अस्सी और नब्बे के दशक में जब देश में कम्प्यूटराइजेशन की शुरुआत हो रही थी,
सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में श्रमिकों की गेट मीटिंगें इस चिंता को लेकर होने
लगी थीं कि कम्प्यूटर हमारी रोजी-रोटी छीन लेगा। ऑटोमेशन को गलत रास्ता बताया गया
और कहा गया कि इसे किसी भी कीमत पर होने नहीं देंगे। बहरहाल उसी दौर में सॉफ्टवेयर
क्रांति हुई और तकरीबन हर क्षेत्र में आईटी-इनेबल्ड तकनीक ने प्रवेश किया। सेवाओं
में सुधार हुआ और रोजगार के नए दरवाजे खुले। तकरीबन उसी दौर में देश के
वस्त्रोद्योग पर संकट आया और एक के बाद एक टेक्सटाइल मिलें बंद होने लगीं।
देश में रोजगार का बड़ा जरिया था वस्त्रोद्योग। कपड़ा मिलों के बंद होने का
कारण कम्प्यूटराइजेशन नहीं था। कारण दूसरे थे। कपड़ा मिलों के स्वामियों ने समय के
साथ अपने कारखानों का आधुनिकीकरण नहीं किया। ट्रेड यूनियनों ने ऐसी माँगें रखीं,
जिन्हें स्वीकार करने में दिक्कतें थीं, राजनीतिक दल कारोबारियों से चंदे लेने में
व्यस्त थे और सरकारें उद्योगों को लेकर उदासीन थीं। जैसे ही कोई उद्योग संकट में
आता तो उसका राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता। औद्योगिक बीमारी ने करोड़ों रोजगारों की
हत्या कर दी।
हाल में हमने बैंक राष्ट्रीयकरण की पचासवीं जयंती मनाई। माना जाता है कि
राष्ट्रीयकरण के कारण बैंक गाँव-गाँव तक पहुँचे, पर उचित विनियमन के अभाव में
लाखों करोड़ रुपये के कर्ज बट्टेखाते में चले गए। तमाम विरोधों के बावजूद
सार्वजनिक बैंकों और जीवन बीमा निगम में तकनीकी बदलाव हुआ, भले ही देर से हुआ। आम
नागरिकों को ज्यादा बड़ा बदलाव रेल आरक्षण में देखने को मिला, जिसकी वजह से कई तरह
की सेवाएं और सुविधाएं बढ़ीं। आज आप बाराबंकी में रहते हुए भी चेन्नई से बेंगलुरु
की ट्रेन का आरक्षण करा सकते हैं, जो कुछ दशक पहले सम्भव नहीं था।
नवम्बर 2016 में जब नोटबंदी की घोषणा हुई थी, तब तमाम बातों के अलावा यह भी
कहा गया था कि इस कदम के कारण अर्थव्यवस्था के डिजिटाइज़ेशन की प्रक्रिया बढ़ेगी।
यह बढ़ी भी। पर यह सवाल अब भी उठता है कि यह डिजिटाइटेशन रोजगारों को खा रहा है या
बढ़ा रहा है?
नए किस्म के रोजगार
दस साल पहले के परिदृश्य पर गौर करें, तो आप पाएंगे कि अनेक रोजगार खत्म हुए
हैं, पर तमाम नए रोजगार उभर कर सामने आए भी हैं। भारत में फ्लिपकार्ट, अमेजन समेत
अनेक रिटेल प्लेटफॉर्म खड़े हुए हैं। ऑनलाइन खरीदारी ने लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र
में जबर्दस्त क्रांति की है। तमाम नए एप और एप डेवलपर सामने आ रहे हैं। उबर, ओला
क्रांति ने न केवल छोटे शहरों में ड्राइविंग के एक नए रोजगार को जन्म दिया है,
बल्कि शहरी परिवहन की एक नई व्यवस्था को जन्म दिया है। अभी हमारे देश में
ड्राइवरलेस कार की तकनीक का प्रवेश हुआ नहीं है, पर इंतजार कीजिए वह जल्द आने वाली
है।
टेलिमेडिसन और टेली-उपचार एक नया क्षेत्र है, जो जल्द सामने आएगा। इनके अलावा
सोशल मीडिया मैनेजरों, एसईओ विशेषज्ञों और नेट आधारित सेवाओं के तमाम नए क्षेत्रों
में रोजगार की सम्भावनाएं तलाशी जा रहीं हैं। सोशल मीडिया केवल अफवाहें फैलाने का
काम ही नहीं कर रहा, वह शिक्षा और जन-जागृति फैलाने के काम में भी लगा है। वह
रोजगार की सम्भावनाओं को बढ़ाने में भी भूमिका निभा रहा है। सुदूर क्षेत्रों की
हस्तकलाओं और परम्परागत उद्यमों को नए सिरे से बढ़ाने की सम्भावनाएं भी पैदा हो
रहीं हैं।
इन सम्भावनाओं के साथ नागरिक सुविधाओं और ई-प्रशासन में भी सुधार हुआ है।
बिजली के बिल, हाउस और वॉटर टैक्स जमा करना अब उतना मुश्किल काम नहीं रहा, जितना
होता था। राजमार्ग से गुजरते हुए आपकी कार का ब्रेक डाउन हो तो सहायता अपेक्षाकृत
जल्दी मिलेगी। इसके साथ रोजगार भी जुड़े हैं। अब आपका सब्जी वाला, काम वाली बाई,
रिक्शे वाला, ऑटो वाला, कारपेंटर, मिस्त्री, मिकेनिक इस सिस्टम से जुड़े हुए हैं।
इसमें दोतरफा लाभ हैं। नब्बे के दशक की आईटी क्रांति ने बिजनेस प्रोसेस
आउटसोर्सिंग की एक नई अवधारणा दी, जिसके कारण विकसित देशों से कई तरह के रोजगार
हमारे यहाँ आए।
छह करोड़ नए रोजगार
इन दिनों इस बात को लेकर आशंकाएं व्यक्त की जा रही हैं कि आर्टिफीशियल
इंटेलिजेंस जैसी तकनीकें लाखों लोगो को बेरोजगार कर देंगी, वहीं मैकिंजी ग्लोबल
इंस्टीट्यूट की इस साल मार्च में जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि डिजिटल
अर्थव्यवस्था भारत में सन 2025 तक छह से साढ़े करोड़ तक नए रोजगार पैदा करेगी। कुछ
समय पहले नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कम्पनीज (नैस्कॉम) की अध्यक्ष
देवयानी घोष ने एक टीवी चैनल से कहा, दस साल पहले उबर ड्राइवर नहीं होते थे, सोशल
मीडिया मैनेजर भी नहीं थे। हरेक औद्योगिक क्रांति कुछ पुराने रोजगारों को खत्म
करती है और कुछ नए रोजगारों को जन्म देती है।
पिछले कुछ वर्षों में डिजिटाइज़ेशन के प्रति बढ़ते उत्साह को चुनौती दी गई है।
तमाम बातों का दोष उसपर डाला जा रहा है। कुछ उद्यमों में छँटनी और तालाबंदी की
खबरें आ रही हैं, तो उन कारणों को भी देखना होगा, जो जिम्मेदार हैं। इन दिनों
ऑटोमोबाइल उद्योग से मंदी की खबरें हैं। कारों की बिक्री में गिरावट आई है।
औद्योगिक मंदी के कारणों पर जाने की जरूरत है, जो अर्थव्यवस्था के अन्य कारकों से
जुड़े हैं।
ऑटोमोबाइल्स उद्योग तकनीकी परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण संधिकाल से गुजर रहा है।
कार्बन उत्सर्जन का भारत-4 से भारत-6 में अचानक परिवर्तन सरल नहीं है। पेट्रोलियम आधारित
तकनीक के अवसान का समय भी समीप आता जा रहा है। इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड वाहनों की
नई तकनीक सामने आ रही है। उसका यह संधिकाल है। ज्यादा लम्बा नहीं चलेगा। ऊर्जा की
सोलर तकनीक नए रूप में भारत में आ रही है।
नई तकनीकें?
नैस्कॉम ने बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप के साथ मिलकर यह पता लगाने का यत्न किया है
कि किस किस्म की तकनीक रोजगारों को पैदा करने में मददगार होगी। उन्होंने नौ
तकनीकों की पहचान की है। इनमें इंटरनेट ऑफ थिंग्स सबसे ऊपर है। इसका मतलब है ऐसे
काम जो इंटरनेट के मार्फत होते हों। इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक्स का क्षेत्र है।
भारत सरकार के डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का लक्ष्य अब छोटे कस्बे और गाँव हैं।
खासतौर से पूर्वोत्तर के सुदूर क्षेत्र। इन इलाकों में बीपीओ खोले जा रहे हैं, जो
लड़के-लड़कियों को रोजगार मुहैया करा रहे हैं। रोजगार के अलावा ये केन्द्र
आईटी-आधारित सेवाएं भी उपलब्ध करा रहे हैं।
वित्तीय सेवाओं की वैश्विक कम्पनी मॉर्गन स्टैनली ने अपनी एक रिपोर्ट में
बताया था कि भारत के जनधन, आधार और मोबाइल फोन के तेज विस्तार का प्रभाव बड़ी
गहराई तक सामाजिक जीवन पर पड़ा है। इसके कारण आर्थिक विषमता को रोकने, सामाजिक
समावेशन बढ़ाने, जीवन स्तर बेहतर बनाने और खेती की उत्पादकता बढ़ाने का मौका मिल
रहा है। मॉर्गन स्टैनली की यह रिपोर्ट कहती है कि दस साल में भारतीय अर्थव्यवस्था
पाँच ट्रिलियन डॉलर से ऊपर होगी और इसमें सबसे बड़ी भूमिका डिजिटाइज़ेशन की होने
वाली है।
उसका अनुमान है कि भारत में प्रति व्यक्ति की वर्तमान औसत आय 2000 डॉलर से
बढ़कर अगले दस वर्ष में 4135 डॉलर प्रति वर्ष हो जाएगी। उसका यह भी कहना है कि देश
में इस समय करीब 15 अरब डॉलर का ई-कारोबार हो रहा है, जो अगले दस साल में करीब 200
अरब डॉलर का होगा। इसमें छोटे शहरों और कस्बों के कारोबारियों की बड़ी भूमिका है।
अमेजन इंडिया के अनुसार उसके 50 फीसदी विक्रेता टियर-2 और 3 शहरों से हैं और 65
फीसदी से ज्यादा ग्राहक इन शहरों और कस्बों से हैं। जाहिर है कि इन्हीं शहरों में
नए रोजगार भी पैदा होंगे।
मैकिंजी रिपोर्ट
मैकिंजी ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने ‘डिजिटल इंडिया: टेक्नोलॉजी टु ट्रांसफॉर्म ए कनेक्टेड नेशन’ शीर्षक से जो रिपोर्ट जारी की है उसके अनुसार सेन 2025 में
भारत के कामगारों की संख्या 54.5 करोड़ होगी, जो 2017 में 48 करोड़ थी। इसमें सबसे
बड़ी भूमिका कोर डिजिटल सेक्टर की होगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए तमाम
कर्मियों को पुनर्प्रशिक्षित करते नई तकनीक का अभ्यस्त बनाना भी होगा। तकनीकी
परिवर्तन के कारण रोजगारों की समाप्ति कोई नई अवधारणा नहीं है। उसका सामना तभी
किया जा सकता है, जब हम नई तकनीक के लिए तैयार रहें। हमें चार से साढ़े चार करोड़
कर्मियों को नई तकनीक में प्रशिक्षित करना होगा।
देश की 600 से ज्यादा कम्पनियों के सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई इस
रिपोर्ट में कहा गया है कि आईटी, बिजनेस प्रोसेस मैनेजमेंट, डिजिटल कम्युनिकेशंस
सर्विसेज और इलेक्ट्रॉनिक मैन्युफैक्चरिंग के क्षेत्र में कारोबार वर्तमान 170 अरब
डॉलर से बढ़कर 2025 में 355 से 435 अरब डॉलर के बीच हो जाएगा। वित्तीय सेवाएं,
कृषि, शिक्षा, लॉजिस्टिक्स और खुदरा व्यापार इसके नए क्षेत्र होंगे। निर्माण,
विनिर्माण और कृषि ऐसे क्षेत्र हैं, जिनमें डिजिटल तकनीक प्रवेश कर रही है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (05-08-2019) को "नागपञ्चमी आज भी, श्रद्धा का आधार" (चर्चा अंक- 3418) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'