इस साल फरवरी में हुए पुलवामा हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को माकूल जवाब
देने के लिए कई तरह के विकल्पों पर विचार किया और फिर ‘ऑपरेशन बंदर’ की योजना बनाई गई। इसकी जिम्मेदारी
वायुसेना को मिली। भारतीय वायुसेना ने सन 1971 के बाद पहली बार अपनी सीमा पर
करके पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश किया।
सन 1999 के करगिल अभियान के बाद यह अपनी तरह का सबसे बड़ा और जटिल अभियान था। तकनीकी
योजना तथा आधुनिक अस्त्रों के इस्तेमाल के विचार से यह हाल के वर्षों में इसे भारत
के ही नहीं दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में शामिल किया जाएगा। दिसंबर 2001 में संसद पर
हुए हमले के बाद अगस्त 2002 में एक मौका ऐसा आया था, जब वायुसेना ने नियंत्रण रेखा
के उस पार पाकिस्तानी ठिकाने पर हवाई हमला और किया था, पर उसका
आधिकारिक विवरण सामने नहीं आया। अलबत्ता पिछले वायुसेनाध्यक्ष ने उसका उल्लेख जरूर
किया।
वायुसेना का संधिकाल
भारतीय वायुसेना के सामने
बालाकोट अभियान एक बड़ी चुनौती थी, जिसका निर्वाह उसने सफलतापूर्वक किया। वह आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रही है। एक
अर्थ में वह अपने संधिकाल में है। नए लड़ाकू विमान उसे समय से नहीं मिल पाए। पुराने विमान
सेवा-निवृत्त होते चले गए। उसके पास लड़ाकू विमानों के 42 स्क्वॉड्रन होने चाहिए, पर
उनकी संख्या घटते-घटते 32 के आसपास आ गई है।
ध्यान देने वाली बात यह है कि सन 1985 में वायुसेना के पास लड़ाकू विमानों के 42
स्क्वॉड्रन थे, जबकि उस समय हमारे सामने व्यावहारिक खतरा केवल पाकिस्तान का था। अब
यह माना जा रहा है कि इन दोनों के साथ एक ही समय में हमें युद्ध लड़ना पड़ सकता
है। मिग-21 और मिग-27 विमानों को लगातार सेवा से हटाया जा
रहा है, क्योंकि वे निर्धारित समय से ज्यादा लंबी सेवाएं दे चुके हैं।
आगामी 8 अक्तूबर को देश बड़े गौरव के साथ भारतीय वायुसेना की
87वीं वर्षगांठ मनाएगा। नए वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल राकेश कुमार सिंह
भदौरिया ने एक सप्ताह पूर्व ही वायुसेना की कमान संभाली है। इस साल वायुसेना दिवस पर देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह फ्रांस में भारतीय वायुसेना
के पहले राफेल विमान को ग्रहण करेंगे। इस
दृष्टि से इस बार का वायुसेना दिवस विशेष बन जाता है। इस विमान के शामिल हो जाने
के बाद हमारी वायुसेना की शक्ति-सामर्थ्य कहीं ज्यादा बढ़
जाएगी।
नए विमानों का आगमन
भारतीय वायुसेना के पास इस
समय एसयू-30एमकेआई (सुखोई), मिराज-2000 और जैगुआर विमानों का सहारा है। इनमें अपेक्षाकृत
सबसे नए विमान सुखोई हैं, जो हमारी मुख्य ताकत हैं। इन्हें रूस के साथ किए गए
अनुबंध के अनुसार भारत में ही बनाया जा रहा है। देश के मीडियम मल्टीरोल कॉम्बैट
एयरक्राफ्ट कार्यक्रम (एमएमआरसीए) में विलंब होने के कारण संभावना है कि सुखोई
के कुछ अतिरिक्त स्क्वॉड्रन तैयार किए जाएं।
वायुसेना ने सन 2001 में
126 विमानों की जरूरत बताई थी। लम्बे समय तक दुनिया के छह नामी विमानों के परीक्षण
हुए। अंततः 31 जनवरी 2012 को सरकार ने घोषणा की दासो राफेल सबसे उपयुक्त है, पर 5
फरवरी 2014 को तत्कालीन सरकार ने कहा कि इस वित्त वर्ष में
सरकार के पास इतना पैसा नहीं बचा कि समझौता कर सकें। सौदे के तहत 16 तैयारशुदा
विमान फ्रांस से आने थे और 108 लाइसेंस के तहत एचएएल में बनाए जाने थे। घोषणा के
बावजूद समझौता नहीं हुआ। इसके बाद 2016 में एक और समझौता हुआ, जिसके तहत 36 विमान
सीधे फ्रांस से बनकर आएंगे।
इन विमानों के अलावा 114
विमानों की खरीद के लिए एक नई प्रक्रिया शुरू हुई है। ये विमान विदेशी और भारतीय
विमान कंपनियों के सहयोग से भारत में ही बनेंगे। अब जल्द ही यह तय होगा कि कौन सा विमान भारत
में बनाया जाएगा। दूसरी तरफ वायुसेना के लिए स्वदेशी विमान के विकास के प्रयास भी
चल रहे हैं। तेजस विमान भी धीरे-धीरे वायुसेना में शामिल हो रहे हैं। वायुसेना
जल्द 83 और तेजस विमानों के निर्माण का आदेश एचएएल को देने
वाली है। तेजस का नवीनतम संस्करण मार्क-1ए है। इसके बाद मार्क-2 के निर्माण की
योजना है। उसके साथ ही पाँचवीं पीढ़ी के स्वदेशी युद्धक विमान का कार्यक्रम भी
है।
नए हेलिकॉप्टर
पिछले महीने अमेरिका से खरीदे गए 8 अपाचे हेलिकॉप्टर वायुसेना के बेड़े में शामिल हुए थे, जो पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर तैनात हुए हैं। ये लड़ाकू हेलिकॉप्टर हैं, जिनकी
आवश्यकता खासतौर से छाया-युद्धों में पड़ेगी। भारत का 2015 में अमेरिका और बोइंग कंपनी से 22 अपाचे खरीदने का करार हुआ था। 2020 तक ये सभी हमें मिल जाएंगे। इनमें
से 11पाक सीमा पर और 11चीन सीमा के साथ असम के जोरहाट में तैनात किए जाएंगे। एएच 64ई अपाचे दुनिया के सबसे एडवांस मल्टी कॉम्बैट हेलिकाप्टर हैं। उधर हमारे स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर भी वायुसेना और थलसेना
दोनों के लिए तैयार हो रहे हैं।
इसके पहले इस साल मार्च
में भारतीय वायुसेना ने अमेरिका से चार चिनूक हैवी लिफ्ट
हेलिकॉप्टर प्राप्त किए थे।
इस हेलीकॉप्टर की मदद से भारतीय वायुसेना ऊंचे और दुर्गम इलाकों में भारी भरकम
साजो सामान ले जाने में सक्षम हो सकेगी। भारत ने सितंबर 2015 में बोइंग के साथ 15
सीएच-47एफ़ चिनूक हेलीकॉप्टर खरीदने का करार किया था। इन 15 में से चार मिल गए
हैं। शेष अगले साल तक मिल जाएंगे। यह हेलिकॉप्टर खासतौर से चीन के साथ लगी पहाड़ी
सीमा पर कारगर होगा, जहाँ तेजी से तोपें और बख्तरबंद गाड़ियाँ इसकी मदद से उतारी
जा सकती हैं।
आधुनिकतम तकनीक
बालाकोट अभियान के दौरान
भारतीय वायुसेना ने अपनी कुछ आधुनिकतम तकनीकों का परीक्षण भी करके देखा। पिछले कुछ वर्षों में वायुसेना ने नेटवर्क सेंट्रिसिटी से जुड़ी तकनीक हासिल
की है। वायुसेना ने स्पाइस-2000 बमों का इस्तेमाल किया, जिनमें लक्ष्य की भौगोलिक
स्थिति से जुड़े विवरण (जियो कोऑर्डिनेट्स) को फीड किया जाता है और फिर से अपने आप
उस ठिकाने पर अचूक वार करते हैं। बालाकोट अभियान में हमारे उपग्रह जीसैट-7ए और एयरबोर्न अर्ली वॉर्निंग एंड कंट्रोल (एवॉक्स) विमान की भूमिका भी थी। इस
नेटवर्क में तस्वीरों और वीडियो के संग्रहण और संप्रेषण की व्यवस्थाएं होती हैं। पूरा
संचार सिक्योर रेडियो लिंक पर होता है। भारतीय
वायुसेना का अपना इंटीग्रेटेड एयर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम (आईएसीसीएस) है, जो
सारी प्रणाली का समन्वय करता है।
भविष्य के युद्धों में वायुसेना की महत्वपूर्ण भूमिका होने वाली है। एक समय तक
माना जाता था कि माना जाता है कि वायुसेना का काम थलसेना और नौसेना की सहायता करना है। पर अब
माना जाता है कि वायुसेना अकेले ही युद्ध में निर्णायक विजय दिला सकती है।
वायुसेना के एक पूर्व अध्यक्ष
एनएके ब्राउन ने कुछ साल पहले कहा था कि सन 1962 में हमने वायुसेना की मदद ली होती, तो कहानी कुछ और होती। और यह भी
कहा कि सन 1999 में वायुसेना से मदद नहीं ली होती, तो लड़ाई महीनों चलती। आज भी यह
विषय चर्चा में है।
आज के युद्धों में तकनीक का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ चुका है। इस तकनीकी
विकास में वायुसेनाओं की भूमिका सबसे आगे हैं, क्योंकि वे जमीन से आसमान तक और
सागरों के ऊपर भी उड़ान भरती हैं। नौसेनाओं और थलसेनाओं की अपनी उड्डयन शाखाएं
विकसित हो रही हैं। ड्रोन की तकनीक के विकास ने इसे एक अलग आयाम दिया है। इंटरनेट
तथा उपग्रहों की भागीदारी ने इसे नई दिशा दी है।
विमान ही नहीं उपकरण भी
केवल आधुनिक विमानों को हासिल करने मात्र से वायुसेना की ताकत नहीं बढ़ती।
उनपर लगे उपकरण मसलन एवियॉनिक्स, रेडार, सीकर, बियांड विजुअल रेंज (बीवीआर)
मिसाइलें और स्मार्ट बम उसे महत्वपूर्ण बनाते हैं। उदाहरण के लिए राफेल विमानों के
साथ जो स्कैल्प और मीटियर मिसाइलें आएंगी, वे हमारी
वायुसेना को विशेष बनाएंगी। वायुसेना दिवस के अवसर पर यह समाचार भी सुखद है
कि हमारी अपनी बीवीआर अस्त्र प्रणाली भी तैयार है। आक्रामक क्षमताओं के अलावा एयर डिफेंस और सुरक्षा से जुड़ी दूसरी तकनीकों का
भी महत्व है। रूस से खरीदी जा
रही ए-400 मिसाइल प्रणाली के अलावा हमारा स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम भी तैयार है।
पूर्व वायुसेनाध्यक्ष एयर चीफ मार्शल एस कृष्णास्वामी
ने हाल में लिखा है कि बालाकोट अभियान से स्पष्ट हो गया कि भारतीय
वायुसेना को भविष्य में किस प्रकार के ऑपरेशंस पर जाना होगा। प्रिसीशन, स्पीड और
स्टैल्थ वक्त की जरूरत है, जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। बालाकोट के हवाई युद्ध
में नुकसान का अनुपात 1:1 था, यदि हमें
अपनी आक्रामक क्षमता को बनाए रखना है, तो लक्ष्य हमारे पक्ष में ज्यादा नहीं तो कम
से कम 3:1 का होना चाहिए। हम विमान या कर्मियों का खोना
बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं।
हमारी वायुसेना का
ध्येय-वाक्य ‘नभःस्पृशं दीप्तम’ श्रीमद्भगवत गीता के ग्यारहवें अध्याय से लिया गया
है, जिसका अर्थ है, आप का रूप आकाश तक दमक रहा है। कृष्ण
का विराट रूप देखकर अर्जुन ने यह बात कही है। अपनी वायुसेना के इस विराट रूप को
देखकर देश मुग्ध है और उसे सफलता की ऊँचाइयों पर ही देखना चाहता है।
No comments:
Post a Comment