भारत और
पाकिस्तान के रिश्तों में ज्वार-भाटा जैसा तेज उतार-चढ़ाव आता है. यह जितनी तेजी से आता
है, उतनी ही तेजी
से उतर जाता है. पिछले एक साल में दोनों देशों के
बीच तनाव और टकराव की बातों के साथ-साथ करतारपुर कॉरिडोर के मार्फत दोनों को जोड़ने की बातें भी चल
रही हैं. उम्मीद है कि नवम्बर में गुरुनानक देव की 550वीं जयंती के
अवसर पर यह गलियारा खुलने के बाद एक नया अध्याय शुरू होगा. केंद्रीय मंत्री
हरसिमरत कौर बादल ने जानकारी दी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 8 नवंबर को
करतारपुर कॉरिडोर का उद्घाटन करेंगे.72 साल की कड़वाहट के बीच खुशनुमा हवा का यह
झोंका आया है.
करतारपुर गलियारा सिखों के पवित्र डेरा बाबा नानक साहिब और गुरुद्वारा दरबार
साहिब करतारपुर को जोड़ेगा. करीब 4.7 किलोमीटर लम्बे इस मार्ग से भारत के
श्रद्धालु बगैर वीजा के पाकिस्तान स्थित गुरुद्वारे तक जा सकेंगे. इस गलियारे का
प्रस्ताव एक अरसे से चल रहा है, पर पिछले साल दोनों देशों ने मिलकर इस गलियारे के
निर्माण की योजना बनाई. दोनों देशों के बीच धार्मिक पर्यटन की बेहतरीन संभावनाएं हैं, पर किसी न किसी
कारण से इनमें अड़ंगा लग जाता है.
केवल सिखों के ही
नहीं हिन्दुओं के तमाम तीर्थ पाकिस्तान में हैं और अजमेर शरीफ जैसे अनेक पवित्र
स्थान भारत में हैं, जहाँ पाकिस्तानी श्रद्धालु भारत आना चाहते हैं. इन प्रयासों
के पीछे तमाम मानवीय कारण हैं, पर संकीर्ण राजनीति इन पर पानी फेर देती है. अब जब करतारपुर
कॉरिडोर के खुलने का वक्त करीब आ गया है, कई प्रकार के संदेह व्यक्त किए जा रहे
हैं.
हाल में खबर थी
कि पाकिस्तान ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को इस अवसर पर होने वाले
समारोह में भाग लेने का निमंत्रण दिया है. भारत से महत्वपूर्ण व्यक्तियों को इस
मौके पर जाना ही चाहिए. अभी तक पाकिस्तान ने अपनी तरफ से समारोह की तारीख की घोषणा
नहीं की है, पर 9 नवम्बर के पहले ही होगा. हाल में पंजाब
सरकार ने कहा था कि मनमोहन सिंह करतारपुर साहिब जाने वाले पहले सिख
जत्थे में शामिल होंगे. पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उन्हें इस
जत्थे में शामिल होने का न्योता दिया था.
इस कार्यक्रम को
दोनों देशों के बीच के विवाद से दूर ही रखना चाहिए, पर पिछले एक साल का अनुभव है
कि ऐसा करना काफी मुश्किल होगा. बेहतर हो कि इस कार्यक्रम के मार्फत दोनों के बीच
सद्भावना और विश्वास का माहौल बनाया जाए. पर अंदेशा है कि इसके मार्फत कड़वाहट
पैदा करने की कोशिशें भी होंगी. हाल में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के गवर्नर चौधरी
मुहम्मद सरवर ने एक भारतीय समाचार पत्र से कहा कि यह शुद्ध धार्मिक कार्यक्रम है
और हम इस मौके का राजनीतिक इस्तेमाल नहीं होने देंगे.
इस बात पर कैसे
भरोसा किया जाए, जबकि पिछले साल हुए कार्यक्रम को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की
गई थी. आशंका इस बात की है कि पाकिस्तान स्थित कुछ अलगाववादी तत्व इस मौके का
फायदा उठाने की कोशिश करेंगे. पाकिस्तान ने अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में
स्थायी रूप से बसे सिखों को भी 45 दिन का मल्टीपल एंट्री वीजा दिया है. ज्यादातर
यात्री पवित्र भावना से आएंगे, पर उनकी आड़ में अवांछित तत्व भी आ सकते हैं.
पिछले साल ही इस
बात की शिकायतें थीं कि आईएसआई के सूत्रधारों ने
पूरे इलाके में भारतीय व्यवस्था के प्रति जहर भरना शुरू कर दिया है. कश्मीर में ही
नहीं, वे पंजाब में खत्म हो चुके खालिस्तानी-आंदोलन में फिर से जान डालने का
प्रयास कर रहे हैं. इसके लिए उन्होंने अमेरिका में सक्रिय कुछ लोगों की मदद से रेफरेंडम-2020
नाम से एक अभियान शुरू किया है. उन्हें अपना ठिकाना उपलब्ध कराया है.
पाकिस्तान के साथ अतीत का अनुभव अच्छा नहीं है. पिछले साल पाकिस्तान के विदेशमंत्री
शाह महमूद कुरैशी ने करतारपुर कॉरिडोर को पाकिस्तानी गुगली की संज्ञा दी
थी. उस बयान से पाकिस्तानी दुर्भावना टपक रही थी. उन्होंने कहा कि इमरान खान ने करतारपुर
गलियारे के लिए आधारशिला कार्यक्रम में भारत की मौजूदगी सुनिश्चित करने के लिए
‘गुगली'
फेंकी है. कुरैशी का गुगली से उनका
आशय जो भी रहा हो, तत्कालीन विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि इससे कुरैशी बेनकाब हो
गए हैं. पाकिस्तान के मन में सिख भावनाओं के प्रति कोई सम्मान
नहीं है.
सुषमा ने कई
ट्वीट किए, जिनमें उन्होंने कहा, पाकिस्तान के विदेश मंत्री जी आपकी नाटकीय 'गुगली' टिप्पणियों से पता
चलता है कि आपके मन में सिख भावनाओं के प्रति कोई सम्मान नहीं है. आप केवल ‘गुगली' फेंकते हैं. संयोग से जिस
दिन भारत में करतारपुर कॉरिडोर की आधारशिला रखी जा रही थी, मुम्बई हमले की दसवीं
वर्षगाँठ भी थी.
भारत की तरफ
से कहा जा रहा था कि जबतक पाकिस्तान
आतंकवादी गतिविधियों पर रोक नहीं लगाता, तबतक बातचीत संभव नहीं है. शायद इसी बात
के जवाब में इमरान खान ने भारतीय पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि जो मेरे
पहले हो गया, मैं उसके बारे में कुछ नहीं कह सकता, अलबत्ता मैं चाहता हूँ कि हम
भविष्य की ओर देखें. कौन जानता था कि निकट भविष्य में ही पुलवामा कांड होने वाला है. संयोग से जिस दिन भारत
में करतारपुर कॉरिडोर की आधारशिला रखी जा रही थी, मुम्बई हमले की दसवीं वर्षगाँठ
भी थी.
संगीत,
सिनेमा, साहित्य, खेल, खान-पान और संस्कृति के तमाम आयाम दोनों समाजों को
जोड़ते हैं. पिछले साल पंजाब विधानसभा ने एक
प्रस्ताव पास किया कि करतारपुर साहब गुरुद्वारे को भारत में लाने के लिए दोनों देश
जमीन की अदला-बदली के बारे में समझौता करें. दोनों देश सहमत हों,
तो कॉरिडोर बनाने के बजाय सीमा का पुनर्निर्धारण इस तरह किया जा सकता है कि
करतारपुर साहब भारत में आ जाए. हाल में भारत और बांग्लादेश ने अपनी सीमा
पर इस प्रकार का समझौता किया भी है. ज़मीन की अदला-बदली के बारे में 1969 में भी बात चली थी,
लेकिन 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान ये बातचीत रुक गई.
बहुत अच्छी पहल
ReplyDeleteविश्व के लोगों में आपसी सौहार्द्धपूर्ण वातावरण बना रहें, यही तो गुरु नानक जी की सच्ची शिक्षा है
सार्थक चर्चा।
ReplyDeleteमंथन देती ।