Saturday, July 31, 2010

विकीलीक्स जाँच की सूई

जैसे हमारे देश में होता है बड़े से बड़े घोटाले की जिम्मेदारी आखिर मे किसी छोटे आदमी के मत्थे मढ़ दी जाती है, क्या वैसा ही विकीलीक्स की जाँच में होगा? इस मामले में सबसे पहले स्पेशलिस्ट ब्रैडले मैनिंग नाम के एक अफसर की गर्दन नापी गई है, जिनका चित्र साथ मे है। दरअसल उनके खिलाफ जाँच पहले से चल रही थी। इराक में हैलिकॉप्टर से की गई गोलीबारी का वीडियो पहले आ गया था। यह वीडियो जिसकी हिफाज़त में था सबसे पहले उसे ही फँसना होगा। 


इस मामले का ज्यादा परेशान करने वाला पहलू है उन लोगों की पहचान जिन्होंने अमेरिकी खुफिया विभाग को जानकारी दी। मुखबिरों की जान सबसे पहले जाती है। हालांकि विकीलीक्स के संस्थापक असांज का  कहना है कि हमने सावधानी से सारे नाम हटा दिए हैं, पर पता लगा है कि बड़ी संख्या में नाम हटने से रह गए हैं। तालिबान का कहना है कि हम भी इन दस्तावेजों का अध्ययन कर रहे हैं। इसके बाद मुखबिरों को सज़ा दी जाएगी।


अमेरिकी जाँच कहाँ तक पहुँचती है, यह देखना रोचक होगा।  पर क्या यह भी सम्भव है कि सरकार के ही किसी हिस्से ने यह लीक कराई हो? हो सकता है क्यों नहीं हो सकता।  

Thursday, July 29, 2010

ये खेल नहीं हैवानियत हैं



स्पेन की बुल फायटिंग का विरोध सारी दुनिया में होता रहा है। बुधवार को स्पेन के कैटालोनिया क्षेत्र की संसद ने इस पर रोक लगाने का प्रस्ताव पास कर दिया। यह रोक 2012 से लागू होती। कैटालोनिया से पहले 1991 में कैनरी आयलैंड इस खूनी खेल पर रोक लगा चुका है। अब देश में कुछ इलाके बचे हैं, जहाँ यह अब भी चालू है। इनमें राजधानी बार्सीलोना भी एक है। 


बुलफायटिंग को दुनिया के सबसे घृणित खेलों में से एक माना जाता है, जिसमें एक सांड़ को हजारों की भीड़ के सामने मारा जाता है। भले ही इसमें सांड़ों से लड़ने वालों की बहादुरी भी हो। इसके अलावा अमेरिका की डॉगफाइट और प्रो बॉक्सिंग भी घृणित खेल हैं। 

बुल फायटिंग पर रोक
बीबीसी पर चित्र झाँकी
विकिपीडिया पर बुलफायटिंग

Wednesday, July 28, 2010

सायबर क्राइम का मास्टरमाइंड पकड़ा गया

स्लोवेनिया में एक कम्प्यूटर हैकर पकड़ा गया है, जिसने मैरीपोसा या बटरफ्लाई नाम के वायरस को लिखा था। इसरडो नाम के जिस 23 वर्षीय युवा को पकड़ा गया है वह साइबर क्राइम की महत्वपूर्ण कड़ी बताया गया है। 


इंटरनेट पर धोखाधड़ी से कमाई करने वाला एक चक्र है। इसे बॉटनेट कहते हैं। इसमें सॉफ्टवेयर बनाने वाले, रोबो, आर्थिक अपराधी और कई तरह के लोग शामिल हैं। इसका पहला काम आपके कम्प्यूटर की बॉट लगाना है। यानी यह आपकी जानकारी के बगैर आपके कम्प्यूटर में एक प्रोग्राम इंस्टॉल हो जाता है। इस प्रकार आपका एक नेटवर्क में आपकी जानकारी के बगैर शामिल हो जाता है, जैसे अक्सर किसी अपराधी के गिरोह में शामिल होकर परवश हो जाते हैं।  यह आपके कम्प्यूटर से दूसरों को स्पैम ई-मेल भेजता है। आपके बैंक कार्ड वगैरह की जानकारी भी वह निकाल लेता है। इसके बाद आपके कम्प्यूटर में  यह प्रोग्राम डालने वाला आपकी जानकारी आपराधिक गिरोहों को बेचता है। 


बताते हैं मैरीपोसा बॉटनेट नियंत्रण के बाहर हो गया था। पर आमतौर पर ऐसे लोग अपनी सफलता के ही शिकार होते हैं। उनकी सफलता उन्हें अपने दायरे का विस्तार करने को प्रेरित करती है। जिस बॉटनेट के प्रणेता को पकड़ा गया है उसके शिकार करीब 1.20 करोड़ कम्प्यूटर थे। इनमें अनेक बैंकों के कम्प्यूटर भी थे। 











बॉटनेट का सूत्रधार पकड़ा गया बीबीसी की खबर
फॉक्सन्यूज़ की खबर
एक और खबर
क्या होता है बॉटनेटः देखें विकीपीडिया

विकीलीक्स जैसे काम क्या सही हैं?

विकीलीक्स का नाम इस बार काफी बड़े स्तर पर सामने आया है, पर पत्रकारिता तो काफी हद तक इस तरह की लीक के सहारे चलती रही है। कोई न कोई भीतर के भेद बाहर करता है। विकीलीक्स ने 92000 से ज्यादा दस्तावेज़ बाहर निकाले हैं । इसका मतलब है कि एक-दो नहीं काफी लोग इस काम में लगे होंगे। दस्तावेज़ ओबामा प्रशासन से पहले के हैं। इनमें नई बात कोई खास नहीं है। अलबत्ता एक जानकारी नई है कि तालिबान के पास हीट सीकिंग विमानभेदी मिसाइलें हैं। 


ऐसी जानकारियाँ बाहर आने से रक्षा व्यवस्था को ठेस लगना स्वाभाविक है। यह जानकारी तालिबान के पास भी गई है। इससे उनकी रणनीति को मदद मिलती है। खुफिया जानकारी को जाहिर न करने की कानूनी व्यवस्था है। अमेरिकी खुफिया विभाग को अब यह पता लगाना होगा कि लीक कैसे हुआ। 


इस लीक में जिस 'टॉर' तकनीक का इस्तेमाल हुआ है, उसका उद्देश्य सार्वजनिक हित में काम करना है। साथ ही हैकिंग के नैतिक पहलू भी सामने आए हैं। सरकारें सार्वजनिक हित में काम करतीं हैं या गैर-सरकारी लोग सार्जनिक हित में काम करते हैं, इस सवाल का जवाब आसान नहीं है। बहरहाल सोचने-बिचारने के लिए एक नया विषय हमारे पास है।  हम इस मामले को अमेरिका के संदर्भ में देखते हैं, पर यदि ऐसा लीक हमारे देश में होता तब क्या हमारी यही प्रतिक्रिया होती? 


हिन्दुस्तान में प्रकाशित मेरा लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें

कुछ उपयोगी लिंक
अमेरिका ने वॉर फंडिंग बिल पास किया
लीक दस्तावेज़ों को समझने में हफ्तों लगेंगे
ओबामा ने लीक के सहारे अपनी नीति को सही बताया
अमेरिकी लीक्स का इतिहास
हूट में नूपुर बसु का लेख

Tuesday, July 27, 2010

ग्लोबल अपडेट

पेरू मे सर्दी


इन दिनों जब हम भारत में उमस भरी गर्मी से परेशान हैं, पेरू में सरकार ने करीब आधे देश में आपत्काल की घोषणा की है। दक्षिणी गोलार्ध में होने के कारण वहाँ इन दिनों ठंड होती भी है, पर इस साल कुछ ज्यादा ही है। जिन शहरों में इन दिनों शून्य के आसपास तापमान होता था, वहाँ -24 डिग्री या  उससे भी नीचे चला गया है। 


सर्दी के कारण हजारों लोगों के मरने की खबर है। इनमें ज्यादातर बच्चे हैं। सर्दी से मरने के पीछे बड़ा कारण कुपोषण और गरीबी है। 


दोनों कास्त्रो खामोश रहे


क्यूबा में बतिस्ता के शासन का खात्मा हालांकि 1 जनवरी 1959 को हुआ था, पर वहाँ क्रांति दिवस 26 जुलाई को मनाया जाता है। दरअसल क्यूबा के 82 क्रांतिकारियों ने मैक्सिको से जो आंदोलन खड़ा किया था, उसकी शुरूआत 26 जुलाई 1953 को हुई थी। इन क्रांतिकारियों में फिदेल कास्त्रो भी थे। 


इस साल आशा थी कि नए राष्ट्रपति राउल कास्त्रो क्रांति दिवस पर कुछ ऐसा बोलेंगे, जो क्रांतिकारी हो। फिदेल के छोटे भाई राउल सार्जनिक रूप से बहुत कम बोलते हैं। उन्होंने क्रांति दिवस पर भी कुछ नहीं बोला। उनकी जगह उप राष्ट्रपति वेंच्यूरा ने देश को संबोधित  किया। पिछले महीने राउल कास्त्रो ने देश में राजनैतिक बंदियों को रिहा करने की घोषणा की थी। उसके बाद से आशा थी कि वे शायद कुछ नए कदम उठाएंगे। 


वेनेज़ुएला-कोलम्बिया तनाव


इन दिनों वेनेज़ुएला और कोलम्बिया के बीच तनाव करीब-करीब उतना ही तीखा हो गया है, जितना सुदूर पूर्व में दोनों कोरियाओं के बीच है। कोलम्बिया इस इलाके में अमेरिका का मित्र देश है। उसका आरोप है कि वेनेज़ुएला उसके विद्रोहियों की मदद कर रहा है। दोनों देशों के बीच युद्ध का अंदेशा है। इस बीच वेनेज़ुएला ने धमकी दी है कि वह अमेरिका को तेल की सप्लाई बंद कर देगा।  

मीडिया का काम नाटकबाज़ी नहीं


दिल्ली के हंसराज कॉलेज में एक अखबार का फोटोग्राफर पहुँचा। उसने कॉलेज के पुराने छात्रों को जमा किया। फिर उनसे कहा, नए छात्रों की रैगिंग करो। फोटोग्राफी शुरू हो गई। इस बात की जानकारी कॉलेज प्रशासन के पास पहुँची। उन्होंने पुलिस बुला ली। फोटोग्राफी रोकी गई और कैमरा से खींचे गए फोटो डिलीट किए गए। यह जानकारी मीडिया वैबसाइट हूट ने छात्रों के हवाले से दी है। इस जानकारी पर हमें आश्चर्य नहीं होता, क्योंकि ऐसा होता रहता है।

हाल में बिहार असेम्बली में टकराव हुआ। मीडिया की मौजूदगी में वह सब और ज्यादा हुआ, जो नहीं होना चाहिए। एक महिला विधायक के उत्साह को देखकर लगा कि इस जोश का इस्तेमाल बिहार की समस्याओं के समाधान में लगता तो कितना बड़ा बदलाव सम्भव था। वह उत्साह विधायक का था, पर मीडिया में कुछ खास दृश्यों को जिस तरह बारम्बार दिखाया गया, उससे लगा कि मीडिया के पास भी कुछ है नहीं। उसकी दृष्टि में ऐसा रोज़-रोज़ होता रहे तो बेहतर।

पिछले हफ्ते एक चैनल पर रांची के सज्जन के बारे में खबर आ रही थी, जो आठवीं शादी रचाने जा रहे थे। उन्हें कुछ महिलाओं ने पकड़ लिया। महिलाओं के हाथों उनकी मरम्मत के दृश्य मीडिया के लिए सौगात थे। किसी की पिटाई, रगड़ाई, धुलाई और अपमान हमारे यहाँ चटखारे लेकर देखा जाता है। मीडिया को देखकर व्यक्ति जोश में आ जाता है और आपा भूलकर सब पर छा जाने की कोशिश में लग जाता है। मीडिया के लोग भी उन्हें प्रेरित करते हैं।

कुछ साल बिहार में एक व्यक्ति ने आत्मदाह कर लिया। उस वक्त कहा गया कि उसे पत्रकारों ने प्रेरित किया था। ऐसा ही पंजाब में भी हुआ। अक्सर खबरें बनाने के लिए पत्रकार कुछ नाटक करते हैं, जबकि उनसे उम्मीद की जाती है कि वे सच को सामने लाएंगे। पर होता कुछ और है। मीडिया को देखते ही आंदोलनकारी, बंद के दौरान आगज़नी करते या बाढ़-पीड़ितों की मदद करने गए लोग अपने काम को दूने वेग से करने लगते हैं। पूड़ी के एक पैकेट की जगह चार-चार थमाने लगते हैं। अब तो चलन ही यही है कि आंदोलन बाद में शुरू होता है, पहले मीडिया का इंतज़ाम होता है। सारा आंदोलन पाँच-दस मिनट के मीडिया सेशन में निबट जाता है।

सीबीएसई परीक्षा परिणाम देखने गई लड़कियों के एक ही झुंड, बल्कि अक्सर एक ही लड़की की तस्वीर सभी अखबारों में छपती है। इसे फाइव सेकंड्स फेम यानी पाँच सेकंड की प्रसिद्धि कहते हैं। इसमें ऑब्जेक्टिविटी वगैरह धरी की धरी रह जाती है। आमतौर पर सभी समाचार चैनल समाचार के साथ-साथ सामयिक संदर्भों पर बहस चलाते हैं। इस बहस को चलाने वाले एंकरों का ज़ोर इस बात पर नहीं होता कि तत्व की बात सामने लाई जाय, बल्कि इस बात पर होता है कि उनके बीच संग्राम हो। पत्रकारिता का उद्देश्य क्या है यह तो हर पत्रकार अपने तईं तय कर सकता है। पर इतना सार्वभौमिक रूप से माना जाता है कि हम संदेशवाहक हैं। जैसा हो रहा है, उसकी जानकारी देने वाले। हम इसमें पार्टी नहीं हैं और हमें कोशिश करनी चाहिए कि बातों को तोड़े-मरोड़े बगैर तटस्थता के साथ रखें। 

पुराने वक्त में पत्रकारिता प्रशिक्षण विद्यालय नहीं होते थे। ज्यादातर लोग काम पर आने के बाद चीजों को सीखते थे। रोज़मर्रा बातों से धीरे-धीरे अपने नैतिक दायित्व समझ में आते थे। अब तो पत्रकार मीडिया स्कूलों से आते हैं। उन्हें तो पत्रकारीय आदर्श पढाए जाते हैं। लगता है जल्दबाज़ी में मीडिया अपने कानूनी, सामाजिक और सांस्कृतिक दायित्वों का ध्यान नहीं रखता। जब रैगिंग होती है तो ज़मीन-आसमान एक कर देता है और जब नहीं होती तब रैगिंग करने वालों के पास जाता है कि भाई ठंडे क्यो पड़ गए। उसके पास नागरिक के व्यक्तिगत अधिकारों को लेकर शायद कोई आचरण संहिता नहीं है। या यों कहें कि किसी किस्म की आचरण संहिता नहीं है।

आचरण संहिता व्यापक अवधारणा है। अक्सर सरकारें आचरण संहिता के नाम पर मीडिया की आज़ादी पर बंदिशें लगाने की कोशिश करती हैं, इसलिए हम मानते हैं कि मीडिया को अपने लिए खुद ही आचरण संहिता बनानी चाहिए। सामूहिक रूप से देश भर के पत्रकारों ने अपने लिए कोई आचार संहिता नहीं बनाई है। कुछ अखबार अपने कर्मचारियों के लिए गाइड बुक्स बनाते हैं, पर वे भी स्टाइल बुक जैसी हैं। हाल में गठित न्यूज़ ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन ने कुछ मोटे दिशा-निर्देश तैयार किए हैं, जो उसकी वैबसाइट पर उपलब्ध हैं। इनकी तुलना में बीबीसी की गाइड लाइन्स को देखें जो काफी विषद हैं। हमारे देश में किसी मीडिया हाउस ने ऐसी व्यवस्था की हो तो इसका मुझे पता नहीं है। अलबत्ता हिन्दू एक ऐसा अखबार है, जिसने एक रीडर्स एडीटर की नियुक्ति की है जो नियमित रूप से अखबार की गलतियों या दूसरी ध्यान देने लायक बातों को प्रकाशित करता है। हाल में हिन्दू के रीडर्स एडीटर एस विश्वनाथन ने अपने पाठकों को जानकारी दी कि 1984 में हिन्दू ने भोपाल त्रासदी को किस तरह कवर किया। अखबार में पाठक के दृष्टिकोण को उभारना भी बाज़ार-व्यवस्था है। राजेन्द्र माथुर जब नवभारत टाइम्स में सम्पादक थे, तब टीएन चतुर्वेदी ओम्बड्समैन बनाए गए थे। पता नहीं आज ऐसा कोई पद वहाँ है या नहीं।

जैसे-जैसे हमारे समाज के अंतर्विरोध खुलते जा रहे हैं, वैसे-वैसे मीडिया की ज़रूरत बढ़ रही है। यह ज़रूरत तात्कालिक खबरें या सूचना देने भर के लिए नहीं है। यह ज़रूरत समूची व्यवस्था से नागरिक को जोड़ने की है। समूचा मीडिया एक जैसा नहीं हो सकता। कुछ की नीतियाँ समाजवादी होंगी, कुछ की दक्षिणपंथी। कांग्रेस समर्थक होंगे, भाजपाई भी। जो भी हो साफ हो। चेहरे पर ऑब्जेक्टिव होने का सर्टिफिकेट लगा हो और काम में छिछोरापन हो तो पाठक निराश होता है।
हम आमतौर पर सारी बातों के लिए बाज़ार-व्यवस्था को दोषी मानते हैं। बाज़ार व्यवस्था का दोष है भी तो इतना कि वह अपने अधिकारों के लिए लड़ना नहीं जानती। पाठक-श्रोता या दर्शक ही तो हमारा बाज़ार है। वह हमें खारिज कर दे तो हम कहाँ जाएंगे। हम अपने पाठक को भूलते जा रहे हैं। नैतिक रूप से हमारी जिम्मेदारी उसके प्रति है और व्यावसायिक रूप से अपने मालिक के प्रति। इधर स्वार्थी तत्व मीडिया पर हावी हैं। ऐसा हमारी कमज़ोर राजनैतिक व्यवस्था के कारण है।

सनसनी, अफवाहबाज़ी और घटियापन को पसंद करने वाला पाठक-वर्ग भी है। उसे शिक्षित करने वाली समाज-व्यवस्था को पुष्ट करने का काम जागरूक मीडिया कर सकता है। हम क्या जागरूक और जिम्मेदार बनना नहीं चाहेंगे? सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवस्था और मीडिया के रिश्तों पर पड़ताल की ज़रूरत आज नहीं तो कल पैदा होगी। कहते हैं चीनी समाज कभी अफीम के नशे में रहता था। आज नहीं है। हमारा नशा भी टूटेगा। 

Monday, July 26, 2010

विकीलीक्स यानी साहस की पत्रकारिता

इराक और अफगानिस्तान में नागरिकों की हत्या हो रही है, यह बात खबरों में कब से है। पर जब आप अपनी आँख से हत्याएं देखते हैं, तब दिल दहल जाता है। अमेरिकी सेना के ऑफीशियल वीडियो इस बात की जानकारी देते हैं, तब हमें सोचना पड़ता है। 


आज खबर है कि विकीलीक्स ने अमेरिकी सेना के करीब 92,000 गोपनीय दस्तावेज़ दुनिया के तीन अखबारों को सौंपे हैं, जिनसे अमेरिका के अफगान युद्ध के क्रूर मुख पर रोशनी पड़ती है। बताते हैं यह लीक 1970 के पेंटागन पेपर्स से भी ज्यादा बड़ा है।साथ वाला चित्र अफगानिस्तान में हेलीकॉप्टर से नागरिकों पर गोलीबारी का है। यूट्यूब पर यह वीडियो उपलब्ध है। लिंक नीचे दिया है। 


हमारे अधिकतर पाठक विकीलीक्स से परिचित नहीं हैं। हम पत्रकारिता के पेज3 मार्का मनोरंजन-मुखी चेहरे को ही देखते आए हैं। विकीलीक्स धीरे-धीरे एक वैश्विक शक्ति बनता जा रहा है। यह पत्रकारिता वह मिशनरी पत्रकारिता है, जो इस कर्म का मर्म है। जिस तरह से विकीपीडिया ने ज्ञान की राह खोली है उसी तरह विकीलीक्स ने इस ज़माने की पत्रकारिता का रास्ता खोला है। 


यह न तो कोई खुफिया संस्था है और न अमेरिका-विरोधी। यह सिर्फ अनाचार और स्वयंभू सरकारों के विरुद्ध है। इसने अमेरिका, चीन, सोमालिया, केन्या और आइसलैंड तक हर जगह असर डाला है। कुछ समय पहले तक कोई नहीं जानता था कि इसके पीछे कौन है। केवल ऑस्ट्रेलियाई पत्रकार जूलियन  असांज सामने आते हैं। शायद वे इसके संस्थापकों में से एक हैं। बाईं ओर का चित्र असांज का है। उनसे बातचीत का वीडियो लिंक भी नीचे है। 


दुनिया की सबसे ताकतवर सरकारों के बारे मे निगेटिव सामग्री का प्रकाशन बेहद खतरनाक है। विकीलीक्स के पास न तो इतना पैसा है और न ताकत। अदालतें उसके खिलाफ कार्रवाई करतीं है। धीरे-धीरे इसे दुनिया के सबसे अच्छे वकीलों की सेवाएं मुफ्त मिलने लगीं हैं। जनता के दबाव के आगे संसदें झुकने लगीं हैं। शायद अभी आपकी निगाहें इस ओर नहीं गईं हैं।


बीबीसी की खबर
विकीलीक्स वैबसाइट
कोलेटरल मर्डरः वीडियो देखें, आप दहल जाएंगे 
जूलियन असेंज क्या कहते हैं
क्या है विकीलीक्स

Saturday, July 24, 2010

हिंग्लिश, हिन्दी और हम


सारा संसार समय के साथ बदलता है। भाषाएं भी बदलतीं हैं। हिन्दी को भी बदलना है। पर क्या उसमें आ रहे बदलाव स्वाभाविक हैं? बदलाव से आशय है, उसमें प्रवेश कर रहे अंग्रेज़ी के शब्द। इसे लेकर हाल में बीबीसी रेडियो के हिन्दी कार्यक्रम में इस सवाल को लेकर एक रोचक कार्यक्रम पेश किया गया। इसमें हिन्दी भाषियों के विचार भी रखे गए। 


हिन्दी के अखबारों ने , खासतौर से नवभारत टाइम्स ने अंग्रेजी मिली-जुली हिन्दी का न सिर्फ धड़ल्ले से इस्तेमाल शुरू किया है, बल्कि उसे प्रगतिशील साबित भी किया है। अखबार के मास्टहैड के नीचे लाल रंग से मोटे अक्षरों में एनबीटी लिखा जाता है। मेरा ख्नयाल है कि नवभारत टाइम्स ने ऐसा विज्ञापनदाताओं को लुभाने के लिए किया है। विज्ञापनदाता का हिन्दी जीवन-संस्कृति और समाज से रिश्ता नहीं है। वे फैशन के लिए एक खास तबके को लुभाते हैं। यह तबका हमारे बीच है, यह भी सच है। पर यह हिन्दी की मुख्यधारा नहीं है। बिजनेस के दबाव में यह धारा फैसले करती है। 


बीबीसी के इस कार्यक्रम में शब्बीर खन्ना नाम के श्रोता ने बीबीसी की अपनी भाषा नीति पर हमला बोला। भाषा में बदलाव कितना होना चाहिए, कैसे होना चाहिए, यह बेहद महत्वपूर्ण सवाल है। क्या कोई भाषा शुद्ध हो सकती है? दाल में नमक या नमक में दाल? संज्ञाएं नहीं क्रियाएं बदली जा रहीं है। मजेदार बात यह है कि न तो  इस हिन्दी को चलाने वाले नवभारत टाइम्स ने और न किसी दूसरे अखबार ने कोई बहस चलाई। कोई सर्वे भी नहीं किया। बीबीसी ने यह चर्चा की अच्छी बात है। इस विषय पर चर्चा होनी चाहिए। 
  
बीबीसी कार्यक्रम को सुनें 

Friday, July 23, 2010

पत्रकारिता का मृत्युलेख

रामनाथ गोयनका पत्रकारिता  पुरस्कार समारोह के दौरान पेड न्यूज़ को लेकर परिचर्चा भी हुई। ऐसी परिचर्चा पिछले साल के समारोह में भी हो सकती थी। हालांकि उस वक्त तक यह मामला उठ चुका था। यों पिछले साल जब हिन्दू में पी साईनाथ के लेख प्रकाशित हुए तब इस मामले पर बात शुरू हुई। वर्ना मान लिया गया था कि इस सवाल पर मीडिया मौन धारण करे रहेगा।


गुरुवार के समारोह में अभिषेक मनु सिंघवी ने ठीक सवाल उठाया कि मीडिया तमाम सवालों पर विचार करता है, इसपर क्यों नहीं करता। इस समारोह में मौज़ूद कुमारी शैलजा, सचिन पायलट और दीपेन्द्र हुड्डा ने बताया कि उनके पास मीडिया के लोग आए थे। बात इतनी साफ है तो क्यों नहीं हम इस मामले पर आगे जाकर पता लगाएं कि कौन पैसा माँगने आया था। किसने किसको कितना पैसा दिया। वह पैसा कहाँ गया वगैरह का पता तो लगे।


पेज3 की पेड न्यूज़ और चुनाव की पेड न्यूज़ में फर्क नहीं करना चाहिए। यह सब अपनी साख को तबाह करना है। इस समारोह मे हालांकि ज्यादातर वे लोग शामिल थे, जो इन बातों से ज्यादा नहीं जुड़े रहे हैं, पर उनमे से ज्यादातर के मासूम सवाल जनता के सवाल हैं। मसलन रविशंकर प्रसाद का यह सवाल कि क्या पत्रकारिता सीधे-सीधे ट्रेड और बिजनेस है? क्या ऐसा है? ऐसा है कहने के बाद पूरी व्यवस्था धड़ाम से ज़मीन पर आकर गिरती है। अरुणा रॉय कहती हैं कि डैमोक्रेसी में मीडिया का रोल है। मीडिया को प्रॉफिट-लॉस का कारोबार नहीं बनना चाहिए।


अच्छी बात है कि हम मीडिया की भूमिका पर बात कर रहे हैं, पर हम क्यों उम्मीद करें कि मीडिया प्रॉफिट-लॉस के मोह-जाल से ऊपर उठकर काम करेगा। उसे निकालने के पीछे की मनोभावनाएं वही रहेंगी तो इसमें कोई बदलाव नहीं होगा। ज़रूरत इस बात की है कि हम मीडिया का मालिक कौन हो इस सवाल को उठाएं।  यह सब जनता के दरवार में तय होना है। जनता बहुत सी बातों से अपरिचित है। वह हमपर ही भरोसा करती थी, पर हम उसे बताना नहीं चाहते। इसलिए इस मीडिया के भीतर से साखदार मीडिया के उभरने की ज़रूरत है। यह बेहद मुश्किल काम है, क्योंकि दूध का जला हर दूध को जलाने वाला समझेगा।


मुझे लगता है पत्रकारिता को जिस तरह से राजनेताओं और सत्ता से जोड़ा गया है, उसे देखते हुए जल्द किसी बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। आखिरकार इंडियन एक्सप्रेस का यह समारोह भी पीआर एक्सरसाइड़ थी जिसमें अखबार की रपट के अनुसार शामिल होने वाले गणमान्य लोगों में गिनाने लायक नाम राजनेताओं के ही थे। एकाध पत्रकार भी था, तो वही पेज3 मार्का। पत्रकारिता का व्यवस्था के साथ 36 का रिश्ता होना चाहिए, पर यहाँ वैसा है नहीं। इसलिए सारी बातें ढोंग जैसी लगती हैं।


इंडियन एक्सप्रेस के पेज 2 पर इस गोष्ठी की बड़ी सी खबर है जिसका शीर्षक है 'पेड न्यूज़ कुड मार्क डैथ ऑफ जर्नलिज़्म'। यह खुशखबरी है या दुःस्वप्न?


कुछ महत्वपूर्ण लिंक


प्रेस काउंसिल रपट
काउंटरपंच में पी साइनाथ का लेख
हिन्दू में पी साइनाथ का लेख
इंडिया टुगैदर
सेमिनार
द हूट
न्यूज़ फॉर सेलः द हूट
सैलिंग कवरेजः द हूट
प्लीज़ डू नॉट सैल-विनोद मेहता 

Thursday, July 22, 2010

फेसबुक मे पचास करोड़वाँ सदस्य

फेसबुक में पचास करोड़वें सदस्य के शामिल होते ही उत्साह की लहर है। फेसबुक बड़ी कम्पनी है। उसके पास डेटा का भंडार है। सारी दुनिया की कम्पनियाँ अब समझना चाहती हैं कि फेसबुक के डेटा का फायदा किस तरह उठाया जाय। फेसबुक ने कई तरह के एप्लीकेशंस को विकसित करने में मदद की है। इनमें ज्यादातर गेम्स के हैं। 


भारतीय संदर्भ में फेसबुक पर भारतीय राजनीति, जातिप्रथा, हंस के कार्यालय में विश्वरंजन और अरुंधती रॉय के बीच संवाद की संभावना से लेकर विश्व कप और शराब कैसे पिएं जैसे मसलों पर पर रोचक विमर्श चलने लगे हैं। शेरो-शायरी, जोक्स और फैक्टॉइड्स शेयर करने का बेहतर मौका मिलता है यहाँ। यहाँ पता लगता है कि हमारे बीच कितने अच्छे फोटोग्राफर मौजूद हैं। बहुत सी बातें पहले से सोचकर हुईं और बहुत सी बातें अनजाने हो रहीं हैं। 


हमारे मीडिया ने अभी फेसबुक की लोकप्रियता पर ध्यान नहीं दिया है। 

Wednesday, July 21, 2010

बाजार से भागकर कहाँ जाओगे?




पत्रकारों की तीन या चार पीढ़ियाँ हमारे सामने हैं। एक, जिन्हें रिटायर हुए पन्द्रह-बीस साल या उससे ज्यादा समय हो गया। दूसरे वे जो या तो रिटायर हो रहे हैं या दो-एक साल में होंगे। तीसरे जो 35 से 50 की उम्र के हैं और चौथे जिन्हें आए दस साल से कम का समय हुआ है या जो अभी शामिल ही हुए हैं। मीडिया के बारे में इन सब की राय एक जैसी नहीं है। 75 या 80 साल की उम्र वालों का अनुभव सिर्फ अखबारों का है। उसके बाद वाले इलेक्ट्रॉनिक और इंटरनेट मीडिया से भी वाकिफ हैं। एकदम नई पीढ़ी को बड़े बदलावों का इंतज़ार है। पुरानी पीढ़ी मीडिया को संकटग्रस्त मानती है। वह इसे घटती साख और कम होते असर की दृष्टि से देखती है। नई पीढ़ी की दिलचस्पी अपने मेहनताने में है। अपने भविष्य और करियर में। दोनों मामले मीडिया के कारोबारी मॉडल से जुड़े हैं।


अक्सर हम लोग मीडिया के अंतर्विरोधों के लिए मार्केट को जिम्मेदार मानते हैं। हम यह नहीं देखते कि मार्केट न होता तो इतना विस्तार कैसे होता। इस विस्तार से गाँवों और कस्बों तक में बदलाव हुआ है। कई प्रकार की सामंती प्रवृत्तियों पर प्रहार हुआ है। जनता की लोकतांत्रिक भागीदारी बढ़ी है। हमारे पास इस विस्तार का कोई दूसरा मॉडल है भी नहीं। मार्केट की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह आपको वैकल्पिक रास्ता खोजने का मौका देता है। आज भी यदि कोई संज़ीदा अखबार या गम्भीर चैनल शुरू करना चाहे तो उसपर रोक नहीं है। बाज़ार नई प्रवृत्तियों को खरीदने की कोशिश करता है। संज़ीदा पाठक या बाज़ार है तो यह उसे भी खरीद लेगा, जैसे रूपर्ट मर्डोक ने लंदन टाइम्स जैसा संज़ीदा अखबार खरीदा। इस मार्केट पर पाठक और लोकतंत्र का दबाव होगा तो यह नियंत्रण में रहेगा। फिर भी यह दीर्घकालीन हल नहीं है।


मीडिया, खासतौर से हिन्दी का जो कारोबारी मॉडल हमारे सामने है, वह पिछले डेढ़ दशक में उभरा है। पहले प्रेस आयोग को लगता था कि भारतीय प्रेस को इज़ारेदारी(मोनोपॉली) से बचाना चाहिए। वक्त के साथ यह अंदेशा सही साबित नहीं हुआ। बड़े मीडिया हाउसों के मुकाबले छोटे और स्थानीय स्तर के व्यापारियों ने हिन्दी के अखबार निकाले। अखबारों की बड़ी चेनें इनके सामने टूट गईं। ऐसा क्यों और कैसे हुआ, इस पर कभी आगे चर्चा करेंगे। हिन्दी के पहले दस अखबारों में सिर्फ दो पुराने और बड़े मीडिया समूहों से जुड़े हैं। इनमें से एक के पास विस्तार का कोई भावी कार्यक्रम नज़र नहीं आता। हिन्दी को छोड़ दें तो देश की अन्य भाषाओं के अखबारों में से कोई भी अंग्रेजी अखबारों की परम्परागत चेन से नहीं निकला है। नई ओनरशिप खाँटी देशी है। उसके विकसित होने के पीछे तीन कारक हैं। एक, स्वभाषा प्रेम जो हमारे राज्यों के पुनर्गठन का आधार बना। दूसरे, स्थानीयता। और तीसरे राजनीति और राजव्यवस्था पर प्रभाव। इस तीसरे कारक के कारण बिल्डर या इसी किस्म के कारोबारी मीडिया की तरफ आकृष्ट हुए हैं। कुछ साल पहले तक चिट फंड कम्पनियों वाले इधर आए थे। ये सब मीडिया पर इतने कृपालु क्यों हुए हैं? मीडिया के इनफ्लुएंस के कारण ऐसा है। यह इनफ्लुएंस पाठक पर कम सरकार पर ज्यादा है। दूसरे अब इसमें मुनाफा भी है।


बिजनेस और राजनीति को भारतीय भाषाओं की अहमियत नज़र आई है। बिजनेस को इसमें फायदा दिखाई पड़ता है और राजनीति को वोट। भारतीय भाषाई अखबारों के शुरूआती मालिक स्थानीय कारोबारी थे। उनका बिजनेस मॉडल देशी था। अब वे बिजनेस-प्रबंध की अहमियत समझने लगे हैं। विस्तार के लिए पूँजी की ज़रूरत है। उसके लिए ये अखबार पूँजी बाज़ार की ओर जा रहे हैं। अखबार की गुणवत्ता, साख और करियर के सवाल इन बातों से जुड़े हैं। ये सवाल या तो पाठक के हैं या पत्रकार के। कारोबारियों के नहीं। कारोबारी को यहां तुरत फायदा नज़र आ रहा है, जिसे फिलिप मेयर हार्वेस्टिंग मार्केट पोज़ीशन कहते हैं। अखबार ईज़ी मनी के ट्रैप में हैं। यह ईज़ी मनी शेयर बाज़ार में भी है। पर यह सब ऐसा ही नहीं रहेगा। शेयर बाज़ार को भी ज्यादा ट्रांसपेरेंट बनाने की कोशिश होगी।


हाल में पेड न्यूज़ के जिस मसले पर हम माथा-पच्ची करते रहे हैं, वह सिर्फ मीडिया का मसला ही तो नहीं था। अनुमान है कि चुनाव के दौरान करीब 5000 करोड़ रुपया इस मद में खर्च हुआ। यह रुपया किसके पास से किसके पास गया? ऐसी पब्लिसिटी की किसी ने रसीद नहीं दी होगी। और न पक्की किताबों में इसका ब्योरा रखा गया होगा। इसका मतलब काली अर्थ-व्यवस्था में गया। यह काली अर्थव्यवस्था सिर्फ मीडिया हाउसों तक सीमित नहीं है। मीडिया-कर्म के विचार से इस काम से हमारी साख को धक्का लगा। यह धक्का किसे लगा?  पाठकों को, नेताओं को, चुनाव आयोग को या पत्रकारों को? मालिकों को क्यों नहीं लगा? अखबार तो उनके थे। अपने अखबार की साख गिरती देखना उन्हें खराब क्यों नहीं लगा?

दरअसल बहुत दूर की कोई नहीं सोचता। टेक्नॉलजी का बदलाव पूरे औद्योगिक ढाँचे को बदल देगा। अनेक उद्योग आने वाले वर्षों में गायब हो जाएंगे। अनेक कम्पनियाँ जो आज चमकती नज़र आ रहीं हैं, अगले कुछ साल में व्यतीत हो जाएंगी। ऐसा ही सूचना के साथ होने वाला है। अखबार या मीडिया इनफ्लुएंस बेचता है। पाठक उसके प्रभाव को मानता है। पर कारोबार को शायद यह बात समझ में नहीं आती। वह कॉस्ट कम करने और प्रॉफिट बढ़ाने के परम्परागत विचार पर कायम है। वह अपने दीर्घकालीन अस्तित्व के बारे में नहीं सोच रहा। उसकी बॉटमलाइन मुनाफा है। उसका ज़ोर ऐसी तकनीक खरीदने पर है जो लागत (कॉस्ट) कम करे। ऐसा वह बेहतर पत्रकारिता की कीमत पर कर रहा है। पत्रकारिता पर इनवेस्ट करना नादानी लगती है और उसकी सलाह देने वाले नादान। न्यूज़रूम पर इनवेस्ट करना घाटे का सौदा लगता है। आप कैसा भी अखबार निकालें, पैसा आता रहेगा तो आप इनोवेशन बंद कर देंगे। अंततः मीडिया न्यूज़ फैक्ट्री में तब्दील हो जाएगा।


पाठक की मीडिया से अपेक्षा सिर्फ खबरें बेचने की नहीं है। खासतौर से उस मीडिया से जो उसे धोखा देकर खबर के नाम पर विज्ञापन छापता है। इसपर भी शर्मिन्दा नहीं है। यह सूचना का युग है। इसमें सूचना की बहुलता हमारे दुष्कर्म का भंडाफोड़ भी कर देती है, पर उसकी परिणति क्या है? नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री हर्बर्ट सायमन के शब्दों में इससे खबरदारी की मुफलिसी(पोवर्टी ऑफ अटेंशन) पैदा हो रही है। जनता हमपर ध्यान नहीं देगी। उसके बाद हम उन पर्चों जैसे बेजान हो जाएंगे जो हर सुबह हमारे अखबारों के साथ चिपके चले जाते हैं। और जिन्हें हम सबसे पहले अलग करते हैं। जो शानदार रंगीन छपाई के बावजूद हमारी निगाहों में नहीं चढ़ते।


मीडिया का मौजूदा मॉडल मार्केट-केन्द्रित है। वह ज़ारी रहेगा। उसे आप बदल नहीं पाएंगे। एक रास्ता यह है कि आप वैकल्पिक अखबार तैयार करें और उसे सफल बनाकर दिखाएं। पैसा लगाने वाले तब सामने आएंगे। पर अंततः मीडिया पर लगने वाली पूँजी और प्रॉफिट का गणित अलग ही होगा। उसपर वह पूँजी लगे, जिसे अपनी साख की फिक्र भी हो। संयोग से इसपर विचार भी शुरू हो गया है। उसपर फिर कभी।  

अफगानिस्तान में विश्व समुदाय

राष्ट्रपति हामिद करज़ाई को विश्वास है कि सन 2014 तक अफगानिस्तान की सुरक्षा व्यवस्था इतनी दुरुस्त हो जाएगी कि वह पूरे देश का जिम्मा ले सके। आज अमेरिका और नाटो देशों की फौजें यह काम कर रहीं हैं। बावजूद इसके आए दिन विस्फोट हो रहे हैं। मंगलवार को काबुल सम्मेलन के दिन भी हुए। जबकि उस रोज सेना ने समूचे देश को तकरीबन बंद कर दिया था। काबुल सम्मेलन ने करज़ाई को मज़बूती देने का समर्थन किया है जो स्वाभाविक है।


करज़ाई यह भी चाहते हैं कि देश के विकास के लिए जो रकम आ रही है उसका ज्यादा से ज्यादा हिस्सा उनके मार्फत खर्च हो। अभी तकरीबन 20 फीसद उन्हें मिलता है बाकी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के मार्फत खर्च होता है। करजाई सरकार को सबसे पहले भ्रष्टाचार कम करना चाहिए। सरकारी मशीनरी के भ्रष्ट होने के कारण जनता का उस पर विश्वास नहीं है।


यह ज़रूरी है कि अफगानिस्तान की सरकार न सिर्फ सुरक्षा बल्कि पूरे देश के विकास की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले। अफगानिस्तान को लम्बे अर्से तक अंतरराष्ट्रीय निगरानी में नहीं रखा जा सकता। पर पूरा देश जिस तरह की अराजकता का शिकार है उसे बड़ी से बड़ी विदेशी सेना भी नहीं सम्हाल सकती। यहाँ तालिबान को पाकिस्तानी सेना लाई थी। अल-कायदा को भी वही लाई। पूरे समाज को मध्य युगीन माहौल में पटक दिया गया है। यहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य और कुशल नागरिक प्रशासन  की ज़रूरत है। उसके लिए एक ओर कड़ी सुरक्षा व्यवस्था चाहिए और दूसरी ओर आधुनिक सामाजिक-विमर्श की ज़रूरत है।


हिलेरी क्लिंटन को आज भी लगता है कि बिन लादेन पाकिस्तान में है और इस बात की जानकारी पाकिस्तानी सरकार में किसी न किसी को है। इतना साफ है कि पाकिस्तानी व्यवस्था पर भरोसा नहीं किया जा सकता। सिर्फ पाकिस्तान के कारण दक्षिण एशिया में माहौल बिगड़ा हुआ है। पाकिस्तान में लोकतंत्र की स्थापना और सिविल सोसायटी के मजबूत होने पर ही बेहतर परिणाम आ सकेंगे। ऐसा होने के बजाय प्रतिगामी ताकतें बीच-बीच में सिर उठा रहीं हैं।


अफगानिस्तान में बेहतर परिणाम के लिए भारत को भी शामिल किया जाना चाहिए, पर पाकिस्तान बजाय भारत के चीन को यहाँ लाना चाहता है। यह नज़रिया हालात को बेहतर करने के बज़ाय बिगाड़ेगा।


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Tuesday, July 20, 2010

पाक सुप्रीमकोर्ट में संविधान उछाला

पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट में 17 सदस्यों के बेंच के सामने याचिका दायर करने वाले व्यक्ति  ने कहा, मैं चाहता हूँ कि देश के संविधान के ऊपर कुरान शरीफ हो। ऐसा कहने के बाद उस व्यक्ति ने संविधान की प्रति अदालत में उछाल दी जो फर्श पर जाकर गिरी। 


ऐसा करते हुए बेशक उस व्यक्ति ने अपनी धार्मिक आस्था को व्यक्त किया जो कहीं से अनुचित नहीं था। पाकिस्तान में धार्मिक नियमों को पूरी तरह लागू करने की माँग लम्बे अरसे से चली आ रही है। पर सिविल कानून के प्रति ऐसी उपेक्षा का भाव सदमा पहुँचाता है। हालांकि उस व्यक्ति ने बाद में माफी माँग ली, पर क्या इतना काफी है? 


इस्लाम के पास एक पूर्ण राजनैतिक और न्यायिक व्यवस्था है, फिर भी अनेक मुस्लिम देशों ने संविधान बनाए हैं। राज-व्यवस्था समय के साथ बदलाव भी माँगती है। देखते हैं कि इस घटना पर पाकिस्तान में क्या प्रतिक्रिया होती है। 

चीन का थ्री गॉर्जेस बाँध

चीन में यांग्त्सी नदी पर बने 'थ्री गॉर्जेस बाँध' पर दुनिया का सबसे बड़ा बिजलीघर है। इसकी क्षमता 22,500 मेगावॉट है। यह हर लिहाज से किसी भी तरह की बिजली का सबसे बड़ा उत्पादन केन्द्र है। यह बाँध 2006 में तैयार हो गया था, पर कुछ काम पिछले साल तक चले। 


इन दिनों इस बाँध की परीक्षा हो रही है। नदी में भारी बाढ़ है। इस बाँध ने काफी पानी रोक रखा है, जिससे इसके आगे के इलाकों में पानी भरने से रोका गया है। बाँध का एक उद्देश्य बाढ़ को नियंत्रित करना भी है। सैटेलाइट चित्र से आप समझ सकते हैं कि किस तरह से पहाड़ी इलाके में पानी का बहाव रोका गया गया है। 

इन दिनों आई बाढ़ से इस इलाके में क्या माहौल है और बाँध ने पानी किस तरह रोका है, इसपर देखें बीबीसी की रपट

सायना नेहवाल अब दूसरे नम्बर पर

सायना नेहवाल अब विश्व रैंकिंग में दूसरे स्थान पर आ गईं हैं। हमारे लिए यह खुशी की बात है, फिर भी इस सूची को ध्यान से देखें। चीन की जो लड़की पहले नम्बर पर है, वह 12 प्रतियोगिताओं में खेली है और अभी वह सायना से काफी आगे है।

पहली दस लड़कियों में चीन की छह लड़कियाँ हैं। इसका मतलब सिर्फ इतना है कि चीन के पास काफी टेलेंट है। हमें कोशिश करनी चाहिए कि सायना जैसी कुछ और लड़कियाँ सामने आएं। जैसे सायना ने खुद को तैयार किया वैसे ही नई लड़कियाँ तैयार हों। 

यह भी ध्यान दें कि पुरुषों की रैंकिंग में पहले दस में एक भी भारतीय नहीं है। पहले 25 में दो भारतीय हैं एक 15वें पर और दूसरा 25 वें पर। मिश्रित युगल में हमारी जोड़ी आठवें नम्बर पर है। 

Ranking week: 
Women's singles
RankCountryPlayerMember IDPointsTournaments
1 CHNYihan Wang5393874308.9106 12 
21INDSaina NEHWAL5274864791.2637 15 
31CHNXin Wang5152063442.4017 10 
4 CHNShixian WANG8306457316.4 10 
51DENTine BAUN1035855740.0982 12 
61CHNWang Lin5393755050 10 
71FRAHongyan PI969954471.9158 12 
83CHNJiang Yanjiao1487453991.1 
9 GERJuliane Schenk1347550159.8657 17 
10 CHNLu Lan5305750040 
11 NEDJie YAO556447910 16 
12 JPNEriko HIROSE1541747353.6879 16 
13 HKGMi ZHOU782146794.616 14 
14 HKGPui Yin YIP5164946734.382 19 
151KORSeung Hee BAE5139642442.3864 15 
161RUSElla Diehl611541861.1789 16 
17 BULPetya NEDELCHEVA1276539784.4314 19 
18 KORYoun Joo BAE2245539550.708 10 
194MASMew Choo WONG1176939161.3473 15 
201KORMoon Hi KIM5435737954 13 
211THASalakjit PONSANA5072837680 12 
221INAMaria Febe Kusumastuti6697437635.16 14 
231JPNSayaka SATO7731736978.7206 16 
24 JPNAi GOTO5453135357.8408 16 
25 KORJi Hyun SUNG7659435324.9667 12 
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