पूर्व
प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह जब 2004 में प्रधानमंत्री बने थे, तब किसी ने उनके
बारे में लिखा था कि वे कभी अर्थशास्त्री रहे होंगे, पर अब वे खाँटी राजनीतिक नेता
हैं और सफल हैं। यह भी सच है कि उनकी सौम्य छवि ने हमेशा उनके राजनीतिक स्वरूप की
रक्षा की है और उन्हें राजनीति के अखाड़े में कभी बहुत ज्यादा घसीटा नहीं गया, पर
कांग्रेस पार्टी और खासतौर से नेहरू-गांधी परिवार के लिए वे बहुत उपयोगी नेता
साबित होते हैं। उन्होंने 1984 के दंगों के संदर्भ में
जो कुछ कहा है उसके अर्थ की गहराई में जाने की जरूरत महसूस हो रहा है। उन्होंने
कहा है कि तत्कालीन गृहमंत्री
पीवी नरसिम्हाराव ने इंद्र कुमार गुजराल की सलाह मानी होती तो दिल्ली में सिख
नरसंहार से बचा जा सकता था। यह बात उन्होंने दिल्ली में पूर्व प्रधानमंत्री इन्द्र
कुमार गुजराल की 100वीं जयंती पर आयोजित समारोह में कही।
मनमोहन सिंह ने
कहा, 'दिल्ली में जब 84 के सिख दंगे हो
रहे थे, गुजराल जी उस समय नरसिम्हाराव के पास गए थे। उन्होंने
राव से कहा कि स्थिति इतनी गम्भीर है कि जल्द से जल्द सेना को बुलाना आवश्यक है।
अगर राव गुजराल की सलाह मानकर जरूरी कार्रवाई करते तो शायद नरसंहार से बचा जा सकता
था।' मनमोहन सिंह
ने यह बात गुजराल साहब की सदाशयता के संदर्भ में ही कही होगी, पर इसके साथ ही
नरसिम्हाराव की रीति-नीति पर भी रोशनी पड़ती है। यह करीब-करीब वैसा ही आरोप है,
जैसा नरेन्द्र मोदी पर गुजरात के दंगों के संदर्भ में लगता है। सवाल है कि क्या
मनमोहन सिंह का इरादा नरसिम्हाराव पर उंगली उठाना है? या वे सीधेपन
में एक बात कह गए हैं, जिसके निहितार्थ पर उन्होंने विचार नहीं किया है?
मनमोहन सिंह की बात बहुत सरल होती, तो लोगों का ध्यान उस
तरफ नहीं जाता, पर इस बात की प्रतिक्रिया बहुत तेजी से हुई है। खासतौर से भारतीय
जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और केन्द्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उनकी प्रतिक्रिया का जो
जवाब दिया है, उससे उनके बयान की पृष्ठभूमि पर रोशनी पड़ती है। उन्होंने कहा कि डॉ.
मनमोहन सिंह को पता होना चाहिए कि सेना बुलाने का आदेश प्रधानमंत्री दे सकते हैं
और उस समय राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे। यह उनका काम था, लेकिन उन्होंने तो कहा कि
जब बड़ा पेड़ गिरता है तो धरती हिलती ही है। उन्होंने इतना ही नहीं कहा, बल्कि यह
भी कहा कि अगर नरसिम्हाराव इतने बुरे थे तो आप उनके मंत्रिमंडल में शामिल क्यों
हुए?
प्रकाश जावडेकर ने जो बात नहीं कही, वह यह है कि डॉ मनमोहन
सिंह का राजनीतिक कद नरसिम्हाराव ने ही बनाया। उन्हें वित्तमंत्री नहीं बनाया
होता, तो वे शायद प्रधानमंत्री भी नहीं बने होते। प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव रहे पीसी
अलेक्जेंडर अपनी आत्मकथा ‘थ्रू कॉरिडोर्स ऑफ पावर: एन इनसाइडर्स स्टोरी’ में लिखा
है कि राव उन्हें इशारा दे चुके थे कि वे डॉ मनमोहन सिंह को वित्तमंत्री बनाना
चाहते हैं। भारतीय राजनीति में नरसिम्हाराव की भूमिका पर पुस्तक ‘हाफ लायन-हाउ पीवी नरसिम्हा राव
ट्रांसफ़ॉर्म्ड इंडिया’ के लेखक विनय सीतापति ने एक इंटरव्यू में कहा था कि राव का
कांग्रेस और भारत के लिए सबसे बड़ा योगदान था डॉक्टर मनमोहन सिंह की खोज।
‘एक्सीडेंटल प्राइम
मिनिस्टर’ के लेखक संजय बारू ने
2015 में एक इंटरव्यू में कहा था कि मनमोहन सिंह अपने कार्यकाल में अटल बिहारी
वाजपेयी और पीवी नरसिम्हाराव को एकसाथ भारत रत्न देना चाहते थे, पर वे ऐसा कर
नहीं पाए। उनके अनुसार मनमोहन सिंह के मन में पीवी नरसिम्हाराव के प्रति
आदर भाव है, जो शायद कांग्रेस को स्वीकार नहीं
था। तब क्या यह माना जाए कि मनमोहन सिंह पार्टी नेतृत्व के सामने यह बात कहना
चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने यह मौका ढूँढा?
इसमें दो राय नहीं कि 1984 के दंगों का दाग कांग्रेस पार्टी
पर लगा हुआ है। खासतौर से 19 नवंबर, 1984 को राजीव गांधी उस बयान के
कारण जिसमें उन्होंने कहा था, जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो आसपास की धरती हिलती
है। बीजेपी और अकाली दल जैसे कई विरोधी दल अक्सर इस बयान को उधृत करते हैं। पार्टी
नेतृत्व ने कई बार सिख समुदाय से माफी मांगी है, पर दंगे का भूत कांग्रेस का पीछा
नहीं छोड़ रहा है। क्या यह माना जाए कि मनमोहन सिंह ने गुजराल की जयंती के मौके पर
इस दाग को नरसिम्हाराव के मत्थे मढ़ दिया है? यह बात छिपी हुई नहीं है कि सोनिया गांधी के मन
में नरसिम्हाराव के प्रति कहीं न कहीं कड़वाहट थी। शायद इसीलिए उनका अंतिम संस्कार
दिल्ली में नहीं हुआ और उनकी स्मृति में दिल्ली में कोई स्मारक नहीं बना।
मनमोहन सिंह के इस बयान पर नरसिम्हाराव के पोते एनवी सुभाष ने भी प्रतिक्रिया
दी है। सुभाष अब तेलंगाना में बीजेपी के साथ हैं। उन्होंने मनमोहन के बयान के जवाब
में कहा, क्या कोई गृहमंत्री कैबिनेट की मंजूरी के बिना कोई फैसला कर सकता है? नरसिम्हाराव के परिवार का हिस्सा होने की वजह
से मैं डॉ मनमोहन सिंह के बयान से काफी दुखी हूं। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता
है। यों भी यदि सेना को बुला लिया जाता तो तबाही मच जाती। सुभाष इस के पहले भी कांग्रेस
पर अपने दादा की अनदेखी का आरोप लगाते रहे हैं। उनका कहना है कि नेहरू-गांधी
परिवार पर ध्यान केंद्रित रखने के लिए कांग्रेस ने पीवी नरसिम्हा राव को दरकिनार किया।
पिछले दिनों 28
जून को नरसिम्हाराव की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट करके उन्हें
श्रद्धांजलि दी। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा, नरसिम्हाराव ने देश के विकास में
जो योगदान किया है, उन्हें हमेशा याद किया जाएगा। प्रधानमंत्री ने लोकसभा
के एक भाषण में नरसिम्हाराव का जिक्र करते हुए कहा कि कांग्रेस के भाषणों में
सिर्फ एक ही परिवार का गुणगान किया जाता है,
ना किसी ने
मनमोहन सिंह के योगदान को याद किया और ना ही नरसिम्हा राव को। क्या मनमोहन सिंह
अपनी पार्टी के प्रति वफादारी को साबित करना चाहते हैं? इतना सच है कि कांग्रेस पार्टी मनमोहन सिंह की
साख का लाभ उठाना जरूर चाहती है।
मनमोहन सिंह
सामान्यतः रोजमर्रा की राजनीति पर टिप्पणी नहीं करते हैं। कांग्रेस पार्टी ने
नोटबंदी को लेकर बीजेपी पर हमला बोला तो उसमें मनमोहन सिंह को भी शामिल किया।
नवम्बर 2016 में उन्होंने राज्यसभा में कहा, नोटबंदी का फैसला ‘संगठित लूट और कानूनी डाकाजनी’ (ऑर्गनाइज्ड
लूट एंड लीगलाइज्ड प्लंडर) है। वे अखबारों में लेख नहीं लिखते, पर पिछले तीन साल
में उन्होंने चेन्नई के एक अखबार में दो लेख लिखे हैं। पहला 2016 में नोटबंदी के
फौरन बाद और दूसरा हाल में देश में मंदी के हालात को लेकर लिखा है। बीजेपी की ओर
से भी उनपर हमले नहीं किए गए हैं, पर नोटबंदी के मौके पर उनकी शब्दावली का जवाब
नरेंद्र मोदी ने उनपर ‘रेनकोट पहन कर नहाने’ के रूपक का इस्तेमाल किया था। ताजा
बयान से उन्होंने कुछ और कड़े जवाबी बयानों को निमंत्रण दे दिया है।
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