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Thursday, October 7, 2021

बीजेपी कार्यकारिणी से वरुण, मेनका, स्वामी बाहर, सिंधिया का नाम शामिल


भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को 80 सदस्यों वाली नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा की है, जिसमें वरुण गांधी समेत कुल पाँच नेताओं की छुट्टी कर दी गई है। जिन पाँच नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में नहीं रखा गया है, उनमें चौधरी वीरेंद्र सिंह, वरुण गांधी, मेनका गांधी, एसएस अहलूवालिया और सुब्रमण्यम स्वामी के नाम शामिल हैं। अटकलें हैं कि वरुण गांधी शायद कांग्रेस में शामिल होंगे। फिलहाल यह अटकल ही है और इस सम्भावना से जुड़े अनेक किन्तु-परन्तु हैं।

सरकार की आलोचना

वरुण गांधी और पूर्व केंद्रीय मंत्री चौधरी वीरेन्द्र दोनों कृषि आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना करते रहे हैं। चौधरी पिछले साल हरियाणा के रोहतक जिले में एक विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे। सुब्रह्मण्यम स्वामी भी एक अरसे से सरकार की आलोचना कर रहे हं।

लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर वरुण गांधी ने यूपी और केंद्र सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले ट्वीट किए थे। गुरुवार को उन्होंने लखीमपुर खीरी में किसानों के विरोध वाले स्थल का एक वीडियो ट्वीट किया, जिसमें कृषि कानूनों का विरोध कर रहे लोगों के ऊपर से एक कार गुजरती हुई नजर आ रहा है। उन्होंने वीडियो ट्वीट करते हुए गुरुवार को लिखा था कहा कि निर्दोष किसानों का खून बहाने वालों का न्याय करना होगा।

लखीमपुर कांड

उन्होंने ट्वीट में लिखा था, 'यह वीडियो बिल्कुल शीशे की तरह साफ है। प्रदर्शनकारियों की हत्या करके उनको चुप नहीं करा सकते हैं। निर्दोष किसानों का खून बहाने की घटना के लिए जवाबदेही तय करनी होगी। हर किसान के दिमाग में उग्रता और निर्दयता की भावना घर करे इसके पहले उन्हें न्याय दिलाना होगा। वरुण गांधी पीलीभीत से सांसद हैं। लखीमपुर और पीलीभीत दोनों क्षेत्रों में सिख वोटर भी बड़ी संख्या में हैं। वरुण गांधी के बागी तेवर लखीमपुर खीरी हिंसा से पहले भी दिखाई दिए। वरुण गांधी ने गन्ने का रेट 400 रुपये घोषित करने की मांग की। इसके लिए वरुण ने सीएम योगी को खत भी लिखा था। वरुण ने 12 सितंबर को भी किसानों के मुद्दे उठाते हुए सीएम योगी आदित्यनाथ को खत लिखा था। तब वरुण ने भूमि-पुत्रों की बात सुनते की अपील करते हुए पत्र में 7 पॉइंट लिखे थे। वरुण गांधी ने इसमें गन्ना के दाम, बकाया भुगतान, धान की खरीदारी समेत 7 मुद्दों को उठाया था। 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में हुई महापंचायत में वरुण गांधी ने किसानों का समर्थन कर सरकार को असहज महसूस कराया था।

वरुण की नाराजगी

प्रेक्षकों के अनुसार, अपनी और मां मेनका गांधी की लगातार उपेक्षा से वरुण गांधी खासे नाराज हैं और यही वजह से पार्टी लाइन से अलग जाकर बयानबाज़ी कर रहे हैं। इस बार मोदी सरकार के कैबिनेट विस्तार में वरुण गांधी की भी चर्चा हो रही थी, लेकिन उन्हें शामिल नहीं किया गया। इसके अलावा अगले साल होने वाले यूपी चुनाव में भी वरुण गांधी को कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी नहीं दी गई।

खटास के पीछे एक नहीं बल्कि कई वजहें हैं लेकिन इसकी शुरुआत 2013 में मानी जाती है। तब वरुण बीजेपी के पश्चिम बंगाल प्रभारी थे। लोकसभा चुनाव से पहले कोलकाता के परेड ग्राउंड तत्कालीन पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने रैली की थी। रैली का पूरा प्रबंध वरुण गांधी ने ही संभाला था। बीजेपी इसे अच्छी रैली मान रही थी, लेकिन वरुण ने अगले दिन अखबार में बयान दे दिया कि रैली विफल रही। बताती हैं कि यहीं से बीजेपी और वरुण गांधी के रिश्ते में दरार पैदा हो गई।

वरुण का वह बयान पार्टी नेताओं को नागवार गुजरा और धीरे-धीरे उन्हें साइडलाइन कर दिया गया। 2014 लोकसभा चुनाव में वरुण सुलतानपुर से जरूर जीते, लेकिन कैबिनेट पद नहीं मिला। 2015 में अमित शाह ने राष्ट्रीय अध्यक्ष बनते ही वरुण गांधी को राष्ट्रीय महासचिव पद से हटाया। वरुण की जगह कैलाश विजयवर्गीय को महासचिव और बंगाल प्रभारी की कमान सौंप दी गई।

नई कार्यकारिणी

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के अलावा पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और एमएम जोशी शामिल हैं। पार्टी के केंद्रीय निर्णय लेने वाले इस निकाय में 50 विशेष और 179 स्थायी आमंत्रित सदस्य शामिल हैं। इसमें बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, उप मुख्यमंत्री, विधानसभाओं के नेता और प्रदेश इकाई अध्यक्ष शामिल हैं।

पार्टी के संविधान के अनुसार, समिति पार्टी की सभी इकाइयों और संगठनों के कार्यों को पूरा करने के लिए नियम बनाती है और पार्टी फंड के रखरखाव के लिए नियम तैयार करती है, जिनका ऑडिट और सालाना अनुमोदन किया जाना है। समिति के पास अन्य सभी इकाइयों और संगठनों को अधिकार देने करने, नियम बनाने, चुनाव कराने और विवादों के निपटारे के लिए व्यवस्था बनाने का भी अधिकार है।

सिंधिया शामिल

80 सदस्यीय सूची में शामिल नए चेहरों में मध्य प्रदेश बीजेपी नेता और केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं, दिल्ली से एस जयशंकर और मीनाक्षी लेखी हैं हिमाचल प्रदेश से अनुराग ठाकुर और ओडिशा से अश्विनी वैष्णव शामिल किए गए हैं। अभिनेता से राजनेता बने मिथुन चक्रवर्ती और पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी, जो तृणमूल कांग्रेस छोड़कर पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हो गए थे, को भी समिति में शामिल किया गया है। खुशबू सुंदर को तमिलनाडु से विशेष आमंत्रितों की सूची में शामिल किया गया है, जो कि कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुईं हैं।

जहाँ पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव के लिए पूरी शिद्दत से जुटी है, इस सूची में सिद्धार्थ नाथ सिंह, विनय कटियार और कल्याण सिंह के पुत्र राजवीर सिंह का नाम नहीं है। अलबत्ता लोध समुदाय से बीएल वर्मा का नाम इस सूची में है। अस्सी सदस्यों की सूची में 12 नाम उत्तर प्रदेश से हैं। इनमें महेंद्र नाथ पांडेय, स्मृति ईरानी, ब्रजेश पाठक, अनिल जैन, संजीव बालियान, राजनाथ सिंह, संतोष गंगवार और स्वामी प्रसाद मौर्य का नाम भी जुड़ गया है। विशेष आमंत्रित सदस्यों में भी छह नाम उत्तर प्रदेश से हैं। कार्यकारिणी की पहली बैठक नवम्बर में दिल्ली में होगी।

 

 

 

 

Thursday, February 18, 2021

ई श्रीधरन का भाजपा में आना


मेट्रो मैन के नाम से मशहूर ई श्रीधरन जल्द ही भारतीय जनता पार्टी का दामन थामने वाले हैं। भाजपा ने दावा किया कि मेट्रो मैन श्रीधरन 21 फरवरी को पार्टी की विजय यात्रा के दौरान बीजेपी में शामिल होंगे। केरल बीजेपी चीफ के सुरेंद्रन के नेतृत्व में भाजपा 21 फरवरी से विजय यात्रा निकाल रही है।

सुरेंद्रन ने कहा कि यह हमारी इच्छा है कि मेट्रो मैन विधानसभा चुनाव लड़ें। हमने इसका प्रस्ताव दिया है। हालांकि, श्रीधरन की ओर से अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है। कासरगोड से शुरू होने वाली पार्टी की 'विजय यात्रा' के दौरान वे भाजपा में शामिल होंगे। विजय यात्रा जब मलप्पुरम पहुंचेगी तभी वह पार्टी से जुड़ेंगे। मलप्पुरम श्रीधरन का गृह जिला है।

मेट्रो जैसे क्रांतिकारी परिवहन माध्यम में उनके योगदान की वजह से साल 2001 में उन्हें पद्मश्री और 2008 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। इतना ही नहीं विकास कार्यों में इनके योगदान को देखते हुए फ्रांस सरकार ने भी साल 2005 में इन्हें 'Chavalier de la Legion d’honneur' अवार्ड से सम्मानित किया था। इसके अलावा, अमेरिका की विश्व प्रसिद्ध पत्रिका टाइम मैगजीन ने इन्हें ‘एशिया का हीरो’ का टाइटल दिया था।

Monday, November 30, 2020

हैदराबाद के निकाय चुनाव में अमित शाह और योगी को क्यों जाना पड़ा?

 


ग्रेटर हैदराबाद नगर निकाय चुनाव के प्रचार में अमित शाह और योगी आदित्य नाथ के उतर जाने के बाद देश का ध्यान इस तरफ गया है। आखिर क्या बात है इस चुनाव में? देश के गृहमंत्री को स्थानीय निकाय चुनाव के प्रचार में जाने की जरूरत क्यों पड़ी? इसके राजनीतिक कारण भी साफ हैं। बीजेपी को तेलंगाना में प्रवेश का रास्ता नजर आ रहा है। मुकाबले में टीआरएस, कांग्रेस और AIMIM के शामिल हो जाने से यह इतना खुला चुनाव हो गया है कि बीजेपी को सफलता के आसार नजर आ रहे हैं।

तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव को तब धक्का लगा, जब AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवेसी ने कहा कि ग्रेटर हैदराबाद के निकाय चुनाव हम अकेले ही लड़ेंगे। उनके अनुसार ऐसे कई क्षेत्र हैं, जहां टीआरएस AIMIM से प्रतिस्पर्धा कर रही है, और ऐसे में दोनों का साथ आना श्रेयस्कर नहीं होगा। यों भी बिहार की सफलता के बाद AIMIM अपनी ताकत के विस्तार को दिखाना चाहती है। उसे पता है कि बहुमत नहीं मिलेगा, पर एक हैसियत बनेगी। यही उसका लक्ष्य है। इस चुनाव में टीआरएस 150 सीटों पर, बीजेपी 149 और कांग्रेस 146 पर चुनाव लड़ रही है। AIMIM ने 51 प्रत्याशियों को टिकट दिए हैं।

Thursday, November 28, 2019

महाराष्ट्र: कहानी का यह अंत नहीं


महाराष्ट्र की राजनीति के नाटक का पर्दा फिलहाल गिर गया है। ऐसा लगता है कि असमंजस के एक महीने का दौर पूरा हो गया। पर लगता है कि पर्दे के पीछे के पात्र और पटकथा लेखकों की भूमिका समाप्त नहीं हुई है। इसमें दो राय नहीं कि भारतीय जनता पार्टी के संचालकों को पहली नजर में धक्का लगा है। उन्होंने या तो सरकार बनाने की संभावनाओं को ठोक-बजाकर देखा नहीं और धोखा खा गए। यह धोखा उन्होंने हड़बड़ी में अपनी गलती से खाया या किसी ने उन्हें दिया या इसके पीछे की कहानी कुछ और है, इसे लेकर कुछ बातें शायद कुछ समय बाद सामने आएं। संभव है कि कभी सामने न आएं, पर मोटे तौर पर जो बातें दिखाई पड़ रही हैं, वे कुछ सवालों को जन्म दे रही हैं, जिनके उत्तर अभी या कुछ समय बाद देने होंगे।

Wednesday, November 28, 2018

चुनावी दौर में मंदिर का शोर

अयोध्या में राम मंदिर बनाने की माँग फिर से सुनाई पड़ रही है. रविवार को विश्व हिन्दू परिषद ने अयोध्या की धर्मसभा में आंदोलन को जारी रखने का संकल्प किया. शिवसेना के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे भी अयोध्या आए और उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार के पास मंदिर बनाने का पूरा अधिकार है. ऐसा नहीं करेगी तो यह सरकार दोबारा नहीं बनेगी, लेकिन राम मंदिर जरूर बनेगा. ठाकरे की दिलचस्पी अपने वोटर में है. उन्होंने सरकार से मंदिर निर्माण की तारीख पूछी है.  
उधर नागपुर की हुंकार सभा में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि राम मंदिर सुप्रीम कोर्ट की प्राथमिकता नहीं है. उन्होंने कहा, ‘हमारे धैर्य का समय बीता जा रहा है. एक साल पहले तक मैं कहता था, धैर्य रखो, आज मैं कह रहा हूँ कि अब आंदोलन निर्णायक हो.उन्होंने सरकार से कहा कि वह सोचे कि मंदिर कैसे बनाया जा सकता है. संघ के एक राष्ट्रीय नेता इंद्रेश कुमार ने मंगलवार को एक गोष्ठी में सुप्रीम कोर्ट पर भी तीखी टिप्पणी कर दी. उन्होंने कहा कि सरकार कानून बनाने जा रही है. चुनाव की आदर्श आचरण संहिता लागू है, इसलिए घोषणा नहीं की है. साथ में उनका कहना है कि सरकार कानून बनाने का प्रस्ताव लाए, तो संभव है कि सुप्रीम कोर्ट उसे स्टे कर दे. हो सकता है आदेश लाने के खिलाफ कोई सिरफिरा सुप्रीम कोर्ट जाएगा, तो आज का चीफ जस्टिस उसे स्टे भी कर सकता है. बीजेपी और संघ के नेता सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं. उधर विहिप नेता कह रहे हैं, अब याचना नहीं, रण होगा. निर्मोही अखाड़े के महंत रामजी दास ने कहा, मंदिर निर्माण की तारीख की घोषणा महाकुंभ के दौरान की जाएगी.

Monday, February 26, 2018

पूर्वोत्तर में जागीं बीजेपी की हसरतें

सन 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले भारतीय जनता पार्टी के सामने जिन महत्वपूर्ण परीक्षाओं को पास करने की चुनौती है, उनमें से एक के परिणाम इस हफ्ते देखने को मिलेंगे। यह परीक्षा है पूर्वोत्तर में प्रवेश की। सन 2016 में असम के विधानसभा चुनाव में मिली सफलता ने बीजेपी के लिए पूर्वोत्तर का दरवाजा खोला था, जिसे अब वह तार्किक परिणति तक पहुँचाना चाहेगी। पिछले लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता पाने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी का विस्तार पूरे देश में नहीं है। दक्षिण भारत में उसकी आंशिक पहुँच है और पूर्वोत्तर में असम को छोड़ शेष राज्यों में उसकी मौजूदगी लगभग शून्य थी। असम, मणिपुर और अरुणाचल में सफलता हासिल करने के बाद पार्टी के हौसले बुलंद हैं। इस साल पूर्वोत्तर के चार राज्य चुनाव की कतार में हैं। त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में इस महीने चुनाव हो रहे हैं। मिजोरम में साल के अंत में होगें।
त्रिपुरा में 18 फरवरी को वोट पड़ चुके हैं। अब 27 को शेष दो राज्यों में वोट पड़ेंगे। ईसाई बहुल इन दोनों राज्यों में भाजपा की असल परीक्षा है। तीनों के परिणाम 3 मार्च को घोषित होंगे। पहली बार पूर्वोत्तर की राजनीति पर देश की गहरी निगाहें हैं। वजह है वाममोर्चा और कांग्रेस के सामने खड़ा खतरा और बीजेपी का प्रवेश। इन तीनों या चारों राज्यों के विधानसभा चुनाव आगामी लोकसभा चुनाव की बुनियाद तैयार करेंगे। तीनों राज्यों में बीजेपी का हिन्दुत्व-एजेंडा ढका-छिपा है। नगालैंड में उसने जिस पार्टी के साथ गठबंधन किया है, वह ईसाई पहचान पर लड़ रही है।

Sunday, August 13, 2017

बीजेपी की अगस्त क्रांति

पिछले तीन साल में नरेंद्र मोदी सरकार न केवल कांग्रेस के सामाजिक आधार को ध्वस्त किया है, बल्कि उसके लोकप्रिय मुहावरों को भी छीन लिया है। गांधी और पटेल को वह पहले ही अंगीकार कर चुकी है। मोदी के स्वच्छ भारत अभियान का प्रतीक चिह्न गांधी का गोल चश्मा है। गांधी के सत्याग्रह के तर्ज पर मोदी ने स्वच्छाग्रह शब्द का इस्तेमाल किया। सरदार वल्लभ भाई पटेल को वे पहले ही अपना चुके हैं। इस साल 9 अगस्त क्रांति दिवस संकल्प दिवस के रूप में मनाने का आह्वान करके मोदी ने कांग्रेस की एक और पहल को छीन लिया।
अगस्त क्रांति के 75 साल पूरे होने पर बीजेपी सरकार ने जिस स्तर का आयोजन किया, उसकी उम्मीद कांग्रेस पार्टी ने नहीं की होगी। मोदी ने 1942 से 1947 को ही नहीं जोड़ा है, 2017 से 2022 को भी जोड़ दिया है। यानी मोदी सरकार की योजनाएं 2019 के आगे जा रही हैं। भारत छोड़ो आंदोलन की याद में संसद में आयोजित विशेष बैठक में मोदी ने जिन रूपकों का इस्तेमाल किया, उनसे उन्होंने सामान्य जन-भावना को जीतने की कोशिश की। दूसरी ओर सोनिया गांधी ने उस आंदोलन को कांग्रेस पार्टी के आंदोलन के रूप में ही रेखांकित करने की कोशिश की। साथ ही उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर भी वार किया। इससे उन्हें वांछित लाभ मिला या नहीं, कहना मुश्किल है। बेहतर होता कि वे ऐसे मौके को राष्ट्रीय पर्व तक सीमित रहने देतीं।

Tuesday, January 31, 2017

अमित शाह की नजर में यह ‘ड्रामा’ चलेगा नहीं

रविवार को जहाँ दिनभर सपा-कांग्रेस के गठबंधन के औपचारिक समारोह से  लखनऊ शहर रंगा रहा, वहीं रात होते-होते भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि यह पारिवारिक ड्रामा इस गठबंधन की रक्षा कर नहीं पाएगा.
उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में जहाँ सपा-कांग्रेस गठबंधन को नोटबंदी के नकारात्मक प्रभाव से उम्मीदें हैं वहीं बीजेपी के रणनीतिकार अमित शाह को लगता है कि प्रदेश का वोटर पिछले 15 साल की अराजकता और भ्रष्टाचार के खिलाफ अपना फैसला सुनाएगा. उनका दावा है कि पार्टी को दो-तिहाई बहुमत मिल जाएगा.

Saturday, January 14, 2017

‘गरीब-मुखी’ राजनीति: मोदी कथा का दूसरा अध्याय

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव एक तरह से मध्यावधि  जनादेश का काम करेंगे। सरकार के लिए ही नहीं विपक्ष के लिए भी। चूंकि सोशल मीडिया की भूमिका बढ़ती जा रही है, इसलिए इन चुनावों में आभासी माहौल की भूमिका कहीं ज्यादा होगी। कहना मुश्किल है कि छोटी से छोटी घटना का किस वक्त क्या असर हो जाए। दूसरे राजनीति उत्तर प्रदेश की हो या मणिपुर की सोशल मीडिया पर वह वैश्विक राजनीति जैसी महत्वपूर्ण बनकर उभरेगी। इसलिए छोटी सी भी जीत या हार भारी-भरकम नजर आने लगेगी।
बहरहाल इस बार स्थानीय सवालों पर राष्ट्रीय प्रश्न हावी हैं। ये राष्ट्रीय सवाल दो तरह के हैं। एक, राजनीतिक गठबंधन के स्तर पर और दूसरा मुद्दों को लेकर। सबसे बड़ा सवाल है कि नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का ग्राफ क्या कहता है? लोकप्रियता बढ़ी है या घटी? दूसरा सवाल है कि कांग्रेस का क्या होने वाला है? उसकी गिरावट रुकेगी या बढ़ेगी? नई ताकत के रूप में आम आदमी पार्टी की भी परीक्षा है। क्या वह गोवा और पंजाब में नई ताकत बनकर उभरेगी? और जनता परिवार का संगीत मद्धम रहेगा या तीव्र?

Saturday, September 24, 2016

कोझीकोड बीजेपी बैठक पर उड़ी की छाया

प्रमोद जोशी
वरिष्ठ पत्रकार, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए


भारतीय जनता पार्टी ने कोझीकोड में राष्ट्रीय परिषद की बैठक की योजना तब बनाई थी जब राजनीतिक बिसात पर मोहरे दूसरे थे. पाटी की नज़र अगले साल के विधानसभा चुनावों पर थी, पर उड़ी हमले से कहानी बदल गई है.
देश का ध्यान अब इस बात पर है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी शनिवार की रैली में पाकिस्तान को क्या संदेश देंगे. और पार्टी की नजरें इस बात पर हैं कि इस घटनाक्रम को चुनावों से किस तरह जोड़ा जाए. पाकिस्तान के साथ टकराव अक्सर केन्द्र की सरकारों की मदद करता रहा है.
परम्परा है कि राष्ट्रीय नेता सम्मेलन के समापन पर भाषण देता है, पर यहाँ मोदी के संदेश के साथ विषय प्रवर्तन होगा. प्रधानमंत्री वहाँ दो दिन रुकेंगे और रविवार को भी पार्टी के नेताओं को संबोधित करेंगे.
क़यास लग रहे हैं कि हम युद्ध की ओर तो नहीं बढ़ रहे हैं. बहरहाल अगले दो दिन कोझीकोड राष्ट्रीय राजनीति के केन्द्र में रहेगा. और भारतीय जनता पार्टी केरल को जताने की कोशिश करेगी कि हमने यहाँ पक्का खूँटा गाड़ दिया है.

Wednesday, June 15, 2016

इमेज बदलती भाजपा


भारतीय जनता पार्टी का फिलहाल सबसे बड़ा एजेंडा है पैन-इंडिया इमेजबनाना। उसे साबित करना है कि वह केवल उत्तर भारत की पार्टी नहीं है। पूरे भारत की धड़कनों को समझती है। हाल के घटनाक्रम ने उम्मीदों को काफी बढ़ाया है। एक तरफ उसे असम की जीत से हौसला मिला है, वहीं मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस गहराती घटाओं से घिरी है। भाजपा के बढ़ते आत्मविश्वास की झलक इलाहाबाद में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में देखने को मिली, जहाँ एक राजनीतिक प्रस्ताव में कहा गया कि अब देश में केवल बीजेपी ही राष्ट्रीय आधार वाली पार्टी है। वह तमाम राज्यों में स्वाभाविक सत्तारूढ़ पार्टी है। कांग्रेस दिन-ब-दिन सिकुड़ रही है। शेष दलों की पहुँच केवल राज्यों तक सीमित है।

Wednesday, November 11, 2015

मोदी के खिलाफ युद्ध घोषणाएं

 
हिन्दू में केशव का कार्टून
भारतीय जनता पार्टी को यह बात चुनाव परिणाम आने के पहले समझ में आने लगी थी कि बिहार में उसकी हार होने वाली है। इसलिए पार्टी की ओर से कहा जाने लगा था कि इस चुनाव को केन्द्र सरकार की नीतियों पर जनमत संग्रह नहीं माना जा सकता। इसे जनमत संग्रह न भी कहें पर नरेन्द्र मोदी के खिलाफ वोटर की कड़ी टिप्पणी तो यह है ही। इस परिणाम के निहितार्थ और इस पराजय के कारणों पर विवेचन होने लगा है। पार्टी के बुजुर्गों की जमात ने अपनी नाराजगी लिखित रूप से व्यक्त कर दी है। यह जमात नरेंद्र मोदी की तब से विरोधी है जब उन्होंने प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनने के लिए दावेदारी पेश की थी। देखना होगा कि बुजुर्गों की बगावत किस हद तक मोदी को परेशान करेगी।  

Wednesday, July 29, 2015

‘राजनीति’ फिर वापस पटरी पर आएगी इस ब्रेक के बाद

‘राजनीति’ वापस आएगी इस ब्रेक के बाद

  • 2 घंटे पहले
कलाम श्रद्धांजलि
पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, याक़ूब मेमन और पंजाब के गुरदासपुर के एक थाने पर हुए हमले के कारण मीडिया का ध्यान कुछ देर के लिए बंट गया.
इस वजह से मुख्यधारा की राजनीति कुछ देर के लिए ख़ामोश है.
दो-तीन रोज़ में जब सन्नाटा टूटेगा तब हो सकता है कि मसले और मुद्दे बदले हुए हों, पर तौर-तरीक़े वही होंगे.

मॉनसून सत्र का हंगामा

हंगामा, गहमागहमी और शोर हमारी राजनीति के दिल-ओ-दिमाग़ में है.
एक धारणा है कि इसमें संजीदगी, समझदारी और तार्किकता कभी थी भी नहीं. पर जैसा शोर, हंगामा और अराजकता आज है, वैसी पहले नहीं था.
क्या इसे राजनीति और मीडिया के ‘ग्रास रूट’ तक जाने का संकेतक मानें?
लोकसभा, मानसून सत्र
शोर, विरोध और प्रदर्शन को ही राजनीति मानें? क्या हमारी सामाजिक संरचना में अराजकता और विरोध ताने-बाने की तरह गुंथे हुए हैं?
संसद के मॉनसून सत्र के शुरुआती दिनों में अनेक सदस्य हाथों में पोस्टर-प्लेकार्ड थामे टीवी कैमरा के सामने आने की कोशिश करते रहे.
कैमरा उनकी अनदेखी कर रहा था, इसलिए उन्होंने स्पीकर के आसपास मंडराना शुरू किया या जिन सदस्यों को बोलने का मौक़ा दिया गया उनके सामने जाकर पोस्टर लगाए ताकि टीवी दर्शक उन्हें देखें.
हमने मान लिया है कि संसद में हंगामा राजनीतिक विरोध का तरीक़ा है और यह हमारे देश की परम्परा है. इसलिए लोकसभा टीवी को इसे दिखाना भी चाहिए.
लोकतांत्रिक विरोध को न दिखाना अलोकतांत्रिक है.
पिछले हफ़्ते कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा था कि लोकसभा में कैमरे विपक्ष का विरोध नहीं दिखा रहे हैं. सिर्फ़ सत्तापक्ष को ही कैमरों में दिखाया जा रहा है.
उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा कि मोदी सरकार विपक्ष की आवाज़ दबा देना चाहती है.

मेरा बनाम तेरा भ्रष्टाचार

अधीर रंजन, लोकसभा, मानसून सत्र
कांग्रेस की प्रतिज्ञा है कि जब तक सरकार भ्रष्टाचार के आरोप से घिरे नेताओं को नहीं हटाएगी, तब तक संसद नहीं चलेगी.

Sunday, June 21, 2015

कितना खिंचेगा ‘छोटा मोदी’ प्रकरण?

ललित मोदी प्रकरण ने कांग्रेस पार्टी और भारतीय जनता पार्टी को अपनी राजनीति ताकत आजमाने का एक मौका दिया है। मोदी को पहली बार इन हालात से गुजरने का मौका मिला है, इसलिए पहले हफ्ते में कुछ अटपटे प्रसंगों के बाद पार्टी संगठन, सरकार और संघ तीनों की एकता कायम हो गई है। कांग्रेस के लिए यह मुँह माँगी मुराद थी, जिसका लाभ उसे तभी मिला माना जाएगा, जब या तो वह राजनीतिक स्तर पर इससे कुछ हासिल करे या संगठन स्तर पर। उसकी सफलता फिलहाल केवल इतनी बात पर निर्भर करेगी कि वह कितने समय तक इस प्रकरण से खेलती रहेगी। राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने गुरुवार को कहा कि अगर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने पद से इस्तीफा नहीं दिया तो नरेंद्र मोदी के लिए संसद का सामना करना ‘नामुमकिन’ होगा। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने भी तकरीबन इसी आशय का वक्तव्य दिया है।

Sunday, April 19, 2015

वापस लौटे 'नमो' और 'रागा' की चुनौतियाँ

पिछले हफ्ते दो महत्वपूर्ण नेताओं की घर वापसी हुई है। नरेंद्र मोदी यूरोप और कनाडा यात्रा से वापस आए हैं और राहुल गांधी तकरीबन दो महीने के अज्ञातवास के बाद। दोनों यात्राओं में किसी किस्म का साम्य नहीं है और न दोनों का एजेंडा एक था। पर दोनों देश की राजनीति के एक महत्वपूर्ण पड़ाव पर वापस घर आए हैं। नरेंद्र मोदी देश की वैश्विक पहचान के अभियान में जुटे हैं। उनके इस अभियान के दो पड़ाव चीन और रूस अभी और हैं जो इस साल पूरे होंगे। पर उसके पहले अगले हफ्ते देश की संसद में उन्हें एक महत्वपूर्ण अभियान को पूरा करना है। वह है भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को संसद से पास कराना। उनके मुकाबले राहुल गांधी हैं जिनका लक्ष्य है इस अध्यादेश को पास होने से रोकना। आज वे दिल्ली के रामलीला मैदान में किसानों की रैली का नेतृत्व करके इस अभियान का ताकतवर आग़ाज़ करने वाले हैं। दो विपरीत ताकतें एक-दूसरे के सामने खड़ी हैं।

Saturday, April 11, 2015

भाजपा की नया ‘मार्ग’, पुराना ‘दर्शन’ दुविधा

बेंगलुरु में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को उससे मिलने वाले संकेतों के मद्देनज़र देखा जाना चाहिए। दक्षिण में पार्टी की महत्वाकांक्षा का पहला पड़ाव कर्नाटक है। अगले साल तमिलनाडु और केरल में चुनाव होने वाले हैं। उसके पहले इस साल बिहार में चुनाव हैं। पिछले साल लोकसभा चुनाव में भारी विजय के बाद पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की यह पहली बैठक थी। चुनाव पूर्व की बैठकें नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को लेकर असमंजस से भरी होती थीं। अबकी बैठक मोदी सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों की पुष्टि में थी। पार्टी की रीति-नीति, कार्यक्रम और कार्यकर्ता भी बदल रहे हैं।

इस बैठक में पार्टी के मार्गदर्शी लालकृष्ण आडवाणी का उद्बोधन न होना पार्टी की भविष्य की दिशा का संकेत दे गया है। यह पहला मौका है जब आडवाणी जी के प्रकरण पर मीडिया ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया। अलबत्ता राष्ट्रीय नीतियों को लेकर मोदी युग की आक्रामकता इस बैठक में साफ दिखाई पड़ी। यह बात मोदी के तीन भाषणों में भी दिखाई दी। मोदी ने कांग्रेस पर अपने आक्रमण की धार कमजोर नहीं होने दी है। इसका मतलब है कि उनकी दिलचस्पी कांग्रेस के आधार को ही हथियाने में है। उनका एजेंडा कांग्रेसी एजेंडा के विपरीत है। दोनों की गरीबों, किसानों और मजदूरों की बात करते हैं, पर दोनों का तरीका फर्क है।

Sunday, October 19, 2014

आत्मनिर्भर भाजपा की आहट

आज हरियाणा और महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम वैसे ही रहे जैसे कि एक्ज़िट पोल बता रहे हैं तब भारतीय राजनीति में तीन नई प्रवृत्तियाँ सामने आएंगी। भाजपा निर्विवाद रूप से देश की सबसे प्रमुख राष्ट्रीय पार्टी बनेगी। दूसरे कांग्रेस के सामने क्षेत्रीय दल बनने का खतरा पैदा हो जाएगा। तीसरे क्षेत्रीय दलों के पराभव का नया दौर शुरू होगा। भाजपा को अब दिल्ली विधानसभा के चुनाव कराने का फैसला लाभकारी लगेगा। मोदी लहर को खारिज करने वाले खारिज हो जाएंगे। और अमित शाह के नेतृत्व में पार्टी के नए नेतृत्व को मान्यता मिल जाएगी। 

इन दोनों राज्यों में कांग्रेस को प्रतीकात्मक सफलता भी मिली तो ठीक। वरना पार्टी अंधे कुएं में जा गिरेगी। दूसरी ओर गठबंधन सहयोगियों के बगैर चुनाव में सफल हुई भाजपा के आत्मविश्वास में कई गुना वृद्धि होगी। अब सवाल है कि क्या पार्टी एनडीए को बनाए रखना चाहेगी? क्या क्षेत्रीय दलों के लिए यह खतरे की घंटी है? और क्या इसके कारण राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा-विरोधी मोर्चे को बनाने की मुहिम जोर नहीं पकड़ेगी?

Thursday, May 22, 2014

क्या यह भाजपा-गैर भाजपा दौर का आग़ाज़ है?

चुनाव में जीतने के बाद वाराणसी में नरेंद्र मोदी ने कहा, पहले सरकार चलाने के लिए गठबंधन करना पड़ता था। अब प्रतिपक्ष है नहीं। अब प्रतिपक्ष बनाने के लिए गठबंधन करना पड़ेगा. इस चुनाव के बाद कम से कम दो सच्चाइयाँ उजागर हुई हैं. अभी तक देश की राजनीति के तीन कोने थे. एक कांग्रेस, दूसरा भाजपा और तीसरा गैर-कांग्रेस, गैर भाजपा विपक्ष. पर अब तीन नहीं दो कोने हो गए हैं. एक भाजपा और दूसरा गैर-भाजपा.

बिहार में नीतीश कुमार के इस्तीफे की गहमा-गहमी के बीच एक प्रस्ताव आया कि जेडीयू और राजद एक साथ आ जाएं. क्या व्यावहारिक रूप से यह संभव है. अभी तक बिहार में लालू को रोकने का श्रेय नीतीश कुमार को दिया जा रहा था. अब यह काम भाजपा ने सम्हाल लिया है. ऐसे में क्या जेडीयू और राजद एक साथ जा सकते हैं? सेक्युलरिज़्म की अवधारणा वास्तविक है तो फिर तमाम ताकतें एकसाथ क्यों नही आतीं? ऐसी पहेलियाँ दूसरे राज्यों में भी बूझी जाएंगी.

चुनाव परिणाम आने के बाद पहले जयललिता ने मोदी को और फिर मोदी ने जयललिता को बधाई देकर गर्मजोशी का माहौल बनाया है. जयललिता को एनडीए में शामिल करने की ज़रूरत मोदी को नहीं है, पर जयललिता को मोदी की ज़रूरत है. चुनाव के ठीक पहले मोदी और ममता के बीच कटु वक्तव्यों की बौछारों हुईं, पर ज़रूरत तो ममता को भी मोदी की होगी. उधर नवीन पटनायक ने केंद्र के प्रति अपने सकारात्मक रुख की घोषणा करके साफ कर दिया है कि वे भाजपा विरोधी कैम्प में नहीं हैं. तब विपक्ष में है कौन?

Sunday, May 18, 2014

इन बुज़ुर्गों से कैसे निपटेंगे मोदी?

हिंदू में सुरेंद्र का कार्टून
भारतीय जनता पार्टी को मिली शानदार सफलता ने नरेंद्र मोदी के सामने कुछ चुनौतियों को भी खड़ा किया है। पहली चुनौती विरोधी पक्ष के आक्रमणों की है। पर वे उससे निपटने के आदी है। लगभग बारह साल से हट मोदी कैम्पेन का सामना करते-करते वे खासे मजबूत हो गए हैं। संयोग से लोकसभा के भीतर उनका अपेक्षाकृत कमज़ोर विपक्ष से सामना है। कांग्रेस के पास संख्याबल नहीं है। बड़ी संख्या में उसके बड़े नेता चुनाव हार गए हैं। तृणमूल कांग्रेस, बीजू जनता दल और अद्रमुक के साथ वे बेहतर रिश्ते बना सकते हैं। बसपा है नहीं, सपा, राजद, जदयू और वाम मोर्चा की उपस्थिति सदन में एकदम क्षीण है। इस विरोध को लेकर आश्वस्त हो सकते हैं।

Saturday, May 17, 2014

अब ‘अच्छे दिनों’ को लाना भी होगा

भारतीय जनता पार्टी की यह जीत नकारात्मक कम सकारात्मक ज्यादा है. दस साल के यूपीए शासन की एंटी इनकम्बैंसी होनी ही थी. पर यह जीत है, किसी की पराजय नहीं. कंग्रेस जरूर हारी पर विकल्प में क्षेत्रीय पार्टियों का उभार नहीं हुआ. नरेंद्र मोदी ने नए भारत का सपना दिखाया है. यह सपना युवा-भारत की मनोभावना से जुड़ा है. यह तख्ता पलट नहीं है. यह उम्मीदों की सुबह है. इसके अंतर में जनता की आशाओं के अंकुर हैं. वोटर ने नरेंद्र मोदी के इस नारे को पास किया है कि अच्छे दिन आने वाले हैं. अब यह मोदी की जिम्मेदारी है कि वे अच्छे दिन लेकर आएं. उनकी लहर थी या नहीं थी, इसे लेकर कई धारणाएं हैं. पर देशभर के वोटर के मन में कुछ न कुछ जरूर कुछ था. यह मनोभावना पूरे देश में थी. देश की जनता पॉलिसी पैरेलिसिस और नाकारा नेतृत्व को लेकर नाराज़ थी. उसे नरेंद्र मोदी के रूप में एक कड़क और कारगर नेता नज़र आया. ऐसा न होता तो तीस साल बाद देश के मतदाता ने किसी एक पार्टी को साफ बहुमत नहीं दिया होता. यह मोदी मूमेंट है. उन्होंने वोटर से कहा, ये दिल माँगे मोर और जनता ने कहा, आमीन। देश के संघीय ढाँचे में क्षेत्रीय आकांक्षाओं को पंख देने में भी नरेंद्र मोदी की भूमिका है. एक अरसे बाद एक क्षेत्रीय क्षत्रप प्रधानमंत्री बनने वाला है.