मेरा यह आलेख अगस्त 2019 में इसी ब्लॉग में प्रकाशित हुआ था। आज मैं इसे फिर से लगा रहा हूँ, क्योंकि इसकी जरूरत मुझे आज पिर महसूस हो रही है।
भारत और पाकिस्तान अपने स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं। दोनों के स्वतंत्रता दिवस अलग-अलग तारीखों को मनाए जाते हैं। सवाल है कि भारत 15 अगस्त, 1947 को आजाद हुआ, तो क्या पाकिस्तान उसके एक दिन पहले आजाद हो गया था? इसकी एक वजह यह बताई जाती है कि माउंटबेटन ने दिल्ली रवाना होने के पहले 14 अगस्त को ही मोहम्मद अली जिन्ना को शपथ दिला दी थी। दिल्ली का कार्यक्रम मध्यरात्रि से शुरू हुआ था।शायद इस वजह से 14 अगस्त की तारीख को चुना गया, पर व्यावहारिक रूप से 14 अगस्त को पाकिस्तान बना ही नहीं था। दोनों ही देशों में स्वतंत्रता दिवस के पहले समारोह 15 अगस्त, 1947 को मनाए गए थे। सबसे बड़ी बात यह है कि स्वतंत्रता दिवस पर मोहम्मद अली जिन्ना ने राष्ट्र के नाम संदेश में कहा, ‘स्वतंत्र और सम्प्रभुता सम्पन्न पाकिस्तान का जन्मदिन 15 अगस्त है।’
14 अगस्त को पाकिस्तान जन्मा ही नहीं था, तो वह 14 अगस्त को अपना स्वतंत्रता दिवस क्यों मनाता है? 14 अगस्त, 1947 का दिन तो भारत पर ब्रिटिश शासन का आखिरी दिन था। वह दिन पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस कैसे हो सकता है? सच यह है कि पाकिस्तान ने अपना पहला स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त, 1947 को मनाया था और पहले कुछ साल लगातार 15 अगस्त को ही पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस घोषित किया गया। पाकिस्तानी स्वतंत्रता दिवस की पहली वर्षगाँठ के मौके पर जुलाई 1948 में जारी डाक टिकटों में भी 15 अगस्त को स्वतंत्रता पाकिस्तानी दिवस बताया गया था। पहले चार-पाँच साल तक 15 अगस्त को ही पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता था।
अलग दिखाने की चाहत
अपने को भारत से अलग दिखाने की प्रवृत्ति के कारण पाकिस्तानी शासकों ने अपने स्वतंत्रता दिवस की तारीख बदली, जो इतिहास सम्मत नहीं है। पाकिस्तान के एक तबके की यह प्रवृत्ति सैकड़ों साल पीछे के इतिहास पर भी जाती है और पाकिस्तान के इतिहास को केवल इस्लामी इतिहास के रूप में ही पढ़ा जाता है। पाकिस्तान के अनेक लेखक और विचारक इस बात से सहमत नहीं हैं, पर एक कट्टरपंथी तबका भारत से अपने अलग दिखाने की कोशिश करता है। स्वतंत्रता दिवस को अलग साबित करना भी इसी प्रवृत्ति को दर्शाता है।
11 अगस्त, 2016 को पाक ट्रिब्यून में प्रकाशित अपने लेख में सेवानिवृत्त कर्नल रियाज़ जाफ़री ने अपने लेख में लिखा है कि कट्टरपंथी पाकिस्तानियों को स्वतंत्रता के पहले और बाद की हर बात में भारत नजर आता है। यहाँ तक कि लोकप्रिय गायिका नूरजहाँ के वे गीत, जो उन्होंने विभाजन के पहले गए थे, उन्हें रेडियो पाकिस्तान से प्रसारित नहीं किया जाता था। उनके अनुसार आजाद तो भारत हुआ था, पाकिस्तान नहीं। पाकिस्तान की तो रचना हुई थी। उसका जन्म हुआ था। भारत के स्वतंत्रता अधिनियम 1947 के तहत अंग्रेजी राज से आधुनिक भारत को सत्ता का हस्तांतरण 14-15 अगस्त 1947 की आधी रात को हुआ था। इस अधिनियम में कहा गया है कि 15 अगस्त 1947 को दो नए देश भारत और पाकिस्तान जन्म लेंगे। मध्यरात्रि से तारीख बदलती है। ज़ाहिर है कि वह तारीख 15 अगस्त थी।
आजादी तो 15 को ही मिली
पाकिस्तानी अखबार एक्सप्रेस ट्रिब्यून में 22 सितम्बर, 2015 को प्रकाशित एक लेख में आईटी यूनिवर्सिटी, लाहौर के प्राध्यापक याकूब खान बंगश ने लिखा, ‘ब्रिटिश संसद से पास हुए प्रस्ताव के अनुसार 15 अगस्त, 1947 को दो नए देशों का जन्म होना था। इसलिए इसमें दो राय नहीं कि वह दिन 15 अगस्त का ही होना चाहिए। भ्रम केवल इस बात से है कि पाकिस्तान की संविधान सभा में गवर्नर जनरल और वायसरॉय लॉर्ड माउंटबेटन का भाषण और उसके बाद का रात्रिभोज 14 अगस्त को हुआ था। चूंकि भारत ने अपना कार्यक्रम मध्यरात्रि से रखा था, इसलिए यह सम्भव नहीं था कि वे कराची और दिल्ली में एक ही समय पर उपस्थित हो पाते।
14 अगस्त, 1947 को माउंटबेटन वायसरॉय थे, इसीलिए कराची में हुए समारोह में वे और जिन्ना साथ-साथ बैठे थे। उस वक्त तक जिन्ना गवर्नर जनरल बने नहीं थे। इस तरह कहा जा सकता है कि 14 अगस्त को पाकिस्तान में स्वतंत्रता दिवस समारोह शुरू हुए थे, पर वह वैधानिक रूप से स्वतंत्र 15 अगस्त को ही हुआ। इसीलिए जिन्ना ने अपने पहले प्रसारण में स्वतंत्रता की तारीख 15 अगस्त बताई थी। यह कहा जाए कि पाकिस्तान का जन्म रमजान की 27वीं तारीख को हुआ, तो वह भी सही नहीं क्योंकि 14 अगस्त को 26वीं तारीख थी। इसके बाद पाकिस्तान में 14 से 15 अगस्त तक समारोह मनाए जाने लगे। सन 1950 में जाकर आधिकारिक रूप से फैसला किया गया कि अब 15 अगस्त को समारोह नहीं होंगे।’
गर्भनाल के रिश्ते?
सवाल है कि यह फैसला क्यों किया गया? बंगश ने लिखा है कि सरकारी दस्तावेजों में कारण नहीं बताया गया है, पर अनुमान लगाया जा सकता है कि इसकी वजह है ‘हमारे स्थायी दुश्मन’ भारत से खुद को अलग दिखाने की मनोकामना। इसके बाद उन्होंने लिखा है, इसके पहले हमें भारत के साथ अपने गर्भनाल के रिश्ते को तोड़ना होगा। तमाम बातों के लिए पाकिस्तान को भारत के साथ जोड़कर ही देखा जाएगा। पर पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश है और एक वास्तविकता है। उसे स्वतंत्र देश की तरह व्यवहार करना चाहिए। हरेक बात में भारत-विरोध या गैर-भारतीयता साबित करने की कोशिश अनुचित है। दूसरे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि देश किस तारीख को अपना स्वतंत्रता दिवस मनाता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह बात उसके निवासी जानते हैं। सच यह है कि 15 से 14 करके हमने तारीख बदली। यह बात हमारी असुरक्षा को बताती है।
इस लेख के बाद इसी अखबार में 15 अगस्त, 2016 को तश्कील अहमद फारुकी और इस्माइल शेख की एक रिपोर्ट ‘वॉज़ पाकिस्तान क्रिएटेड ऑन ऑगस्ट 14 ऑर 15?’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसमें कहा गया, हालांकि काफी लोग मानते हैं कि पाकिस्तान 14 अगस्त को आजाद हुआ, पर ऐतिहासिक तथ्य कुछ और कहते हैं। इसमें एक वरिष्ठ पत्रकार को उधृत करते हुए वही बातें कही गई हैं। इसमें यह भी कहा गया है कि यदि माउंटबेटन दिल्ली के स्वतंत्रता दिवस के बाद वापस पाकिस्तान में आकर शपथ दिलाते, तो वह भी सम्भव नहीं था, क्योंकि तबतक वे भारत के गवर्नर जनरल बन चुके होते।
जिन्ना की आड़
पाकिस्तान के औपचारिक जन्म के लिए वह समारोह तकनीकी रूप से जरूरी था, पर वह उसका स्वतंत्रता दिवस नहीं था। रोचक बात यह है कि पाकिस्तान के नेता कहते हैं कि जिन्ना चाहते थे कि स्वतंत्रता दिवस 14 अगस्त को मनाया जाए, पर इस बात के समर्थन में किसी प्रकार के दस्तावेज नहीं हैं।
पाकिस्तानी अखबारों और रिसालों में यह सवाल बार-बार उठाया जाता है कि आखिर स्वतंत्रता दिवस की तारीख बदलने के पीछे कारण क्या है। अखबार डॉन की वैबसाइट में 12 अगस्त, 2015 को अख्तर बलोच ने एक लम्बा लेख लिखा है, जिसमें इस बात पर हैरत प्रकट की गई है कि दुनिया में कोई और ऐसा मुल्क है, जिसने अपनी आजादी की तारीख को ही बदल दिया हो? उन्होंने अपने लेख में इतिहासकार केके अजीज की किताब ‘मर्डर ऑफ हिस्ट्री’ का हवाला देते हुए लिखा है, वायसरॉय माउंटबेटन व्यावहारिक रूप से सत्ता-हस्तांतरण समारोह को 14 अगस्त, 1947 को ही संचालित कर सकते थे, पर इसका मतलब यह नहीं कि पाकिस्तान उस रोज आजाद हो गया। वह 15 अगस्त को ही आजादी हुआ था।
पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी मोहम्मद अली ने सन 1967 में अपने संस्मरणों को ‘इमर्जेंस ऑफ पाकिस्तान’ के नाम से प्रकाशित किया। इसका उर्दू अनुवाद ‘ज़हूर-ए-पाकिस्तान’ नाम से प्रकाशित हुआ है। इसमे उन्होंने लिखा है, ’15 अगस्त, 1947 को रमज़ान-उल-मुबारक’ का आखिरी शुक्रवार (जुमातुल विदा) था, जो इस्लाम के सबसे पवित्र दिनों में एक है। उस रोज़ कायदे आज़म पाकिस्तान के गवर्नर जनरल बने। उसी रोज पाकिस्तान का झंडा फहराया गया। चौधरी मोहम्मद अली ने अपनी किताब में लिखी बात को कभी अस्वीकार नहीं किया, जबकि उनके दौर में ही देश ने 14 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस मनाना शुरू कर दिया था।
जिन्ना का राष्ट्र के नाम संदेश
15 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग सर्विस का उद्घाटन करते हुए मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा, 15 अगस्त स्वतंत्र, सम्प्रभु पाकिस्तान का जन्मदिन है। जिन्ना के इस भाषण का प्रसारण 14-15 की रात के 12 बजे के बाद हुआ था। माउंटबेटन की आधिकारिक जीवनी के लेखक फिलिप ज़ीग्लर ने भी लिखा है कि पाकिस्तान का जन्म 15 अगस्त को हुआ था।
भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास को लेकर पाकिस्तान के साथ दिक्कतें हमेशा रहीं हैं। सन 2006 में भारत जब 1857 के स्वतंत्रता आंदोलन की 150 वीं जयंती मनाने की तैयारी कर रहा था, तब पाकिस्तान और बांग्लादेश के पास भी प्रस्ताव भेजे गए थे कि इस अवसर पर मिल-जुलकर समारोह मनाया जाए, पर पाकिस्तानी उदासीनता के कारण ऐसा हो नहीं पाया। पाकिस्तान में एक तरफ ऐसे इतिहासकार हैं, जो प्राचीन भारतीय इतिहास को लेकर संवेदनशील हैं, वहीं एक बड़ा तबका उससे उदासीन रहता है। खासकर वहाँ की पाठ्य-पुस्तकों में इतिहास को काफी काट-छाँटकर विवरण दिया जाता है।
प्राचीन पाकिस्तान!
पिछले साल इन्हीं दिनों पाकिस्तानी इतिहासकार हारून खालिद का एक लेख पढ़ने को मिला, जिसमें उन्होंने लाहौर के एक संग्रहालय का जिक्र किया था। इस संग्रहालय में प्राचीन काल की वस्तुएं भी रखी गईं हैं। इस खंड का नाम है ‘प्राचीन पाकिस्तान।’ इसमें सिंधु घाटी से लेकर मौर्य साम्राज्य, कुषाण और महाराजा रंजीत सिंह के खालसा साम्राज्य की सामग्री भी हैं। लेखक को ‘प्राचीन भारत’ के स्थान पर ‘प्राचीन पाकिस्तान’ का इस्तेमाल अटपटा लगा। वस्तुतः यह नए पैदा होते राष्ट्रवाद को रेखांकित करता है।
भारत माने केवल आधुनिक भारतीय गणराज्य नहीं है। आधुनिक भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका और बांग्लादेश ‘प्राचीन भारत’ की विरासत हैं। ‘प्राचीन भारत’ इनका साझा इतिहास है। भारत में हम लोग खुद को ‘प्राचीन भारत’ के एकमात्र वारिस मानते हैं, जबकि यह अधूरा और भ्रामक सत्य है।
बताते हैं कि मोहम्मद अली जिन्ना ने आधुनिक भारत के ‘इंडिया’ नाम पर आपत्ति व्यक्त की थी। उनका कहना था कि इसे ‘हिन्दुस्तान’ कहना चाहिए। पर हिन्दुस्तान के भी अलग-अलग संदर्भ हैं। एक प्राचीन और दूसरा आधुनिक। सही या गलत पाकिस्तान इतिहास की एक विसंगति है। अति तब होती है, जब पाकिस्तान के कुछ लेखकों को हिन्द महासागर के नाम पर आपत्ति होती है। वे इसे दक्षिण एशिया महासागर का नाम देना चाहते हैं। सवाल है कि क्या आधुनिक राजनीति इस तरीके से हमारे सिरों पर हावी होगी? शायद जिन्ना को अंदेशा था कि ‘इंडिया’ शब्द की व्यापक परिधि से पाकिस्तान अलग छिटक जाएगा। जिन्ना के उत्तराधिकारियों ने स्वतंत्रता दिवस जैसी रेखाओं को गाढ़ा करके क्या हासिल किया? जब हम किसी एक रेखा पर मिलते हैं, तो उसके पीछे जाकर अपनी एकता को भी देख पाते हैं, पर जब दिलचस्पी एकता में है ही नहीं, तो विलगाव के तरीके खोजे जाते हैं।
पाकिस्तान के जन्म के बाद से ही इस अलगाव को बढ़ाने की कोशिशें हुईं और भारत में भी, पर वैश्विक और ऐतिहासिक संदर्भों में जब भारतीय इतिहास का जिक्र होगा, तो वह केवल भारत की आधुनिक राजनीतिक सीमाओं के भीतर का इतिहास नहीं हो सकता। और न वह किसी सम्प्रदाय विशेष का इतिहास होगा। पर इस भेद की शुरूआत स्वतंत्रता दिवस से ही शुरू होती है। पाकिस्तान एक स्वतंत्र देश के रूप में एक सच्चाई है, पर क्या वह 14 और 15 अगस्त के फर्क तक सीमित है?
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