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Wednesday, December 25, 2024

चीन से रिश्ते बनाने में धैर्य और समझदारी की परीक्षा


भारत की सुदूर-पूर्व विदेश-नीति के मद्देनज़र दो घटनाओं ने हाल में खासतौर से ध्यान खींचा है. दोनों चीन और उत्तरी कोरिया से जुड़ी हैं. ये दोनों प्रसंग ध्रुवीकरण से जुड़ी वैश्विक-राजनीति के दौर में भारत की स्वतंत्र विदेश-नीति की ओर भी इशारा कर रहे हैं. 

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने गत 18 दिसंबर को बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात की. इस बैठक के परिणामों से लगता है कि दोनों देश भारत पिछले चार साल से चले आ रहे गतिरोध को दूर करके सहयोग के नए रास्ते तलाश करने पर राजी हो गए हैं. 

चीन-भारत सीमा प्रश्न के लिए विशेष प्रतिनिधियों की यह 23वीं बैठक थी. संवाद की इस प्रक्रिया की शुरुआत 2003 में दशकों से चले आ रहे भारत-चीन सीमा विवाद का संतोषजनक समाधान खोजने के लिए की गई थी. 

अभी कहना मुश्किल है कि इस रास्ते पर सफलता कितनी मिलेगी, पर इतना स्पष्ट है कि स्थितियों में बुनियादी बदलाव दिखाई पड़ रहा है. इस समझौते से सीमा-विवाद सुलझ नहीं जाएँगे, पर रास्ता खुल सकता है, बशर्ते सब ठीक रहे. पाँच साल बाद दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों के बीच यह पहली औपचारिक बैठक द्विपक्षीय संबंधों में बर्फ पिघलने जैसी है. 

भारत-बांग्ला रिश्ते कब और कैसे पटरी पर वापस आएँगे?


भारतीय सेना की गौरव-गाथा से जुड़ा एक ऐसा दिन है, जिसे दोनों देश ‘विजय दिवस’ के रूप में मनाते हैं. यह 16 दिसम्बर को 1971 की लड़ाई में पाकिस्तान पर भारत की जीत के कारण मनाया जाता है, जिसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ. 

अब शेख हसीना के पराभव के बाद अंदेशा था कि इस साल दोनों देशों का संयुक्त समारोह होगा या नहीं. यह अंदेशा गलत साबित हुआ. 16 दिसंबर को यह समारोह कोलकाता में पूर्वी कमान मुख्यालय में मनाया गया, जिसमें बांग्लादेश की सेना के अधिकारी भी शामिल हुए.  

इस समारोह को मनाने के बारे में निर्णय गत 9 दिसंबर को ढाका में भारतीय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस तथा  बांग्लादेशी विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन और विदेश सचिव मोहम्मद जशीम उद्दीन के बीच उच्च स्तरीय वार्ता के बाद हुआ था. 

तूफान के बाद 

एक तरफ बांग्लादेश की राजनीति में उफान आने के बाद स्थितियाँ सामान्य होने की दिशा में बढ़ रही हैं, वहीं भारत के साथ रिश्ते नई परिस्थितियों में परिभाषित हो रहे हैं. शेख हसीना के पराभव के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में जो तल्ख़ी आई है, उसे अब दूर करने के प्रयास हो रहे हैं. 

Thursday, November 28, 2024

हालात की माँग है कि भारत और चीन के संबंध सुधरें


भारत और चीन के संबंधों को लेकर पिछले कुछ महीनों में हुई गतिविधियों से यह स्पष्ट संकेत मिला है कि दोनों देशों के बीच बिगड़े संबंध अब सुधार की दिशा में बढ़ रहे हैं, पर यह साफ नहीं है कि सुधार की पहल भारत की ओर से हुई या चीन की ओर से. या फिर दोनों देश अपने अनुभवों को देखते हुए समझौते की मेज पर आए हैं.

एक महीने पहले 21 अक्तूबर को दोनों देशों ने एलएसी पर टकराव के दो बिंदुओं, देपसांग मैदानों और डेमचोक में गश्त व्यवस्था पर एक समझौता किया है. उसे देखते हुए लगता है कि वहाँ अप्रेल 2020 से पहले की स्थिति या तो बहाल हो गई है, या जल्द हो जाएगी. 

उसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के बीच रूस के कज़ान शहर में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के हाशिए पर मुलाकात हुई. इन दोनों बातों के अलावा विदेशमंत्री एस जयशंकर ने बताया कि दोनों देशों ने रिश्तों को सुधारने की दिशा में कुछ नए कदम उठाने का फैसला किया है. 

चीनी नज़रिया

हाल में भारतीय पत्रकारों की एक टीम को बुलाकर चीन ने उन्हें अपना दृष्टिकोण समझाने की कोशिश की. अंग्रेजी के एक अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ‘चीनी अधिकारियों, व्यापारिक समुदाय के सदस्यों, तथा सरकारी थिंक टैंकों और मीडिया संगठनों के साथ हुई बैठकों का यह संदेश स्पष्ट था कि चीन रिश्तों को आगे बढ़ाना चाहता है.’

‘अधिकारियों ने अपनी ‘इच्छा-सूची’ बताई: देशों के बीच ‘सीधी उड़ानें’ फिर से शुरू करना, राजनयिकों और विद्वानों सहित चीनी नागरिकों पर वीजा प्रतिबंधों में ढील, चीनी मोबाइल ऐप पर प्रतिबंध हटें, चीनी पत्रकारों को भारत से रिपोर्टिंग करने दी जाए और चीनी सिनेमाघरों में अधिक भारतीय फिल्में दिखाने की अनुमति मिले आदि.’

Wednesday, October 30, 2024

बांग्लादेश में तख्तापलट और भारत से रिश्ते

बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार के विरुद्ध हुई बगावत और उसके बाद डॉ मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में कार्यवाहक सरकार के गठन के बाद दक्षिण एशिया की राजनीति में रातोंरात बड़ा बदलाव हो गया है। डॉ यूनुस को देश का मुख्य सलाहकार कहा गया है, पर व्यावहारिक रूप से यह प्रधानमंत्री का पद है। उन्हें प्रधानमंत्री या उनके सहयोगियों को मंत्री इसलिए नहीं कहा गया है, क्योंकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। पहला सवाल है कि क्या यह सरकार शीघ्र चुनाव कराएगी? डॉ यूनुस ने संकेत दिया है कि हम जल्दी चुनाव नहीं कराएंगे, बल्कि देश में बड़े स्तर पर सुधारों का काम करेंगे।

उनसे पूछा गया कि कैसे सुधार, तब उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग, न्यायपालिका, प्रशासनिक मशीनरी और मीडिया में सुधार की जरूरत है। देश में अब जो हो रहा है, उसका परिणाम क्या होगा यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा। ज्यादा बड़े सवाल सांविधानिक-संस्थाओं से जुड़े हैं, मसलन अदालतें। पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को राष्ट्रपति के आदेश से रिहा कर दिया गया है। क्या यह संविधान-सम्मत कार्य है? इसी तरह एक अदालत ने मुहम्मद यूनुस को आरोपों से मुक्त कर दिया। क्या यह न्यायिक-कर्म की दृष्टि से उचित है? ऐसे सवाल आज कोई नहीं पूछ रहा है, पर आने वाले समय में पूछे जा सकते हैं।  

Thursday, October 10, 2024

भारत-पाकिस्तान रिश्ते और क्षेत्रीय-सहयोग के स्वप्न


इस महीने 15-16 को इस्लामाबाद में हो रहे शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए विदेशमंत्री एस जयशंकर पाकिस्तान जा रहे हैं. उनकी यात्रा को लेकर अटकलें लगाई जा रही हैं कि क्या इसे दोनों देशों के संबंध-सुधार की शुरुआत माना जाए?  

हालांकि विदेश मंत्रालय और स्वयं विदेशमंत्री ने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा द्विपक्षीय-संबंधों को लेकर नहीं है, फिर भी सम्मेलन से बाहर, खासतौर से मीडिया में, रिश्तों को लेकर चर्चा जरूर होगी. पर यह चर्चा आधिकारिक रूप से नहीं होगी, सम्मेलन के हाशिए पर भी नहीं.

दूसरी तरफ सम्मेलन में भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में भारत-पाकिस्तान प्रसंग प्रतीकों के माध्यम से उठेंगे. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई, क्षेत्रीय-सहयोग और साइबर-सुरक्षा जैसे मसलों पर चर्चा के दौरान ऐसी बातें हों, तो हैरत नहीं होगी.

Wednesday, September 25, 2024

अमेरिका-दौरा और वृहत्तर-भूमिका में क्वॉड


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका-यात्रा भले ही ऐसे वक्त में हुई है, जब राष्ट्रपति जो बाइडेन का कार्यकाल पूरा हो रहा है, फिर भी अमेरिका के साथ द्विपक्षीय-रिश्ते हों या क्वॉड का शिखर सम्मेलन दोनों मामलों में सकारात्मक प्रगति हुई है. ‘बदलते और उभरते भारत पर केंद्रित इस दौरे की थीम भी सार्थक हुई.  

क्वॉड शिखर-सम्मेलन मूलतः चीन-केंद्रित था, पर, भारत इसे केवल चीन-केंद्रित मानने से बचता है. इसबार के सम्मेलन में समूह ने प्रत्यक्षतः भारतीय-दृष्टिकोण को अंगीकार कर लिया. इसे एशियाई-नेटो के बजाय, हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साझा-हितों के रक्षक के रूप में स्वीकार कर लिया गया है. बावजूद इसके चीन का नाम लिए बगैर, जो कहना था, कह दिया गया.

वृहत्तर-सहयोग

हिंद-प्रशांत देशों के बीच इंफ्रास्ट्रक्चर, सेमी कंडक्टर, स्वास्थ्य और प्राकृतिक-आपदाओं के बरक्स राहत-सहयोग जैसे मसलों को इसबार के सम्मेलन में रेखांकित किया गया. संयुक्त राष्ट्र की संरचना में सुधार और सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट को लेकर भी इस सम्मेलन में सहमति व्यक्त की गई.

इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि क्वॉड किसी के खिलाफ नहीं है बल्कि यह नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था और संप्रभुता के पक्ष में है. स्वतंत्र, खुला, समावेशी और समृद्ध हिंद-प्रशांत हमारी प्राथमिकता है.

इनके साथ-साथ संरा समिट ऑफ फ्यूचर में ग्लोबल साउथ के संदर्भ में  भारतीय पहल को समझने की जरूरत है. यहाँ भी मुकाबला चीन से है. इस सम्मेलन में प्रधानमंत्री मोदी ने भविष्य के खतरों की ओर दुनिया का ध्यान खींचा. साथ ही उन्होंने विश्वमंच को आइना भी दिखाया, जिसने सुरक्षा-परिषद की स्थायी सीट से भारत को वंचित कर रखा है.

Wednesday, September 18, 2024

विश्व-शांति के प्रयास और भारत की बढ़ती भूमिका


इस हफ्ते भारतीय विदेश-नीति का फोकस अमेरिका पर रहेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिका की यात्रा पर जा रहे हैं. पिछले साल जून की उनकी अमेरिका-यात्रा ने राजनीतिक और राजनयिक दोनों मोर्चों पर कुछ बड़ी परिघटनाओं को जन्म दिया था. इसबार हालांकि भारत-अमेरिका रिश्ते पूरी तरह विमर्श के केंद्र में नहीं होंगे, पर होंगे जरूर. साथ ही भारत और शेष-विश्व के रिश्तों पर रोशनी भी पड़ेगी.

हाल में बांग्लादेश में हुए सत्ता-परिवर्तन के बाद इस क्षेत्र में अमेरिका की भूमिका की ओर अभी तक हमारा ध्यान गया नहीं है. अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण और मध्य एशिया के लिए सहायक विदेशमंत्री डोनाल्ड लू भारत का दौरा पूरा करके सोमवार तक बांग्लादेश में थे.

बताया जा रहा है कि उनकी इस यात्रा का उद्देश्य बांग्लादेश के ताजा हालात की समीक्षा करने के अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच के मसलों को समझना भी है. शायद कड़वाहट को दूर करना भी. इस दौरान वे भारत-अमेरिका टू प्लस टू अंतर-सत्र वार्ता में भी शामिल हुए. दोनों देशों के बीच छठी वार्षिक टू प्लस टू वार्ता इस साल किसी वक्त वॉशिंगटन में होनी है.

टू प्लस टू

दोनों देशों के बीच 2018 से शुरू हुई ‘टू प्लस टू’ स्तर की वार्ता ने कई स्तर पर रिश्तों को पुष्ट किया है. पिछली वार्ता नवंबर में हुई थी, जिसमें भारत के विदेशमंत्री एस जयशंकर और रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और अमेरिका के विदेशमंत्री एंटनी ब्लिंकन व रक्षामंत्री लॉयड ऑस्टिन ने भाग लिया.

Wednesday, September 11, 2024

भारत की भू-राजनीतिक भूमिका और पाकिस्तान से रिश्ते


विदेश-नीति के मोर्चे पर एकसाथ कई बातें हो रही हैं, जिनमें भारत-पाकिस्तान रिश्तों को लेकर शुरू हुई सुगबुगाहट शामिल है. अगले महीने पाकिस्तान में होने वाली शंघाई सहयोग संगठन की शिखर बैठक में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रित किया गया है. सवाल है कि क्या मोदी, पाकिस्तान जाएंगे?

उनका जाना और नहीं जाना, दोनों बातें दोनों देशों के रिश्तों के लिहाज से महत्वपूर्ण होंगी. उनपर बात जरूर होनी चाहिए, पर उसके पहले वैश्विक-राजनीति में भारत की बढ़ती भूमिका से जुड़ी कुछ बातों पर रोशनी डालने की जरूरत भी है.

पिछले दिनों पीएम मोदी की यूक्रेन-यात्रा के बाद संभावनाएं बढ़ी हैं कि रूस और यूक्रेन के बीच बातचीत में भारत की भूमिका हो सकती है. अब खबर है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ब्रिक्स के एनएसए सम्मेलन में भाग लेने के लिए रूस जा रहे हैं. 10-12 सितंबर को सेंट पीटर्सबर्ग में हो रहा, यह सम्मेलन प्रकारांतर से उसी उद्देश्य से आयोजित किया जा रहा है।

इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी ने शनिवार को कहा कि भारत और चीन जैसे देश यूक्रेन के संघर्ष को सुलझाने में भूमिका निभा सकते हैं. उसके एक दिन पहले रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भारत जैसे दोस्तों की तारीफ की थी, जो मौजूदा संघर्ष का हल निकालना चाहते हैं.

व्लादीवोस्तक में ईस्टर्न इकोनॉमिक फोरम में एक पैनल चर्चा के दौरान पुतिन ने कहा कि भारत, ब्राजील और चीन संघर्ष का हल निकालने में भूमिका निभा सकते हैं. उनकी यह टिप्पणी उन संभावित देशों के बारे में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में आई जो रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं.

Thursday, August 29, 2024

यूरोप में बढ़ती भारतीय भूमिका


भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन-यात्रा ने भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता को पुष्ट करने के साथ यूरोप में नई भूमिका को भी रेखांकित किया है. यूक्रेन में मोदी ने दृढ़ता से कहा, हम तटस्थ नहीं, युद्ध के विरुद्ध और शांति के पक्ष में हैं. यह बात हमने राष्ट्रपति पुतिन से भी कही है कि यह दौर युद्ध का नहीं है.   

उनके इस दौरे से यूरोप में भारत के दृष्टिकोण को बेहतर और साफ तरीके से समझने का आधार तैयार हुआ है. इससे वैश्विक-राजनीति में भारत का कद ऊँचा होगा और यूक्रेन के साथ हमारे द्विपक्षीय-संबंध सुधरेंगे, जो युद्ध के बाद कटु हो गए थे.

यूक्रेन और रूस के युद्ध पर इस यात्रा के पूरे असर को देखने और समझने के लिए हमें कुछ समय इंतज़ार करना होगा. लड़ाई की जटिलताएं आसानी से सुलझने वाली भी नहीं हैं. पहले इस बात को अच्छी तरह समझ लें कि यह झगड़ा यूक्रेन और रूस के अलावा परोक्षतः अमेरिका और रूस के बीच का भी है.

Tuesday, August 13, 2024

बांग्लादेश का नया निज़ाम और भारत से रिश्ते


बांग्लादेश में डॉ मुहम्मद यूनुस ने अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार पद की शपथ लेने के बाद देश की कमान संभाल ली है. उन्हें मुख्य सलाहकार कहा गया है, पर व्यावहारिक रूप से यह प्रधानमंत्री का पद है. उनके साथ 13 अन्य सलाहकारों ने भी शपथ ली है. पहले दिन तीन सलाहकार शपथ नहीं ले पाए थे. शायद इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक ले चुके होंगे.

इन्हें प्रधानमंत्री या मंत्री इसलिए नहीं कहा गया है, क्योंकि संविधान में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है. देश में अब जो हो रहा है, उसे क्या कहेंगे, यह कुछ समय बाद स्पष्ट होगा. पर ज्यादा बड़े सवाल सांविधानिक-संस्थाओं से जुड़े हैं, मसलन अदालतें.   

पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा ज़िया को राष्ट्रपति के आदेश से रिहा कर दिया गया. क्या यह संविधान-सम्मत कार्य है? इसी तरह एक अदालत ने मुहम्मद यूनुस को आरोपों से मुक्त कर दिया. क्या यह न्यायिक-कर्म की दृष्टि से उचित है? ऐसे सवाल आज कोई नहीं पूछ रहा है, पर आने वाले समय में पूछे जा सकते हैं.  

न्यायपालिका

आंदोलनकारियों की माँग है कि सुप्रीम कोर्ट के जजों को बर्खास्त किया जाए. यह माँग केवल सुप्रीम कोर्ट तक सीमित रहने वाली नहीं है. अदालतें, मंडलों और जिलों में भी हैं और शिकायतें इनसे भी कम नहीं हैं.

सरकारी विधिक अधिकारियों यानी कि अटॉर्नी जनरल वगैरह को राजनीतिक पहचान के आधार पर नियुक्त किया जाता है. बड़ी संख्या में विधिक अधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है, पर अदालतों और जजों का क्या होगा?

डॉ यूनुस की सरकार को कानून-व्यवस्था कायम करने के बाद राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश-नीति को सुव्यवस्थित करना होगा. हमारे पड़ोसी पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, मालदीव, श्रीलंका और बांग्लादेश कमोबेश मिलती-जुलती समस्याओं के शिकार हैं. यही हाल पड़ोसी देश म्यांमार का भी है.

इन सभी देशों में क्रांतियों ने यथास्थिति को तोड़ा तो है, पर सब के सब असमंजस में हैं. इन ज्यादातर देशों में मालदीव और बांग्लादेश के इंडिया आउट जैसे अभियान चले थे. और अब सब भारत की सहायता भी चाहते हैं. 

Thursday, June 13, 2024

मोदी के शपथ-ग्रहण समारोह से जुड़े विदेश-नीति के संदेश


नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बनी तीसरी सरकार के शपथ-ग्रहण समारोह में पिछली दो बार के साथ एक प्रकार की निरंतरता रही, जिसमें उनकी सरकार की विदेश-नीति के सूत्र छिपे हैं. इसमें देश की आंतरिक-नीतियों के साथ विदेश और रक्षा-नीति के संदेश भी पढ़े जा सकते हैं.

रविवार को राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में हुए शपथ-ग्रहण समारोह में सात पड़ोसी देशों के नेता शामिल हुए थे. भारत सरकार ने पड़ोसी पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान और म्यांमार को समारोह में शामिल होने का न्योता नहीं दिया.

 

अफगानिस्तान के शासनाध्यक्ष का इस समारोह में नहीं होना समझ में आता है, क्योंकि अभी तक वहाँ के शासन को वैश्विक-मान्यता नहीं मिली है, पर पाकिस्तान को न बुलाए जाने का विशेष मतलब है.

बिमस्टेक की भूमिका

2014 में सरकार ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) के सभी नेताओं को आमंत्रित किया था, जिसमें अफगानिस्तान और पाकिस्तान भी शामिल थे, पर 2019 के समारोह में भारतीय विदेश-नीति की दिशा कुछ पूर्व की ओर मुड़ गई. उसमें पाकिस्तान को नहीं बुलाया गया. दूसरी तरफ म्यांमार और थाईलैंड सहित बंगाल की खाड़ी बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग पहल (बिमस्टेक) के नेताओं ने समारोह में भाग लिया था.

Friday, June 7, 2024

मोदी 3.0 की विदेश और रक्षा-नीति पर वैश्विक-दृष्टि

 


लोकसभा चुनावों के परिणामों पर भारतीय-विशेषज्ञों की तरह विदेशियों की निगाहें भी लगी हुई हैं. वे समझना चाहते हैं कि देश में गठबंधन-सरकार बनने से क्या फर्क पड़ेगा. इससे क्या विदेश-नीति पर कोई असर पड़ेगा? क्या देश के आर्थिक-सुधार कार्यक्रमों में रुकावट आएगी? पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों पर क्या असर पड़ेगा वगैरह.

न्यूयॉर्क टाइम्स ने लिखा है, नरेंद्र मोदी के सत्ता के बीते 10 सालों में कई पल हैरत से भरे थे लेकिन जो हैरत मंगलवार की सुबह मिली वो बीते 10 सालों से बिल्कुल अलग थी क्योंकि नरेंद्र मोदी को तीसरा टर्म तो मिल गया, लेकिन उनकी पार्टी बहुमत नहीं ला पाई. इसके साथ ही 2014 के बाद पहली बार नरेंद्र मोदी की वह छवि मिट गई कि 'वे अजेय' हैं.

वॉशिंगटन पोस्ट ने लिखा है, भारत के मतदाताओं ने नरेंद्र मोदी की लीडरशिप पर अप्रत्याशित अस्वीकृति दिखाई है. दशकों के सबसे मज़बूत नेता के रूप में पेश किए जा रहे मोदी की छवि को इस जनादेश ने ध्वस्त कर दिया है. उनकी अजेय छवि भी ख़त्म की है.

इस तरह की टिप्पणियों की इन अखबारों से उम्मीद भी थी, क्योंकि पिछले दस साल से ये मोदी सरकार के सबसे बड़े आलोचकों में शामिल रहे हैं. पर महत्वपूर्ण सवाल दूसरे हैं. सवाल यह है कि चुनाव के बाद हुए राजनीतिक-बदलाव का भविष्य पर असर कैसा होगा. सरकार को किसी नई नीति पर चलने या बनाने की जरूरत नहीं है, पर क्या वह आसानी से फैसले कर पाएगी

Wednesday, May 1, 2024

मतदाता कर पाएगा ‘डिफिडेंस’ और ‘कॉन्फिडेंस’ का फर्क?


 देस-परदेस

पिछले हफ्ते हैदराबाद के एक कार्यक्रम में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि 2008 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने कुछ भी नहीं करने का फैसला किया था. यह मान लिया गया कि पाकिस्तान पर हमला करने के मुकाबले हमला नहीं करना सस्ता पड़ेगा.

तत्कालीन सरकार के सुरक्षा सलाहकार ने लिखा है कि हमने इस विषय पर विचार-विमर्श किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि पाकिस्तान पर हमला करने की कीमत ज्यादा होगी. एस जयशंकर के इस बयान को राजनीतिक चश्मे से, खासतौर से लोकसभा-चुनाव के संदर्भ में देखने की जरूरत है.

जयशंकर के शब्दों में भारतीय विदेश-नीति डिफिडेंस (असमंजस) के दौर से निकल करकॉन्फिडेंस (आत्मविश्वास) के दौर में आ गई है. आज हम अमेरिका के सामने पहले की तुलना में बेहतर आत्मविश्वास के साथ बात कर सकते हैं. इस बात को किसी भी दृष्टि से देखे, पर सच यह है कि भारतीय जनता पार्टी ने विदेश-नीति को भी अपने चुनाव-अभियान में अच्छी खासी जगह दी है.

Thursday, April 4, 2024

भारत-पाक रिश्तों की व्यापार-बाधा


 
देस-परदेस

भारत-पाकिस्तान व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं को लेकर दो तरह की बातें सुनाई पड़ी हैं. पहले पाकिस्तान के विदेशमंत्री मुहम्मद इशाक डार ने लंदन में कहा कि हम भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू करने की संभावनाओं पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं. इसके फौरन बाद पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता ने सफाई दी कि ऐसा कोई औपचारिक-प्रस्ताव नहीं है.

डिप्लोमैटिक-वक्तव्यों में अक्सर उसके अर्थ छिपे होते हैं. सवाल है कि क्या ये दोनों बातें विरोधाभासी हैं? या यह एक और यू-टर्न है? या इन दोनों बातों का कोई तीसरा मतलब भी संभव है?

जवाब देने के पहले समझना होगा कि रिश्ते सुधारने की ज़रूरत भारत को ज्यादा है या पाकिस्तान को? पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था से भारत की अर्थव्यवस्था दस गुना बड़ी है. सत्तर के दशक में पाकिस्तान की प्रति व्यक्ति आय भारत के लोगों की प्रति व्यक्ति औसत आय की दुगनी थी, आज भारतीय औसत आय पाकिस्तानी आय से करीब डेढ़ गुना ज्यादा है.

भारत को पाकिस्तान से सद्भाव चाहिए. पर, भारत का साफ कहना है कि आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं चलेंगे. ऐसा नहीं होने के कारण हम पाकिस्तान के प्रति उदासीन हैं. इस उदासीनता को दूर करने की जिम्मेदारी पाकिस्तान पर है.

पाकिस्तानी शासक जब चाहें, जो चाहें फैसले कर लेते हैं. फिर चाहते हैं कि उसकी कीमत भारत अदा करे. व्यापारिक-रिश्तों को तोड़ना ऐसा ही एक फैसला है. इसके पहले भारत को तरज़ीही देश मानने में उनकी हिचकिचाहट इस बात की निशानी है. 

Thursday, March 28, 2024

जोखिमों से घिरी पाकिस्तान की नई सरकार


पाकिस्तान में नई सरकार बन जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान, ईरान की सीमा और बलोचिस्तान से चिंताजनक खबरें आई हैं. देश की स्थिरता के जुड़े कम से कम तीन मसलों ने ध्यान खींचा है. ये हैं अर्थव्यवस्था, विदेश-नीति और आंतरिक तथा वाह्य सुरक्षा. गत 26 मार्च को खैबर-पख्तूनख्वा में एक काफिले पर हुए हमले में पाँच चीनी इंजीनियरों की मौत ने भी पाकिस्तान को हिला दिया है.

इन सब बातों के अलावा सरकार पर आंतरिक राजनीति का दबाव भी है, जिससे वह बाहर निकल नहीं पाई है. शायद इसी वजह से पिछले हफ्ते 23 मार्च को पाकिस्तान दिवस समारोह में वैसा उत्साह नहीं था, जैसा पहले हुआ करता था. चुनाव के बाद राजनीतिक स्थिरता वापस आती दिखाई पड़ रही है, पर निराशा बदस्तूर है. इसकी बड़ी वजह है आर्थिक संकट, जिसने आम आदमी की जिंदगी में परेशानियों के पहाड़ खड़े कर दिए हैं.

कई तरह के संकटों से घिरी पाकिस्तान सरकार की अगले कुछ महीनों में ही परीक्षा हो जाएगी. इनमें एक परीक्षा भारत के साथ रिश्तों की है. हाल में देश के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने सभी राजनीतिक दलों से मौजूद समस्याओं से निपटने के लिए मतभेदों को दरकिनार करने का आग्रह किया है.

अब वहाँ के विदेशमंत्री मोहम्मद इसहाक डार ने कहा है कि हम भारत से व्यापार को बहाल करने पर ‘गंभीरता’ से विचार कर रहे हैं. यह महत्वपूर्ण इशारा है. ब्रसेल्स में परमाणु ऊर्जा शिखर सम्मेलन में भाग लेने के बाद डार ने लंदन में शनिवार को एक संवाददाता सम्मेलन में बात कही. उन्होंने कहा, पाकिस्तानी कारोबारी चाहते हैं कि भारत के साथ व्यापार फिर से शुरू हो. हम इसपर विचार कर रहे हैं.

Wednesday, March 13, 2024

अफ़ग़ान-प्रशासन के साथ जुड़ते भारत के तार

 


देस-परदेस

अरसे से हमारा ध्यान अफ़ग़ानिस्तान की ओर से हट गया है, पर पिछले गुरुवार 7 मार्च को एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान के वरिष्ठ अधिकारियों से मुलाकात की, तो एकबारगी नज़रें उधर गई हैं. चीन, रूस, अमेरिका और पाकिस्तान समेत विश्व समुदाय के साथ तालिबान के संपर्कों को लेकर भी उत्सुकता फिर से जागी है.

तालिबानी सत्ता क़ायम होने के बाद भारत ने अफ़ग़ान नागरिकों को वीज़ा जारी करना बंद कर दिया है, लेकिन पिछले दो वर्षों में उसने आश्चर्यजनक तरीके से काबुल के साथ संपर्क स्थापित किया है.

अगस्त 2021 में काबुल पर तालिबानी शासन की स्थापना के बाद पिछले दो-ढाई साल में भारतीय अधिकारियों के दो शिष्टमंडल अफ़ग़ानिस्तान की यात्रा कर चुके हैं. जून, 2022 में काबुल में भारत का तकनीकी मिशन खोला गया, जो मानवीय कार्यक्रमों का समन्वय करता है.

पिछले गुरुवार को भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी जेपी सिंह ने तालिबान के विदेशी मामलों को प्रभारी (वस्तुतः विदेशमंत्री) आमिर खान मुत्तकी तथा अन्य अफ़ग़ान अधिकारियों के साथ बातचीत की. प्रत्यक्षतः यह मुलाकात मानवीय सहायता के साथ-साथ अफ़ग़ान व्यापारियों द्वारा चाबहार बंदरगाह के इस्तेमाल पर भी हुई.

कंधार दफ्तर खुलेगा?

तालिबान-प्रवक्ता ने कहा कि भारतीय प्रतिनिधि ने अफ़ग़ान व्यापारियों को वीज़ा जारी करने के लिए जरूरी व्यवस्था करने का आश्वासन दिया है. इससे क़यास लगाया जा रहा है कि कंधार में भारत अपना वाणिज्य दूतावास खोल सकता है. अफ़ग़ानिस्तान ने कारोबारियों, मरीज़ों और छात्रों को भारत का वीज़ा देने का अनुरोध किया है.

Wednesday, February 28, 2024

हिंद महासागर में ‘चीनी इशारे’ और मालदीव के तेवर


लद्दाख की सीमा पर चल रहे गतिरोध को तोड़ने के लिए गत 19 फरवरी को भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की बातचीत का 19वाँ दौर भी पूरा हो गया, पर कोई नतीजा निकल कर नहीं आया. एजेंसी-रिपोर्टों के अनुसार पिछले साढ़े तीन साल से ज्यादा समय से चले आ रहे गतिरोध को खत्म करने का कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ा है.

निष्कर्ष यह है कि चीन इस समस्या को बनाए रखना चाहता है. उसकी गतिविधियाँ केवल उत्तरी सीमा तक सीमित नहीं हैं. वह हिंद महासागर में अपनी गतिविधियों को बढ़ा रहा है. दूसरी तरफ भारत लगातार विश्व-समुदाय का ध्यान चीनी-दादागीरी की ओर खींच रहा है.  

Thursday, February 22, 2024

वैश्विक-ध्रुवीकरण के बरक्स भारत की दो टूक राय


यूक्रेन और गज़ा में चल रही लड़ाइयाँ रुकने के बजाय तल्खी बढ़ती जा रही है. शीतयुद्ध की ओर बढ़ती दुनिया के संदर्भ में भारतीय विदेश-नीति की स्वतंत्रता को लेकर कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं.

कभी लगता है कि भारत पश्चिम-विरोधी है और कभी वह पश्चिम-परस्त लगता है. कभी लगता है कि वह सबसे अच्छे रिश्ते बनाकर रखना चाहता है या सभी के प्रति निरपेक्ष है. पश्चिम एशिया में भारत ने इसराइल, सऊदी अरब और ईरान के साथ अच्छे रिश्ते बनाकर रखे हैं. इसी तरह उसने अमेरिका और रूस के बीच संतुलन बनाकर रखा है. कुछ लोगों को यह बात समझ में नहीं आती. उन्हें लगता है कि ऐसा कैसे संभव है?

म्यूनिख सुरक्षा-संवाद

विदेशमंत्री एस जयशंकर ने पिछले हफ्ते म्यूनिख सिक्योरिटी कॉन्फ्रेंस में इस बात को काफी हद तक शीशे की तरह साफ करने का प्रयास किया है. इस बैठक में भारत और पश्चिमी देशों के मतभेदों से जुड़े सवाल भी पूछे गए और जयशंकर ने संज़ीदगी से उनका जवाब दिया.

म्यूनिख सुरक्षा सम्मेलन वैश्विक-सुरक्षा पर केंद्रित वार्षिक सम्मेलन है. यह सम्मेलन 1963 से जर्मनी के म्यूनिख में आयोजित किया जाता है. इस साल यह 60वाँ सम्मेलन था. सम्मेलन के हाशिए पर विभिन्न देशों के राजनेताओं की आपसी मुलाकातें भी होती हैं.

इसराइल-हमास संघर्ष

जयशंकर ने इसराइल-हमास संघर्ष पर भारत के रुख को चार बिंदुओं से स्पष्ट किया. एक, 7 अक्तूबर को जो हुआ वह आतंकवाद था. दूसरे, इसराइल जिस तरह से जवाबी कार्रवाई कर रहा है, उससे नागरिकों को भारी नुकसान हो रहा है. अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानूनों का पालन करना उसका दायित्व है. उन्होंने इसराइल के दायित्व शब्द का इस्तेमाल करके इसराइल को निशान पर लिया है.

इसके अलावा उनका तीसरा बिंदु बंधकों की वापसी से जुड़ा है, जिसे उन्होंने जरूरी बताया है. चौथा, राहत प्रदान करने के लिए एक मानवीय गलियारे और एक स्थायी मानवीय गलियारे की जरूरत है. उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे का स्थायी हल निकाला जाना चाहिए. उन्होंने टू स्टेट समाधान की बात करते हुए कहा कि यह विकल्प नहीं बल्कि अनिवार्यता ज़रूरत है.

Friday, January 5, 2024

डिप्लोमेसी से ही होगा क़तर के मसले का समाधान


क़तर की जेल में क़ैद भारतीय नौसेना के आठ पूर्व अधिकारियों की सज़ा-ए-मौत को क़तर की अदालत ने कम कर दिया है. इस खबर से देश ने फिलहाल राहत की साँस ली है. इन आठ भारतीयों के सिर पर मँडरा रहा मौत का साया तो हट गया है, पर यह मामूली राहत है.

प्रारंभिक खबरों के अनुसार इन लोगों की सजाएं कम करके तीन से 25 साल की कैद तक में तब्दील कर दी गई हैं. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने गत 4 जनवरी को बताया कि अदालत ने ऊँची अदालत में अपील करने के लिए 60 दिन का समय भी दिया है. सरकार को अदालत के फैसले की प्रति मिल गई है, पर वह गोपनीय है.

इतना स्पष्ट है कि जो भी हुआ है, वह भारत की डिप्लोमेसी के प्रयास से हो पाया है. पीड़ित-परिवार सजा के कम होने को सफलता नहीं मान रहे हैं और वे क़तर की सर्वोच्च अदालत में अपील करने की तैयारी कर रहे हैं. वहाँ सुनवाई और फैसला होने में भी तीन महीने या उससे भी ज्यादा समय लग सकता है.

Wednesday, November 1, 2023

भारत की पश्चिम-एशिया नीति की अग्निपरीक्षा


गज़ा में चल रही फौजी कार्रवाई और क़तर की एक अदालत से आठ भारतीयों को मिले मृत्युदंड और वैश्विक-राजनीति में इस वक्त चल रहे तूफान के बरक्स भारतीय विदेश-नीति से जुड़े कुछ जटिल सवाल खड़े हो रहे हैं. बेशक गज़ा की लड़ाई और क़तर के अदालती फैसले का सीधा रिश्ता नहीं है, पर दोनों संदर्भों का देश की पश्चिम-एशिया नीति से नज़दीकी रिश्ता है.

पिछले हफ्ते संयुक्त राष्ट्र महासभा में गज़ा की लड़ाई के संदर्भ में हुए मतदान से अलग रहने के बाद भारत की नीति को लेकर कुछ और सवाल पूछे जा रहे हैं. यह प्रस्ताव जॉर्डन की ओर से रखा गया था. इसका अर्थ है कि इसके पीछे अरब देशों की भूमिका थी. उससे अलग रहने के जोखिम हैं, पर यह समझना होगा कि हमास को लेकर अरब देशों की राय क्या है और उन देशों के इसराइल के साथ बेहतर होते रिश्तों की राजनीति का मतलब क्या है.

बाइडन का बयान

पिछले बुधवार को ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बानीज़ के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन का एक बयान भारतीय मीडिया में काफी उछला था. उसके राजनीतिक निहितार्थ पढ़ने की जरूरत भी है.  

बाइडन ने कहा था कि 7 अक्तूबर को गज़ा में हमास ने जो हमला किया था, उसके पीछे भारत-पश्चिम एशिया कॉरिडोर को रोकने का इरादा था. मुझे विश्वास है कि हमास ने हमला किया तो यह उन कारणों में से एक था. बाद में ह्वाइट हाउस ने सफाई दी कि बाइडेन की टिप्पणी को गलत समझा जा रहा है. संभवतः उनका आशय था कि इसराइल और सऊदी अरब के बीच रिश्ते में धीरे-धीरे हो रहे सुधार ने हमास को हमले के लिए प्रेरित किया हो.