मंजुल का कार्टून |
फेसबुक पर बीबीसी हिंदी के पेज पर एक पाठक की प्रतिक्रियाः-
कमाल जनता है मेरे देश की
जब आन्दोलन कर
रहे थे तो कहने लगे
रहे थे तो कहने लगे
अनशन आन्दोलन से कुछ नही होगा पार्टी बनाइये चुनाव लड़िये!
चुनाव लड़ने लगे तो कहने लगे,
चुनाव लड़ने लगे तो कहने लगे,
नौसिखिये हैं, बुरी तरह हारेंगे!
चुनाव जीत गये तो कहते हैं,
सत्ता के भूखे हैं!
सत्ता छोड़ के विपक्ष मे बैठने लगे तो कहते हैं,
के जनता को किये वादे पूरे नहीं कर सकते इसलिये डर गये!
जनता को किये वादे पूरे करने के लिये सरकार बनाने लगे
जनता को किये वादे पूरे करने के लिये सरकार बनाने लगे
तो कहते हैं के
जनता को धोखा दे कर कांग्रेस से हाथ मिला लिया!
जनता को धोखा दे कर कांग्रेस से हाथ मिला लिया!
जनता से पूछने गये की क्या कांग्रेस से समर्थन लेके सरकार सरकार बना सकते हैं,
तो कहते है
की क्या हर काम अब जनता से पूछ के होगा!
मेरे भाई आखिर चाहते क्या हो?
की क्या हर काम अब जनता से पूछ के होगा!
मेरे भाई आखिर चाहते क्या हो?
इतने सवाल 50 सालों मे कांग्रेस भाजपा से कर लेते
तो आज आम आदमी पार्टी की
अल्पमत की सरकार : मेरे विचार में दिल्ली में बनने जा रही "आप" की सरकार को गठबंधन या समर्थन की सरकार के बतौर देखना गलत है, ये सीधे-सीधे अल्पमत की सरकार है जो चुनाव परिणाम आने के बाद रिफ्रेँडम द्वारा जनता के बहुमत की इच्छा के आधार पर बनाया जा रहा है, और इसीलिए आज मजबूरी में कौन इसे समर्थन दे रहा है और कौन नहीं ये महत्वपूर्ण ही नहीं है बल्कि ज्यादा दिलचस्प और निर्णायक तो ये देखना होगा कि कौन पार्टी इस अल्पमत की सरकार को गिराने का दुस्साहस करती है, क्योंकि "आप" की इस सरकार को गिराने केलिए भी भाजपा और काँग्रेस को तो एक साथ मिलकर ही वोटिँग करना पड़ेगा और इसीलिए ये अल्पमत की सरकार भी दोनों पार्टियों पर बहुत भारी पड़ने जा रही है ?
भैया जी ने सरकार बना डाली तो वह अद्भुत सरकार होगी। सरकार ईमानदारी की कही जाएगी, लेकिन समर्थन बेईमानों का होगा। अगर बेईमान लोग चलवाएंगे ईमानदार सरकार तो चल गई सरकार।
कांग्रेस ने दिल्ली में ‘आप’ की प्रस्तावित सरकार को अफरा-तफरी में समर्थन देकर क्या अपने पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है! कांग्रेस में उठ रही आवाजों को देख कर तो ऐसा ही लग रहा है। वैसे इस समर्थन के पीछे आम आदमी का दर्द नहीं बल्कि बीजेपी को सत्ता से दूर रखने की राजनीति थी जिसकी फसल वह अगले आम चुनाव में काटना चाहती थी। लेकिन राजनीति में अभी घुटनों के बल चल रही एक साल पुरानी ‘आप’ ने सत्ता संभालने के पहले ही अपने ‘समर्थक’ को जैसे झटके देने शुरू कर दिए हैं उससे कांग्रेस में इस समर्थन पर नफा-नुकसान का हिसाब-किताब अभी से शुरू हो गया है। कांग्रेस आज भी मुगालते में है कि बिजली, पानी, नए स्कूलों और अवैध कॉलोनियों के नियमितीकरण के मामले में ‘आप’ की पोल आज नहीं तो कल खुलनी ही है। लेकिन वह यह नहीं देख रही कि अरविंद केजरीवाल ने सत्ता संभालते ही यदि कॉमनवेल्थ गेम्स भ्रष्टाचार और बिजली की खरीद के नाम पर चले महाघोटालों की पोल खोलते हुए किसी कड़क जन लोकायुक्त को जांच सौंप दी तो उसके नतीजे कितने पल्रयंकारी हो सकते हैं। दैनिक भास्कर की संपादकीय टिप्पणी |
नवभारत टाइम्स दिल्ली |
हिंदू में केशव का कार्टून |
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