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Saturday, November 13, 2010
चीन में एशिया खेल
ग्वांग्ज़ो में एशिया खेलों का उद्घाटन समारोह आकर्षक और मौलिक था। दिल्ली के कॉमनवैल्थ खेल समारोह के उद्घाटन कार्यक्रम से इक्कीस ही लगा। हालांकि इन खेलों में शामिल देशों की संख्या कॉमनवैल्थ देशों से कम है, पर हिस्सा लेने वाले खिलाड़ियों की संख्या दुगनी है। खेल का स्तर भी बेहतर होगा। ऑस्ट्रेलिया, इंग्लैंड और कनाडा की टीमों की कमी अकेले चीन की टीम ही कर देगी। फिर जापान और कोरिया हैं। ईरान, उज्बेकिस्तान, ताजिकस्तान, फिलीपाइन्स और इंडोनेशिया जैसी टीमें भी किसी से कम नहीं हैं।
हमारा सबसे लोकप्रिय खेल क्रिकेट भी यहाँ है, पर हमारी टीम नहीं है। सबसे रोचक होगा चीनी क्रिकेट टीम को देखना। पाकिस्तान के जावेद मियांदाद ने टीम की मदद की है। खेलना चीनी खिलाड़ियों को ही है। पिछले तीन-चार साल में चीनी क्रिकेट में पारंगत हो गए हैं। अब उनका हुनर देखने की बारी है। कुछ साल पहले तक वो हॉकी भी नहीं खेलते थे, पर दोहा एशियाड में उन्होंने भारत को हरा दिया। कोई सीखना चाहे तो उसके लिए कोई काम मुश्किल नहीं है।
Friday, October 15, 2010
हमारी खेल-संस्कृति
कॉमनवैल्थ खेल खत्म होने के बाद अब पूरे आयोजन की समीक्षा का दौर है। आयोजन की गड़बड़ियों और घोटालों को लेकर अभी हंगामा शुरू होगा। उसपर चर्चा करने के बजाय मैं दूसरे मामलों पर बात करना चाहूँगा।
1.क्या हम खेल के अच्छे आयोजक हैं? कॉमनवैल्थ खेल के उद्घाटन और समापन समारोहों पर न जाएं। प्रतियोगिताओं की व्यवस्थाओं और खेल के स्तर पर ध्यान दें। किसी भी वज़ह से भारत की छवि पहले से खराब थी। ऊपर से हमारे सारे निर्माण कार्य देर से पूरे हुए।
कुछ लोग चीन से हमारी तुलना करते हैं। चीन की व्यवस्था में सरकारी निर्णयों को चुनौती नहीं दी जा सकती। हमारे यहाँ अनेक काम अदालती निर्देशों के कारण भी रुके। इसमें पेड़ों की कटाई से लेकर ज़मीन के अधिग्रहण तक सब शामिल हैं। तब हम लंदन से अपनी तुलना करें। वहाँ भी हमारे जैसा लोकतंत्र है।
हमारे पास दिल्ली मेट्रो का अनुभव था। उसके निर्माण में शुरुआती अड़ंगों के बाद सुप्रीम कोर्ट की कुछ ऐसी व्यवस्थाएं आईं कि विलम्ब नहीं हुआ। मेट्रो के कुशल प्रबंधकों ने उसके कार्यान्वयन में कभी देरी नहीं होने दी। उन्होंने अपनी कुशलता और समयबद्धता को रेखांकित करने का बार-बार प्रयास किया। कॉमनवैल्थ खेलों के साथ इस किस्म की कुशलता या पटुता को रेखांकित करने की कोशिश नहीं की गई।
मेरा अनुभव है कि हम जब पूरे समुदाय को चुनौती देते हैं तो सब खड़े होकर काम को करने के लिए आगे आते हैं। कॉमनवैल्थ खेलों को संचालित करने वालों ने प्रेरणा देने या लेने की कोई कोशिश नहीं की। यह हमारी पूरी व्यवस्था से जुड़ी बात है। निर्माण कार्यों में हेराफेरी हुई या नहीं इसपर मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा। उसके बारे में जानकारियाँ आने वाले समय में काफी आएंगी।
हमारा खेल प्रदर्शन कैसा रहा? पहले के मुकाबले कहीं बेहतर रहा। लगभग हर खेल में बेहतर था, पर खासतौर से एथलेटिक्स, तीरंदाज़ी, शूटिंग और जिम्नास्टिक का उल्लेख होना चाहिए। हॉकी में हमारी टीम बेहतरीन खेली। फाइनल का स्कोर वास्तविक कहानी नहीं कहता है। पहली बार भारतीय टीम ने फिटनेस के लेवल को सुधारा है। खेल में खिलाड़ियों के साथ-साथ पीछे काम करने वाले डॉक्टर, फिज़ियो और कोच की भूमिका होती है। इसमें कापी सुधार हुआ है। कोच ब्रासा कहते हैं कि भारतीय टीम को मनोवैज्ञानिक की ज़रूरत है। मैं उनसे सहमत हूँ। भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मानसिक रूप से हारी।
भारत सरकार ने कॉमनवैल्थ खेलों के लिए खिलाड़ियों की तैयारी पर खर्च करने के लिए 800 करोड़ रुपए दिए थे। इनमें से 500 करोड़ ही खर्च हो पाए। यह भी अकुशलता है। बहरहाल यह सब सीखने की बातें हैं। इतना स्पष्ट है कि खेल की संस्कृति पूरे समाज के मनोबल को बढ़ाने का काम कर सकती है। दूसरे यह कि हमारी अकुशलता खेल में हमारी विफलता के रूप में व्यक्त होती है।
हिन्दुस्तान में प्रकाशित मेरा लेख पढ़ने के लिए कतरन पर क्लिक करें
1.क्या हम खेल के अच्छे आयोजक हैं? कॉमनवैल्थ खेल के उद्घाटन और समापन समारोहों पर न जाएं। प्रतियोगिताओं की व्यवस्थाओं और खेल के स्तर पर ध्यान दें। किसी भी वज़ह से भारत की छवि पहले से खराब थी। ऊपर से हमारे सारे निर्माण कार्य देर से पूरे हुए।
कुछ लोग चीन से हमारी तुलना करते हैं। चीन की व्यवस्था में सरकारी निर्णयों को चुनौती नहीं दी जा सकती। हमारे यहाँ अनेक काम अदालती निर्देशों के कारण भी रुके। इसमें पेड़ों की कटाई से लेकर ज़मीन के अधिग्रहण तक सब शामिल हैं। तब हम लंदन से अपनी तुलना करें। वहाँ भी हमारे जैसा लोकतंत्र है।
हमारे पास दिल्ली मेट्रो का अनुभव था। उसके निर्माण में शुरुआती अड़ंगों के बाद सुप्रीम कोर्ट की कुछ ऐसी व्यवस्थाएं आईं कि विलम्ब नहीं हुआ। मेट्रो के कुशल प्रबंधकों ने उसके कार्यान्वयन में कभी देरी नहीं होने दी। उन्होंने अपनी कुशलता और समयबद्धता को रेखांकित करने का बार-बार प्रयास किया। कॉमनवैल्थ खेलों के साथ इस किस्म की कुशलता या पटुता को रेखांकित करने की कोशिश नहीं की गई।
मेरा अनुभव है कि हम जब पूरे समुदाय को चुनौती देते हैं तो सब खड़े होकर काम को करने के लिए आगे आते हैं। कॉमनवैल्थ खेलों को संचालित करने वालों ने प्रेरणा देने या लेने की कोई कोशिश नहीं की। यह हमारी पूरी व्यवस्था से जुड़ी बात है। निर्माण कार्यों में हेराफेरी हुई या नहीं इसपर मैं कुछ नहीं कहना चाहूँगा। उसके बारे में जानकारियाँ आने वाले समय में काफी आएंगी।
हमारा खेल प्रदर्शन कैसा रहा? पहले के मुकाबले कहीं बेहतर रहा। लगभग हर खेल में बेहतर था, पर खासतौर से एथलेटिक्स, तीरंदाज़ी, शूटिंग और जिम्नास्टिक का उल्लेख होना चाहिए। हॉकी में हमारी टीम बेहतरीन खेली। फाइनल का स्कोर वास्तविक कहानी नहीं कहता है। पहली बार भारतीय टीम ने फिटनेस के लेवल को सुधारा है। खेल में खिलाड़ियों के साथ-साथ पीछे काम करने वाले डॉक्टर, फिज़ियो और कोच की भूमिका होती है। इसमें कापी सुधार हुआ है। कोच ब्रासा कहते हैं कि भारतीय टीम को मनोवैज्ञानिक की ज़रूरत है। मैं उनसे सहमत हूँ। भारतीय टीम ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मानसिक रूप से हारी।
भारत सरकार ने कॉमनवैल्थ खेलों के लिए खिलाड़ियों की तैयारी पर खर्च करने के लिए 800 करोड़ रुपए दिए थे। इनमें से 500 करोड़ ही खर्च हो पाए। यह भी अकुशलता है। बहरहाल यह सब सीखने की बातें हैं। इतना स्पष्ट है कि खेल की संस्कृति पूरे समाज के मनोबल को बढ़ाने का काम कर सकती है। दूसरे यह कि हमारी अकुशलता खेल में हमारी विफलता के रूप में व्यक्त होती है।
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