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Wednesday, March 13, 2024

अफ़ग़ान-प्रशासन के साथ जुड़ते भारत के तार

 


देस-परदेस

अरसे से हमारा ध्यान अफ़ग़ानिस्तान की ओर से हट गया है, पर पिछले गुरुवार 7 मार्च को एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की, तो एकबारगी नज़रें उधर गई हैं. चीन, रूस, अमेरिका और पाकिस्तान समेत विश्व समुदाय के साथ तालिबान के संपर्कों को लेकर भी उत्सुकता फिर से जागी है.

तालिबानी सत्ता क़ायम होने के बाद भारत ने अफ़ग़ान नागरिकों को वीज़ा जारी करना बंद कर दिया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में उसने आश्चर्यजनक तरीके से काबुल के साथ संपर्क स्थापित किया है.

अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबानी शासन की स्थापना के बाद पिछले दो-ढाई साल में भारतीय अधिकारियों के दो शिष्टमंडल अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा कर चुके हैं. जून, 2022 में काबुल में भारत का तकनीकी मिशन खोला गया, जो मानवीय कार्यक्रमों का समन्वय करता है.

पिछले गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी जेपी सिंह ने तालिबान के विदेशी मामलों को प्रभारी (वस्तुतः विदेशमंत्री) आमिर खान मुत्तकी तथा अन्य अफ़ग़ान अधिकारियों के साथ बातचीत की. प्रत्यक्षतः यह मुलाकात मानवीय सहायता के साथ-साथ अफ़ग़ान व्यापारियों द्वारा चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल पर भी हुई.

कंधार दफ्तर खुलेगा?

तालिबान-प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि ने अफ़ग़ान व्यापारियों को वीज़ा जारी करने के लिए जरूरी व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है. इससे क़यास लगाया जा रहा है कि कंधार में भारत अपना वाणिज्य दूतावास खोल सकता है. अफ़ग़ानिस्तान ने कारोबारियों, मरीज़ों और छात्रों को भारत का वीज़ा देने का अनुरोध किया है.

Wednesday, February 28, 2024

हिंद महासागर में ‘चीनी इशारे’ और मालदीव के तेवर


लद्दाख की सीमा पर चल रहे गतिरोध को तोड़ने के लिए गत 19 फरवरी को भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की बातचीत का 19वाँ दौर भी पूरा हो गया, पर कोई नतीजा निकल कर नहीं आया. एजेंसी-रिपोर्टों के अनुसार पिछले साढ़े तीन साल से ज्यादा समय से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा है.

निष्कर्ष यह है कि चीन इस समस्या को बनाए रखना चाहता है. उसकी गतिविधियाँ केवल उत्तरी सीमा तक सीमित नहीं हैं. वह हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहा है. दूसरी तरफ भारत लगातार विश्व-समुदाय का ध्यान चीनी-दादागीरी की ओर खींच रहा है.  

Thursday, February 22, 2024

वैश्विक-ध्रुवीकरण के बरक्स भारत की दो टूक राय


यूक्रेन और गज़ा में चल रही लड़ाइयाँ रुकने के बजाय तल्खी बढ़ती जा रही है. शीतयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया के संदर्भ में भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता को लेकर कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं.

कभी लगता है कि भारत पश्चिम-विरोधी है और कभी वह पश्चिम-परस्त लगता है. कभी लगता है कि वह सबसे अच्छे रिश्ते बनाकर रखना चाहता है या सभी के प्रति निरपेक्ष है. पश्चिम एशिया में भारत ने इसराइल, सऊदी अरब और ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रखे हैं. इसी तरह उसने अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर रखा है. कुछ लोगों को यह बात समझ में नहीं आती. उन्हें लगता है कि ऐसा कैसे संभव है?

म्यूनिख सुरक्षा-संवाद

विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में इस बात को काफी हद तक शीशे की तरह साफ करने का प्रयास किया है. इस बैठक में भारत और पश्चिमी देशों के मतभेदों से जुड़े सवाल भी पूछे गए और जयशंकर ने संज़ीदगी से उनका जवाब दिया.

म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन वैश्विक-सुरक्षा पर केंद्रित वार्षिक सम्मेलन है. यह सम्मेलन 1963 से जर्मनी के म्यूनिख में आयोजित किया जाता है. इस साल यह 60वाँ सम्मेलन था. सम्मेलन के हाशिए पर विभिन्न देशों के राजनेताओं की आपसी मुलाकातें भी होती हैं.

इसराइल-हमास संघर्ष

जयशंकर ने इसराइल-हमास संघर्ष पर भारत के रुख को चार बिंदुओं से स्पष्ट किया. एक, 7 अक्तूबर को जो हुआ वह आतंकवाद था. दूसरे, इसराइल जिस तरह से जवाबी कार्रवाई कर रहा है, उससे नागरिकों को भारी नुकसान हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का पालन करना उसका दायित्व है. उन्होंने इसराइल के दायित्व शब्द का इस्तेमाल करके इसराइल को निशान पर लिया है.

इसके अलावा उनका तीसरा बिंदु बंधकों की वापसी से जुड़ा है, जिसे उन्होंने जरूरी बताया है. चौथा, राहत प्रदान करने के लिए एक मानवीय गलियारे और एक स्थायी मानवीय गलियारे की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे का स्थायी हल निकाला जाना चाहिए. उन्होंने टू स्टेट समाधान की बात करते हुए कहा कि यह विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता ज़रूरत है.

Friday, January 5, 2024

डिप्लोमेसी से ही होगा क़तर के मसले का समाधान


क़तर की जेल में क़ैद भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों की सज़ा-ए-मौत को क़तर की अदालत ने कम कर दिया है. इस खबर से देश ने फिलहाल राहत की साँस ली है. इन आठ भारतीयों के सिर पर मँडरा रहा मौत का साया तो हट गया है, पर यह मामूली राहत है.

प्रारंभिक खबरों के अनुसार इन लोगों की सजाएं कम करके तीन से 25 साल की कैद तक में तब्दील कर दी गई हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गत 4 जनवरी को बताया कि अदालत ने ऊँची अदालत में अपील करने के लिए 60 दिन का समय भी दिया है. सरकार को अदालत के फैसले की प्रति मिल गई है, पर वह गोपनीय है.

इतना स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वह भारत की डिप्लोमेसी के प्रयास से हो पाया है. पीड़ित-परिवार सजा के कम होने को सफलता नहीं मान रहे हैं और वे क़तर की सर्वोच्च अदालत में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं. वहाँ सुनवाई और फैसला होने में भी तीन महीने या उससे भी ज्यादा समय लग सकता है.

Wednesday, November 1, 2023

भारत की पश्चिम-एशिया नीति की अग्निपरीक्षा


गज़ा में चल रही फौजी कार्रवाई और क़तर की एक अदालत से आठ भारतीयों को मिले मृत्युदंड और वैश्विक-राजनीति में इस वक्त चल रहे तूफान के बरक्स भारतीय विदेश-नीति से जुड़े कुछ जटिल सवाल खड़े हो रहे हैं. बेशक गज़ा की लड़ाई और क़तर के अदालती फैसले का सीधा रिश्ता नहीं है, पर दोनों संदर्भों का देश की पश्चिम-एशिया नीति से नज़दीकी रिश्ता है.

पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में गज़ा की लड़ाई के संदर्भ में हुए मतदान से अलग रहने के बाद भारत की नीति को लेकर कुछ और सवाल पूछे जा रहे हैं. यह प्रस्ताव जॉर्डन की ओर से रखा गया था. इसका अर्थ है कि इसके पीछे अरब देशों की भूमिका थी. उससे अलग रहने के जोखिम हैं, पर यह समझना होगा कि हमास को लेकर अरब देशों की राय क्या है और उन देशों के इसराइल के साथ बेहतर होते रिश्तों की राजनीति का मतलब क्या है.

बाइडन का बयान

पिछले बुधवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का एक बयान भारतीय मीडिया में काफी उछला था. उसके राजनीतिक निहितार्थ पढ़ने की जरूरत भी है.  

बाइडन ने कहा था कि 7 अक्तूबर को गज़ा में हमास ने जो हमला किया था, उसके पीछे भारत-पश्चिम एशिया कॉरिडोर को रोकने का इरादा था. मुझे विश्वास है कि हमास ने हमला किया तो यह उन कारणों में से एक था. बाद में ह्वाइट हाउस ने सफाई दी कि बाइडेन की टिप्पणी को गलत समझा जा रहा है. संभवतः उनका आशय था कि इसराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते में धीरे-धीरे हो रहे सुधार ने हमास को हमले के लिए प्रेरित किया हो.

Friday, October 13, 2023

इसराइल ने 11 लाख लोगों को गज़ा छोड़ने का आदेश दिया


ऐसा लगता है कि इसराइली सेना गज़ा पट्टी में प्रवेश करने वाली है, पर बड़े स्तर पर नरसंहार को रोकने के लिए उसने उत्तरी गज़ा में रहने वाले करीब 11 लाख लोगों को 24 घंटे के भीतर वहाँ से हटने का आदेश जारी किया है। चूंकि संयुक्त राष्ट्र ने नरसंहार का संदेह व्यक्त किया था, संभवतः इसलिए इसराइली सेना ने यह आदेश संयुक्त राष्ट्र संघ को दिया है। इस आदेश का पालन किस तरह संभव होगा, यह देखना है। इस बीच सीरिया से खबर आई है कि गुरुवार को इसराइल ने दमिश्क और उत्तरी शहर अलेप्पो के हवाई अड्डों पर मिसाइलों से हमले किए हैं। ये हमले क्यों किए हैं और वहाँ कितनी नुकसान हुआ है, इसकी ज्यादा जानकारी प्राप्त नहीं है।

बीबीसी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र ने इसराइल को उस आदेश को वापस लेने को कहा है, जिसमें उसने 11 लाख लोगों को उत्तरी से दक्षिणी गज़ा जाने के लिए कहा है। यूएन का कहना है कि अगर ऐसा कोई आदेश दिया गया है तो इसे तुरंत रद्द करना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो त्रासदी के हालात और भी भयावह हो जाएंगे।

दरअसल इसराइली सेना के प्रतिनिधियों ने गज़ा पट्टी में यूएन का नेतृत्व कर रहे लोगों को इस आदेश की जानकारी दी थी। लेकिन इसराइल के दूतों ने कहा है कि गज़ा पट्टी खाली करने के आदेश पर यूएन की प्रतिक्रिया 'शर्मनाक' है।  संयुक्त राष्ट्र में इसराइल के दूत ने कहा कि इसराइल गज़ा के लोगों को पहले से सावधान कर रहा था ताकि हमास से युद्ध के दौरान उन लोगों को कम से कम नुकसान पहुंचे, जो बेकसूर हैं।

इसराइल के राजदूत ने कहा, ''पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र हमास को और अधिक हथियारों से लैस करने की कोशिशों से आंखें मूंदे रहा है। उसने हमास की ओर से और आम नागरिकों और गज़ा पट्टी पर होने वाले हमलों पर भी ध्यान नहीं दिया। लेकिन अब वो इसराइल के साथ खड़ा होने के बजाय उसे नसीहत दे रहा है।''

 

इसराइली सेना ने संयुक्त राष्ट्र से कहा है कि गज़ा में रहने वाले 11 लाख लोग अगले 24 घंटों में दक्षिणी गज़ा चले जाएं। संयुक्त राष्ट्र के प्रवक्ता ने बताया कि 11 लाख लोगों की ये आबादी गज़ा पट्टी की आबादी की लगभग आधी है। इसराइली हमले से सबसे ज़्यादा प्रभावित घनी आबादी वाला गज़ा शहर है। इसराइली सेना ने गज़ा और यरुसलम के समय के मुताबिक़ ये चेतावनी आधी रात से पहले दी।

हालांकि संयुक्त राष्ट्र ने एक बयान में कहा है कि उसका मानना है कि इतने लोगों का दक्षिणी गज़ा की ओर जाना इतना आसान नहीं होगा। इसमें लोग हमले के शिकार हो सकते हैं। सेनाधिकारियों ने बयान में कहा है, “गज़ा शहर में आप तब ही वापस लौटकर आएंगे जब दोबारा घोषणा की जाएगी।”

आईडीएफ़ ने कहा है कि हमास चरमपंथी शहर के नीचे सुरंगों और आम लोगों के बीच इमारतों के अंदर हैं। आम लोगों से अपील है कि वो शहर खाली करके ‘अपनी और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए चले जाएं और ख़ुद को हमास के आतंकियों से दूर रखें ताकि वो उन्हें मानव ढाल न बना सकें।’ इसमें कहा गया है, “आने वाले दिनों में आईडीएफ़ गज़ा शहर में अपने महत्वपूर्ण ऑपरेशन चलाएगी और पूरी कोशिश करेगी कि आम लोगों को नुक़सान न पहुंचे।”

इसराइल ने ये घोषणा तब की है जब अनुमान है कि उसकी सेना गज़ा में ज़मीनी हमला शुरू कर सकती है क्योंकि उसके हज़ारों सैनिक सीमा पर इकट्ठे हो रहे हैं। वहीं, संयुक्त राष्ट्र ने मज़बूत अपील करते हुए इस फ़ैसले को रद्द करने की अपील की है और कहा है कि इलाक़े को खाली कराने से ‘नुकसानदेह स्थिति’ पैदा हो सकती है।

भारतीय-नीति में बदलाव नहीं

गत 7 अक्तूबर को इसराइल पर हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ट्वीट से ऐसा लगा कि भारत की फलस्तीन नीति में बदलाव आ गया है। प्रधानमंत्री ने हमास के हमले को आतंकी कार्रवाई बताया था और यह भी कहा था कि हम इसराइल के साथ खड़े हैं। इसमें नई बात इतनी थी कि उन्होंने हमास की कार्रवाई को आतंकी कार्रवाई बताया, पर उन्होंने फलस्तीन को लेकर देश की नीति में किसी प्रकार के बदलाव का संकेत नहीं किया था।

इस ट्वीट के पाँच दिन बाद विदेश मंत्रालय की साप्ताहिक ब्रीफिंग में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा है कि फलस्तीन के बारे में भारत की जो नीति रही है, उसमें कोई बदलाव नहीं है। उन्होंने कहा, अंतरराष्ट्रीय मानवीय-कानूनों के तहत एक सार्वभौमिक-दायित्व है और आतंकवाद के किसी भी तौर-तरीके और स्वरूप से लड़ने की एक वैश्विक-जिम्मेदारी भी है।

Saturday, September 30, 2023

मालदीव के चुनाव में भारत बनाम चीन

सोलिह और मुइज़्ज़ु

दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते बनाने की भारतीय कोशिशों में सबसे बड़ी बाधा चीन की है. पाकिस्तान के अलावा उसने बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका और मालदीव में काफी पूँजी निवेश किया है. पूँजी निवेश के अलावा चीन इन सभी देशों में भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने का काम भी करता है.

इसे प्रत्यक्ष रूप से हिंद महासागर के छोटे से देश मालदीव में देखा जा सकता है. चीन अपनी नौसेना को तेजी से बढ़ा रहा है. वह रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस जगह पर अपनी पहुंच बनाना चाहेगा, उसे भारत रोकना चाहता है. चीन यहां अपनी तेल आपूर्ति की सुरक्षा चाहता है, जो इसी रास्ते से होकर गुजरता है.

आज मालदीव में राष्ट्रपति पद की निर्णायक चुनाव है, जिसे भारत और चीन की प्रतिस्पर्धा के रूप में देखा जा रहा है. करीब 1,200 छोटे द्वीपों से मिल कर बना मालदीव पर्यटकों का पसंदीदा ठिकाना है. यहां के बीच दुनिया के अमीरों और मशहूर हस्तियों को पसंद आते हैं. सामरिक दृष्टि से भी हिंद महासागर के मध्य में बसा यह द्वीप समूह काफी अहम है, जो पूरब और पश्चिम के बीच कारोबारी जहाजों की आवाजाही का प्रमुख रास्ता है.

चीन-समर्थक मुइज़्ज़ु

चुनाव में आगे चल रहे मोहम्मद मुइज़्ज़ु की पार्टी ने पिछले कार्यकाल में चीन से नजदीकियां काफी ज्यादा बढ़ा ली हैं. चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना के तहत बुनियादी ढाँचे के विकास के लिए खूब सारा धन बटोरा गया. 45 साल के मुइज़्ज़ु माले के मेयर रहे हैं. पिछली सरकार में मालदीव के मुख्य एयरपोर्ट से राजधानी को जोड़ने की 20 करोड़ डॉलर की चीन समर्थित परियोजना का नेतृत्व उन्हीं के हाथ में था.

मालदीव में चीन के पैसे से बनी इसी परियोजना की सबसे अधिक चर्चा है. यह 2.1 किमी लंबा चार लेन का एक पुल है. यह पुल राजधानी माले को अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से जोड़ता है. यह हवाई अड्डा एक अलग द्वीप पर स्थित है. इस पुल का उद्घाटन 2018 में किया गया था. उस समय यामीन राष्ट्रपति थे.

9 सितंबर को हुए पहले दौर में उन्हें 46 फीसदी वोट मिले. दूसरी तरफ निवर्तमान राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को 39 फीसदी वोट ही मिल सके. सोलिह ने भारत से रिश्तों को सुधारने में अपना ध्यान लगाया था.

Thursday, September 28, 2023

भारत-कनाडा रिश्ते और अमेरिका की भूमिका

ग्लोबल टाइम्स में कार्टून

भारत-कनाडा रिश्तों में बढ़ती तपिश अब भारत और अमेरिका के रिश्तों पर भी पड़ेगी। भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर इस समय अमेरिका में हैं। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा की सालाना बैठक में परोक्ष रूप से कनाडा और पश्चिमी देशों के पाखंड का उल्लेख करते हुए कहा है कि हर बात की एक पृष्ठभूमि भी होती है। उसे भी समझें। वस्तुतः पश्चिमी देश हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के आरोपों का जिक्र तो कर रहे हैं, पर इन देशों में चल रही भारत-विरोधी गतिविधियों का उल्लेख नहीं कर रहे हैं।

आज जयशंकर की मुलाकात अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन से होगी। जयशंकर ने कहा है कि हमारी नीति इस किस्म की हत्याएं कराने की नहीं है। हमारे सामने ठोस तथ्य रखे जाएंगे, तभी हम कुछ कह पाएंगे। उधर अमेरिकी प्रवक्ता ने कहा है कि हमने अपना रुख स्पष्ट कर दिया है। बहरहाल लगता यह है कि अमेरिका अपनी चीन-विरोधी रणनीति में भारत का इस्तेमाल करना चाहता है, पर इस मामले में अमेरिकी इंटेलिजेंस ने ही कनाडा को कुछ जानकारियाँ दी हैं। सवाल है कि क्या अमेरिका डबल गेम खेल रहा है? यह कहा जा रहा है कि जी-20 की बैठक के दौरान अमेरिका ने भी नरेंद्र मोदी के सामने निज्जर का मामला उठाया था।

दूसरी तरफ इन दिनों चीनी मीडिया लगातार अमेरिकी पाखंड का उल्लेख कर रहा है। चीन के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने चार रिपोर्टें (एक, दो, तीन और चार) इस आशय की जारी की हैं, जिनमें भारत-कनाडा प्रकरण के बहाने अमेरिका के पाखंड का जिक्र किया गया है। 

Wednesday, September 27, 2023

भारत-कनाडा रिश्तों पर ‘खालिस्तानी छाया’


जिस रोज हमारे देश में संसद का विशेष-सत्र शुरू होने वाला था
, उसके ठीक पहले कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत पर बड़ा आरोप लगाकर डिप्लोमैटिक-धमाका कर दिया, जिसकी अनुगूँज काफी देर तक सुनाई पड़ती रहेगी. कनाडा की इस हरकत से भारत के समूचे पश्चिमी खेमे के साथ रिश्ते प्रभावित होंगे.

दूसरी तरफ संभावना इस बात की भी है कि भारत के जवाबी हमलों के सामने उन्हें न केवल झुकना पड़े, बल्कि खालिस्तान को लेकर अपना रुख पूरी तरह बदलना पड़े. बहुत कुछ विदेशमंत्री एस जयशंकर की अमेरिका-यात्रा पर निर्भर करता है.

हालांकि ट्रूडो ने यह भी कहा कि इस मामले में जाँच चल ही रही है, अलबत्ता उन्होंने एक भारतीय राजनयिक को देश से निकलने का आदेश देकर और व्यापार-वार्ता रोककर इस बात को साफ कर दिया कि वे इन रिश्तों को किस हद तक बिगाड़ने को तैयार हैं.

Tuesday, September 12, 2023

वैश्विक-मंच पर भारत के आगमन का संदेश


सम्मेलन का समापन हो गया. अब कोई कार्यक्रम नहीं है, सिर्फ प्रतिक्रियाएं हैं. सम्मेलन के निष्कर्ष और निहितार्थ भी धीरे-धीरे समझ में आ रहे हैं. कुछ मेहमान अभी रुके हुए हैं, जिनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं सऊदी अरब के शहज़ादे मोहम्मद बिन सलमान अब्दुलअज़ीज़ अल सऊद.

आज उनके साथ पीएम मोदी की द्विपक्षीय बातचीत हुई है. यह वार्ता दोनों देशों के दीर्घकालीन सहयोग का संकेत दे रही है. एक दिन का यह दौरा दोनों देशों के संबंधों को और मजबूत करेगा.

कुल मिलाकर वैश्विक मंच पर यह भारत के आगमन की घोषणा है. वैसे ही जैसे 2008 के ओलिंपिक खेलों के साथ चीन का वैश्विक मंच पर आगमन हुआ था. पर्यवेक्षकों की आमतौर पर प्रतिक्रिया है कि भारत में हुआ शिखर सम्मेलन और भारतीय अध्यक्षता कई मायनों में अभूतपूर्व रही है.

ऐसा मानने के दो कारण हैं. एक, आयोजन की भव्यता और दूसरे, ऐसे दौर में जब दुनिया में कड़वाहट बढ़ती जा रही है, सभी पक्षों को संतुष्ट कर पाने में सफल होना. भारत ने जी-20, जी-7, ईयू, रूस और चीन जैसे विभिन्न हितधारकों के बीच अधिकतम सहमतियाँ बनाने की कोशिश की है.

Wednesday, August 16, 2023

इक्कीसवीं सदी में विदेश-नीति की बदलती दिशा


आज़ादी के सपने-08

भारत को आज़ादी ऐसे वक्त पर मिली, जब दुनिया दो खेमों में बँटी हुई थी. दोनों गुटों से अलग रहकर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखने की सबसे बड़ी चुनौती थी. यह चुनौती आज भी है. ज्यादातर बुनियादी नीतियों पर पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की छाप थी, जो 17 वर्ष, यानी सबसे लंबी अवधि तक, विदेशमंत्री रहे.

राजनीतिक-दृष्टि से उनका वामपंथी रुझान था. साम्राज्यवादउपनिवेशवाद और फासीवाद के वे विरोधी थे. उनके आलोचक मानते हैं कि उनकी राजनीतिक-दृष्टि में रूमानियत इतनी ज्यादा थी कि कुछ मामलों में राष्ट्रीय-हितों की अनदेखी कर गए. किसी भी देश की विदेश-नीति उसके हितों पर आधारित होती है. भारतीय परिस्थितियाँ और उसके हित गुट-निरपेक्ष रहने में ही थे. बावजूद इसके नेहरू की नीतियों को लेकर कुछ सवाल हैं.

चीन से दोस्ती

कश्मीर के अंतरराष्ट्रीयकरण और तिब्बत पर चीनी हमले के समय की उनकी नीतियों को लेकर देश के भीतर भी असहमतियाँ थीं. तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और नेहरू जी के बीच के पत्र-व्यवहार से यह बात ज़ाहिर होती है. उन्होंने चीन को दोस्त बनाए रखने की कोशिश की ताकि उसके साथ संघर्ष को टाला जा सके, पर वे उसमें सफल नहीं हुए.

तिब्बत की राजधानी ल्हासा में भारत का दूतावास हुआ करता था. उसका स्तर 1952 में घटाकर कौंसुलर जनरल का कर दिया गया. 1962 की लड़ाई के बाद वह भी बंद कर दिया गया. कुछ साल पहले भारत ने ल्हासा में अपना दफ्तर फिर से खोलने की अनुमति माँगी, तो चीन ने इनकार कर दिया.

1959 में भारत ने दलाई लामा को शरण जरूर दी, पर एक-चीन नीति यानी तिब्बत पर चीन के अधिकार को मानते रहे.  आज भी यह भारत की नीति है. तिब्बत को हम स्वायत्त-क्षेत्र मानते थे. चीन भी उसे स्वायत्त-क्षेत्र मानता है, पर उसकी स्वायत्तता की परीक्षा करने का अधिकार हमारे पास नहीं है.

सुरक्षा-परिषद की सदस्यता

पचास के दशक में अमेरिका की ओर से एक अनौपचारिक प्रस्ताव आया था कि भारत को चीन के स्थान पर संरा सुरक्षा परिषद की स्थायी कुर्सी दी जा सकती है. नेहरू जी ने उस प्रस्ताव को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि चीन की कीमत पर हम सदस्य बनना नहीं चाहेंगे.

उसके कुछ समय पहले ही चीन में कम्युनिस्टों ने सत्ता संभाली थी, जबकि संरा में चीन का प्रतिनिधित्व च्यांग काई-शेक की ताइपेह स्थित कुओमिंतांग सरकार कर रही थी. नेहरू जी ने कम्युनिस्ट चीन को मान्यता भी दी और उसे ही सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनाने का समर्थन भी किया.

Thursday, August 3, 2023

विदेश-नीति और आंतरिक-राजनीति की विसंगतियाँ

विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते लोकसभा में विरोधी सदस्यों के हंगामे के बीच भारत की विदेश-नीति तथा देश के नेताओं की हाल की विदेश यात्राओं के बारे में जानकारी देने के लिए एक बयान दिया. उस बयान को जिस राजनीतिक-बेरुखी का सामना करना पड़ा, उससे अनुमान लगाया जा सकता है कि आंतरिक-राजनीति, विदेश-नीति को कितना महत्व दे रही है.   

इस बात को स्वीकार करने की जरूरत है कि सरकार किसी भी पार्टी की हो, राष्ट्रीय-सुरक्षा और विदेश-नीति को लेकर आमराय होनी चाहिए. इन नीतियों में क्रमबद्धता होती है. ऐसा नहीं होता कि सरकार बदलने पर इन नीतियों में भारी बदलाव हो जाता हो.

इस महीने दक्षिण अफ्रीका में ब्रिक्स का एक महत्वपूर्ण शिखर सम्मेलन होने वाला है. उसके बाद सितंबर में जी-20 का शिखर सम्मेलन दिल्ली में होगा. ये सभी घटनाएं भारत के राष्ट्रीय-हितों के लिए भी महत्वपूर्ण हैं.

कैसे इंडिया?

संसद में अपने बयान के प्रति बेरुखी को देखते हुए जयशंकर ने कहा कि वे ‘इंडिया’ (विरोधी गठबंधन) होने का दावा करते हैं, लेकिन अगर वे भारत के राष्ट्रीय हितों के बारे में सुनने के लिए तैयार नहीं हैं, तो वे किस तरह के इंडिया हैं?

बहरहाल पिछले दिनों कुछ महत्वपूर्ण घटनाएं हुईं हैं, जिनपर मीडिया का ध्यान कम गया है. एक और घटना संसद से ही जुड़ी है. विदेशी मामलों से जुड़ी संसदीय समिति ने भारत सरकार को सलाह दी है कि यदि पाकिस्तान पहल करे, तो उसके साथ आर्थिक संबंध फिर से कायम करने चाहिए.

Sunday, June 25, 2023

भारत-अमेरिका रिश्तों का सूर्योदय


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका की राजकीय-यात्रा और उसके बाद मिस्र की यात्रा का महत्व केवल इन दोनों देशों के साथ रिश्तों में सुधार ही नहीं है, बल्कि वैश्विक-मंच पर भारत के आगमन को रेखांकित करना भी है। वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का भारत को लेकर दृष्टिकोण नया नहीं है। उन्होंने पहले सीनेट की विदेशी मामलों की समिति के अध्यक्ष के रूप में और बाद में जब वे बराक ओबामा के कार्यकाल में उपराष्ट्रपति थे, अमेरिका की भारत-समर्थक नीतियों को आगे बढ़ाया। उपराष्ट्रपति बनने के काफी पहले सन 2006 में उन्होंने कहा था, ‘मेरा सपना है कि सन 2020 में अमेरिका और भारत दुनिया में दो निकटतम मित्र देश बनें।’ उन्होंने ही कहा था कि भारत-अमेरिकी रिश्ते इक्कीसवीं सदी को दिशा प्रदान करेंगे। इस यात्रा के दौरान जो समझौते हुए हैं, वे केवल सामरिक-संबंधों को आगे बढ़ाने वाले ही नहीं हैं, बल्कि अंतरिक्ष-अनुसंधान, क्वांटम कंप्यूटिंग, सेमी-कंडक्टर और एडवांस्ड आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में नए दरवाजे खोलने जा रहे हैं। कुशल भारतीय कामगारों के लिए वीज़ा नियमों में ढील दी जा रही है। अमेरिका असाधारण स्तर के तकनीकी-हस्तांतरण के लिए तैयार हुआ है, वहीं आर्टेमिस समझौते में शामिल होकर भारत अब बड़े स्तर पर अंतरिक्ष अनुसंधान में शामिल होने जा रहा है। भारत के समानव गगनयान के रवाना होने के पहले या बाद में भारतीय अंतरिक्ष-यात्री किसी अमेरिकी कार्यक्रम में शामिल होकर अंतरराष्ट्रीय स्पेस स्टेशन (आईएसएस) पर काम करें। अमेरिका के साथ 11 देशों के खनिज-सुरक्षा सहयोग में शामिल होने के व्यापक निहितार्थ हैं। इस क्षेत्र में चीन की इज़ारेदारी खत्म करने के लिए यह सहयोग बेहद महत्वपूर्ण है। रूस और चीन के साथ भारत के भविष्य के रिश्तों की दिशा भी स्पष्ट होने जा रही है। भारत में अल्पसंख्यकों और मानवाधिकार से जुड़े कुछ सवालों पर भी इस दौरान चर्चा हुई और प्रधानमंत्री मोदी ने पैदा की गई गलतफहमियों को भी दूर किया।

स्टेट-विज़िट

यह तीसरा मौका था, जब भारत के किसी नेता को अमेरिका की आधिकारिक-यात्रा यानी स्टेट-विज़िटपर बुलाया गया था। अमेरिका को चीन के बरक्स संतुलन बनाने के लिए भारत की जरूरत है। भारत को भी बदलती अमेरिकी तकनीक, पूँजी और राजनयिक-समर्थन चाहिए। अमेरिका अकेला नहीं है, उसके साथ कनाडा, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के कई देश हैं। जिस प्रकार के समझौते अमेरिका में हुए हैं, वे एक दिन में नहीं होते। उनकी लंबी पृष्ठभूमि होती है। प्रधानमंत्री की यात्रा के कुछ दिन पहले अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आए थे। उनके साथ बातचीत के बाद काफी सौदों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी थी। जनवरी में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अमेरिकी रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसेट) को लॉन्च किया था। पश्चिमी देश इस बात को महसूस कर रहे हैं कि भारत की रूस पर निर्भरता इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि उन्होंने भारत की उपेक्षा की। इस यात्रा के ठीक पहले भारत और जर्मनी के बीच छह पनडुब्बियों के निर्माण पर सहमति बनी। भारत के दौरे पर आए जर्मन रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने कहा कि भारत का रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है।

रिश्तों की पृष्ठभूमि

भारत-अमेरिका रिश्तों के संदर्भ में बीसवीं और इक्कीसवीं सदी का संधिकाल तीन महत्वपूर्ण कारणों से याद रखा जाएगा। पहला, भारत का नाभिकीय परीक्षण, दूसरा करगिल प्रकरण और तीसरे भारत और अमेरिका के बीच लंबी वार्ताएं। सबसे मुश्किल काम था नाभिकीय परीक्षण के बाद भारत को वैश्विक राजनीति की मुख्यधारा में वापस लाना। नाभिकीय परीक्षण करके भारत ने निर्भीक विदेश-नीति की दिशा में सबसे बड़ा कदम अवश्य उठाया था, पर उस कदम के जोखिम भी बहुत बड़े थे। ऐसे नाजुक मौके में तूफान में फँसी नैया को किनारे लाने का एक विकल्प था कि अमेरिका से रिश्तों को सुधारा जाए। तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने राष्ट्रपति बिल क्लिंटन को एक पत्र लिखा, हमारी सीमा पर एटमी ताकत से लैस एक देश बैठा है, जो 1962 में हमला कर भी चुका है। हालांकि उसके साथ हमारे रिश्ते सुधरे हैं, पर अविश्वास का माहौल है। इस देश ने हमारे एक और पड़ोसी को एटमी ताकत बनने में मदद की है। अमेरिका भी व्यापक फलक पर सोच रहा था, तभी तो उसने उस पत्र को सोच-समझकर लीक किया।

Wednesday, June 21, 2023

भारत-अमेरिका सहयोग की लंबी छलाँग

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 20 से 25 जून तक अमेरिका और मिस्र की यात्रा पर जा रहे हैं. यह यात्रा अपने आप में बेहद महत्वपूर्ण है, और उसके व्यापक राजनयिक निहितार्थ हैं. यह तीसरा मौका है, जब भारत के किसी नेता को अमेरिका की आधिकारिक-यात्रा यानी स्टेट-विज़िटपर बुलाया गया है.

इस यात्रा को अलग-अलग नज़रियों से देखा जा रहा है. सबसे ज्यादा विवेचन सामरिक-संबंधों को लेकर किया जा रहा है. अमेरिका कुछ ऐसी सैन्य-तकनीकें भारत को देने पर सहमत हुआ है, जो वह किसी को देता नहीं है. कोई देश अपनी उच्चस्तरीय रक्षा तकनीक किसी को देता नहीं है. अमेरिका ने भी ऐसी तकनीक किसी को दी नहीं है, पर बात केवल इतनी नहीं है. यात्रा के दौरान कारोबारी रिश्तों से जुड़ी घोषणाएं भी हो सकती हैं.

सहयोग की नई ऊँचाई

इक्कीसवीं सदी के पिछले 23 वर्षों में भारत-अमेरिका रिश्तों में क्रमबद्धता है. उसी श्रृंखला में यह यात्रा रिश्तों को एक नई ऊँचाई पर ले जाएगी. आमतौर पर माना जा रहा है कि अमेरिका को चीन के बरक्स संतुलन बनाने के लिए भारत की जरूरत है. दूसरी तरफ भारत को भी बदलती वैश्विक-परिस्थितियों में अमेरिकी तकनीक, पूँजी और राजनयिक-समर्थन की जरूरत है.

प्रधानमंत्री की यात्रा के कुछ दिन पहले अमेरिकी रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन भारत आए थे. अनुमान है कि उनके साथ बातचीत के बाद काफी सौदों की पृष्ठभूमि तैयार हो चुकी है. इसी साल जनवरी में भारत के रक्षा सलाहकार अजित डोभाल और अमेरिकी रक्षा सलाहकार जेक सुलीवन ने इनीशिएटिव फॉर क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसेट) को लॉन्च किया था. तकनीकी सहयोग के लिहाज से यह बेहद महत्वपूर्ण पहल है.

भारत की रक्षा खरीद परिषद ने गत 15 जून को जनरल एटॉमिक्स से 30 प्रिडेटर ड्रोन खरीद के सौदे को स्वीकृति दे दी. इन 30 में से 14 नौसेना को मिलेंगे. हिंद महासागर में भारत की बढ़ती भूमिका के मद्देनज़र यह खरीद काफी महत्वपूर्ण है. नौसेना ने 2020 में दो एमक्यू-9ए ड्रोन पट्टे पर लिए थे, जिन्होंने पिछले साल तक 10 हजार घंटों की उड़ानें भर ली थीं.

मोदी की यात्रा के दौरान संभावित सामरिक-सौदों के अनुमान भारत की रक्षा-खरीद परिषद के फैसलों से लगाए जा सकते हैं. कुछ सौदों का अनुमान लगाया नहीं जा सकता, क्योंकि उनके साथ गोपनीयता की शर्तें होती हैं. अलबत्ता लड़ाकू जेट विमानों के लिए जनरल इलेक्ट्रिक इंजनों के भारत में निर्माण का समझौता उल्लेखनीय होगा.

भारत को विमानवाहक पोतों पर तैनात करने के लिए लड़ाकू विमानों की जरूरत है, जो रूसी मिग-29के की जगह लेंगे. इसके लिए फ्रांसीसी राफेल और अमेरिका के एफ/ए-18 सुपर हॉर्नेट के परीक्षण हो चुके हैं. देखना होगा कि दोनों में से कौन से विमान का चयन होता है.

भारत के लड़ाकू विमान कार्यक्रम में एक बाधा स्वदेशी हाई थ्रस्ट जेट इंजन कावेरी के विकास में आए अवरोधों ने पैदा की है. जीई के इंजन को तेजस मार्क-2 में लगाया जाएगा और दो इंजन वाले पाँचवीं पीढ़ी के विमान एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एम्का) में भी जीई के इंजनों का इस्तेमाल होगा.

सबसे बड़ी जरूरत रक्षा उद्योग में आत्मनिर्भरता से जुड़ी है. इस दौरान भारत अपने कावेरी इंजन का उत्तरोत्तर विकास करेगा. इसके साथ ही फ्रांस के सैफ्रान और ब्रिटेन के रॉल्स रॉयस के साथ भी जेट इंजन विकास की बातें चल रही हैं.

पश्चिमी देश अब इस बात को महसूस कर रहे हैं कि भारत की रूस पर निर्भरता इसलिए भी बढ़ी, क्योंकि हमने उसकी उपेक्षा की. ताजा खबर है कि भारत और जर्मनी के बीच छह पनडुब्बियों के निर्माण का समझौता होने जा रहा है. हाल में भारत के दौरे पर आए जर्मन रक्षामंत्री बोरिस पिस्टोरियस ने  डॉयचे वेले (जर्मन रेडियो) को दिए इंटरव्यू में कहा कि भारत का रूसी हथियारों पर निर्भर रहना जर्मनी के हित में नहीं है.

Thursday, May 25, 2023

जी-7 में भारत की बढ़ती भूमिका

जैसी कि उम्मीद थी, हिरोशिमा में जी-7 देशों ने चीन और रूस को निशाना बनाया. हिंद-प्रशांत की सुरक्षा योजना का सदस्य होने के नाते भारत की भूमिका भी चीनी-घेराबंदी में है, पर रूस की घेराबंदी में नहीं. जापान के प्रधानमंत्री किशिदा फुमियो इस समय ज्यादा आक्रामक हैं.

हिरोशिमा में यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेंस्की को भी बुलाया गया था. सम्मेलन के अंत में जारी संयुक्त बयान में कहा गया कि हम उम्मीद करते हैं कि यूक्रेन युद्ध रोकने के लिए रूस पर चीन दबाव बनाएगा.

भारत जी-7 का सदस्य नहीं है, पर जापान के विशेष निमंत्रण पर भारत भी इस बैठक में गया था. भारत को लगातार तीसरे साल इसके सम्मेलन में शामिल होने का अवसर मिला है. कयास हैं कि अंततः किसी समय इसके आठवें सदस्य के रूप में भारत को भी शामिल किया जा सकता है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रकारांतर से वहाँ चीन की आलोचना की. उन्होंने जी-7 के अलावा क्वाड के शिखर सम्मेलन में शिरकत भी की. अब वे पापुआ न्यूगिनी होते हुए ऑस्ट्रेलिया और अब भारत पहुँच गए हैं.

भारत की दिलचस्पी केवल चीन को निशाना बनाने में नहीं है, बल्कि आर्थिक विकास की संभावनाओं को खोजने में है. आगामी 22 जून को पीएम मोदी अमेरिका की राजकीय-यात्रा पर जाने वाले हैं. इस साल एससीओ और जी-20 के शिखर सम्मेलन भारत में हो रहे हैं और अगले साल होगा क्वाड का शिखर सम्मेलन. इस रोशनी में भारत की वैश्विक-भूमिका को देखा जा सकता है.   

Sunday, May 21, 2023

जी-7 और बदलती दुनिया में भारत


हिरोशिमा में ग्रुप ऑफ सेवन के शिखर सम्मेलन से एक बात यह निकल कर आ रही है कि चीन-विरोधी मोर्चे को खड़ा करने में अमेरिका और जापान की दिलचस्पी यूरोपियन देशों की तुलना में ज्यादा है. जापान और अमेरिका चाहते हैं कि चीन के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया जाए, जबकि जर्मनी और फ्रांस जैसे यूरोपियन देशों को अब भी लगता है कि चीन के साथ दोस्ताना रिश्ते बनाए रखने में समझदारी है। शुक्रवार को शुरू हुआ तीन दिन का यह सम्मेलन रविवार को समाप्त होगा। इस दौरान दो बातें साफ हो गई हैं। एक, रूस के खिलाफ आर्थिक पाबंदियों को और कड़ा किया जाएगा और दूसरे चीन की घेराबंदी जारी रहेगी। ताइवान की सुरक्षा और हिंद-प्रशांत क्षेत्र सम्मेलन में छाए हुए हैं। हिरोशिमा जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा का गृहनगर भी है। उन्होंने सम्मेलन में भाग लेने कि लिए जिन सात गैर जी-7 देशों को आमंत्रित किया है, उन्हें देखते हुए इस बात को समझा जा सकता है। भारत, ब्राज़ील और इंडोनेशिया जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की उपस्थिति और दक्षिण कोरिया, वियतनाम और ऑस्ट्रेलिया की उपस्थिति इस बात को स्पष्ट करती है। इसके समांतर क्वाड का शिखर सम्मेलन भी हो रहा है, जिसे पिछले हफ्ते ऑस्ट्रेलिया में होना था। जो बाइडेन के कार्यक्रम में बदलाव के कारण वह सम्मेलन स्थगित कर दिया गया था। जो बाइडेन के दिमाग में अमेरिका-नीत विश्व-व्यवस्था है। उसके केंद्र में वे जी-7 को रखना चाहते हैं। बावजूद इसके यूरोपियन यूनियन और अमेरिकी दृष्टिकोणों में एकरूपता नहीं है।

सात देशों का समूह

दुनिया के सात सबसे ताकतवर देशों के नेता हिरोशिमा में एकत्र हुए हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान एटम बम का पहला शिकार बना था हिरोशिमा शहर। संयोग से आज दुनिया फिर से उन्हीं सवालों को लेकर परेशान है, जो दूसरे विश्वयुद्ध के समय उभरे थे। केवल कुछ नाम इधर-उधर हुए हैं। सात देशों के समूह में जापान और जर्मनी शामिल हैं, जो दूसरे विश्वयुद्ध में शत्रु-पक्ष थे। वहीं चीन और रूस जैसे मित्र-पक्ष के देश आज शत्रु-पक्ष माने जा रहे हैं। कुछ साल पहले तक रूस भी इस समूह का सदस्य था, जो अब दूसरे पाले में है। इस अनौपचारिक समूह के सदस्य हैं कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, युनाइटेड किंगडम और अमेरिका। जी-7 की बैठकों में कुछ मित्र देशों और अंतरराष्ट्रीय संगठनों को बुलाने की भी परंपरा है। इस साल ऑस्ट्रेलिया, ब्राज़ील, कोमोरोस, कुक आइलैंड्स, भारत, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को आमंत्रित किया गया है। इन सम्मेलनों में आर्थिक नीतियाँ, सुरक्षा से जुड़े सवालों, ऊर्जा, लैंगिक प्रश्नों से लेकर पर्यावरण तक सभी सवालों पर चर्चा होती है। इस सम्मेलन को लेकर हमारी विदेश-नीति के साथ भी कुछ बड़े सवाल जुड़े हुए हैं।

Friday, May 19, 2023

एससीओ में उभरेगी भारतीय विदेश-नीति की दिशा


एससीओ विदेशमंत्रियों के सम्मेलन के हाशिए पर भारत-पाकिस्तान मसलों के उछलने की वजह से एससीओ की गतिविधियाँ पृष्ठभूमि में चली गईं. रूस-चीन प्रवर्तित इस संगठन का विस्तार यूरेशिया से निकल कर एशिया के दूसरे क्षेत्रों तक हो रहा है. जब दुनिया में महाशक्तियों का टकराव बढ़ रहा है, तब इस संगठन की दशा-दिशा पर निगाहें बनाए रखने की जरूरत है. खासतौर से इसलिए कि इसमें भारत की भी भूमिका है.

इस साल भारत में हो रहे जी-20 और एससीओ के कार्यक्रमों में वैश्विक-राजनीति के अंतर्विरोध उभर रहे हैं और उभरेंगे. ज़ाहिर है कि भारत दो ध्रुवों के बीच अपनी जगह बना रहा है. एससीओ पर चीन और रूस का वर्चस्व है. यहाँ तक कि संगठन का सारा कामकाज रूसी और चीनी भाषा में होता है. जी-20 संगठन नहीं एक ग्रुप है, पर उसकी भूमिका बहुत ज्यादा है.

रूस और चीन मिलकर नई विश्व-व्यवस्था बनाना चाहते हैं. यूक्रेन-युद्ध के बाद से यह प्रक्रिया तेज हुई है. इसमें एससीओ और ब्रिक्स की महत्वपूर्ण भूमिका होगी. एससीओ के अलावा भारत, रूस और चीन ब्रिक्स के सदस्य भी हैं. ब्राजील हालांकि बीआरआई में शामिल नहीं है, पर वहाँ हाल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद उसका झुकाव चीन की ओर बढ़ा है.

भारत की दिलचस्पी

रूस और चीन के बीच भी प्रतिस्पर्धा है. रूस के आग्रह पर ही भारत इसका सदस्य बना है. चीन के साथ भारत दूरगामी संतुलन बैठाता है. सवाल है कि भारत इस संगठन में अलग-थलग तो नहीं पड़ेगा? हमारी दिलचस्पी रूस से लगे मध्य एशिया के देशों के साथ कारोबारी और सांस्कृतिक संपर्क बनाने में है.

भारत क्वाड का सदस्य भी है, जो रूस और चीन दोनों को नापसंद है. अमेरिका, जापान और यूरोप के साथ भारत के अच्छे रिश्ते हैं. इन बातों में टकराव है, जिससे भारत बचता है. फिलहाल संधिकाल है और आर्थिक-शक्ति हमारे महत्व को स्थापित करेगी.

Friday, March 24, 2023

पानी पर कब्जे की लड़ाई या सहयोग?


जनवरी के महीने में जब भारत ने पाकिस्तान को सिंधु जलसंधि पर संशोधन का सुझाव देते हुए एक नोटिस दिया था, तभी स्पष्ट हो गया था कि यह एक नए राजनीतिक टकराव का प्रस्थान-बिंदु है. सिंधु जलसंधि दुनिया के सबसे उदार जल-समझौतों में से एक है. भारत ने सिंधु नदी से संबद्ध छह नदियों के पानी का पाकिस्तान को उदारता के साथ इस्तेमाल करने का मौका दिया है. अब जब भारत ने इस संधि के तहत अपने हिस्से के पानी के इस्तेमाल का फैसला किया, तो पाकिस्तान ने आपत्ति दर्ज करा दी.

माना जाता है कि कभी तीसरा विश्वयुद्ध हुआ, तो पानी को लेकर होगा. जीवन की उत्पत्ति जल में हुई है. पानी के बिना जीवन संभव नहीं, इसीलिए कहते हैं ‘जल ही जीवन है.’ जल दिवस 22 मार्च को मनाया जाता है. इसके पहले 14 मार्च को दुनिया में एक्शन फॉर रिवर्स दिवस मनाया गया है. नदियाँ पेयजल उपलब्ध कराती हैं, खेती में सहायक हैं और ऊर्जा भी प्रदान करती हैं.

इन दिवसों का उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित कराना है. साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है. दुनिया यदि चाहती है कि 2030 तक हर किसी तक स्वच्छ पेयजल और साफ़-सफ़ाई की पहुँच सुनिश्चित हो, जिसके लिए एसडीजी-6 लक्ष्य को प्राप्त करना है, तो हमें चार गुना तेज़ी से काम करना होगा.

चीन का नियंत्रण

हाल के वर्षों में चीन का एक बड़ी आर्थिक-सामरिक शक्ति के रूप में उदय हुआ है. जल संसाधनों की दृष्टि से भी वह महत्वपूर्ण शक्ति है. दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में बहने वाली सात महत्वपूर्ण नदियों पर चीन का प्रत्यक्ष या परोक्ष नियंत्रण है. ये नदियाँ हैं सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र, इरावदी, सलवीन, यांगत्जी और मीकांग. ये नदियां भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, म्यांमार, लाओस और वियतनाम से होकर गुजरती हैं.

पिछले साल, पाकिस्तान और नाइजीरिया में आई बाढ़, या अमेजन और ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग से पता लगता है कि पानी का संकट हमारे जीवन को पूरी तरह उलट देगा. हमारे स्वास्थ्य, हमारी सुरक्षा, हमारे भोजन और हमारे पर्यावरण को ख़तरे में डाल देगा.

Wednesday, March 22, 2023

इस माहौल में क्या भारत-पाक वार्ता संभव है?


 देस-परदेश

पाकिस्तान अपने आर्थिक-संकट और आंतरिक राजनीतिक-विवादों में उलझा हुआ है, पर बीच-बीच में भारत-पाकिस्तान बातचीत शुरू होने की सुगबुगाहट सुनाई पड़ती है. ऐसा पिछले साल अप्रेल में हुए सत्ता परिवर्तन के बाद से चल रहा है. पाकिस्तान के आंतरिक राजनीतिक टकराव के दौरान भी कई बार यह बात सुनाई पड़ी है कि भारत के साथ रिश्ते सुधारने चाहिए.

पाकिस्तान में यह मानने वाले भी हैं कि भारत के साथ कारोबारी रिश्तों को कायम करना देशहित में है. खासतौर से जब अमेरिका और ईयू में मंदी है, तब भारत के साथ कारोबारी संबंध बनाने से पाकिस्तान की गिरती दशा को सुधारा जा सकता है. कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि 2019 में व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना गलत था.

भारत-पाकिस्तान रिश्तों की गाड़ी ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर चलती है. किसी भी क्षण जबर्दस्त झटका लगता है और सब कुछ बिखर जाता है. फिर भी एक आस बँधी रहती है कि शायद अब कुछ सकारात्मक हो. दूसरी तरफ पाकिस्तान में एक पूरा प्रतिष्ठान भारत-विरोध के नाम पर खड़ा है. उसका मूल स्वर है ‘कश्मीर बनेगा पाकिस्तान.’ कश्मीर के मामले पर पूरा देश बेहद ऊँचे तापमान पर गर्म रहता है.

Friday, March 17, 2023

इमरान की गिरफ्तारी होने या नहीं होने से खत्म नहीं होगा पाकिस्तान का राजनीतिक-संकट


हालांकि पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान फिलहाल गिरफ्तारी से बचे हुए हैं, पर लगता है कि तोशाखाना केस में वे घिर जाएंगे. इस्लामाबाद हाईकोर्ट ने उनके गिरफ्तारी वारंट पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है, जिसका मतलब है कि अदालत ने इस मामले में फौरन रिलीफ नहीं दी है. लाहौर हाई कोर्ट ने पहले गुरुवार सुबह 10 बजे तक ज़मान पार्क में पुलिस-कार्रवाई पर रोक लगाई और फिर उसे एक दिन के लिए और बढ़ा दिया. इससे फिलहाल टकराव रुक गया है, पर राजनीतिक-संकट कम नहीं हुआ है. वस्तुतः गिरफ्तारी हुई, तो एक नया संकट शुरू होगा. और नहीं हुई, तो एक नज़ीर बनेगी, जो देश की कानून-व्यवस्था के लिए सवाल खड़े करेगी. उधर तोशाखाना केस की सुनवाई कर रहे जज ने कहा है कि इमरान अदालत में हाजिर हो जाएं, तो गिरफ्तारी वारंट वापस हो जाएगा.

पाकिस्तान के वर्तमान राजनीतिक-आर्थिक और सामरिक संकटों का हल तभी संभव है, जब वहाँ की राजनीतिक-शक्तियाँ एक पेज पर आएं. ताजा खबर है कि प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने इसकी पेशकश की है, और इमरान ने कहा है कि देशहित में मैं किसी से भी बात करने को तैयार हूँ। फिर भी इसकी कल्पना अभी नहीं की जा सकती है. सरकार और इमरान के राष्ट्रीय-संवाद के बीच तमाम अवरोध हैं। बहरहाल जो टकराव चल रहा है, उसे किसी तार्किक परिणति तक पहुँचना होगा. इस संकट की वजह से अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष का बेलआउट पैकेट खटाई में पड़ा हुआ है.

आर्थिक-संकट

पाकिस्तान की कोशिश है कि अमेरिका की मदद से मुद्राकोष के रुख में कुछ नरमी आए. पिछले हफ्ते देश के वित्त सचिव हमीद याकूब शेख ने कहा था कि पैकेज की घोषणा अब कुछ दिन के भीतर ही हो जाएगी. यह बात पिछले कई हफ्तों से कही जा रही है. मुद्राकोष देश की वित्तीय और खासतौर से राजनीतिक-स्थिति को लेकर आश्वस्त नहीं है. दूसरी तरफ ऐसी अफवाहें उड़ाई जा रही हैं कि आईएमएफ ने देश के नाभिकीय-मिसाइल कार्यक्रम को रोकने की शर्त भी लगाई है. इसपर सरकार ने सफाई भी दी है.