भारत की अध्यक्षता में मंगलवार 3 जुलाई को हुआ शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन (एससीओ) का वर्चुअल शिखर सम्मेलन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन, चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की उपस्थिति के कारण सफल रहा. इस सम्मेलन के दौरान रूस और चीन की नई विश्व-व्यवस्था की अवधारणा के संकेत भी मिले, जिसके समांतर भारत भी अपनी विश्व-व्यवस्था की परिकल्पना कर रहा है. इस सम्मेलन के दौरान भारत ने चीन के 'बेल्ट एंड रोड' कार्यक्रम को स्वीकार करने से इंकार भी किया है.
इस सम्मेलन में इन
तीनों ने हर प्रकार के आतंकवाद की निंदा की. भारत के पीएम मोदी ने भी इन नेताओं की
मौजूदगी में चरमपंथी गतिविधियों को लेकर चिंता जताई. इस सम्मेलन में ईरान ने नए
सदस्य के रूप में इस संगठन में प्रवेश किया.
दिल्ली घोषणा
बैठक के बाद ‘नई दिल्ली घोषणा’ को स्वीकार किया गया. इसके अनुसार सदस्य
देश आतंकवादी, अलगाववादी और चरमपंथी संगठनों की एकीकृत
सूची बनाने के लिए सामान्य सिद्धांत और दृष्टिकोण विकसित करने का प्रयास करेंगे. इन चरमपंथी संगठनों की गतिविधियां शंघाई सहयोग संगठन के
सदस्य देशों में प्रतिबंधित हैं. सदस्य देशों ने
सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों के सैन्यीकरण का विरोध किया. इसके अलावा मादक पदार्थों के बढ़ते उत्पादन, तस्करी और दुरुपयोग तथा मादक पदार्थों की तस्करी से
प्राप्त धन का आतंकवाद के वित्तपोषण के रूप में इस्तेमाल करने के खतरों के बारे
में चिंता व्यक्त की गई.
इस बैठक के दौरान पीएम
मोदी ने मूल रूप से चरमपंथ,
खाद्य संकट और ईंधन
संकट पर अपनी बात रखी. उन्होंने कहा, आतंकवाद क्षेत्रीय एवं
वैश्विक शांति के लिए प्रमुख ख़तरा बना हुआ है. इस चुनौती से निपटने के लिए
निर्णायक कार्रवाई आवश्यक है. कुछ देश, क्रॉस बॉर्डर टेररिज्म
को अपनी नीतियों के अंग के रूप में इस्तेमाल करते हैं. वे आतंकवादियों को पनाह
देते हैं. एससीओ को ऐसे देशों की निंदा करने में कोई संकोच
नहीं करना चाहिए. ऐसे गंभीर विषय पर दोहरे मापदंड के लिए कोई स्थान नहीं होना
चाहिए.
प्रधानमंत्री ने एससीओ की भाषा सम्बन्धी बाधाओं को हटाने के लिए भारत के एआई आधारित लैंग्वेज प्लेटफॉर्म 'भाषिणी' को सभी के साथ साझा करने की पेशकश भी की. समावेशी प्रगति के लिए डिजिटल टेक्नोलॉजी का यह एक उदाहरण बन सकता है. किसी भी क्षेत्र की प्रगति के लिए मज़बूत कनेक्टिविटी का होना बहुत ही आवश्यक है. बेहतर कनेक्टिविटी आपसी व्यापार ही नहीं, आपसी विश्वास भी बढ़ाती है. ईरान की एससीओ सदस्यता के बाद हम चाबहार पोर्ट के बेहतर उपयोग के लिए काम कर सकते हैं. मध्य एशिया के चारों ओर से भूमि से घिरे देशों के लिए इंटरनेशनल नॉर्थ साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर इंडियन ओशन तक पहुँचने का, एक सुरक्षित और सुगम रास्ता बन सकता है. हमें इनकी पूरी संभावनाएं को फायदा उठाना चाहिए.