देवयानी खोबरागड़े का मामला मीडिया संग्राम का शिकार हो
गया। दोनों देशों की सरकारों ने अब इस मामले पर ठंडा पानी डालने की कोशिश की है।
हमारे मीडिया को समझना चाहिए कि हर बात को राष्ट्रीय अपमान, पश्चिम के भारत विरोधी
रवैये और भारत के दब्बूपन पर केंद्रित न करे। दूसरी ओर पश्चिमी देशों को भारतीय
संवेदनशीलता को ध्यान में रखना चाहिए। इधर जब भारत सरकार ने अमेरिकी राजनयिकों को
मिल रही सुविधाओं को खत्म करने की घोषणा की तब अखबारों की सुर्खियाँ इस आशय की थीं
कि भारत के पास भी रीढ़ की हड्डी है। अमेरिकी विदेश मंत्री के खेद प्रकट करने के
बावजूद भारत की ओर से माफी माँगने और इस मुकदमे को वापस लेने की माँग होने लगी।
क्या यह भारत का अपमान और अमेरिकी साजिश है? साज़िश है तो उसका लक्ष्य
क्या है? हमें अपमानित करके उन्हें क्या हासिल होगा? वे घरेलू सेवकों के जिन अधिकारों की बात कर रहे
हैं क्या वे उन्हें लेकर वास्तव में सख्त हैं? अमेरिका में बड़े से बड़े लोग अपने काम अपने
हाथ से करते हैं वहाँ भारत के डिप्लोमैट घर में पूर्णकालिक सेविका सस्ते में कैसे रख
लेते हैं? भारत सरकार के रुख के पीछे क्या डिप्लोमैट लॉबी का हाथ है? देवयानी के घर में काम
करने वाली सेविका का परिवार या तो विदेश में या विदेशियों के घर में काम करता रहा
है। अमेरिकी वीज़ा हासिल करना कुछ लोगों के जीवन का लक्ष्य बन गया है।
हमारे मीडिया के पास जो विवरण है वह देवयानी के पिता पूर्व
ब्यूरोक्रेट उत्तम खोबरागड़े ने उपलब्ध कराया है। भारत सरकार ने जो कार्रवाई की वह
जनमत के दबाव में की गई। कोशिश की जा रही है कि भारत और अमेरिका के बीच राजनयिकों
के विशेषाधिकारों को लेकर वियना समझौते की रोशनी में अलग से व्यवस्था की जाए।
अमेरिका और रूस के बीच ऐसी व्यवस्था है भी। भारत सरकार ने देवयानी को न्यूयॉर्क के
भारतीय मिशन से हटाकर संयुक्त राष्ट्र मिशन में तैनात कर दिया है, जहाँ उन्हें
विशेष सुविधाएं मिलेंगी। पर क्या हमें इस बात के दूसरे पहलू पर विचार नहीं करना चाहिए? हम अब भी देवयानी को
अमेरिका के कानूनी पचड़े से बचाने की जुगत सोच रहे हैं। यह पता करने की कोशिश नहीं
कर रहे हैं कि वास्तव में हुआ क्या है।
देवयानी पर मूल आरोप वीज़ा फ्रॉड का है। न्यूयॉर्क के
भारतीय मिशन में काम करते हुए उन्होंने अपने घर में काम करने वाली सेविका के बारे
में जो सूचनाएं दी थीं, वे गलत थीं। इन्हें लेकर उनकी सेविका ने शिकायत की और
अमेरिकी सरकार ने कार्रवाई की। हमारे देश में जो विरोध हो रहा है, वह इस बात को
लेकर है कि एक राजनयिक को प्राप्त विशेष सुविधाओं का उल्लंघन किया गया है। राजनयिक
सुविधाएं देने का उद्देश्य अधिकारी को अपने राजनयिक कार्यों को सम्पन्न करने में
आने वाली दिक्कतों से बचाना है। क्या यह मामला किसी राजनयिक कर्म से जुड़ा है? थोड़ी देर के लिए हम इटली
के नौसैनिकों पर चल रहे मुकदमे के बारे में सोचें। वहाँ की सरकार उनके लिए विशेष
सुविधा की माँग की थी। हमने उन सुविधाओं को देना मंजूर नहीं किया।
अमेरिका के सरकारी वकील प्रीत भरारा भारतीय मूल
के हैं। उनका कहना है कि देवयानी को उनके बच्चों के सामने गिरफ़्तार नहीं किया गया
जैसा कि मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है। अधिकतर प्रतिवादियों की तरह उन्हें हथकड़ी
नहीं पहनाई गई। उनका फोन तक ज़ब्त नहीं किया जैसा कि सामान्य तौर पर करते हैं। एजेंटों
ने अपनी कार से उन्हें कॉल करवाए। उनको कॉफी पिलाई गई और खाना खाने को कहा गया। जब
उन्हें मार्शल की हिरासत में लिया गया तब एक महिला डिप्टी मार्शल ने उनकी पूरी
जांच की। अमेरिका में हर प्रतिवादी के साथ ऐसा ही किया जाता है चाहे वह गरीब हो या
अमीर। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कैदी के पास कुछ ऐसा न हो जिससे कि वह दूसरों या
खुद को नुकसान पहुंचा सके। यह हर किसी की सुरक्षा के हित में है।
देवयानी की गिरफ्तारी के ठीक पहले संगीता के
पति और बच्चों को अमेरिकी वीज़ा देकर अमेरिका ले जाने का मामला साजिश की संभावना
को जन्म देता है। भरारा के अनुसार उन्हें भारत में गिरफ्तार करने की तैयारी की जा
रही थी। संगीता के पति को टी वीज़ा पर अमेरिका ले जाया गया है। यानी कि वहाँ उच्च
स्तर पर सहमति थी। भारत सरकार की तीखी प्रतिक्रिया के पीछे यह बड़ा कारण समझ में
आता है। पर क्या भारत सरकार ने संगीता रिचर्ड के पक्ष को जानने की कोशिश की? वह भी तो भारतीय नागरिक है। भरारा के अनुसार उसे
चुप कराने और भारत लौटने पर बाध्य करने के लिए उसके खिलाफ भारत में कानूनी
कार्यवाही शुरू की गई है। संगीता की वकील का कहना है कि मामले में ध्यान उनकी
मुवक्किल के खिलाफ़ हुए अपराधों से हटकर राजनयिक पर केंद्रित होना निराशाजनक है।
संगीता रिचर्ड नवंबर 2012 में देवयानी के यहाँ
काम करने आई। लगता है कि एक-दो महीने के भीतर ही उसके कॉण्ट्रैक्ट का विवाद शुरू
हो गया था। देवयानी का कहना है कि वह अमेरिकी वीज़ा दिलाने और 10,000 डॉलर की माँग
कर रही थी। संगीता का पक्ष अभी सामने नहीं आया है। यह मामला जून से चल रहा है।
संभव है संगीता को किसी ने भड़काया हो। पर यह सच है कि उसने अमेरिकी न्याय
व्यवस्था से गुहार की थी। 23 जून से वह लापता थी। देवयानी ने जब उसके लापता होने
की जानकारी न्यूयॉर्क स्थित विदेशी मिशन विभाग को दी थी, उसके पहले ही नौकरानी ने
शिकायत कर दी थी।
वॉशिंगटन स्थित भारतीय दूतावास का आरोप है कि
अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने देवयानी की नौकरानी के बारे में भारतीय दूतावास के
बार-बार अनुरोध के बावजूद न तो कोई कार्रवाई की और न ही उनके बारे में कोई जानकारी
दी। जुलाई में संगीता का पासपोर्ट रद्द कर दिया गया था। लगता यह है कि दोनों ओर से
पेशबंदियाँ चल रहीं थीं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने 4 सितंबर को दूतावास को एक
पत्र भेजा जिसमें अनुरोध किया गया था कि नौकरी संबंधी शर्तों के बारे में संगीता
रिचर्ड ने जो आरोप लगाए हैं, उनकी जांच की
जाए। 19 नवंबर को दिल्ली की एक
अदालत ने संगीता के खिलाफ़ ग़ैर ज़मानती गिरफ्तारी वारंट जारी किया था। छह दिसंबर
को नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास को इस वारंट की जानकारी दे दी गई और उनसे
अनुरोध किया गया कि संगीता को गिरफ्तार करने के लिए संबंधित अधिकारियों को
निर्देशित किया जाए। गिरफ्तारी संगीता के बजाय देवयानी की हुई। उसके पहले संगीता
के पति और बच्चों को अमेरिका ले जाया गया।
भारतीय समझ से घरेलू नौकरानी को अमेरिकी
स्टैंडर्ड से वेतन न मिलना मामूली बात है। लगता है भारत सरकार ने भी इसे कोई बड़ा
मसला नहीं माना। पर अमेरिका में मानवीय श्रम का मूल्य बहुत ज्यादा है। यह दो
संस्कृतियों के बीच की खाई है। दोनों देशों के विदेश विभागों से चूक हुई है। भारत के
मुखर मीडिया ने इसे दूसरा रंग दे दिया। यह ब्यूरोक्रेसी और राजनयिक स्तर पर हुई चूक
है। दोनों मित्र देश हैं। पर इस दोस्ती की बागडोर जिन हाथों में है वे नासमझ हैं।
हरिभूमि में प्रकाशित
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