जम्मू-कश्मीर को अनुच्छेद 370 की छाया से मुक्त करने के बाद गुरुवार की रात प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश की सबसे बड़ी बात है कि इसमें संदेश में न
तो याचना है और न धमकी। सारी बात सादगी और साफ शब्दों में कही गई है। कई सवालों के
जवाब मिले हैं और उम्मीद जागी है कि हालात अब सुधरेंगे। साथ ही इसमें यह संदेश भी
है कि कुछ कड़े फैसले अभी और होंगे। इसमें पाकिस्तान के नाम संदेश है कि वह जो कर
सकता है वह करे। जम्मू-कश्मीर का भविष्य अब पूरी तरह भारत के साथ जुड़ा है। अब
पुरानी स्थिति की वापसी संभव नहीं। पर उनका जोर इस बात पर है कि कश्मीर के युवा
बागडोर संभालें विकास के साथ खुशहाली का माहौल तैयार करें।
स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के संबोधन की तरह इस संबोधन को देश में ही नहीं,
दुनिया भर में बहुत गौर से सुना गया। इस भाषण में संदेश कठोर है, और साफ शब्दों
में है। उन्होंने न तो अतिशय नरम शब्दों का इस्तेमाल किया है और न कड़वी बात कही। उन्होंने
अटल बिहारी वाजपेयी के प्रायः उधृत ‘इंसानियत, जम्हूरियत और कश्मीरियत’ सिद्धांत का एक बार भी हवाला नहीं दिया। खुद दो साल पहले उन्होंने लालकिले से
कहा था ‘ना गोली से, ना गाली
से, कश्मीर समस्या सुलझेगी गले लगाने से।’ पर इस बार ऐसी कोई बात
इस भाषण में नहीं थी।
प्रधानमंत्री ने सादगी से कहा कि कश्मीरी लोग उपलब्ध अवसरों का लाभ उठाएं और
भड़काऊ बातों से बचें। सरकार ने जम्मू-कश्मीर के लोगों का हक छीना नहीं है, बल्कि
देने की कोशिश की है। अभी केंद्र शासित क्षेत्र बना रहे हैं, पर हालात सुधरने पर
पूर्ण राज्य की वापसी होगी। उनके भाषण में चार तरह के संदेश हैं। पहला कश्मीरी
जनता के नाम है। दूसरा शेष भारत के नाम। हालांकि उन्होंने पाकिस्तान का नाम नहीं
लिया, पर तीसरा संदेश उसके नाम है और चौथा शेष विश्व के नाम।
प्रधानमंत्री ने बहुत सी बातें प्रत्यक्षतः कहीं, पर बहुत सी बातें इशारों में
कहीं। सात दशक तक हम भी इंतजार करते रहे, पर अब वह इंतजार खत्म हो चुका है। कश्मीर
भारत का अटूट अंग है, तो 370 की विभाजक रेखा को मिटाना अनिवार्य है। उन्होंने साफ
कहा कि अनुच्छेद 370 के नाम पर आपको ठगा और भरमाया गया। यह अनुच्छेद आपके विकास
में बाधक था। इससे आतंकवाद, अलगाववाद और भ्रष्टाचार को बढ़ावा
मिल रहा था। कश्मीर में अब तक 42,000 लोगों की जान जा चुकी है।
कोई नहीं यह बता पाता है कि अनुच्छेद 370 से क्या फायदा पहुँचा
है। कश्मीर के नागरिकों से उन्होंने साफ कहा कि अब आप शांति बनाए रखेंगे, तो न
केवल शांति की वापसी होगी, बल्कि आपके जीवन में खुशहाली भी आएगी। आप इस सच्चाई को
स्वीकार करें। संभावनाएं अपार हैं। हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं। बदलाव की इस
प्रक्रिया के कारण आपको, जो तकलीफ हुई है, वह जल्द दूर होगी, बशर्ते आपकी
प्रतिक्रिया सकारात्मक हो।
सवाल है कि क्या प्रतिक्रिया सकारात्मक होगी? घाटी के अलगाववादी नेता अभी हिरासत में हैं, वे
जब वापस लौटेंगे, तभी पता लगेगा कि उनका जनता पर प्रभाव कितना है। प्रधानमंत्री ने
कुछ गलतफहमियों को दूर करने की कोशिश भी की। मसलन उन्होंने कहा कि आपके लोग ही
चुनाव लड़ेंगे, आपकी विधानसभा होगी, देश के नागरिकों को प्राप्त अधिकार आपके भी
होंगे। पूँजी निवेश होगा, तो रोजगार के अवसर बढ़ेंगे, पर्यटन बढ़ेगा, आर्थिक
विस्तार होगा वगैरह। कश्मीर के लोगों को डराया जा रहा है कि वहाँ बाहर से आकर लोग
बस जाएंगे, पर प्रधानमंत्री ने ऐसा कुछ नहीं कहा।
कश्मीर में राजनेताओं के प्रभाव से दूर खामोश नागरिक भी हैं। शाम से ही तमाम लोग
इस भाषण का इंतजार कर रहे थे। हालांकि राज्य में टेलीफोन और इंटरनेट सेवाएं बंद
हैं, पर रेडियो और डीटीएच पर टीवी प्रसारण जारी है, इसलिए इस भाषण को समूचे कश्मीर
में सुना गया। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती स्थिति को सामान्य करने और राज्य
प्रशासन को गति प्रदान करने की है। साथ ही ऐसे नागरिकों को भरोसे में लेने की है,
जो जेहादियों के प्रभाव में नहीं हैं।
अंदेशा है कि पाकिस्तान-परस्त ताकतों की कोशिश सुरक्षा बलों और नागरिकों के
टकराव की होगी। वे जनता को भड़काने का काम करेंगे। सुरक्षा बलों की भी परीक्षा का
यह समय है। उन्हें अनुशासन बनाकर रहना होगा और कोशिश करनी होगी कि
विरोध-प्रदर्शनों के दौरान हिंसा न होने पाए। अलगाववादी संगठन किशोरों को भड़काकर
उनसे पत्थरबाजी करवाते हैं। फिर पुलिस-कार्रवाई की वीडियो क्लिपिंग्स को सोशल
मीडिया पर वायरल कराते हैं। उनके साथ फलस्तीन और सीरिया की कतरनें जोड़ी जाती हैं
और ऐसा माहौल बनाने का प्रयास किया जाता है कि कश्मीर में भारतीय सुरक्षा बल दमन
चक्र चला रहे हैं।
अब कम से कम चार तरह के प्रभावों परिणामों की प्रतीक्षा हमें करनी होगी। राज्य में धीरे-धीरे व्यवस्था सामान्य होगी।
शुक्रवार को पहली बार लोग घर से बाहर निकले। सोमवार को ईदुज्जुहा पर प्रतिबंध हटाए
जाएंगे। ऐसे में काफी सावधानियों की जरूरत होगी, खासतौर से सुरक्षा-व्यवस्था में।
उधर राष्ट्रपति की अधिसूचना को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की शुरुआत हो चुकी
है। इसलिए हमें न्यायिक समीक्षा की प्रतीक्षा करनी होगी। तीसरे नियंत्रण रेखा पर
पाकिस्तानी गतिविधियों पर भी नजर रखनी होगी। चौथे इसपर वैश्विक प्रतिक्रिया का
इंतजार करना होगा।
फौरी तौर पर सुरक्षा का स्थान सबसे ऊपर है, क्योंकि इसमें ढील हुई, तो
परिस्थितियों पर नियंत्रण पाने में दिक्कत होगी। पाकिस्तान एक तरफ कश्मीर मामले का
अंतरराष्ट्रीयकरण करना चाहता है और दूसरी तरफ कश्मीर में हिंसा भड़काना चाहता है। यह
हिंसा कश्मीर के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में भी हो सकती है। देश के राजनीतिक
दलों को भी इस वक्त एकता का परिचय देना चाहिए। कांग्रेस पार्टी ने संसद में जो रुख
अपनाया है, वह उत्साहवर्धक नहीं है।
उधर पाकिस्तान मानकर चल रहा है कि इस वक्त अमेरिका का दबाव भारत पर डाला जा
सकता है। पर पाकिस्तान के अनुमान गलत साबित होंगे, क्योंकि भारत पर अमेरिकी एक
सीमा तक ही काम कर सकता है। वह इस मामले को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में
उठाने की बातें कर रहा है। जरूर उठाए, पर कुछ होने वाला नहीं है। भारत को ब्लैकमेल
करना उतना आसान नहीं है, जितना पाकिस्तान समझता है।
प्रधान मंत्री की साफगोई पर कोई शक नहीं है , पाकिस्तान भी कुछ समय तक यह शोर करेगा,वह न पहले शांति से रहने दे रहा था न अब भी रहेगा , कश्मीर में भी जब लोगों को बदले हुए परिवेश में सुविधाएं मिलेंगी तो लोग समझने लगेंगे , क्योंकि आम व्यक्ति को चैन से जीवन जीना व अपनी जरूरतों को पूरा करने की ही इच्छा होती है , लेकिन ये राजनीतिक दल सारे माहौल को खराब करने में अपनी सशक्त भूमिका निभाने में कोई कसार नहीं छोड़ेंगे , अब्दुल्ला, व मुफ़्ती परिवार की दुकानें लूट गयीं हैं , उनकी असलियत अब जनता के सामने आने से वे खिन्न हैं , उन्हें डर है कि जनता अब उन पर यकीन करना छोड़ देगी , कांग्रेस का रवैया व उसके नेताओं के बोल भड़काऊ हैं उनकी सत्तानशीं होने की तारीख और दूर हो गयी है और यही उसकी बकवास पाकिस्तान की मददगार होगी , इन की समझ में नहीं आ रहा है कि देश की एकता कितनी जरुरी है , इस प्रकार के वातावरण से वह खुद ही जनता से दूर होते जा रहें हैं ,कांग्रेस यह भूल रही है कि देश में और कितनी भी समस्याएं हों , सरकार उनको नियंत्रित करने में नाकामयाब रही हो लेकिन देश की रक्षा , कश्मीर की समस्या जैसे विषयों पर जनता उन सब को भूल कर सरकार का साथ ही देगी
ReplyDeleteविगत चुनाव में इसका उदारहण मिल भी चुका है
विनाश की ओर बढ़ती कांग्रेस के नेताओं चिदंबरम व अय्यर के बयान उसकी बर्बादी की और जाने के तो संकेत हैं लेकिन कश्मीर के हालात को आग में घी डालने का काम भी कर रहे हैं