तीन तरह की
ताकतें मुसलमानों को डरा रहीं हैं। एक, सत्ता की राजनीति। इसमें दोनों तरह के
राजनीतिक दल शामिल हैं। जो सत्ता में हैं और जो सत्ता हासिल करना चाहते हैं। दूसरे,
मुसलमानों के बीच अपने नेतृत्व को कायम करने की कोशिश करने वाले लोग। और तीसरे कुछ
न्यस्त स्वार्थी तत्व, जिनका हित अराजकता पैदा करने से सधता है। समाज को
सांप्रदायिक आधार पर विभाजित करने के बाद ये लोग अपनी रोटियाँ सेंकते हैं। नागरिकता
संशोधन अधिनियम के विरोध में जब पूर्वोत्तर का आंदोलन थमने लगा था, दिल्ली के
जामिया मिलिया इस्लामिया और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों का आंदोलन
अचानक शुरू हुआ। और अब दिल्ली और उत्तर प्रदेश में एक लहर सी उठी है, जिसमें आधिकारिक रूप से 6
और गैर-सरकारी सूत्रों के अनुसार इससे कहीं ज्यादा लोगों की मौत हुई है। असम और
पूर्वोत्तर के आंदोलनों के पीछे के कारण वही नहीं हैं, जो दिल्ली, कर्नाटक और
उत्तर प्रदेश में नजर आ रहे हैं। यह आंदोलन मुसलमानों के मन में भय बैठाकर खड़ा किया
गया है। उन्हें भरोसा दिलाने की जरूरत है कि उनका अहित नहीं होगा। पर उन्हें डराया
गया है। कहीं न कहीं राजनीतिक ताकतें सक्रिय हैं। क्या वजह है कि राजस्थान,
छत्तीसगढ़, पंजाब और मध्य प्रदेश में आंदोलन खड़े नहीं हुए?
भारत के
मुसलमानों की हिफाजत की जिम्मेदारी बहुसंख्यक समुदाय की है। उनके साथ अन्याय नहीं
होना चाहिए, पर यह भी देखना होगा कि कोई ताकत है, जो हमें भीतर से कमजोर करना
चाहती है। क्या वजह है कि जो आंदोलनकारी नागरिकता संशोधन विधेयक और नागरिकता
रजिस्टर के बारे में कुछ नहीं जानते, वे रटी-रटाई बातें बोल रहे हैं कि सीएए+एनआरसी से मुसलमानों को खतरा है। शुक्रवार को दिन में जब
मीडिया प्रतिनिधि दिल्ली में जामा मस्जिद के पास जमा भीड़ से बात कर रहे थे, तब लोग
कह रहे थे कि 370 हटाया गया, हमसे तीन तलाक छीन लिया गया और बाबरी मस्जिद पर कब्जा
कर लिया गया। अब हमें निकालने की साजिश की जा रही है।
सच यह है कि पूरे
देश की एनआरसी की बात अभी तक हवा में है। ऐसे
किसी कानून का दस्तावेज छोड़, उसकी रूपरेखा भी कहीं नहीं है। बेशक
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि हम एनआरसी लाएंगे, पर उसमें क्या होगा, यह तो
नहीं बताया। यह भी सच है कि सरकार ने स्पष्टीकरण देने में देरी की, पर किसी को
आंदोलन खड़ा करने की जल्दी थी। असम की एनआरसी की वजह से कुछ लोगों का कयास है
कि उसकी कटऑफ1947 या 1971 होगी। कुछ मानते हैं कि दिसंबर 2014 होगी। नागरिकता
संशोधन विधेयक को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई है। उसके फैसले का भी इंतजार
करें।
शुक्रवार को
असदुद्दीन ओवेसी कहीं कह रहे थे कि सरकार ने एनपीआर के जरिए यह काम शुरू कर ही
दिया है। नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर का फैसला इस सरकार का नहीं है, बल्कि 2011 की
जनगणना में यह काम शुरू हो चुका है। हरेक घर के सदस्यों की संख्या और गृहस्वामी का
नाम इस रजिस्टर में है। आधार, राशन कार्ड
और वोटर पहचान पत्र भी प्रचलन में हैं। इस दौरान सरकारी सूत्रों ने स्पष्ट किया है
कि उपरोक्त तीनों के आधार पर पहचान की जा सकती है।
अभी तो राष्ट्रीय
स्तर पर एनआरसी की बात ही नहीं है, पर यदि हो भी तो हमारे पास असम में पैदा हुई
अड़चनों को दूर करने का मौका है। संसद की समितियों के माध्यम से उन सवालों को
उठाया जा सकता है, जो सड़क पर उठाए जा रहे हैं। इन सबके ऊपर हमारा सुप्रीम कोर्ट
है। उसपर भी भरोसा करना चाहिए। अभी असम के मसले का कोई हल नहीं निकला है। उसका हल
भी सुप्रीम कोर्ट को ही देना है, क्योंकि वहाँ एनआरसी बन जाने के बाद अब क्या
होगा, इसे भी तो तय करना है।
आंदोलन से जुड़ी,
जो तस्वीरें सामने आई हैं, उनसे इसके दो पहलू उजागर हुए हैं। पहला है कि आगजनी और
हिंसा का और दूसरा है पुलिस की कठोर
कार्रवाई का। इस मामले ने भी सुप्रीम में दस्तक दी है। वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह की
अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई को तो तैयार हुई, पर चीफ जस्टिस शरद अरविंद बोबडे
ने हिंसा को लेकर अपनी नाराजगी भी जाहिर की और कहा कि हिंसा रुकने पर ही सुनवाई
होगी। छात्रों ने कहा कि हिंसा हमने नहीं की है, बल्कि बाहरी लोग हैं। कौन हैं
बाहरी लोग? वे कहाँ से आए हैं और
विश्वविद्यालय में उनकी दिलचस्पी क्यों है? जामिया के बाद सीलमपुर में पत्थरबाजी किसने की? लखनऊ, गाजियाबाद, मेरठ, फिरोजाबाद, गोरखपुर, सीतापुर,
सम्भल, मुरादाबाद, बुलंदशहर, कानपुर, हापुड़ वगैरह-वगैरह में इतनी भीड़ कहाँ से निकल
कर बाहर आई?
लोकतांत्रिक
व्यवस्था में शांतिपूर्ण विरोध हमारा सांविधानिक अधिकार है, पर इस अधिकार का
इस्तेमाल सांविधानिक तरीके से ही होना चाहिए। बसों और निजी वाहनों को आग लगाना कैसा
विरोध प्रदर्शन है? उधर ममता बनर्जी कोलकाता
में प्रदर्शन कर रहीं हैं। उनके पास इस बात की जवाब नहीं है कि ट्रेनों में आग
लगाने का काम कौन लोग कर रहे हैं? रेल की पटरियाँ कौन उखाड़ रहा है?
दिल्ली का जामिया-आंदोलन
शांतिपूर्ण तरीके से ही शुरू हुआ था, पर अचानक यह हिंसक हो गया। किसी ने इसे
हाईजैक कर लिया। किसने हाईजैक कर लिया और क्यों? नागरिकता रजिस्टर के नाम पर
मुसलमानों को डराना एक प्रकार की राजनीति है। देश का बहुमत कभी नहीं चाहेगा कि
मुसलमानों को डराया और सताया जाए। पूरी कौम के मन में दहशत फैलाना कम खतरनाक नहीं
है। इससे हमारा सामाजिक ताना-बाना टूटता है। सरकार जब इंटरनेट सेवा बंद करती है, तो उसकी आलोचना
होती है। हमें यह भी तो देखना चाहिए कि ऐसे हालात क्योंकर पैदा हुए।
दिल्ली पुलिस की स्पेशल ब्रांच ने रविवार के मार्च के एक दिन पहले दक्षिण
पूर्व जिले की पुलिस को पत्र भेजकर सूचित किया था कि इस बात का अंदेशा है कि
आंदोलन में बड़े स्तर पर हिंसा हो और इस बात की कोशिश की जाए कि यह किसी तरह से
काबू के बाहर हो जाए। छात्रों ने आसपास के क्षेत्रों की जनता को आंदोलन से जोड़ने
के बहाने इस मार्च की योजना बनाई थी। इस मार्च के दौरान उसमें शामिल कुछ लोगों ने
कोशिश की कि उसे संसद भवन तक ले जाया जाए। हालात जब बिगड़े तब पुलिस ने शाम को
कैम्पस में प्रवेश किया। अक्सर ऐसे आंदोलनों में असामाजिक तत्व अपना काम करके निकल
जाते हैं और निर्दोष मार खाते हैं। पर यह सवाल तो है कि आंदोलन को कैम्पस से बाहर
क्यों ले जाया गया? इसमें राजनीतिक तत्व
शामिल क्यों हुए? शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन स्वस्थ लोकतंत्र की निशानी है,
पर एक रैली में दर्जनों वाहनों का फुँक जाना भी खतरनाक खबर है।
विचारणीय ये भी है कि जितने भी हिंसक आंदोलन हो रहे हैं वे गैर कोंग्रेसी सरकारों के राज्यों में हो रहे हैं , आखिर क्यों ? कांग्रेस मुसलमानों में अनावश्यक भय पैदा कर सत्ता पाने के लिए राष्ट्र व समाज को बांटने का घिनोना काम कर रही है , हालांकि कुछ स्वपोषित बुद्धिजीवी व कांग्रेस की विचार धारा में विश्वास रखने वाले लोग जो खुद को इतिहास कार , संविधान विशेज्ञय , जताते रहे हैं उनका दृष्टिकोण भी निष्पक्ष नहीं रहा है , जो निश्चित ही निंदनीय है
ReplyDeleteमुसलमान भी अपनी संकीर्ण पृष्टभूमि से निकल कर समझते हुए भी समझने को तैयार नहीं हैं ,उनके तथाकथित नेता भी केवल कबीलाई राजनीतिkar उन पर अपना अधिकार समझते रहे हैं व उन्हें बरगलाते रहे हैं
सब से बड़ी विडंबना तो ये रही है है कि भारत में १९४७ के बाद कोई भी ऐसा मुस्लिम नेता नहीं हुआ जो धर्म, जाति व क्षेत्रीयता से ऊपर उठ कर मुसलमानों को सही नेतृत्व दे सका हो
कांग्रेस ने हमेशा यही दिखाया कि मुसलमानों की हिन्दुओं से रक्षा करनी है जब कि ऐसा कोई खतरा कभी था ही नहीं , यह दिखा कर वह हमेशा उन्हें वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल करती रही है और कर रही है ,इस दृष्टि से वस्तुतः तो देश में साम्प्रदायिक पार्टी यदि कोई है तो वह कांग्रेस ही है जो आज पदच्युत होने के बाद देश को गुमराह कर रही है