बजट पेश होने के ठीक पहले
मोटर वाहनों की बिक्री में आ रही लगातार गिरावट की खबरों से सरकार परेशान थी कि यह
खबर आई कि जून के महीने में सर्विस सेक्टर में भी गिरावट नजर आई है। निक्की पर्चेजिंग
मैनेजर्स इंडेक्स (पीएमआई) के मुताबिक बिक्री कमजोर रहने और टैक्स की ऊँची दरों की
वजह से ऐसा हुआ है। जून महीने में पीएमआई गिरकर 49.6 अंक पर पहुंच
गया, जो मई में 50.2 था। सूचकांक का 50 से ऊपर रहना विस्तार के संकेत देता है और 50 से नीचे जाने का मतलब होता है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट
है।
हालांकि हाल में रोजगार
की स्थिति बेहतर हुई है, पर लगता है कि उसका असर अभी नजर नहीं आया है। विनिर्माण
के लिए पीएमआई में भी गिरावट आई है। मई में यह 52.7 था, जो जून में 52.1
रह गया है।
विनिर्माण और सेवा का कंपोजिट पीएमआई आउटपुट इंडेक्स मई के 51.7 की तुलना में 50.8 रह गया है, जो इस साल का न्यूनतम स्तर है।
उधर ऑटो कम्पनियों का
कहना है कि गाड़ियों की बिक्री पर ब्रेक ही नहीं लगा है, बल्कि उनमें तेजी से गिरावट
आ रही है। इस बजट से ऑटो इंडस्ट्री को कुछ उम्मीदें हैं। ऑटो कंपनियों ने प्रदूषण
रोकने के लिए बीएस-6 तकनीक में काफी बड़ी रकम लगाई है। देश अब इलेक्ट्रिक गाड़ियों
पर ध्यान केन्द्रित कर रहा है। उसकी तकनीक महंगी है।
संसद में गुरुवार को पेश
किए गए आर्थिक सर्वेक्षण में भी इलेक्ट्रिक वाहनों के उद्योग को बढ़ाने पर जोर
दिया गया है। नई तकनीक पर कम्पनियाँ तभी निवेश कर पाएंगी, जब उन्हें कोई राहत
मिलेगी। इंश्योरेंस की लागत भी बढ़ रही है। इन बातों से बिक्री पर विपरीत प्रभाव
पड़ रहा है। ऑटोमोबाइल्स पर जीएसटी 28 फीसदी से घटाकर 18 पर लाने की माँग है।
वित्त मंत्री निर्मला
सीतारमण के सामने आर्थिक संवृद्धि को वापस पटरी पर लाने, रोजगार पैदा करने के
अलावा राजकोषीय घाटे को संतुलित करने की चुनौती भी है। देश को पाँच ट्रिलियन डॉलर
की अर्थव्यवस्था बनाने के लिए कम से कम आठ फीसदी की दर से सालाना संवृद्धि होनी
चाहिए। गुरुवार को पेश आर्थिक सर्वेक्षण में वर्ष 2019-20 में 7 फीसदी की संवृद्धि
का अनुमान लगाया गया है।
तेज संवृद्धि के लिए
पूँजी निवेश और श्रम कानूनों में बदलाव की जरूरत है। वित्तमंत्री को एक तरफ
राजनीतिक चतुराई दिखानी होगी, वहीं आर्थिक सूझबूझ भी। लोक-लुभावन कार्यक्रमों के
अलावा उन्हें अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने वाले कार्यक्रमों की घोषणा भी करनी
होगी। फरवरी का अंतरिम बजट चुनाव के ठीक पहले पेश किया गया था। उसमें राजस्व और
व्यय के जो अनुमान लगाए गए थे, वे अबतक बदल गए हैं। इसलिए सबसे पहले यह देखना होगा
कि उनकी स्थिति क्या है। खासतौर से राजकोषीय घाटे के संदर्भ में।
सरकार को वित्तीय अनुशासन
भी बनाकर रखना है। कर राजस्व में गिरावट को लेकर वित्तमंत्री को बताना होगा कि उनकी
ही पिछली सरकार के अंतरिम बजट के अनुमानों में क्या खामी थी। सन 2014 में जब सरकार
आई थी, तब उनके पास यूपीए सरकार के अंतरिम बजट के आँकड़े थे। उनका राजनीतिक
निहितार्थ दूसरा था। पर अब अपनी ही सरकार के आँकड़े हैं। अंतरिम बजट में जीएसटी के
जो अनुमान थे, वास्तविक संकलन उतना नहीं है। दूसरी तरफ पेट्रोलियम और उर्वरक
सब्सिडी पर व्यय अनुमान से ज्यादा है। सरकार के पास कुछ उजले पहलू भी हैं। आयकर का
संग्रह सुधरा है, पेट्रोलियम की कीमतों में गिरावट आने की आशा है और सार्वजनिक
बैंकों के एनपीए में गिरावट आने लगी है।
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