बिहार में बाढ़ की
विभीषिका विकराल रूप ले रही है. इसकी वजह से कई गाँवों का अस्तित्व समाप्त हो
गया है. सवा सौ से ज्यादा लोगों की मृत्यु की पुष्टि सरकार ने की है. न जाने
कितनों की जानकारी ही नहीं है. पिछले हफ्ते जारी सूचना के अनुसार, आकाशीय बिजली गिरने से बिहार के अलग-अलग जिलों में 39 और
झारखंड में 12 लोगों की मौत हुई है. करीब 82 लाख की आबादी बाढ़ से प्रभावित है.
विडंबना है कि उत्तर बिहार और सीमांचल के 13 जिले बाढ़ से प्रभावित हैं, तो 20 जिलों पर सूखे का साया है. दोनों आपदाओं के पीड़ितों
को राहत पहुंचाने की चुनौती है. पानी उतरने के बाद बीमारियों का खतरा ऊपर से है.
असम और उत्तर प्रदेश से
भी बाढ़ की विभीषिका की खबरें हैं. असम राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के मुताबिक 33
जिलों में से 20 जिलों में बाढ़ से 38.82 लाख लोग प्रभावित हैं. केंद्रीय
जल आयोग के अनुसार बिहार में बूढ़ी गंडक, बागमती, अधवारा समूह, कमला बलान, कोसी, महानंदा और परमान नदी अलग-अलग
स्थानों पर खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं. पश्चिम बंगाल के निचले इलाकों में भी
भारी बारिश के कारण बाढ़ जैसे हालात बन रहे हैं.
बिहार के बाढ़ प्रभावित
इलाकों में राहत और बचाव के काम चल रहे हैं. अभी पीड़ित परिवारों को छह-छह हजार
रुपये की मदद सीधे खातों में भेजी जा रही है. इसके बाद खेती से नुकसान का आकलन
होगा और किसान फसल सहायता और कृषि इनपुट सब्सिडी के जरिए मदद की जाएगी. आपदा
प्रबंधन विभाग के अनुसार सीतामढ़ी, शिवहर, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, पूर्वी और पश्चिमी चंपारण, सहरसा, सुपौल, अररिया, किशनगंज, पूर्णिया और कटिहार
जिलों में बाढ़ है. सीतामढ़ी में सबसे ज्यादा 37 लोगों की मौत हुई है.
देश के सबसे प्रमुख
बाढ़-प्रभावित क्षेत्रों में बिहार का नाम लिया जाता है. उत्तर बिहार की करीब 76
फीसदी आबादी तकरीबन हर साल बाढ़ का दंश झेलती है. देश के कुल बाढ़-प्रभावित
क्षेत्र में से 16.5 फीसदी बिहार में है और देश की कुल बाढ़-प्रभावित आबादी में से
22.1 फीसदी बिहारी है. बिहार के कुल 94,163 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में से करीब
68,800 वर्ग किलोमीटर यानी कि 73.06 फीसदी क्षेत्र बाढ़ से पीड़ित है. एक मायने
में बिहार में बाढ़ सालाना त्रासदी है, जो अनिवार्य रूप से आती ही है. इसके
भौगोलिक कारण हैं.
बिहार के उत्तर में नेपाल
का पहाड़ी क्षेत्र है, जहाँ वर्षा होने पर पानी नारायणी, बागमती और कोसी जैसी
नदियों में जाता है. ये नदियाँ बिहार से होकर गुजरती हैं. नेपाल की बाढ़ भारत में भी बाढ़ का कारण बनती है. यह बाढ़
पूर्वी उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में होती है. सन 2008, 2011, 2013, 2015, 2017 और 2019 वे वर्ष हैं, जब नेपाल और भारत दोनों देशों में भीषण बाढ़
दर्ज की गई है. कोसी, नारायणी, कर्णाली, राप्ती, महाकाली वे
नदियां हैं जो नेपाल के बाद भारत में बहती हैं. जब नेपाल के ऊपरी हिस्से में भारी
वर्षा होती है तो तराई के मैदानी भागों और निचले भू-भाग में बाढ़ की स्थिति बनती
है.
एक बड़ी खामी यह है कि नेपाल
के ऊपरी इलाकों में भारी वर्ष की सूचना भारत में देर से मिलती है. समय से सूचना
मिलने पर बचाव के काम पहले से किए जा सकते हैं. कई बार अफवाहें भी हालात को बिगाड़ती
हैं, इसलिए विश्वसनीय सूचना-नेटवर्क को विकसित करने की जरूरत है. भारत और नेपाल की
सरकारों ने एक-दूसरे को बाढ़-सूचना देने की व्यवस्था विकसित की है, पर इसमें आमतौर
पर 48 घंटे का समय लगता है. ऐसा लालफीताशाही के कारण है. बाढ़ की तबाही के लिए
इतना समय पर्याप्त है.
बिहार की बाढ़ का स्थायी
समाधान क्या है? राज्य के जल संसाधन
मंत्री संजय कुमार झा ने कहा है कि जब तक नेपाल में कोसी नदी पर प्रस्तावित उच्च
बांध नहीं बन जाता, बिहार को बाढ़ से मुक्ति नहीं मिलेगी. उत्तर
बिहार को बाढ़ से मुक्ति दिलाने के लिए सन 1897 से भारत और नेपाल की सरकारों के
बीच सप्तकोशी नदी पर बांध बनाने की बात चल रही है. सन 1991 में दोनों देशों के बीच
इसे लेकर एक समझौता भी हुआ था.
इस परियोजना के साथ बड़ी
संख्या में लोगों के पुनर्वास की समस्या भी जुड़ी है, साथ ही नेपाल के लिए इसमें
कोई बड़ा आकर्षण नहीं है. इस बांध से सिर्फ कोसी-क्षेत्र में बाढ़ से राहत मिलेगी.
उत्तर बिहार में कोसी के अलावा गंडक, बागमती, कमला, बलान और महानंदा नदी में
भी अक्सर बाढ़ आती है. कोसी इलाके में यों भी बाढ़ का प्रकोप अब कम हो गया है.
नेपाल में पिछले कुछ
दशकों में पत्थर के उत्खनन और जंगलों की अंधाधुंध कटाई के कारण हालात बिगड़े हैं.
सन 2002 से 2018 तक नेपाल 42,513 हेक्टेयर वन भूमि गँवा चुका है. पत्थरों का
उत्खनन भी हो रहा है, जो नेपाल और भारत
में तेजी से हो रहे निर्माण कार्य के लिए जा रहा है. बारिश का पानी रुकता नहीं
तेजी से बहकर निकल जाता है. रेत माफियाओं ने नदियों को खोद-खोद कर गड्ढों में बदल
दिया है.
बिहार और झारखंड से इस
साल आकाशीय बिजली गिरने के कारण हुई मौतों की खबरें भी आ रहीं हैं. बरसात के दिनों
में जब भी एक समय तक सूखा मौसम रहने के बाद बारिश होती है, तो आकाशीय बिजली गिरती है। मॉनसून में मौसम का मिजाज ऐसा ही
रहता है। देश में सबसे ज्यादा आकाशीय बिजली गिरने में बिहार का स्थान छठा है. बिहार
सरकार ने तीन साल पहले लाइटनिंग डिटेक्टिंग सेंसर लगाने की योजना बनाई थी। पर कुछ
हुआ नहीं. फिर 2017 में आकाशीय बिजली ने 171
लोगों की जान ले ली थी, तो सरकार जागी. फिर से लाइटनिंग
डिटेक्टिंग सेंसर मशीनों की बातें शुरू हुईं हैं.
वाकई, यह सूरत बदलनी चाहिए...
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