वेदवाक्य है, ‘यत्र विश्वं भवत्येक नीडम।’ यह हमारी विश्व-दृष्टि है। 'एक विश्व' की अवधारणा, जो आधुनिक ‘ग्लोबलाइजेशन’ या ‘ग्लोबल विलेज’ जैसे रूपकों से कहीं व्यापक है। संयोग से यह भारत का पुनरोदय-काल है। अतीत में भारत दुनिया के अग्रणी देशों में हुआ करता था। वैसा ही समय अब आ रहा है, जब भारत को दुनिया का नेतृत्व करना होगा। कोरोना संकट के बाद दुनिया यूक्रेन-युद्ध और आर्थिक-मंदी की आशंकाओं का सामना कर रही है। भारत की भूमिका ऐसे संकटकाल में बढ़ गई है। पिछले कुछ समय से भारत ने एक के बाद एक अनेक अवसरों पर पहल करके अपनी मनोभावना को व्यक्त किया है। आगामी 1 दिसंबर को जी-20 समूह की अध्यक्षता एक साल के लिए भारत के पास आ जाएगी और 2023 में इस समूह का शिखर सम्मेलन भारत में होगा। इंडोनेशिया के बाली द्वीप पर आयोजित जी-20 देशों की शिखर बैठक में इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो ने पीएम मोदी को जी-20 की अध्यक्षता सौंप दी।
बाली में क्या हुआ
इस संदर्भ में फौरी तौर पर दो बातों पर ध्यान
देना है। एक, बाली के शिखर सम्मेलन में क्या हुआ और दूसरे, भारत के अध्यक्ष बनने
का व्यावहारिक अर्थ क्या है? वस्तुतः यह अध्यक्षता एक साल पहले ही मिलने वाली
थी, पर भारत ने कुछ जरूरी कारणों से इंडोनेशिया के साथ अदला-बदली कर ली थी। शुरुआत
में, यह घोषणा की गई थी कि भारत 2022 में जी-20 शिखर
सम्मेलन की मेजबानी करेगा। जी-20 रियाद समिट लीडर्स डिक्लरेशन के अनुसार, भारत वर्ष 2023 में शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने के लिए इंडोनेशिया
के साथ जी-20 के अध्यक्ष पद की अदला-बदली करेगा। बाली की थीम थी, मिलकर हालात
सुधारें। इसका फोकस वैश्विक स्वास्थ्य, संधारणीय ऊर्जा, पर्यावरण और डिजिटलीकरण पर
था। पर यूक्रेन युद्ध के कारण लगा कि सब कुछ ढहने वाला है। ऐसे में भारत की
अध्यक्षता से विश्व को उम्मीदें हैं। भारत के शिखर सम्मेलन की थीम है ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य।’ भारत किस तरह इस भूमिका को निभाएगा यही देखना है।
यूक्रेन युद्ध का असर
यूक्रेन युद्ध के बाद दुनिया दो भागों में बँट
गई है। जी-20 में दोनों ही गुटों के समर्थक देश शामिल हैं। भारत का संपर्क पश्चिमी
देशों और रूस दोनों के साथ ही घनिष्ठ है। यही वजह है कि पिछले दिनों पश्चिमी
मीडिया ने जोर देकर कहा था कि भारत यूक्रेन युद्ध में शांति कराने की क्षमता रखता
है। भारत क्या वास्तव में शांति-स्थापित करा पाएगा? क्या
वैश्विक-संकटों का कोई समाधान हमारे पास है? ऐसे
तमाम सवाल मुँह बाए खड़े हैं। यूक्रेन जी-20 का सदस्य देश नहीं है, फिर भी वहाँ के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की को जी-20 को संबोधित करने
दिया गया। दूसरे इस सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन नहीं आए।
स्पष्ट है कि जी-20 का राजनीतिकरण हो रहा है। साथ ही यह बात चुनौती के रूप में
सामने आ रही है, जिसका सामना भारत को करना है।
बढ़ते मतभेद
बाली सम्मेलन में मतभेद इस स्तर पर थे कि एक सर्वसम्मत घोषणापत्र बन पाने की नौबत नहीं आ रही थी। ऐसे में भारत की पहल पर घोषणापत्र बन पाया। इस घोषणापत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस प्रसिद्ध वाक्य को शामिल किया गया कि ‘आज लड़ाइयों का ज़माना नहीं है’। यह बात उन्होंने समरकंद में हुए शंघाई सहयोग संगठन के शिखर सम्मेलन में कही थी। बाली-घोषणा में इस वाक्य के जुड़ जाने के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तारीफ की है। 15 दौर की मंत्रिस्तरीय वार्ता के बावजूद पूरा संगठन दो खेमे में बंटा हुआ था। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी देश बगैर घोषणापत्र के ही बाली बैठक का समापन चाहते थे। तब भारतीय प्रतिनिधियों ने संगठन के दूसरे विकासशील देशों के साथ मिल कर सहमति बनाने की कोशिश की जिसके बाद बाली घोषणापत्र जारी हो पाया। घोषणापत्र जारी जरूर हो गया है, पर आने वाले समय की जटिलताएं भी उजागर हो गई हैं। संयुक्त घोषणापत्र जारी होने के बावजूद सदस्य देशों के बीच कई मुद्दों पर सहमति नहीं बन पाई। उधर 14-15 नवंबर को पोलैंड पर मिसाइलों के गिरने से स्थिति और खराब हो गई। इस कड़वाहट को प्रतीक रूप में इस तथ्य से समझा जा सकता है कि बाली बैठक के दौरान सभी राष्ट्र प्रमुखों का संयुक्त फोटो नहीं लिया जा सका। जी-20 बैठक के दौरान यह पहला मौका है, जब सदस्य देशों के प्रमुखों की कोई ग्रुप फोटो नहीं हुई।