शुक्रवार की
दोपहर वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने राष्ट्रीयकृत बैंकों के पुनर्गठन के बाबत
महत्वपूर्ण फैसलों से जुड़ी प्रेस कांफ्रेंस जैसे ही समाप्त की, खबरिया चैनलों के
स्क्रीन पर ब्रेकिंग न्यूज दिखाई पड़ी कि पहली तिमाही में जीडीपी की दर घटकर 5
फीसदी हो गई है। यह दर अनुमान से भी कम है। मंदी की खबरें इस बात के लिए प्रेरित
कर रही हैं कि आर्थिक सुधारों की गति में तेजी लाई जाए। बैंकिग पुनर्गठन और एफडीआई
से जुड़े फैसलों के साथ इसकी शुरुआत हो गई है। उम्मीद है कि कुछ बड़े फैसले और
होंगे। फिलहाल सबसे बड़ी जरूरत है कि ग्रामीण और शहरी बाजारों में माँग और
अर्थव्यवस्था में विश्वास का माहौल पैदा हो।
सेंटर फॉर
मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) ने इस तिमाही की दर 5.7 फीसदी रहने का अनुमान
लगाया था। हाल में समाचार एजेंसी रायटर्स ने अर्थशास्त्रियों का एक सर्वे किया था,
उसमें भी 5.7 फीसदी का अनुमान था। पर वास्तविक आँकड़ों का इन अनुमानों से भी कम
रहना चिंतित कर रहा है। मोदी सरकार के पिछले छह साल में यह सबसे धीमी तिमाही
संवृद्धि है। इस तिमाही के ठीक पहले यानी 2019-19 की चौथी तिमाही में संवृद्धि दर
5.8 फीसदी थी। जबकि पिछले वित्तवर्ष की पहली तिमाही में यह दर 8 फीसदी थी। ज़ाहिर
है कि मंदी का असर अर्थव्यवस्था पर दिखाई पड़ने लगा है।
इस तिमाही में कंस्ट्रक्शन
सेक्टर में संवृद्धि 7.1 फीसदी से घटकर
5.7 फीसदी रही है। फाइनेंशियल और रियल एस्टेट सेक्टर में 5.9, माइनिंग
सेक्टर में 2.7, ट्रेड और होटल सेक्टर में 7.1 फीसदी संवृद्धि रही। इलेक्ट्रिसिटी
सेक्टर ग्रोथ 4.3 फीसदी से बढ़कर 8.6 फीसदी हो गई और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में
3.1 फीसदी से घटकर 0.6 फीसदी हो गई है। औद्योगिक संवृद्धि 4.2 फीसदी से घटकर 2.74 हो
गई है। कृषि सेक्टर की ग्रोथ में बढ़ोतरी हुई है, जो निगेटिव 0.1 फीसदी से बढ़कर 2
फीसदी हो गई है। पिछले साल कृषि सेक्टर की ग्रोथ इसी तिमाही में 5.1 फीसदी थी।
अर्थशास्त्रियों के नजरिए से इस धीमी संवृद्धि की बड़ी वजह
है ग्रामीण क्षेत्र से घटती माँग। कृषि उत्पादों की कम कीमतों और खेती के लगातार
अलाभकारी होते जाने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता सामग्री की माँग कम हुई
है। इस साल मॉनसून देर से आने और फिर कुछ इलाकों में बाढ़ की वजह से खरीफ की धारणाएं
भी अच्छी नहीं हैं। अर्थव्यवस्था उम्मीदों और भावनाओं के भरोसे चलती है। मंदी का
माहौल बनता है, तो लोग पैसा खर्च करना कम कर देते हैं। कई वजहों से ऑटोमोबाइल
सेक्टर में मंदी का माहौल है। इससे लाखों श्रमिक बेरोजगार हो गए हैं या उन्हें कम
पगार पर काम करना पड़ रहा है। गाँवों की माँग घटने का पता दोपहिया वाहनों की
बिक्री से लगता है। इस साल जून तक दोपहिया वाहनों की माँग में 10 फीसदी की कमी आई
है, जबकि ट्रैक्टरों की माँग में 21 फीसदी की। शहरी माँग का पता कारों की बिक्री
से लगता है। इस साल जुलाई तक मारुति सुजुकी, ह्यूंडे, महिंद्रा एंड महिंद्रा, टाटा
मोटर्स और होंडा की बिक्री में 17 फीसदी की कमी आई है। नील्सन के एक सर्वे के
अनुसार एफएमसीजी की बिक्री में ग्रोथ आधी रह गई है। सितंबर 2018 में इनकी संवृद्धि
13.2 फीसदी थी, जो जून 2019 की तिमाही में घटकर 6.2 फीसदी हो गई है।
मंदी के कई कारण हैं। इनमें वैश्विक कारण भी शामिल हैं, पर
भारतीय अर्थव्यवस्था निर्यात पर आधारित नहीं है, इसलिए ज्यादातर कारण देश में ही हैं।
बड़ी वजह है सरकारी और निजी पूँजी निवेश में कमी। सरकारी पूँजीगत निवेश में 28
फीसदी की कमी आई, वहीं आम चुनाव के कारण निजी क्षेत्र के उद्यमियों ने भी निवेश में
हाथ रोक लिया। यों भी ज्यादातर उद्योग अपनी क्षमता का विस्तार करने या नए
क्षेत्रों में जाने के बजाय वर्तमान क्षमता से ही काम चलाना चाहते हैं। औद्योगिक
क्षेत्र के साथ-साथ सेवा क्षेत्र की भी यही कहानी है।
गिरावट के आँकड़े
ऐसे समय में आए हैं जब रेटिंग एजेंसियां भारत के जीडीपी अनुमान को घटा रही हैं।
हाल में इंडिया रेटिंग्स ने सालाना ग्रोथ का अनुमान 7.3 फीसदी से घटाकर 6.7 फीसदी और
मूडीज़ ने 6.2 फीसदी कर दिया है। जापानी ब्रोकरेज कंपनी नोमुरा के अनुसार सर्विस
सेक्टर में सुस्ती, कम निवेश और खपत
में गिरावट से भारत की जीडीपी सुस्त हुई है। उपभोक्ताओं का विश्वास कम हो रहा है
और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट आई है। सरकार ने अगले पाँच साल में देश को 5
ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बनाने का लक्ष्य रखा है। इसके लिए लगातार कई साल तक 9
फीसदी या उससे भी ज्यादा की सालाना ग्रोथ होनी चाहिए।
संयोग से
शुक्रवार को ही सरकार ने बैंकिंग सुधार की दिशा में बड़े कदमों की घोषणा की है। आरबीआई
से 1.76 लाख करोड़ की भारी धनराशि के हस्तांतरण के बाद सरकार के पास तरलता बढ़ाने
के विकल्प हैं। अंततः सफलता तभी मिलेगी, जब निजी क्षेत्र आगे आएगा। प्रत्यक्ष
विदेशी पूँजी निवेश की भी जरूरत होगी। सरकार ने कोयला-खनन, कॉण्ट्रैक्ट मैन्युफैक्चरिंग तथा डिजिटल मीडिया
सेक्टर में 100 प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की मंजूरी दी है। ग्लोबल ब्रैंड्स
को आकर्षित करने के मकसद से सिंगल ब्रैंड रिटेल के नियमों में भी छूट दी है। लगता
है कि अभी कई बड़े फैसले और होंगे।
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