Wednesday, December 25, 2019

चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ से जुड़ी चुनौतियाँ


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल लालकिले के प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के भाषण में रक्षा-व्यवस्था को लेकर एक बड़ी घोषणा की थी. उन्होंने कहा कि देश के पहले ‘चीफ ऑफ़ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस)’ की जल्द नियुक्ति की जाएगी. यह भी कहा कि सीडीएस थल सेना, नौसेना और वायु सेना के बीच तालमेल सुनिश्चित करेगा और उन्हें प्रभावी नेतृत्व देगा. नियुक्ति की वह घड़ी नजदीक आ गई है. मंगलवार को कैबिनेट ने इस पद को अपनी स्वीकृति भी दे दी. इस महीने के अंत में 31 दिसंबर को भारतीय सेना के वर्तमान सह-प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल मनोज मुकुंद नरवाने वर्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत से कार्यभार संभालेंगे, जो उस दिन सेवानिवृत्त हो रहे हैं.
इस नियुक्ति के बाद देखना होगा कि तीनों सेनाओं के लिए घोषित शिखर पद सीडीएस के रूप में किसकी नियुक्ति होगी. आमतौर पर इस पद के लिए निवृत्तमान सेनाध्यक्ष जनरल बिपिन रावत का नाम लिया जा रहा है. सीडीएस के रूप में उपयुक्त पात्र का चयन करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की अध्यक्षता में एक क्रियान्वयन समिति का गठन किया था. इस समिति ने अपनी सिफारिशें रक्षा मामलों से संबद्ध कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) को सौंप दी हैं.

सीडीएस की नियुक्ति भारतीय रक्षा-व्यवस्था के अंतर्गत एक बड़ी परिघटना होगी और इसे भावी रणनीतियों की दृष्टि से देखा जा रहा है. खासतौर से ऐसे समय में जब हम पाकिस्तान और चीन की दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं. भारतीय सेनाएं इस वक्त आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहीं हैं. स्पेस और सायबर स्पेस के रूप में दो नए आयाम आधुनिक रक्षा-परिदृश्य में और जुड़े हैं. इस वजह से सैन्य-संचालन की एकीकृत व्यवस्था की चुनौतियाँ बढ़ रहीं हैं. समन्वय के अनेक नए क्षेत्र उभर कर सामने आए हैं. मोटे तौर पर समन्वय के दो बड़े पहलू हैं. एक है सेनाओं और नागरिक प्रशासन का समन्वय और दूसरे तीनों सेनाओं के बीच तालमेल.
भावी युद्धों का न केवल तकनीकी परिदृश्य बदलने वाला है, बल्कि भौगोलिक क्षेत्र का विस्तार भी हो रहा है. भारतीय रक्षा-तंत्र अब पूर्व में दक्षिण चीन सागर तक और पश्चिम में अदन की खाड़ी से लेकर पूर्वी अफ्रीका के सुदूर दक्षिण तक सक्रिय है. सीडीएस की नियुक्ति इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि केंद्र सरकार को सैनिक मामलों में सलाह देने के एकल केंद्र (सिंगल पॉइंट) की भूमिका उसकी होगी, जो अभी नहीं है. रक्षा-प्रणाली की दृष्टि से इसे बहुत महत्वपूर्ण निर्णय माना जा रहा है.
सीडीएस का देश के नाभिकीय अस्त्रों पर प्रशासनिक नियंत्रण होगा और इसकी भूमिका तीनों सेनाओं की शक्ति के समेकन की होगी. माना जाता है कि इसके साथ देश की सेनाओं की एकीकृत कमान (यूनिफाइड थिएटर कमांड) का मार्ग प्रशस्त होगा, जैसा अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी सेनाओं में है. आधुनिक सामरिक एक्शन किसी भी एक भौगोलिक क्षेत्र में एकीकृत कमान में संचालित होते हैं. दूसरे साधनों के सदुपयोग और एक-दूसरे की पूरक फोर्स बनने की अवधारणा ने सेनाओं के बीच गहन समन्वय की आवश्यकता को रेखांकित किया है.
सामरिक तकनीक और रणनीतियाँ एकसाथ दो दिशाओं में जा रहीं हैं. एक तरफ विशेषज्ञता बढ़ रही है और दूसरी तरफ हर तरह के बलों के समन्वय की जरूरत बढ़ रही है, इसलिए इस पद की जिम्मेदारी जटिल और महत्वपूर्ण हो गई है. भविष्य के रक्षा परिदृश्य में जल, थल और आकाश के अलावा स्पेस और सायबर स्पेस का प्रवेश हुआ है. स्पेशल ऑपरेशंस के रूप में नई रणनीतियाँ भी सामने आई हैं.
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद की परिकल्पना लॉर्ड माउंटबेटन के जमाने से की जा रही है. सन 1982 में तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल केवी कृष्णराव ने इस पद के सृजन का सुझाव दिया था. व्यावहारिक रूप से इस पद की जरूरत सन 1999 के करगिल युद्ध में महसूस की गई, जब ऊँची पहाड़ियों पर बैठे घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए वायुसेना और थलसेना के समन्वय की जरूरत पड़ी. युद्ध के बाद के सुब्रह्मण्यम की अध्यक्षता में बनी करगिल समीक्षा समिति ने भी इस पद के सृजन की अनुशंसा की, जिसके बाद बने मंत्रिसमूह ने 2001 में सलाह दी कि सीडीएस का गठन किया जाए.
इसके बाद नरेश चंद्रा समिति (2012) और लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेकतकर कमेटी (2016) ने भी इसी आशय की सलाह दी. सन 2017 में रक्षा से संबद्ध कैबिनेट कमेटी (सीसीएस) ने सीडीएस की नियुक्ति के संदर्भ में विमर्श की प्रक्रिया शुरू की. करगिल समीक्षा समिति की सिफारिशों को मानते हुए पहले कदम के रूप में इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) का गठन 23 नवंबर, 2001 को कर भी दिया गया था, जो आज भी कार्य कर रहा है, पर सीडीएस की परिकल्पना ज्यादा विषद है.
अभी कुछ सवाल हैं, जिनका उत्तर सीडीएस की नियुक्ति के बाद मिलेगा. क्या सीडीएस की प्राथमिक भूमिका देश की सुरक्षा से जुड़े मामलों में रक्षामंत्री के माध्यम से प्रधानमंत्री और सरकार के मुख्य सलाहकार की होगी? क्या इस सिलसिले में प्रशासनिक नियमों में बदलाव किया जाएगा? कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी के संदर्भ में सीडीएस की भूमिका क्या होगी? इतना स्पष्ट है कि  सीडीएस की भूमिका नीतिगत होगी. ऑपरेशनल रेडीनेस का जिम्मा सेनाध्यक्षों के पास ही रहेगा. उसे नीतिगत नियंत्रण, नीतिगत दिशा और नीतिगत दृष्टि के लिहाज से देश की सशस्त्र सेनाओं के ‘हैड’ के रूप में देखा जाएगा.
सेनाओं संगठनात्मक संरचनाएं अपेक्षाकृत कठोर होती हैं. उनमें बदलाव धीरे-धीरे आता है. यों इंटीग्रेटेड डिफेंस स्टाफ (आईडीएस) के तहत देश में अंडमान निकोबार कमांड की स्थापना को दो दशक होने वाले हैं. अब जो बदलाव हो रहा है, वह गुणात्मक रूप से ज्यादा बड़ा है. अमेरिका में यूनिफाइड कॉम्बैटेंट कमांड की संरचना दूसरे विश्वयुद्ध के समय से है, पर उसमें निरंतर सुधार-संशोधन होता रहा है. देश के पहले सीडीएस की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि उन्हें रास्ते बनाने होंगे और परंपराएं स्थापित करनी होंगी. उन्हें तीनों सेनाओं के विश्वास को जीतना होगा, साथ ही उनका हौसला बढ़ाना होगा.

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