Monday, April 27, 2020

पेट्रो-डॉलर सिस्टम को ध्वस्त करने पर उतारू कोरोना


कोरोना वायरस अभी उभार पर है। शायद इसका उभार रोकने में हम जल्द कामयाब हो जाएं। पर उसके बाद क्या होगा? इस असर का जायजा लेने के लिए कुछ देर के लिए तेल बाजार की ओर चलें। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल अज़ीज़ बिन सलमान ने गत 13 अप्रेल को कहा कि काफी विचार-विमर्श के बाद तेल उत्पादन और उपभोग करने वाले देशों ने प्रति दिन करीब 97 लाख बैरल प्रतिदिन की तेल आपूर्ति कम करने का फैसला किया है।
इस फैसले के बाद हालांकि ब्रेंट क्रूड बाजार में तेल की गिरती कीमतें कुछ देर के लिए सुधरीं, पर  वैश्विक स्तर पर असमंजस कायम है। दो हफ्ते पहले ये कीमतें 22 डॉलर प्रति बैरल से भी नीचे पहुँच गई थीं। इस गिरावट को रूस ने अपना उत्पादन और बढ़ाकर तेजी दी। इस प्रतियोगिता से तेल बाजार में वस्तुतः आग लग गई। इन पंक्तियों के लिखे जाते समय ब्रेंट क्रूड की कीमत 28 डॉलर के आसपास थी और अमेरिकी बाजारों में तेल 15 डॉलर के आसपास आने की खबरें थीं। इस कीमत पर इस उद्योग की तबाही निश्चित है। इस खेल में वेनेजुएला जैसे देश तबाह हो चुके हैं, जो पेट्रोलियम-सम्पदा के लिहाज से खासे समृद्ध थे।

Sunday, April 26, 2020

कोरोना-दौर में मीडिया की भूमिका


कोरोना का संक्रमण जितनी तेजी से फैला है, शायद अतीत में किसी दूसरी बीमारी का नहीं फैला। इसी दौरान दुनिया में सच्ची-झूठी सूचनाओं का जैसा प्रसार हुआ है, उसकी मिसाल भी अतीत में नहीं मिलती। इस दौरान ऐसी गलतफहमियाँ सामने आई है, जिन्हें सायास पैदा किया और फैलाया गया। कुछ बेहद लाभ के लिए, कुछ राजनीतिक कारणों से, कुछ सामाजिक विद्वेष को भड़काने के इरादे से और कुछ शुद्ध कारोबारी लाभ या प्रतिद्वंद्विता के कारण। उदाहरण के लिए कोरोना संकट से लड़ने के लिए पीएम-केयर्स नाम से एक कोष बनाया गया, जिसमें पैसा जमा करने के लिए एक यूपीआई इंटरफेस जारी किया गया। देखते ही देखते सायबर ठग सक्रिय हो गए और उन्होंने उस यूपीआई इंटरफेस से मिलते-जुलते कम से कम 41 इंटरफेस बना लिए और पैसा हड़पने की योजनाएं तैयार कर लीं। लोग दान करना चाहते हैं, तो उस पर भी लुटेरों की निगाहें हैं।

Monday, April 20, 2020

कैसा होगा उत्तर-कोरोना तकनीकी विश्व?


कोरोना की बाढ़ का पानी उतर जाने के बाद दुनिया को कई तरह के प्रश्नों पर विचार करना होगा। इनमें ही एक सवाल यह भी है कि दुनिया का तकनीकी विकास क्या केवल बाजार के सहारे होगा या राज्य की इसमें कोई भूमिका होगी? इन दो के अलावा विश्व संस्थाओं की भी कोई भूमिका होगी? तकनीक के सामाजिक प्रभावों-दुष्प्रभावों पर विचार करने वाली कोई वैश्विक व्यवस्था बनेगी क्या? इससे जुड़ी जिम्मेदारियाँ कौन लेने वाला है?
इस हफ्ते की खबर है कि मोबाइल फोन बनाने वाली कम्पनी एपल और गूगल ने नोवेल कोरोनावायरस के विस्तार को ट्रैक करने के लिए आपसी सहयोग से स्मार्टफोन प्लेटफॉर्म विकसित करने का फैसला किया है। ये दोनों कंपनियां मिलकर एक ट्रैकिंग टूल बनाएंगी, जो सभी स्मार्टफोनों में मिलेगा। यह टूल कोरोना वायरस की रोकथाम में सरकार, हैल्थ सेक्टर और आम प्रयोक्ता की मदद करेगा। यह टूल आईओएस और एंड्रॉयड ऑपरेटिंग सिस्टम में कॉण्टैक्ट ट्रेसिंग का काम करेगा। यह काम तभी सम्भव है, जब दुनिया के सारे स्मार्टफोन यूजर्स एक ही ग्रिड या ऐप पर हों।

Sunday, April 19, 2020

‘कोरोना-दौर’ की खामोश राजनीति


कोरोना संकट के कारण देश की राजनीति में अचानक ब्रेक लग गए हैं या राजनीतिक दलों को समझ में नहीं आ रहा है कि उन्हें करना क्या है। नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार अपनी स्थिति मजबूत करती जा रही है, पर विरोधी दलों की स्थिति स्पष्ट नहीं है। वे लॉकडाउन का समर्थन करें या विरोध? लॉकडाउन के बाद जब हालात सामान्य होंगे, तब इसका राजनीतिक लाभ किसे मिलेगा? बेशक अलग-अलग राज्य सरकारों की भूमिका इस दौरान महत्वपूर्ण हुई है। साथ ही केंद्र-राज्य समन्वय के मौके भी पैदा हुए हैं।
हाल में दिल्ली की राजनीति में भारी बदलाव आया है और वह ‘कोरोना-दौर’ में भी दिखाई पड़ रहा है। केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और ओडिशा ने अपनी कार्यकुशलता को व्यक्त करने की पूरी कोशिश की है, साथ ही केंद्र के साथ समन्वय भी किया है। पश्चिम बंगाल और एक सीमा तक महाराष्ट्र की रणनीतियों में अकड़ और ऐंठ है। पर ज्यादातर राज्यों की राजनीति क्षेत्रीय है, जिनका बीजेपी के साथ सीधी टकराव नहीं है। महत्वपूर्ण हैं कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के अनुभव।

Monday, April 13, 2020

चीन के राजनीतिक नेतृत्व की ‘बड़ी परीक्षा’


बीसवीं सदी के तीसरे दशक की शुरुआत कोरोना वायरस जैसी दुखद घटना के साथ हुई है। जिस देश से इसकी शुरुआत हुई थी, उसने हालांकि बहुत जल्दी इससे छुटकारा पा लिया, पर उसके सामने दो परीक्षाएं हैं। पहली महामारी के आर्थिक परिणामों से जुड़ी है और दूसरी है राजनीतिक नेतृत्व की। राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने इस वायरस को चीनी कम्युनिस्ट पार्टी की बड़ी परीक्षा बताया है। वहाँ उद्योग-व्यापार फिर से चालू हो गए हैं, पर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर संकट छाया हुआ है, जिसपर चीनी अर्थव्यवस्था टिकी है। सवाल है कि चीनी माल की वैश्विक माँग क्या अब भी वैसी ही रहेगी, जैसी इस संकट के पहले थी?

Sunday, April 12, 2020

‘विश्व-बंधु’ भारत


वेदवाक्य है, ‘यत्र विश्वं भवत्येक नीडम। ’यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ग्लोबलाइजेशन या ग्लोबल विलेजजैसे रूपकों से कहीं व्यापक है। अथर्ववेद के भूमि सूक्त या पृथ्वी सूक्तसे पता लगता है कि हमारी विश्व-दृष्टि कितनी विषद और विस्तृत है। आज पृथ्वी कोरोना संकट से घिरी है। ऐसे में एक तरफ वैश्विक नेतृत्व और सहयोग की परीक्षा है। यह घड़ी भारतीय जन-मन और उसके नेतृत्व के धैर्य, संतुलन और विश्व बंधुत्व से आबद्ध हमारे सनातन मूल्यों की परीक्षा भी है। हम वसुधैव कुटुंबकम्के प्रवर्तक और समर्थ हैं। यह बात कोरोना के विरुद्ध वैश्विक संघर्ष से सिद्ध हो रही है।
हमारे पास संसाधन सीमित हैं, पर आत्मबल असीमित है, जो किसी भी युद्ध में विजय पाने की अनिवार्य शर्त है। पिछले कुछ समय ने भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। कोरोना पर विजय के लिए अलग-अलग मोर्चे हैं। एक मोर्चा है निवारण या निषेध का। अर्थात वायरस के लपेटे में आने से लोगों को बचाना। दूसरा मोर्चा है चिकित्सा का, तीसरा मोर्चा है उपयुक्त औषधि तथा उपकरणों की खोज का और इस त्रासदी के कारण आर्थिक रूप से संकट में फँसे बड़ी संख्या में लोगों को संरक्षण देने का चौथा मोर्चा है। इनके अलावा भी अनेक मोर्चों पर हमें इस युद्ध को लड़ना है। इसपर विजय के बाद वैश्विक पुनर्वास की अगली लड़ाई शुरू होगी। उसमें भी हमारी बड़ी भूमिका होगी।
एक परीक्षा, एक अवसर
यह भारत की परीक्षा है, साथ ही अपनी सामर्थ्य दिखाने का एक अवसर भी। गत 13 मार्च को जब नरेंद्र मोदी ने कोरोना से लड़ाई के लिए दक्षेस देशों को सम्मेलन का आह्वान किया था, तबतक विश्व के किसी भी नेता के दिमाग में यह बात नहीं थी इस सिलसिले में क्षेत्रीय या वैश्विक सहयोग भी सम्भव है। ज्यादातर देश इसे अपने देश की लड़ाई मानकर चल रहे थे। इस हफ्ते प्रतिष्ठित पत्रिका फॉरेन पॉलिसी में माइकल कुगलमैन ने अपने आलेख में इस बात को रेखांकित किया है कि नरेंद्र मोदी एक तरफ अपने देश में इस लड़ाई को जीतने में अग्रणी साबित होना चाहते हैं, साथ ही भारत को एक नई ऊँचाई पर स्थापित करना चाहते हैं। 

लॉकडाउन के किन्तु-परन्तु


आगामी मंगलवार यानी 14 अप्रैल को तीन हफ्ते के लॉकडाउन की अवधि समाप्त हो जाएगी। ओडिशा और पंजाब समेत कुछ राज्यों ने इसे बढ़ाने की घोषणा पहले ही कर दी है। शनिवार को प्रधानमंत्री के साथ हुई वार्ता में इस बारे में करीब-करीब आम सहमति थी कि लॉकडाउन कम से कम दो हफ्ते के लिए बढ़ाना चाहिए। बड़ी संख्या में राज्यों ने, बल्कि लगभग सभी ने इसे आगे बढ़ाने की सलाह दी है। दूसरी तरफ एक सोशल मीडिया सर्वे में 63 फीसदी लोगों की राय थी कि कुछ प्रतिबंधों को कायम रखते हुए लॉकडाउन को खत्म करना चाहिए। इस सर्वे में तकरीबन 26,000 लोगों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया। लॉकडाउन को ख़त्म करने की बात अर्थशास्त्री कह रहे हैं, जबकि चिकित्सकों की सलाह है कि इसे आगे बढ़ाना चाहिए। बहरहाल केंद्र सरकार की औपचारिक घोषणा का इंतजार करना चाहिए। यह तो स्पष्ट लग रहा है कि लॉकडाउन बढ़ेगा, पर किसी न किसी स्तर पर ढील भी दी जाएगी।

Thursday, April 9, 2020

अभी तक सफल है भारतीय रणनीति


हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने दिया है. आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए हमारे देश को लेकर जो अंदेशा था, वह काफी हद तक गलत साबित हुआ है. पर क्या पिछले एक हफ्ते की तेजी के बावजूद आने वाले समय में भी गलत साबित होगा? यकीनन हमें सफलता मिल रही है. तथ्य इस बात की गवाही दे रहे हैं. हालांकि इसकी वैक्सीन तैयार नहीं है, पर जिन लोगों ने इस बीमारी पर विजय पाई है, अब उनके शरीर में जो एंटीबॉडी तैयार हो गई हैं, वे मरीजों के इलाज में काम आएंगी.
गत 1 मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में 170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130. एक महीने बाद 1 अप्रेल को भारत में यह संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574, 1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी. भारत में लॉकडाउन शुरू होने के बाद यह संख्या स्थिर होती नजर आ रही थी, पर पिछले एक हफ्ते में यह संख्या तेजी से बढ़ी है और अब पाँच हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी. पिछले तीन-चार दिन की संख्या का विश्लेषण करें, तो पाएंगे कि यह तेजी थमी है.

Monday, April 6, 2020

इस संकट का सूत्रधार चीन


पिछले तीन महीनों में दुनिया की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था में भारी फेरबदल हो गया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण कोविड-19 नाम की बीमारी है, जिसकी शुरुआत चीन से हुई थी। अमेरिका, इटली और यूरोप के तमाम देशों के साथ भारत और तमाम विकासशील देशों में लॉकआउट चल रहा है। अर्थव्यवस्था रसातल में पहुँच रही है, गरीबों का जीवन प्रभावित हो रहा है। हजारों लोग मौत के मुँह में जा चुके हैं और लाखों बीमार हैं। कौन है इसका जिम्मेदार? किसे इसका दोष दें? पहली नजर में चीन।
हालांकि दावा किया जा रहा है कि चीन से यह बीमारी अब खत्म हो चुकी है, पर इस बीमारी की वजह से उसकी साख मिट्टी में मिल गई है। सवाल यह है कि क्या इस बीमारी का प्रभाव उसकी औद्योगिक बुनियाद पर पड़ेगा? दुनिया का नेतृत्व करने के उसके हौसलों को धक्का लगेगा? पहली नजर में उसकी छवि एक गैर-जिम्मेदार देश के रूप में बनकर उभरी है। पर क्या इसकी कीमत उससे वसूली जा सकेगी?  शायद भौतिक रूप में इसकी भरपाई न हो पाए, पर चीन के वैश्विक प्रभाव में अब भारी गिरावट देखने को मिलेगा। चीन ने सुरक्षा परिषद से लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन तक अपने रसूख का इस्तेमाल करके जो दबदबा बना लिया है उसकी हवा निकलना जरूर सुनिश्चित लगता है।

Sunday, April 5, 2020

कोरोना ‘इंफोडेमिक’ उर्फ नए ज़माने की जंग


दुनियाभर में दहशत का कारण बनी कोविड-19 बीमारी को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने फरवरी में एक नए सूचना प्लेटफॉर्म डब्लूएचओ इनफॉर्मेशन नेटवर्क फॉर एपिडेमिक्स (एपी-विन) का उद्घाटन किया। इस मौके पर डब्लूएचओ के डायरेक्टर जनरल टेड्रॉस गैब्रेसस ने कहा, बीमारी के साथ-साथ दुनिया में गलत सूचनाओं की महामारी भी फैल रही है। हम केवल पैंडेमिक (महामारी) से नहीं इंफोडेमिक से भी लड़ रहे हैं। सोशल मीडिया के उदय के बाद दुनिया के हर विषय पर सूचना की बाढ़ है। इस बाढ़ में सच्ची-झूठी हर तरह की जानकारियाँ हैं। इसी बाढ़ में उतरा रही है अगले कुछ महीनों में उपस्थित होने वाली वैश्विक राजनीति की झलकियाँ। इंफोडेमिक से लड़ने का दावा करने वाले टेड्रॉस महाशय खुद विवाद का विषय बने हुए हैं।

ठान लेंगे तो कामयाब भी होंगे ‘हम’


संयुक्त राष्ट्र और उसकी स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 वैश्विक महामारी से निपटने के लिए भारत के 21 दिन के लॉकडाउन को 'जबर्दस्तबताते हुए उसकी तारीफ की है। डब्ल्यूएचओ के प्रमुख टेड्रॉस गैब्रेसस ने इस मौके पर गरीबों के लिए आर्थिक पैकेज की भी सराहना की है। भारत के इन कदमों से प्रेरित होकर विश्व बैंक ने एक अरब डॉलर की विशेष सहायता की घोषणा की है। डब्ल्यूएचओ के विशेष प्रतिनिधि डॉ. डेविड नवारो ने देश में जारी लॉकडाउन का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि यूरोप और अमेरिका जैसे विकसित देशों ने कोरोना को गंभीरता से नहीं लिया, वहीं भारत में इस पर तेजी से काम हुआ। भारत में गर्म मौसम और मलेरिया के कारण लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर है और उम्मीद है कि वे कोरोना को हरा देंगे।

हालांकि कोरोना से लड़ाई अभी जारी है और निश्चित रूप से कोई बात कहना जल्दबाजी होगी, पर इतना साफ है कि अभी तक भारत ही ऐसा देश है, जिसने इसका असर कम से कम होने दिया है। इस देश की आबादी और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी को देखते हुए जो अंदेशा था, वह काफी हद तक गलत साबित हो रहा है। यह बात तथ्यों से साबित हो रही है। गत 1 मार्च को भारत में कोरोना वायरस के तीन मामले थे, जबकि अमेरिका में 75, इटली में 170, स्पेन में 84, जर्मनी में 130 और फ्रांस में 130। एक महीने बाद भारत में यह संख्या 1998 थी, जबकि उपरोक्त पाँचों देशों में क्रमशः 2,15,003, 1,10,574, 1,04,118, 77,981 और 56,989 हो चुकी थी। भारत में पिछले एक हफ्ते में यह संख्या तेजी से बढ़ी है और अब तीन हजार के ऊपर है, जबकि 27 मार्च को यह 887 थी।

Friday, April 3, 2020

दुनिया का गुस्सा अब चीन पर फूटेगा

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि कुछ दिनों में कोरोना संक्रमण के मामले 10 लाख हो जाएंगे और मौतों का आंकड़ा 50,000 तक पहुंच जाएगा. यूरोप के कुछ देशों से ऐसी खबरें भी हैं कि नए मामलों की संख्या में कमी आ रही है, पर अमेरिका को लेकर चिंताएं बढ़ रहीं हैं, जहाँ संक्रमित व्यक्तियों की संख्या सवा दो लाख के आसपास होने जा रही है. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि अगले दो हफ्ते बेहद मुश्किल होंगे. इस सिलसिले में बने कार्यबल की सदस्य डॉ डेबोरा ब्रिक्स ने ह्वाइट हाउस के एक प्रेजेंटेशन में बताया है कि आगामी 30 अप्रैल तक सोशल डिस्टेंसिंग रखने के बावजूद देश में मरने वालों की संख्या एक लाख तक पहुंच सकती है. ट्रंप ने कहा, हमें बेहद मुश्किल दो हफ्तों का सामना करना है. ये दो हफ्ते बहुत-बहुत दर्दनाक होने वाले हैं.
इतना स्पष्ट है कि अमेरिकी जनता और प्रशासन इस महामारी के बाद बहुत बड़े फैसले करेगा. दूसरे विश्वयुद्ध के बाद भी वैश्विक राजनीति में इतने बड़े बदलाव नहीं आए होंगे, जितने अब आ सकते हैं. इस नए भूचाल का केंद्र चीन बनेगा. इसका असर वैश्विक अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार इस महामारी के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था इस साल मंदी में चली जाएगी. इस रिपोर्ट के अनुसार भारत और चीन इसके अपवाद हो सकते हैं, पर दुनिया के देशों को खरबों डॉलर का नुकसान होगा.