भारत के प्रति द्वेष और द्रोह की आग में जलता पाकिस्तान कश्मीर में बड़ी फौजी
कार्रवाई की हिम्मत भले ही न करे, पर अपने छाया-युद्ध को जरूर संचालित करता रहेगा।
दूसरी तरफ वह कश्मीर मामले के अंतरराष्ट्रीयकरण पर पूरी ताकत से जुट गया है। हालांकि
16 अगस्त को हुई सुरक्षा परिषद की एक अनौपचारिक बैठक के बाद किसी किस्म का औपचारिक
प्रस्ताव जारी नहीं हुआ, पर पाकिस्तानी कोशिशें खत्म नहीं हुईं हैं। पाकिस्तान इस
बैठक को कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण मानता है, गोकि बैठक में उपस्थित ज्यादातर
देशों ने इसे दोनों देशों के बीच का मामला बताया है।
इस बैठक में चीन की भूमिका खुलकर पाकिस्तान के पक्ष में थी और अब माना जा रहा
है कि रूस ने भी अपना परम्परागत
रुख बदला है। हालांकि जो जानकारी सामने आई है उसके अनुसार रूस, अमेरिका और फ्रांस ने चीनी प्रस्ताव को ब्लॉक किया था, पर रूसी प्रतिनिधि के एक ट्वीट के कारण कुछ संदेह पैदा हुए हैं। अलबत्ता यह बात स्भीपष्ट है कि ब्रिटेन ने इस बैठक में हुए विमर्श पर
एक औपचारिक दस्तावेज जारी करने का समर्थन किया था। औपचारिक दस्तावेज जारी होने से इस मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण खुलकर होता, जो पाकिस्तान की इच्छा थी।
इन बातों से लगता है कि भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय सम्पर्क को बेहतर बनाना होगा। पिछले दो हफ्तों के घटनाक्रम से स्पष्ट है कि हमें संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान से लड़ाई लड़नी होगी और सोशल मीडिया पर उसके दुष्प्रचार का जवाब भी देना होगा। वस्तुतः उसके पास कोई विकल्प नहीं है। वह सोशल मीडिया पर उल्टी-सीधी खबरें परोसकर गलतफहमियाँ पैदा करना चाहता है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने अपने स्वतंत्रता दिवस संदेश में यह बात कही भी है।
इन बातों से लगता है कि भारत को अपने अंतरराष्ट्रीय सम्पर्क को बेहतर बनाना होगा। पिछले दो हफ्तों के घटनाक्रम से स्पष्ट है कि हमें संयुक्त राष्ट्र और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान से लड़ाई लड़नी होगी और सोशल मीडिया पर उसके दुष्प्रचार का जवाब भी देना होगा। वस्तुतः उसके पास कोई विकल्प नहीं है। वह सोशल मीडिया पर उल्टी-सीधी खबरें परोसकर गलतफहमियाँ पैदा करना चाहता है। पाकिस्तानी राष्ट्रपति ने अपने स्वतंत्रता दिवस संदेश में यह बात कही भी है।
दोनों देशों के स्वतंत्रता दिवस के तौर-तरीकों से दोनों व्यवस्थाओं के अंतर को
देखा जा सकता है। पाकिस्तानी राजनेताओं ने युद्ध, हिंसा और कश्मीर के नाम पर
उन्मादी बयानों के अलावा रचनात्मक विचार व्यक्त नहीं किए, वहीं भारत के राष्ट्रपति
और प्रधानमंत्री के संबोधनों में राष्ट्र-निर्माण की बातें थीं। पाकिस्तानी
व्यवस्था अपनी जनता को एक खास तरह के जोशो-जुनून से जोड़कर रखना चाहती है।
दुनिया से गुहार
बुधवार 14 अगस्त को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान ने पाक अधिकृत कश्मीर
की असेम्बली के एक विशेष अधिवेशन में कहा, भारत अब हमारे कब्जे वाले कश्मीर को
जीतने की कोशिश करेगा। नरेन्द्र मोदी ने बड़ी गलती कर दी है और कश्मीर समस्या का
अंतरराष्ट्रीयकरण हो गया है। अब दुनिया की निगाहें कश्मीर और पाकिस्तान पर हैं।
इमरान ने कहा, कश्मीर को लेकर युद्ध हुआ, तो अंतरराष्ट्रीय समुदाय जिम्मेदार
होगा। सारी दुनिया, जिसमें मुस्लिम समुदाय भी शामिल है, अब संयुक्त राष्ट्र की ओर
देख रहे हैं। हमने यूएन में
याचिका डाली है। अंतरराष्ट्रीय अदालत में जाएंगे, दुनिया के हर मंच
पर जाएंगे। हमने दुनिया भर में मौजूद पाकिस्तानी और कश्मीरी समुदाय को इकट्ठा किया
है। लंदन में कश्मीर के लिए ऐतिहासिक संख्या में लोग बाहर निकलेंगे। अगले महीने
संयुक्त राष्ट्र महासभा में इतने लोग आपको दिखेंगे जितने पहले कभी नहीं देखे होंगे।
मंगलवार को पाकिस्तान ने सुरक्षा परिषद को औपचारिक
रूप से अर्जी देकर माँग की है कि जम्मू-कश्मीर की स्वायत्तता के संदर्भ में भारत
सरकार के फैसले से उत्पन्न परिस्थितियों पर विचार के लिए बैठक बुलाई जाए। चीन ने भी भारत-पाकिस्तान मसलों पर विचार के लिए बैठक बुलाने की माँग की है। इन
पंक्तियों के प्रकाशित होने तक संभवतः बंद कमरे में इस विषय पर बातचीत का एक दौर
हो भी गया होगा। इस विमर्श की परिणति क्या होगी? क्या सुरक्षा परिषद को भारतीय सांविधानिक व्यवस्थाओं के बारे में
विचार करना चाहिए? और यह भी कि पाकिस्तान की इन कोशिशों के जवाब
में भारत क्या करेगा?
अनुच्छेद 370 के बारे में भारत के फैसले के बाद पाकिस्तान ने तेजी से राजनयिक
गतिविधियाँ बढ़ाईं हैं। वह सुरक्षा
परिषद के 11 प्रस्तावों का हवाला फिर से देने लगा है। भारत ने भी सुरक्षा परिषद के
पाँच स्थायी सदस्य देशों के साथ सम्पर्क किया है और उन्हें बताया है कि भारत के
सांविधानिक उपबंधों के तहत यह बदलाव किया गया है। इसका किसी अंतरराष्ट्रीय संधि से
संबंध नहीं है। अमेरिका और रूस ने इसे भारत का आंतरिक मामला बताया है। चीन ने
लद्दाख को लेकर अपनी आपत्ति व्यक्त की है। अलबत्ता विदेशमंत्री एस जयशंकर ने फौरन
चीन जाकर अपनी स्थिति को स्पष्ट किया है।
अमेरिका और रूस की भूमिका
पाकिस्तान के साथ चीन के रिश्तों को देखते हुए यह
उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि वह भारतीय दृष्टिकोण का समर्थन करेगा। दूसरी तरफ
अमेरिका का दृष्टिकोण प्रत्यक्षतः भारत के पक्ष में है, पर दोनों देशों के सामरिक रिश्तों में इन दिनों ठहराव
है। यह ठहराव शस्त्रास्त्र की खरीद के कारण है। अमेरिका ने रूस से हवाई रक्षा
प्रणाली एस-400 की खरीद पर आपत्ति व्यक्त की है।
सन 2017 में अमेरिकी संसद ने ‘काउंटरिंग अमेरिकाज़ एडवर्सरीज़ थ्रू सैंक्शंस
एक्ट (काट्सा)’ एक्ट पास किया। मूलतः यह कानून रूस, ईरान और उत्तर कोरिया
के खिलाफ है। इसकी धारा 231 के तहत अमेरिकी राष्ट्रपति के पास की किसी भी देश पर 12 किस्म की पाबंदियाँ लगाने
का अधिकार है। अमेरिका ने रूस की 39 संस्थाओं को चिह्नित किया है, जिनके साथ कारोबार करने वालों को पाबंदियों का सामना करना पड़ेगा। इनमें
ज्यादातर संस्थाएं रक्षा उपकरणों को तैयार करती हैं। इनमें ही एस-400 बनाने वाली
संस्थाएं भी हैं।
अमेरिका की हिंद-प्रशांत नीति में भारत की केंद्रीय भूमिका है। चीनी उभार
रोकने के लिए जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के साथ चतुष्कोणीय
रक्षा सहयोग या क्वाड में भी भारत शामिल है। पर हम हाथ बचाकर चल रहे हैं। क्वाड के
लक्ष्य अभी पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। पिछले साल भारत और अमेरिका के बीच सैनिक
समन्वय और सहयोग के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण ‘कम्युनिकेशंस, कंपैटिबिलिटी, सिक्योरिटी एग्रीमेंट (कोमकासा)’
हो जाने के बाद यह साफ हो गया था कि दोनों के रिश्ते काफी गहराई तक जा चुके हैं।
हाल में अमेरिका ने भारत को नेटो सहयोगी के स्तर का दर्जा देने का इरादा जाहिर
किया था, पर अमेरिकी संसद ने उस दर्जे को अपेक्षित स्तर से कम ही रखा है। अब दोनों
देशों के बीच बेसिक एक्सचेंज एंड कोऑपरेशन एग्रीमेंट (बेका) की चर्चा है, जिसपर
पिछले साल सितंबर में दोनों देशों के बीच हुई टू प्लस टू वार्ता में विचार हुआ था।
यह समझौता दोनों देशों के सामरिक समझौतों की एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
अमेरिका के साथ सामरिक सहयोग और उसके अंतर्विरोध पाकिस्तान के संदर्भ में
इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि कश्मीर को लेकर वैश्विक संवाद में अमेरिका
महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। भारत का द्वंद्व यह है कि वह पूरी तरह अमेरिकी पाले
में खड़ा होने से बचता है। यही द्वंद्व सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) और
ईरान के अंतर्विरोधों के रूप में प्रकट होता है। दूसरी तरफ इसे भारतीय राजनय की
सफलता कहा जाएगा कि सऊदी अरब और यूएई ने कश्मीर के संदर्भ में ऐसा कोई बयान नहीं
दिया, जिससे भारत विचलित हो।
संरा की भूमिका
भारत को संरा में अपना पक्ष मजबूती से रखना होगा। कश्मीर
में जनमत संग्रह को लेकर बहुत गलतफहमियाँ हैं। मामले को संयुक्त राष्ट्र में भारत
लेकर गया था न कि पाकिस्तान। यह अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी फोरम पर कभी नहीं
उठा। भारत की सदाशयता के कारण पारित सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के एक अंश को
पाकिस्तान आज तक रह-रहकर उठाता रहा है, पर पूरी स्थिति को
कभी नहीं बताता। 13 अगस्त 1948 के प्रस्ताव को
लागू कराने को लेकर वह संज़ीदा था तो तभी पाकिस्तानी सेना वापस क्यों नहीं चली गई? प्रस्ताव के अनुसार पहला काम
उसे यही करना था।
संयुक्त
राष्ट्र प्रस्ताव अपनी मियाद खो चुका है और महत्व भी। सुरक्षा परिषद दिसम्बर 1948
में ही मान चुकी थी कि पाकिस्तान की दिलचस्पी सेना हटाने में नहीं है तो इसे भारत
पर भी लागू नहीं कराया जा सकता। दूसरे यह प्रस्ताव
संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 35 के तहत दोनों पक्षों की सहमति से तैयार हुआ
था। यह बाध्यकारी प्रस्ताव नहीं है। पाकिस्तान ने अब जो अनुरोध सुरक्षा परिषद से
किया है, वह भी अनुच्छेद 35 के तहत है।
जून
1972 के शिमला समझौते की तार्किक परिणति थी कि पाकिस्तान को इस मामले को
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाना बंद कर देना चाहिए था। शिमला में
औपचारिक रूप से पाकिस्तान ने इस बात को मान लिया कि दोनों देश आपसी बातचीत से इस मामले को सुलझाएंगे। पाकिस्तानी
नेताओं ने लम्बे अरसे तक इस सवाल को उठाना बंद रखा, पर पिछले एक दशक से उन्होंने इसे अंतरराष्ट्रीय
मंचों पर उठाना शुरू किया है।
समाचार
एजेंसी रायटर ने 18 दिसम्बर 2003 को परवेज़ मुशर्रफ के इंटरव्यू पर आधारित समाचार
जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा, ‘हमारा
देश संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को ‘किनारे रख चुका है’ (लेफ्ट एसाइड) और कश्मीर समस्या के समाधान के लिए आधा रास्ता खुद चलने
को तैयार है।’ यह बात आगरा शिखर वार्ता (14-16 जुलाई
2001) के बाद की है।
संसद में जम्मू-कश्मीर राज्य पुनर्गठन विधेयक पर चर्चा के
दौरान गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर भी हमारा है और
उसे हमें वापस लेना है। इसके पहले फरवरी 1994 में भारतीय संसद ने सर्वसम्मति से एक
प्रस्ताव पास करके कहा था कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहा है, और रहेगा तथा उसे देश के
बाकी हिस्सों से अलग करने के किसी भी प्रयास का विरोध किया जाएगा। पाकिस्तान बल पूर्वक कब्जाए हुए क्षेत्रों को
खाली करे।
दूसरी तरफ व्यावहारिक
सत्य यह भी है कि नियंत्रण रेखा पर आवागमन को स्वीकार करके एक
प्रकार से भारत सरकार ने उधर के कश्मीर के अस्तित्व को स्वीकार करना शुरू कर दिया था। 13 अप्रैल 1956
को जवाहर
लाल नेहरू ने कहा था, “मैं मानता हूँ कि युद्ध विराम रेखा के पार का
इलाका आपके पास रहे। हमारी इच्छा लड़ाई लड़कर उसे वापस लेने की नहीं है।”
पाकिस्तानी निराशा
क्या पाकिस्तान कश्मीर मामले का अंतरराष्ट्रीयकरण करने में
सफल होगा? उसे चीनी समर्थन मिलने के
बावजूद लगता नहीं कि उसे सफलता मिलेगी। चीन ने भी दोनों सीधी बातचीत से विवाद को
सुलझाने का सुझाव दिया है। पाकिस्तानी नेताओं के उन्मादी बयान अपने देश की जनता को
भरमाने के लिए हैं। पाकिस्तानी अखबार डॉन ने इस बात को अपने संपादकीय में स्वीकार किया है। अखबार ने लिखा है, ‘दुनिया ने पाकिस्तान की गुहार पर वैसी प्रतिक्रिया
व्यक्त नहीं की, जिसकी उम्मीद थी, बल्कि अमेरिका और यूएई ने तो भारत की इस बात को
माना है कि यह उसका आंतरिक मामला है।’
इमरान खान के उन्मादी भाषण के अलावा भी खबरें हैं कि
पाकिस्तान ने स्कर्दू हवाई अड्डे पर उपकरणों को पहुँचाना शुरू कर दिया है। खबरें यह भी हैं कि उसने वहाँ अपने
जेएफ-17 विमान तैनात किए हैं। अपनी पश्चिमी सीमा से सैनिकों को हटाकर पूर्वी सीमा
पर लाना शुरू कर दिया है वगैरह। पर वास्तव में पाकिस्तान की स्थिति इस समय सैनिक
कार्रवाई करने की नहीं है। सारा शोर-शराबा अंतरराष्ट्रीय समुदाय और अपने देश की
जनता का ध्यान खींचने के लिए है।
पाकिस्तान के एक पूर्व
हाई कमिश्नर अब्दुल बसीत ने अपने देश के किसी टीवी चैनल से कहा कि सन 2016 में
बुरहान वानी की मौत के बाद वे चाहते थे कि भारत के पत्रकारों में से कोई लिखे कि
कश्मीर समस्या के समाधान के लिए जनमत संग्रह कराना चाहिए. उनकी बात मानकर शोभा डे ने
अंग्रेजी के एक राष्ट्रीय अखबार में इस आशय का लेख लिख भी दिया. हालांकि शोभा डे
ने कहा है कि अब्दुल बसीत झूठ बोल रहे हैं, पर पाकिस्तानी राजनयिक क्या करना चाहते
हैं, यह तो समझ में आता ही है.
जिओ टीवी की एक क्लिप
सोशल मीडिया चल रही है, जिसमें पाकिस्तान के राजनेता मुशाहिद हुसेन एक डिस्कशन में
कह रहे हैं, ‘यह तबील जंग है. इसे संस्टेंड तरीके से चलाना
चाहिए। इंडिया बहुत बड़ा मुल्क है और हिन्दुस्तान के कई लोग आपके सिम्पैथाइजर भी
हैं। अरुंधती रॉय हैं, ममता बनर्जी हैं, कांग्रेस पार्टी है, कम्युनिस्ट पार्टी,
दलित पार्टियाँ…।’ पाकिस्तान के एक
मंत्री चौधरी फवाद हुसेन ने गुरूमुखी में ट्वीट करके भारतीय सेना के पंजाबी भाषी
सैनिकों को उकसाया है। यह दुष्प्रचार फर्जी नाम वाले हैंडल तो कर ही रहे हैं,
अच्छे खासे ब्लू डॉट वाले जनरल, नेता और पत्रकार भी इस काम में लगे हैं। ज्यादा
बड़ी लड़ाई प्रचार के इस मोर्चे पर है।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-08-2019) को "सुख की भोर" (चर्चा अंक- 3433) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'