी सीमा के भीतर रहकर भी पाकिस्तानी आतंकी अड्डों पर प्रहार कर
सकते हैं. बालाकोट स्ट्राइक
के बाद भारतीय वायुसेना प्रमुख धनोआ ने कहा था कि हमारे पास राफेल होते तो परिणाम कुछ
और होते. यानी कि घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी विमान जमीन पर होते.
राफेल विमान अब अगले महीने वायुसेना में शामिल होने जा रहे हैं, जिनकी पहली खेप
लेने के लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और वायुसेना के चीफ बीएस धनोआ फ्रांस जा रहे
हैं. दासो एविएशन पहला राफेल जेट 20 सितंबर को भारत को सौंपेंगी. भारत पहुंचने से पहले
ही भारतीय पायलटों ने फ्रांस में इन्हें चलाने का प्रशिक्षण ले लिया है. अगले साल मई में बड़ी संख्या में राफेल विमान भारत आ
जाएंगे, इसलिए 24 पायलटों को तबतक ट्रेनिंग देकर तैयार रखा जाएगा. इन विमानों का
एक स्क्वॉड्रन अम्बाला में और एक बंगाल के हाशिमपुरा में तैनात किया जाएगा.
वायुसेना को लड़ाकू विमानों के कम से कम 42 स्क्वॉड्रनों की जरूरत है, जबकि
घटते-घटते यह संख्या 32 या उसके भी नीचे आ गई है. वायुसेना ने ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत 114 जेट विमानों की खरीद की प्रक्रिया शुरू की गई है, पर उसमें समय लगेगा. उधर
स्वदेशी तेजस विमान के उत्पादन में भी तेजी नहीं आ पाई है. इसलिए संभव है कि 36 और
विमानों का सौदा इस बीच हो जाए.
उधर देश के रक्षा सलाहकार
अजित डोभाल रूस की यात्रा पर गए हैं. उनकी यह यात्रा दो मायनों में महत्वपूर्ण है.
हालांकि रूस ने अनुच्छेद 370 को भारत का आंतरिक मामला कहा है और साथ ही सुरक्षा
परिषद के विमर्श पर औपचारिक पत्र जारी करने का विरोध किया था, पर उसके दूत ने
कश्मीर के समाधान के लिए सुरक्षा परिषद प्रस्ताव का समर्थन करके संदेह पैदा कर
दिया है. इसके अलावा 4 से 6 सितंबर तक व्लादीवोस्तक में हो रहे ईस्टर्न इकोनॉमिक
फोरम में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय टीम भी शामिल होने जा रही है. वहाँ
उनकी मुलाकात रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और मलेशिया के प्रधानमंत्री महातिर
मोहम्मद और जापानी प्रधानमंत्री शिंजो एबे से भी होगी.
बातचीत का वर्तमान दौर
इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि पाकिस्तान और चीन दोनों ने भारत के खिलाफ माहौल
बनाने की मुहिम छेड़ रखी है. पाकिस्तान ने कश्मीर मामले को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय
में ले जाने की घोषणा की है. आगामी संरा महासभा में भी पाकिस्तान इस मामले को
जोर-शोर से उठाएगा. उसके ऊपर एफएटीएफ की तलवार भी लटकी हुई है. भारत इस बात का
इंतजार भी कर रहा है कि कश्मीर में चल रहे छाया-युद्ध में पाकिस्तान की भूमिका अब
क्या होगी.
अपनी राजनयिक मुहिम में पाकिस्तान
को सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों से समर्थन नहीं मिला है. उधर यूएई की यात्रा के
दौरान प्रधानमंत्री मोदी अबू धाबी के शहज़ादे शेख मुहम्मद बिन ज़ायेद-अल-नाह्यान
से मुलाकात करेंगे. वहाँ उन्हें यूएई का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भी प्रदान किया
जाएगा. यह एक प्रकार का राजनयिक संदेश पाकिस्तान के नाम होगा.
पिछले दो-तीन हफ्तों भारत
के मित्र देशों में फ्रांस का नाम उभर कर आया है. इस हफ्ते पाकिस्तान के
विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी ने फ्रांसीसी विदेशमंत्री ज्यां ईव्स ल दारियां से
फोन पर बात की, तो उन्होंने कहा कि फ्रांस मानता है कि कश्मीर, भारत और पाकिस्तान
के बीच का मामला है और दोनों को मिलकर इसका समाधान खोजना चाहिए. सुरक्षा परिषद की
बैठक में भी फ्रांस ने भारत का समर्थन किया था. देश को फिलहाल राजनयिक और
सैन्य-आधुनिकीकरण दोनों मोर्चों पर तैयारी रखनी होगी, क्योंकि पाकिस्तान की
उन्मादी सेना कुछ भी कर सकती है.
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