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Tuesday, June 30, 2020

चीन का सिरदर्द हांगकांग


China Threatens to Retaliate If U.S. Enacts Hong Kong Bill - Bloombergऔपचारिक रूप से हांगकांग अब चीन का हिस्सा है, पर एक संधि के कारण उसकी प्रशासनिक व्यवस्था अलग है, जो सन 2047 तक रहेगी। पिछले कुछ समय से हांगकांग में चल रहे आंदोलनों ने चीन की नाक में दम कर दिया है। उधर अमेरिकी सीनेट ने 25 जून 2020 को हांगकांग की सम्प्रभुता की रक्षा के लिए दो प्रस्तावों को पास किया है, जिससे और कुछ हो या न हो, हांगकांग की स्वतंत्र अर्थव्यवस्था को धक्का लगेगा।
चीन के नए सुरक्षा कानून के विरोध में अमेरिका ने यह कदम उठाया है। इस प्रस्ताव में उन बैंकों पर भी प्रतिबंध लगाने की बात है जो हांगकांग की स्वायत्तता के खिलाफ चीन का समर्थन करने वालों के साथ कारोबार करते हैं। ऐसे बैंकों को अमेरिकी देशों से अलग-थलग करने और अमेरिकी डॉलर में लेनदेन की सीमा तय करने का प्रस्ताव है।
हांगकांग ऑटोनॉमी एक्ट नाम से एक प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, जिसका उद्देश्य उन व्यक्तियों और संस्थाओं पर पाबंदियाँ लगाना है, जो हांगकांग की स्वायत्तता को नष्ट करने की दिशा में चीनी प्रयासों के मददगार हैं। कानून बनाने के लिए अभी इसे हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स से पास कराना होगा और फिर इस पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हस्ताक्षर होंगे।

Sunday, November 10, 2019

सर्वानुमति इस फैसले की विशेषता है


अयोध्या फैसले के कानूनी पहलू, अपनी जगह हैं और राजनीतिक और सामाजिक पहलू अपनी जगह। असदुद्दीन ओवेसी का कहना है कि हमें नहीं चाहिए पाँच एकड़ जमीन। हम जमीन खरीद सकते हैं। उन्हें फैसले पर आपत्ति है। उन्होंने कहा भी है कि हम अपनी अगली पीढ़ी को यह संदेश देकर जाएंगे। जफरयाब जिलानी साहब अभी फैसले का अध्ययन कर रहे हैं, पर पहली नजर में उन्हें खामियाँ नजर आ गईं हैं। कांग्रेस पार्टी ने फैसले का स्वागत किया है। प्रतिक्रियाएं अभी आ ही रही हैं।

इस फैसले का काफी बारीकी से विश्लेषण होगा। पहली नजर में शुरू हो भी चुका है। अदालत क्यों और कैसे अपने निष्कर्ष पर पहुँची। यह समझ में आता है कि अदालत ने परंपराओं और ऐतिहासिक घटनाक्रम को देखते हुए माना है कि इस स्थान पर रामलला का विशिष्ट अधिकार बनता है, जबकि मुस्लिम पक्ष यह साबित नहीं कर पाया कि विशिष्ट अधिकार उसका है। अदालत ने 116 पेज का एक परिच्छेद इस संदर्भ में अपने फैसले के साथ लगाया है।

अलबत्ता अदालत ने बहुत साफ फैसला किया है और सर्वानुमति से किया है। सर्वानुमति छोटी बात नहीं है। छोटे-छोटे मामलों में भी जजों की असहमति होती है। पर इस मामले में पाँचों जजों ने कॉमा-फुल स्टॉप का अंतर भी अपने फैसले में नहीं छोड़ा। यह बात अभूतपूर्व है। 1045 पेज के इस फैसले की बारीकियों और कानूनी पहलुओं पर जाने के अलावा इस फैसले की सदाशयता पर ध्यान देना चाहिए।

सन 1994 में पीवी नरसिंहराव सरकार ने अनुच्छेद 143 के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मसले पर सलाह मांगी थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राय देने से मना कर दिया था, पर आज उसी अदालत ने व्यापक हित में फैसला सुनाया है। इसे स्वीकार किया जाना चाहिए। 

यह भी कहा जा रहा है कि अयोध्या तो पहला मामला है, अभी मथुरा और काशी के मामले उठेंगे। उनके पीछे एक लंबी कतार है। शायद ऐसा नहीं होगा, क्योंकि सन 1991 में पीवी नरसिंह राव की सरकार ने धार्मिक स्थल कानून बनाकर भविष्य में ऐसे मसलों की संभावना को खत्म कर दिया था।

Sunday, December 10, 2017

बैंक दीवालिया होंगे तो क्या आपका पैसा डूब जाएगा?

इन दिनों सोशल मीडिया पर इस मसले पर खबरें खूब शेयर की जा रही हैं. इस तरह की खबरों के आने से बैंकिंग सिस्टम से अनजान हम जैसे मिडिल क्लास लोग परेशान होने लगते हैं, क्योंकि हमारी छोटी सी जमा-पूंजी बैंकों में ही रहती है. सोशल मीडिया में इन मसलों को लेकर लगातार लिखने वाले शरद श्रीवास्तव ने इस संबंध में वैबसाइट 'बिहार कवरेज' तथ्यपरक आलेख लिखा है, जिसमें उन्होंने इस बिल से जुड़े तमाम छोटे-बड़े मसले की ओर इशारा किया है.
शरद श्रीवास्तव
जब तक रुपया हमारी जेब में रहता है, हमारी तिजोरी पर्स में रहता है. वो हमारा होता है, हम उसके मालिक होते हैं. लेकिन जब यही पैसा हम बैंक में जमा करते हैं तो हम बैंक की बुक्स में एक सनड्राई क्रेडिटर हो जाते हैं. एक अनसिक्योर्ड क्रेडिटर. एक नाम. सिक्योर्ड क्रेडिटर होते हैं अन्य बैंक, सरकार. अगर एक बैंक दिवालिया होता है तो बैंक में जो पैसा बचा होता है, उस पर पहला हक़ सिक्योर्ड क्रेडिटर्स का होता है. उनका पैसा चुकाने के बाद जो बचा खुचा होता है वो अनसिक्योर्ड क्रेडिटर्स यानी डिपॉजिटर्स यानी की आम आदमी को मिलता है.

Tuesday, October 31, 2017

सरदार पटेल से कांग्रेस का विलगाव?



आज सुबह के टाइम्स ऑफ इंडिया, हिन्दुस्तान टाइम्स, इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दू समेत काफी अखबारों में पहले सफे पर कांग्रेस पार्टी की ओर से जारी एक विज्ञापन में श्रीमती इंदिरा गांधी को श्रद्धांजलि दी गई है। ज्यादातर अखबारों में दूसरे पेज पर भारत सरकार के एक विज्ञापन में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में सरदार वल्लभ भाई पटेल को श्रद्धांजलि दी गई है। आज श्रीमती गांधी की पुण्यतिथि थी और सरदार पटेल का जन्मदिन। किसी को आश्चर्य इस बात पर नहीं हुआ कि कांग्रेस पार्टी ने पटेल को याद क्यों नहीं किया। हालांकि कभी किसी ने नहीं कहा कि सरदार पटेल इंदिरा गांधी से कमतर नेता थे या राष्ट्रीय पुनर्गठन में उनकी भूमिका कमतर थी। पर इस बात पर ध्यान तो जाता ही है। खासतौर से इस बात पर कि बीजेपी ने सरदार पटेल को अंगीकार किया है। 

Monday, October 2, 2017

साख कायम रखनी है तो फर्जी खबरों से निपटना होगा

चुनींदा-2
समाचार मीडिया को तलाशने होंगे फर्जी खबरों से निपटने के तरीके

बिजनेस स्टैंडर्ड में वनिता कोहली-खांडेकर / 

September 29, 2017
फेसबुक ने अंग्रेजी, गुजराती और कुछ अन्य भाषाओं में जारी विज्ञापनों में फर्जी खबर की पहचान करने के बारे में सुझाव दिए हैं। इस विज्ञापन को देखकर ऐसा लगता है कि फेसबुक अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फर्जी खबरों का प्रसार रोकने की अपनी जिम्मेदारी को लेकर आखिरकार सचेत हुआ है। यह एक ऐसे 'इको-चैम्बर' की तरह हो चुका है जिसके भीतर करीब 2 अरब लोग अपनी राय जाहिर करते हैं, दूसरे लोगों के विचारों, खबरों, तस्वीरों या वीडियो पर टिप्पणी करते हैं और सूचनाओं को साझा करते हैं। सोशल मीडिया का लोगों के मतदान व्यवहार, उनके खानपान और खरीदारी के तरीके तय करने में भी बड़ी भूमिका होती है। लोग इस पर भरोसा करते हैं और उनके इस भरोसे की ही वजह से फेसबुक को मोटी कमाई होती है। गूगल के साथ मिलकर फेसबुक पूरी दुनिया में डिजिटल विज्ञापन हासिल करने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। इसके नाते उसकी जिम्मेदारी भी बनती है।

Saturday, September 30, 2017

असमानता भरा विकास

चुनींदा-1
बिजनेस स्टैंडर्ड के सम्पादक टीएन नायनन के साप्ताहिक कॉलम में इस बार टॉमस पिकेटी और लुकास चैसेल के एक ताजा शोधपत्र का विश्लेषण किया गया है। टॉमस पिकेटी हाल के वर्षों में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के संजीदा विश्लेषकों में शामिल किए जा रहे हैं। नायनन के आलेख का यह हिंदी अनुवाद है जो बिजनेस स्टैंडर्ड के हिंदी संस्करण में प्रकाशित हुआ है। पूरे लेख का लिंक नीचे दिया हैः-

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की धीमी प्रगति को लेकर मोदी सरकार गंभीर आलोचनाओं के घेरे में है। इस चर्चा से यह भी साफ होता है कि मुखर जनता की राय में जीडीपी वृद्धि ही ïराष्ट्रीय उद्देश्य के लिहाज से केंद्र में होनी चाहिए। बढ़ती असमानता के बारे में हाल में प्रकाशित एक शोधपत्र पर चर्चा न होना भी इतना ही महत्त्वपूर्ण है। थॉमस पिकेटी (कैपिटल के चर्चित लेखक) और सह-लेखक लुकास चैंसेल ने 'फ्रॉम ब्रिटिश राज टू बिलियनरी राज?' शीर्षक वाला यह पत्र पेश किया है। 

Friday, August 18, 2017

चुनाव सुधार पर कुछ खरी बातें

पिछले कुछ वर्षों का अनुभव है कि देश के राजनीतिक दलों ने वोटिंग मशीन के विरोध पर जितना वक्त लगाया है, उतना वक्त वे चुनाव सुधार से जुड़े मसलों पर नहीं लगाते। वे चाहें तो आसानी से संसद ऐसा कानून बना सकती है, जिसमें चंदे की व्यवस्था पारदर्शी बन जाए। सभी (खासतौर से बीजेपी -कांग्रेस तथा क्षेत्रीय दलों) की दिलचस्पी इस बात में होती है कि चंदा देने वाले का नाम छिपाया जाए। बहरहाल दिल्ली में गुरुवार को हुई दो गतिविधियाँ इस लिहाज से महत्वपूर्ण हैं। 

मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने गुरुवार 17 अगस्त 2017 को दिल्ली में हुई एक बैठक में कहा कि हमारी राजनीतिक नैतिकता में कुछ नई बातें शामिल होती जा रहीं हैं (creeping new normal of political morality)। अब हम किसी भी कीमत पर जीतने को सामान्य बात मानकर चलने लगे हैं। यह बैठक एसोसिएशन ऑफ डैमोक्रेटिक रिफॉर्म्स नामक संस्था ने बुलाई थी। बैठक का विषय था ‘Consultation on Electoral and Political Reforms।’  

इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा कि सामान्य व्यक्ति ने कुछ बातों को स्वीकार कर लिया है, “In this narrative, poaching of legislators is extolled as smart political management; strategic introduction of money for allurement, tough-minded use of state machinery for intimidation etc. are all commended as resourcefulness.

“The winner can commit no sin; a defector crossing over to the ruling camp stands cleansed of all the guilt as also possible criminality. It is this creeping ‘new normal’ of political morality that should be the target for exemplary action by all political parties, politicians, media, civil society organisations, constitutional authorities and all those having faith in democratic polity for better election, a better tomorrow,” he added.

Monday, January 30, 2017

मुलायम की हाँ या ना?





कौन सी खबर सही है?

यूपी में सपा के पारिवारिक घटनाक्रम को शुरू से ही ड्रामे की संज्ञा दी जाती रही। एक तबके को विश्वास था कि यह अखिलेश की बहादुरी और साफ छवि है, जिसकी अंतिम विजय हुई। पर एक तबके का यह कहना था कि यह छवि बनाने का ड्रामा है। जो भी है, पर मीडिया की कवरेज पर ध्यान दें तो यह ड्रामा वहाँ भी नजर आता है। आज के टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर है कि मुलायम सिंह ने कहा कि मैं प्रचार नहीं करूँगा। टाइम्स नाउ ने मुलायम सिंह की बाइट भी दिखाई। इसी ग्रुप के हिन्दी अखबार NBT का कहना है कि मुलायम को ये साथ नापसंद है। पर इसी ग्रुप  के अखबार इकोनॉमिक टाइम्स की खबर है कि मुलायम 12 फरवरी से प्रचार करेंगे। अब आपकी इच्छा जिस खबर पर चाहें भरोसा करें। 
Mulayam rejects SP-Cong tie-up, won’t campaign for alliance

LUCKNOW/DELHI: On a day, his son and UP CM Akhilesh Yadav and Congress vice-president Rahul Gandhi showcased the SP-Congress alliance with a road show in Lucknow, SP patriarch Mulayam Singh Yadav struck a discordant note, rejecting the tie-up and refusing to campaign for the new political alignment.
Talking to a news agency in Delhi, Mulayam said SP was capable of winning the election and forming a government on its own and there was no need for any alliance. "We contested the elections alone and we got majority and formed the government," Mulayam said referring to the 2012 assembly polls. Read full story here

आज के इकोनॉमिक टाइम्स की खबर है कि मुलायम सिंह 12 फरवरी से प्रचार करेंगे। 


Mulayam Singh Yadav to start campaigning for Samajwadi Party from February 12
On Flight From Lucknow: SP patriarch Mulayam Singh Yadav has said that he will start campaigning for the party from February 12 once the process of filing nominations is over. Mulayam added the SP government led by his son and Uttar Pradesh Chief Minister Akhilesh Yadav has done good work.
The 75-year-old SP leader was flying to New Delhi from Lucknow on Sunday when ET caught up with him on the flight. In an almost hour-long conversation, Mulayam said he did everything a father could do for his son.
“Sab kuch de diya hai usse. Aakhir beta hai mera. Kissi aur ne yeh nahi kiya hai, (Punjab CM Parkash Singh) Badal ko dekh lijiye (Have given everything to my son. After all, he is my son. Look at Badal. He is 89, but still hasn’t handed over the party to his son. Read full story here

Tuesday, August 30, 2016

जब 2010 में कश्मीर गया था सर्वदलीय शिष्टमंडल

कश्मीर में 52 दिन से लगा कर्फ़्यू हट जाने के बाद ज्यादा बड़ा सवाल सामने है कि अब क्या किया जाए? हिंसा का रुक जाना समस्या का समाधान नहीं है। वह किसी भी दिन फिर शुरू हो सकती है। इसका स्थायी समाधान क्या है? कई महीनों से सुनाई पड़ रहा है कि यह राजनीतिक समस्या है और कश्मीर के लोगों से बात करनी चाहिए। बहरहाल शांति बहाली और सभी पक्षों से वार्ता करने के लिए सभी दलों के प्रतिनिधि 4 सितंबर को कश्मीर जाएंगे। इस दल का नेतृत्व गृहमंत्री राजनाथ सिंह करेंगे। इसके सामने भी सवाल होगा कि किससे करें और क्या बात करें? इसके पहले सन 20 सितम्बर 2010 को इसी प्रकार का एक संसदीय दल कश्मीर गया था। उसने वहाँ किस प्रकार की बातें कीं, यह जानना रोचक होगा। 4 सितम्बर की यात्रा के पहले एक नजर सन 2010 के कश्मीर के हालात पर डालना भी उपयोगी होगा।

इस प्रतिनिधि मंडल की यात्रा की खबर पढ़ें हिन्दू की वैबसाइट में यहाँ। 20 सितम्बर 2010 की यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया की वैबसाइट में छपी है, जिसके मुख्य अंश इस प्रकार हैंः-

All-party delegation in Kashmir interacts with 'open mind'
SRINAGAR: Union Home Minister P Chidambaram on Monday said the all-party delegation has come to Jammu and Kashmir with an 'open mind' and hopes to 'carve out a path for taking the region out of its present cycle of violence'.
"The team has come with an open mind and the main purpose was to interact with people, listen to them patiently," said Chidambaram.
"We are here to listen to your views, we will give you a patient hearing, what you think we need to do, in order to bring to the people of Jammu and Kashmir, the hope and the belief that their honour and dignity and their future are secure as part of India," he added.
PDP President Mehbooba Mufti did not meet the delegation but sent senior leader Nizamuddin Bhatt. who told reporters later 'although we were given just 15 minutes to put our point' , we have told the delegation that "all suggestions from the mainstream or separatist quarters should be considered."

Thursday, June 9, 2016

नाभिकीय अप्रसार और भारत





The New York Times Trips Up on India and the NSG



India must be held accountable for the commitments it made in 2005, when the nuclear deal with the United States was first struck, and not for the sins of others.


The New York Times is free to take whatever position it likes on any issue and if it believes India should not be admitted into the Nuclear Suppliers Group, it has every right to write an editorial advocating ‘No Exceptions for a Nuclear India’.

What it ought not to do is build its argument on faulty analysis, misrepresentation and factual inaccuracies. What follows is a paragraph-by-paragraph explanation of how the newspaper – that I have read and liked for years – has gone wrong, horribly wrong in this editorial.

Para 1
America’s relationship with India has blossomed under President Obama, who will meet with Prime Minister Narendra Modi this week. Ideally, Mr. Obama could take advantage of the ties he has built and press for India to adhere to the standards on nuclear proliferation to which other nuclear weapons states adhere.

Here, the NYT makes a huge assumption: that there are “standards on nuclear proliferation to which other nuclear weapons states adhere” and to which India doesn’t. The ‘other nuclear weapons states’ are the United States, Russia, China, France and Britain (the N-5). The main standard to which the N-5 are meant to adhere is the prescription set out in Article 1 of the Treaty on the Non-Proliferation of Nuclear Weapons (NPT)  to not provide nuclear weapons or knowhow or assistance to non-nuclear weapon states. Article 6 also applies to them but is
non-binding: to “pursue negotiations in good faith on effective measures relating to cessation of the nuclear arms race at an early date and to nuclear disarmament, and on a treaty on general and complete disarmament under strict and effective international control.”


Thursday, May 26, 2016

मोदी सरकार @दो साल


 Prime Minister Narendra Modi and Bharatiya Janata Party President Amit Shah. Credit: Reuters.
मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर राजनीति, प्रशासन और अर्थ-व्यवस्था को एकसाथ आँका जाएगा। राजनीति का मतलब केवल चुनावों में प्रदर्शन तक सीमित नहीं है। मोदी सरकार की पिछले दो साल में सबसे बड़ी विफलता है अल्पसंख्यकों के मन में बैठा भय। एक बड़ा तबका मानता है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का छिपा एजेंडा सामने आ रहा है। मुसलमान वोटर मोदी के नेतृत्व से नाराज है। पार्टी नेतृत्व ने स्थिति को सुधारने की कोशिश भी नहीं की है। बेशक बीजेपी हिन्दू राष्ट्रवाद से जुड़ी पार्टी है। उसे मुसलमानों का एकमुश्त समर्थन मिलने की उम्मीद करनी भी नहीं है, पर देश की प्रशासनिक व्यवस्था हाथ में लेने के बाद उसकी जिम्मेदारी है कि वह मुसलमानों के मन में बैठे डर को दूर करे। 

मोदी सरकार ने 'बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ', 'स्वच्छ भारत', 'मेक इन इंडिया' और 'सबका साथ-सबका विकास' जैसे नारों को लेकप्रिय बनाया। हमें देश को इन भावनाओं से जोड़ने की जरूरत है और इन बातों में नारों की भूमिका होती है। गांधी से लेकर माओ जे दुंग ने अतीत में नारों की मदद से ही अपने सामूहिक अभियान छेड़े थे। पर नारों को जमीन पर व्यावहारिक रूप से उतरना भी चाहिए। वे केवल प्रचारात्मक नारे नहीं हो सकते। जनता की उनमें भागीदारी होनी चाहिए।

मोदी सरकार बनने के बाद केन्द्र सरकार के सचिवालय में काम बढ़ा है। तमाम मंत्री अपना पूरा समय दफ्तरों में लगा रहे हैं। विदेश, बिजली, रेलवे, रक्षा, विदेश व्यापार, उद्योग, परिवहन और इसी तरह के कुछ दूसरे मंत्रालयों में काफी अच्छा काम हुआ है। बड़े नीतिगत बदलाव भी हुए हैं। संयोग से वैश्विक अर्थ-व्यवस्था के लिए खराब समय चल रहा है। इसलिए सबसे बड़ी चुनौती वित्त मंत्रालय के सामने है। आर्थिक उदारीकरण का काम धीमी गति से चल रहा है। यह गति यूपीए के शासन में भी धीमी थी। देश की राजनीतिक ताकतें उदारीकरण का मतलब अपने-अपने तरीके से निकाल रही हैं। मोदी सरकार और उससे पहले मनमोहन सरकार की कोशिश देश में पूँजी निवेश के माहौल को बेहतर बनाने की थी। मनमोहन सरकार को भी बीजेपी के अलावा अपनी ही पार्टी के विरोध का सामना करना होता था।

Friday, May 6, 2016

दिल्ली पुलिस के ऑपरेशन की कवरेज

नवभारत टाइम्स
दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने 4 मई को बड़ी कामयाबी का दावा किया। उसने बड़ा ऑपरेशन करते हुए 13 व्यक्तियों को हिरासत में लिया है, जिनपर आतंकी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप है। पुलिस का दावा है कि जैश के इस इंडियन मॉड्यूल पर छह महीनों से नजर रखी जा रही थी। इस मामले की कवरेज और उसके संतुलन पर भी ध्यान देना जरूरी होगा।

स्पेशल सेल के स्पेशल सीपी अरविंद दीप के मुताबिक राजधानी क्षेत्र में बहुत दिनों से कोई विस्फोट नहीं हुआ था इसलिए ये भीड़भाड़ वाले इलाके में ये विस्फोट करने वाले थे। समय से ये मॉड्यूल सामने न आता तो दिल्ली में कोई बड़ा धमाका होना पक्का था।  पकड़े गए 13 व्यक्तियों में से साजिद को दिल्ली के चांद बाग से, समीर को यूपी के लोनी से और शाकिर को देवबंद से गिरफ्तार किया गया। इन तीनों को पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में पेश किया गया जहां से इनको 10 दिन की पुलिस कस्टडी में भेज दिया गया।

पुलिस का दावा है कि साजिद इस स्लीपर सेल का मास्टरमाइंड साजिद है। वह दिल्ली का रहने वाला है। पुलिस का कहना है कि कुछ दिनों पहले घर के बेसमेंट में आईईडी बनाते वक्त धमाका हुआ था। इसमें साजिद के हाथ में चोट लगी थी। इसके बाद से ही वह जांच एजेंसी के रडार पर आ गया था।

पकड़े गए व्यक्तियों के परिवारों और स्थानीय लोगों ने पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं। परिवारवालों का कहना है कि उनके बच्चे बेकसूर हैं। वहीं, स्पेशल सेल का कहना है कि दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल आतंकियों के इस नेटवर्क पर करीब छह महीनों से नजर रख रही थी। इस ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए स्पेशल सेल की 12 टीमें लगाई गईं, जिनमें स्पेशल सेल के 20 टॉप अफसर शामिल हैं।

ज्यादातर अखबारों में यह खबर पुलिस सूत्रों के अनुसार है। कुछ अखबारों ने चांद बाग इलाके में जाकर पकड़े गए व्यक्तियों के परिवारों से भी बात की है। इंटरनेट पर कैचन्यूज ने 5 मई को इस इलाके के लोगों से बात करके भी खबर लगाई है। कैचन्यूज के संवाददाता ने लिखा हैः-

बुधवार की सुबह दिल्ली की तेज गर्मी में एक खबर ने लगभग आग लगा दी. दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने दावा किया है कि दिल्ली के गोकलपुरी, गाज़ियाबाद के लोनी और सहारनपुर के देवबंद इलाक़ों से तीन लड़को को गिरफ्तार किया है जिनके संबंध पाकिस्तान के आतंकी संगठन जैश-ए-मुहम्मद से हैं.

सेल ने कुल 13 लड़कों को अलग-अलग इलाकों से हिरासत में लिया था. इनमें छह लड़के गोकलपुरी के चांद बाग़ इलाके के रहने वाले हैं.

स्पेशल सेल का दावा है कि इन लड़कों का जैश से संबंध का पता एजेंसी को 18 अप्रैल को चला था. गिरफ्तारी के बाद स्पेशल सेल ने इनसे पूछताछ की है. इसके बाद सेल ने कहा है कि चांद बाग़ के मुहम्मद साजिद ने पूछताछ में जैश-ए मुहम्मद से अपने संबंध कुबूल कर लिए हैं. 

स्पेशल सेल साजिद को ही इस मॉड्यूल का मुखिया बता रही है. मुहम्मद साजिद से मिली जानकारी और उसके मोबाइल से मिले नंबरों के आधार पर सेल ने बाद में इलाके के पांच और लड़कों को मंगलवार की रात 11 बजे के आसपास चांद बाग़ इलाके से हिरासत में लिया था.
इस मामले को देख रहे वकील एमएस खान का कहना है कि पुलिस ने सिर्फ तीन युवकों को गिरफ्तार किया है. संभव है कि बाकियों को जल्द ही छोड़ दिया जायेगा.

कैच न्यूज़ ने इलाके का दौरा करके गिरफ्तार युवकों की असलियत जानने की कोशिश की. जिन छह लड़कों को चांद बाग़ से पुलिस ने उठाया है. वे सभी तब्लीगी जमात से जुड़े हुए हैं. सभी पांचों वक़्त की नमाज़ के पाबंद, दीन की शिक्षा फैलाना ही इनका काम था.

जमीयत उलमा-ए-हिंद प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कैच न्यूज़ से विशेष बातचीत में कहा है कि वह देवबंद से उठाए गए शाकिर अंसारी और एक अन्य लड़के अजीम को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं. पुलिस हमेशा से इसी तरह लड़कों को फ्रेम करती आई है और बाद में कोर्ट ने उन्हें छोड़ दिया. मदनी ने यह घोषणा भी की कि जमीयत गिरफ्तार सभी लड़कों को कानूनी मदद मुहैया करवाएगी.
स्पेशल सेल ने अभी तक सिर्फ चांद बाग़ के मुहम्मद साजिद, लोनी के समीर अहमद और देवबंद के शाकिर अंसारी की गिरफ्तारी दिखाई है. दिल्ली की सेशन कोर्ट ने इन तीनों से पूछताछ के लिए स्पेशल सेल को 10 दिन की रिमांड दे दी है.
इस खबर पर और ज्यादा पड़ताल करने की कोशिश अभी दिखाई नहीं पड़ी है। हाँ हिन्दी के अखबारों में नवोदय टाइम्स ने भी चाँदबाग इलाके में जाकर बात की है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की कवरेज में अभी तक आरोपियों के परिवारों का दृष्टिकोण दिखाई नहीं पड़ा है। हाल में मालेगाँव धमाकों के बाबत हुए फैसले के बाद से इस प्रकार के आरोप लगे हैं कि आतंकी गतिविधियों में मुसलमान नौजवानों को पकड़ा जाता है। इस मामले की तफतीश अभी शुरू ही हुई है, इसलिए मीडिया कवरेज पर ध्यान देना जरूरी होगा कि उसका संतुलन किस प्रकार का है।अभी तक की कवरेज में मीडिया की ओर से पुलिस से प्रति-प्रश्न नहीं किए गए है।



नवोदय टाइम्स की खबर यहाँ देखें

Monday, April 4, 2016

पनामा पेपर्स ने बड़े लोगों की पोल खोली


दुनियाभर के मीडिया में आज पनामा पेपर्स का हल्ला है। इन दस्तावेजों में भारत के महापुरुषों के नाम भी है। भारत  सरकार ने ‘‘पनामा पेपर्स'' के आंकडे लीक होने के मद्देनजर शुरु की जा सकने वाली हर प्रकार की कानूनी जांच में ‘‘पूरा सहयोग'' करने का संकल्प लिया है. पनामा सरकार ने कल एक बयान में कहा, ‘‘पनामा सरकार कोई कानूनी कदम उठाए जाने की स्थिति में हर प्रकार की आवश्यक सहायता या हर प्रकार के अनुरोध में पूरी तरह सहयोग करेगी.''
पनामा आंकडे लीक होने के कारण हुए इन खुलासों से जूझ रहा है कि उसकी एक हाई प्रोफाइल लेकिन गोपनीय विधि फर्म मोस्साक फोंसेका ने कर अधिकारियों से पूंजी को छुपाने में विश्व भर के कई बडे नेताओं और चर्चित हस्तियों की कथित रुप से मदद की। इन लीक आंकडों को कई मीडिया संस्थानों ने दर्शाया है.
भारत में इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दू ने इनका विवरण दिया है।


Indians in Panama Papers list: Amitabh Bachchan, KP Singh, Aishwarya Rai, Iqbal Mirchi, Adani elder brother
Biggest leak of over 11 million documents of Panama law firm features over 500 Indians linked to offshore firms, finds 8-month investigation by a team of The Indian Express led by Ritu Sarin, Executive Editor (News & Investigations).

Monday, January 4, 2016

पठानकोट के बाद

पठानकोट पर हमले के बाद देश के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की प्रतिक्रिया बेहद आक्रामक रही है, वहीं अखबारों की प्रतिक्रिया संतुलित है। आज के इंडियन एक्सप्रेस का सम्पादकीय है कि बातचीत जारी रहनी चाहिए। बात करना समर्पण नहीं है। अलबत्ता अखबार की सलाह है कि हमें काउंटर टैररिज्म सामर्थ्य को सुधारना चाहिए। आज के हिन्दूटाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ने  भी तकरीबन यही राय व्यक्त की है। पाकिस्तान के अखबार डॉन का भी यही कहना है। डॉन का यह भी कहना है कि सन 2008 के मुम्बई हमले को लेकर पाकिस्तान की ओर से जो कमी रह गई है उसका नुकसान उसे होगा। 

Indian Express

After Pathankot

Dialogue with Pakistan must go on. But India urgently needs counter-terrorism capacity-building.


Exactly a week after Prime Minister Narendra Modi landed in Lahore, hoping to “turn the course of history”, his ambitious project is being tested by fire. This weekend’s terrorist attack on Pathankot was no surprise; indeed, many in India’s intelligence community had predicted it. Each past effort at peace, after all, has provoked similar strikes. It is too easy, though, to attribute the strike to unnamed spoilers. The more complex truth is that while Pakistan’s all-powerful army seeks to avert a military crisis that would drain its energies at a time of grave internal turmoil, it does not seek normalisation. Pakistan’s army chief, General Raheel Sharif, has made it clear that he will not accept the status-quo on Kashmir. The strike on Pathankot, carried out by the Inter-Services Intelligence’s old client, the Jaish-e-Muhammad, serves a very specific purpose. It signals to Indian policymakers that the Pakistan army can inflict pain, but at a threshold below that which makes it worthwhile for New Delhi to retaliate. Barring reflexive hawks, after all, no one would argue that it makes sense for Delhi to risk even limited conflict after the strike on Pathankot. 

Friday, June 26, 2015

बीबीसी की रपट पर भारतीय प्रतिक्रिया

बीबीसी की एमक्यूएम को भारतीय फंडिंग की 'धमाकेदार' रिपोर्ट पाकिस्तान के मुख्यधारा और सोशल मीडिया पर छाई हुई है. पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तानी सेना और सरकार ने भारत के खुफिया संगठन रॉ पर पाकिस्तान में आतंकवादी गतिविधियाँ चलाने के आरोप लगाए हैं. वे आरोप पाकिस्तानी सरकार ने लगाए थे. बीबीसी की रिपोर्ट का नाम सुनने से लगता है कि यह बीबीसी की कोई स्वतंत्र जाँच रिपोर्ट है, पर यह पाकिस्तानी सरकार के सूत्रों पर आधारित है. पाकिस्तान सरकार के आरोपों को बीबीसी की साख का सहारा जरूर मिला है. भारत सरकार ने इस ख़बर में किए गए दावों को 'पूरी तरह आधारहीन' करार दिया है. एमक्यूएम के एक वरिष्ठ सदस्य ने बीबीसी की ख़बर को 'टेबल रिपोर्ट' क़रार दिया.

बीबीसी वेबसाइट पर इस ख़बर के जारी होते ही पाकिस्तान के मुख्यधारा के चैनलों ने इसे 'ब्रेकिंग न्यूज़' की तरह चलाना शुरू कर दिया और जल्दी ही विशेषज्ञों के साथ लाइव फ़ोन-इन लिए जाने लगे. एक रिपोर्ट में पत्रकारों और विश्लेषकों ने बीबीसी को एक 'विश्वसनीय' स्रोत करार देते हुए कहा कि अगर संस्था (बीबीसी) को लगता कि यह ख़बर ग़लत है तो वह इसे नहीं चलाते.

पाकिस्तान के विपरीत भारतीय मीडिया ने इस खबर को कोई तवज्जोह नहीं दी. आमतौर पर भारतीय प्रिंट मीडिया ऐसी खबरों पर ध्यान देता है. खासतौर से हमारे अंग्रेजी अखबारों के सम्पादकीय पेज ऐसे सवालों पर कोई न कोई राय देते हैं. पर आज के भारतीय अखबारों में यह खबर तो किसी न किसी रूप में छपी है, पर सम्पादकीय टिप्पणियाँ बहुत कम देखने को कम मिलीं. हिन्दी अखबार आमतौर पर ज्वलंत विषयों पर सम्पादकीय लिखना नहीं चाहते. आज तो ज्यादातर हिन्दी अखबारों में शहरी विकास पर टिप्पणियाँ हैं जो मोदी सरकार के स्मार्ट सिटी कार्यक्रम पर है. यह विषय प्रासंगिक है, पर इसमें राय देने वाली खास बात है नहीं. दूसरा विषय आज एनडीए सरकार के सामने खड़ी परेशानियों पर है. इस मामले में कुछ कड़ी बातें लिखीं जा सकती थीं, पर ऐसा है नहीं.

बहरहाल बीबीसी की रपट को लेकर आज केवल इंडियन एक्सप्रेस में ही सम्पादकीय देखने को मिला. इसमें दोनों देशों की सरकारों से आग्रह किया गया है कि वे एक-दूसरे से संवाद बढ़ाएं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया में इन दिनों भारत के खिलाफ काफी गर्म माहौल है. वहाँ की सरकार अब वहाँ होने वाली तमाम आतंकवादी गतिविधियों की जिम्मेदारी भारतीय खुफिया संगठन रॉ पर डाल रही है. इस माहौल में जिन अखबारों के सम्पादकीय अपेक्षाकृत संतुलित हैं, वे नीचे पेश हैं-

Sunday, December 28, 2014

Ironies of INDIA हमारी विसंगतियाँ

A policeman makes us nervous rather than feeling safe

A boy writes a brilliant 1500 words essay in IAS exam on how Dowry is a social evil. One year later He demands a dowry of 1 crore.

We are obsessed with screen guards on our smartphones but don't wear helmet riding bikes.


We teach 'Not to Get Raped', rather 'Don't Rape' !

Worst movies earn most.

A porn-star is accepted as celebrity, but a rape victim is not accepted as a normal human being.

इधर-उधऱ से जोड़ी गई कुछ और सामग्री



Wednesday, December 24, 2014

Modi year ends on Modi note आज के कुछ पठनीय आलेख

आज के अखबारों में जम्मू-कश्मीर और झारखंड के चुनाव परिणाम छाए हैं। मीडिया अभी तय नहीं कर पा रहीा है कि मोदी वेव थमी है या चल रही है। यह वेव कभी थी भी या नहीं। ज्यादातर लोग अपनी पूर्व निर्धारित धारणाओं के आधार पर फैसले कर रहे हैं। ज्यादातर निष्कर्ष कश्मीर को लेकर हैं। कश्मीर की राजनीति अचानक देश की सुर्खियों में है। इस राज्य में बीजेपी की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो सकती है, पहले ऐसा सोचा न गया होगा। देखें आज की कुछ कतरनें
हिंदू में केशव का कार्टून
आज के कुछ पठनीय आलेख
No rabbit in his hat
Suhas Palshikar in Indian express

The distance between Jammu and Kashmir
Muzamil Jaleel in Indian Express

क्षेत्रीय दलों के बिखराव का नतीजा

प्रभात खबर, रांची

प्रभात खबर, रांची
‘राज्य’ से आगे निकलता ‘राष्ट्रीय’
प्रभात खबर, रांची

क्या नरेंद्र 'अटल' बनेंगे

अमर उजाला

अमर उजाला

Monday, December 22, 2014

कट्टरता का जवाब है वैचारिक समझदारी


आज के इंडियन एक्सप्रेस के दो आइटम ध्यान खींचने वाले हैं। अखबार के एक्सप्रेस अड्डा कार्यक्रम में अमर्त्य सेन ने नरेंद्र मोदी के साथ अपने मतभेदों का जिक्र करते हुए यह भी कहा कि मोदी ने इस उम्मीद को कायम किया कि बहुत कुछ हो भी सकता है। उन्होंने मोदी के शौचालय कार्यक्रम की प्रशंसा की और यह भी माना कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने दूसरे कार्यकाल में काम करके दिखा नहीं पाए। आज के एक्सप्रेस ने गोवा के एक कार्यक्रम से सुषमा स्वराज के एक वक्तव्य को उधृत किया है, जिसमें स्वराज ने उदारता और सहिष्णुता के रास्ते को उचित बताया है। हार्डकोर हिन्दुत्व से जुड़े बयानों के बीच सुषमा स्वराज का यह बयान आश्वस्तिकारक है। आज के एक्सप्रेस में पाकिस्तानी पत्रकार हामिद मीर का लेख भी कुछ बुनियादी सवाल उठाता है। एक्सप्रेस में पाकिस्तान के पूर्व विदेशमंत्री खुरशीद महमूद कसूरी का इंटरव्यू भी पढ़ने लायक है, जिसमें उन्होंने ट्रैक टू की बातचीत को उपयोगी बताया है। 


Tuesday, November 18, 2014

नेहरू के सहारे गैर-भाजपा एकता की कोशिश

 कांग्रेस पार्टी क्या जवाहर लाल नेहरू की 125 वीं जयंती के मौके पर गैर-भाजपा राजनीति का श्रीगणेश करना चाहती है? क्या देश का बिखरा विपक्ष वर्तमान हालात को देखते हुए उसके साथ आ जाएगा। बहरहाल नरेंद्र मोदी की ऑस्ट्रेलिया यात्रा की कवरेज ने कल दिल्ली में हुए समारोह को पीछे कर दिया। दिल्ली के कुछ अखबारों ने आज राहुल गांधी और प्रकाश करत की तस्वीरें छापी हैं। ममता बनर्जी भी इस समारोह में शामिल हुईं। आज के टेलीग्राफ ने इस बातो को खास महत्व दिया कि ममता ने कल आडवाणी जी और अरुण जेटली से मुलाकात भी की। अलबत्ता इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है Mamata Banerjee ready to be part of ‘secular front’ to fight communal forces; but won’t lead. गौर करें आज की कतरनों पर
हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून
आज के हिंदुस्तान टाइम्स के सम्पादकीय पेज पर सीताराम येचुरी का यह लेख भी पठनीय है
The Right-wing route is wrong
Sitaram Yechury
November 17, 2014
The current flavour of the month for the chatteratti is the 125th birth anniversary of the first Prime Minister of India, Jawaharlal Nehru. For the media, ‘Breaking News’ is generating a debate on why the Congress has not invited Prime Minister Narendra Modi to its international seminar on Nehru’s worldview and legacy.