सौम्य, सुशील, सुसंस्कृत,
संतुलित और भारतीय संस्कृति की साक्षात प्रतिमूर्ति. सुषमा स्वराज की गणना देश के
सार्वकालिक प्रखरतम वक्ताओं और सबसे सुलझे राजनेताओं में और श्रेष्ठतम
पार्लियामेंटेरियन के रूप में होगी. जैसे अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों को लोग याद
करते हैं, वैसे ही उनके भाषण लोगों को रटे पड़े हैं. संसद में जब वे बोलतीं, तब उनके
विरोधी भी ध्यान देकर उन्हें सुनते थे. सन 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का
उनका भाषण हमेशा याद रखा जाएगा, जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के आतंकी प्रतिष्ठान की
धज्जियाँ उड़ा दी थीं.
सन 2014 में मोदी सरकार
में जब वे शामिल हुई, तब तमाम कयास और अटकलें थीं कि यह उनकी पारी का अंत है. पर उन्होंने
अपनी प्रतिष्ठा को एक नया आयाम दिया. विदेशमंत्री पद को अलग पहचान दी. वे देश की
पहली ऐसी विदेशमंत्री हैं, जिन्होंने प्रवासी भारतवंशियों की छोटी-छोटी समस्याओं
का समाधान किया. एक जमाने में देश का पासपोर्ट लेना बेहद मुश्किल काम होता था. आज
यह काम बहुत आसानी से होता है. इसका श्रेय उन्हें जाता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी के महत्वपूर्ण दौरों के पहले वे तमाम देशों की यात्राएं करके भारत के पक्ष
में जमीन तैयार करती रहीं.
देश की राजधानी दिल्ली का
दुर्भाग्य है कि एक महीने से भी कम समय में उसने अपनी दो पूर्व असाधारण मुख्यमंत्रियों
को खोया. शीला दीक्षित और सुषमा स्वराज दोनों को सौम्य और सरल व्यवहार के लिए
हमेशा याद किया जाएगा. सुषमा स्वराज दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री थीं. उन्होंने
सत्तर के दशक में अपने विद्यार्थी जीवन से राजनीति में प्रवेश किया. वे अखिल
भारतीय विद्यार्थी परिषद की नेता थीं. कॉलेज के दिनों में उन्होंने लगातार तीन
वर्ष तक एनसीसी की सर्वश्रेष्ठ कैडेट और हरियाणा की राज्य स्तरीय प्रतियोगिता में
लगातार तीन बार सर्वश्रेष्ठ हिंदी वक्ता का पुरस्कार जीता. यह वाक् प्रतिभा उनकी
ताकत बनी, जिसने राजनीति में उनकी अलग पहचान बनाई.
उन्होंने जेपी के आंदोलन
में आगे बढ़कर भाग लिया. इमर्जेंसी के दौरान उनके पति स्वराज कौशल जॉर्ज फर्नांडिस
के वकील बने, जिनके खिलाफ बड़ौदा डाइनामाइट केस चल रहा था. सुषमा स्वराज भी वकीलों
की उस टीम में शामिल थीं, जो जॉर्ज की पैरवी कर रही थी. इमर्जेंसी के बाद वे जनता
पार्टी में शामिल हो गईं और 1977 में उन्होंने पहली बार हरियाणा विधानसभा का चुनाव
जीता और केवल 25 वर्ष की आयु में चौधरी देवी लाल की सरकार में सबसे युवा कैबिनेट
मंत्री बनीं.
जनता पार्टी टूटने के बाद
बीजेपी बनी, जिसमें वे शामिल हुईं. हरियाणा में वे फिर मंत्री बनीं. पर उनकी
राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब बनीं, जब वे संसद में आईं. सन 1990 में वे राज्यसभा की
सदस्य बनीं. सन 1996 में बीजेपी की तेरह दिनी सरकार के विश्वास मत का प्रसारण
दूरदर्शन पर हुआ. उस प्रसारण की भारतीय राजनीति में एक खास भूमिका है. उस साल सुषमा
स्वराज दक्षिण दिल्ली से लोकसभा चुनाव जीत कर आईं थीं और 13 दिनी सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं. उन्होंने ही
उस लाइव प्रसारण की शुरुआत की थी.
वह सरकार गिर गई, पर अटल
बिहारी वाजपेयी के उस भाषण ने बीजेपी के प्रति हमदर्दी पैदा कर दी, जो भविष्य में काम
आई. बाबरी कांड के कारण उस वक्त बीजेपी ‘अछूत’ थी. कोई राजनीतिक दल
उसके साथ आने को तैयार नहीं था. उस लाइव प्रसारण ने माहौल को बदल दिया. अटल सरकार गिरने के बाद
संयुक्त मोर्चा सरकार बनी, जिसके विश्वास मत पर सुषमा स्वराज ने जो प्रभावशाली भाषण
दिया, वह यूट्यूब पर उपलब्ध है. उनके निधन के बाद तमाम चैनलों पर उसे दिखाया जा
रहा है. उस भाषण ने उनकी वाक् प्रतिभा को पक्के तौर पर स्थापित कर दिया.
सुषमा जी ने राजनीति की
सीढ़ियाँ बहुत तेजी से पार कीं. सन 1998 में वे दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं, पर
वहाँ वे ज्यादा समय रुकी नहीं और फिर से राष्ट्रीय राजनीति में वापस आ गईं. सन 1999
में कर्नाटक के बेल्लारी से कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के
ख़िलाफ़ जब वे चुनाव में उतरीं तब तक वे ऊँचे कद की राजनेता बन चुकी थीं.‘स्वदेशी बेटी और विदेशी
बहू’ की उस लड़ाई ने
कर्नाटक की राजनीति में बीजेपी की बुनियाद रख दी. उन्होंने एक महीने के भीतर
कन्नड़ भाषा का इतना ज्ञान प्राप्त कर लिया कि वे अपने भाषणों में ज्यादा से
ज्यादा कन्नड़ का इस्तेमाल करने लगीं.
हालांकि वे चुनाव हार
गईं, लेकिन उस इलाके के लोगों की दिल जीतकर ले गईं. उसके बाद से वे हर साल इस
इलाके में वरमहालक्ष्मी पूजन के अवसर पर आती रहीं. उनके उस अभियान ने दक्षिण भारत
में बीजेपी को प्रवेश दिलाया और सन 2004 में बीजेपी ने कांग्रेस के इस दुर्ग को
तोड़ने में सफलता प्राप्त की. सन 2009 में वे मध्य प्रदेश के विदिशा से लोकसभा चुनाव
जीतीं और लोकसभा में विपक्ष की नेता बनीं. 2014 में वे विदिशा से दूसरी बार जीतीं
और देश की पहली पूर्णकालिक विदेश मंत्री बनीं. वे देश की अकेली महिला नेता थीं,
जिन्हें असाधारण सांसद के रूप में चुना गया.
वे अनोखी विदेशमंत्री साबित
हुईं. मददगार के रूप में उनकी एक नई छवि बनी. विदेश में फँसे लोग बतौर विदेश
मंत्री उनसे मदद मांगते. चाहे पासपोर्ट बनवाने का काम ही क्यों न हो. पाकिस्तान के
वे तमाम लोग उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं, जिन्हें उन्होंने भारत में इलाज
के लिए वीजा दिलाया. वे किसी को निराश नहीं करती थीं.
उनकी उम्र इतनी नहीं थी
कि वे दुनिया से विदा लेतीं. शायद अपने बारे में उन्हें आभास था, तभी उन्होंने
इसबार चुनाव न लड़ने का फैसला किया. अपने निधन से कुछ घंटे पहले ही उन्होंने प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देते हुए ट्वीट किया, ‘प्रधान मंत्री जी-आपका हार्दिक अभिनन्दन. मैं अपने जीवन में इस दिन को देखने
की प्रतीक्षा कर रही थी.’ यह ट्वीट उनकी खास यादगार बनकर रह गया है.
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (09-08-2019) को "रिसता नासूर" (चर्चा अंक- 3422) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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सादर...नमन!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सविनय सादर श्रृद्धांजलि।
ReplyDeleteभारत की इस महान नेत्री सुषमा स्वराज को विनम्र श्रद्धांजलि
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