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Saturday, January 27, 2024

असाधारण ऊँचाई पर भारत-फ्रांस रिश्ते


फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की दो दिन की राजकीय-यात्रा को आकस्मिक कहना उचित होगा. ऐसी यात्राओं का कार्यक्रम महीनों पहले बन जाता है, पर इस यात्रा का कार्यक्रम अचानक तब बना, जब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की भारत-यात्रा रद्द हो गई.

इस यात्रा से बहुत कुछ निकले या नहीं निकले, फ्रांस ने बहुत नाज़ुक मौके पर भारत की लाज बचाई है. इस यात्रा के दौरान कोई बड़ा समझौता नहीं हुआ. अलबत्ता इस दौरान टाटा और एयरबस के बीच हल्के हेलीकॉप्टर के भारत में निर्माण के समझौते की घोषणा जरूर हुई है.

इसके पहले भी फ्रांस ने भारत का साथ दिया है. मैक्रों फ्रांस के छठे ऐसे राष्ट्रपति हैं, जो भारत में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि बने हैं. गणतंत्र परेड में सबसे ज्यादा बार मुख्य अतिथि बनने का गौरव भी फ्रांस के नाम है.

Wednesday, December 27, 2023

बाइडेन-यात्रा जैसा ही महत्वपूर्ण है, मैक्रों का गणतंत्र-सम्मान


अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन की यात्रा रद्द होने के बाद देश के गणतंत्र-दिवस समारोह में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों के आगमन की घोषणा के भी राजनयिक-निहितार्थ हैं. वहाँ की आंतरिक-राजनीति में भारत के प्रति नकारात्मक भावनाएं वैसी नहीं हैं, जैसी अमेरिका में हैं.

बाइडेन का कार्यक्रम रद्द होने में जहाँ अमेरिका के राजनीतिक-अंतर्विरोधों की भूमिका है, वहीं मैक्रों के दौरे का मतलब है भारत-फ्रांस रिश्तों का एक और पायदान पर पहुँचना. मैक्रों के दौरे की इस त्वरित-स्वीकृति से भारत के डिप्लोमैटिक  कौशल की पुष्टि भी हुई है.

त्वरित-स्वीकृति

फ्रांस में भारत के राजदूत जावेद अशरफ ने जिस तेजी से समय के रुख को पहचानते हुए मैक्रों के दौरे की पुष्टि कराने में सफलता प्राप्त की है, वह उल्लेखनीय है. मैक्रों की इस यात्रा से नरेंद्र मोदी को बास्तील-दिवस परेड की प्रतिध्वनि आ रही है.

राष्ट्रपति मैक्रों गणतंत्र दिवस समारोह में शामिल होने वाले छठे फ्रांसीसी नेता होंगे. फ्रांस एकमात्र देश है, जिसके नेताओं को इतनी बार गणतंत्र दिवस परेड का मुख्‍य अतिथि बनाया गया है.

गणतंत्र दिवस की आगामी परेड इसलिए विशेष है, क्योंकि उसमें केवल महिलाएं शामिल होंगी. भारत सरकार ने इस अवसर पर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन को आमंत्रित किया था, लेकिन उन्होंने असमर्थता जताई. संभवतः बाइडेन अगले साल के ‘स्टेट ऑफ द यूनियन' संबोधन में हमस-इजराइल संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं.

रिश्तों की गहराई

फ्रांसीसी राष्ट्रपति के दौरे से यह बात स्पष्ट होगी कि भारत और फ्रांस के रिश्तों की गहराई क्रमशः बढ़ती जा रही है और यूरोप में वह हमारा सबसे बड़ा मित्र देश है. यह दूसरा मौका होगा, जब अमेरिकी राष्ट्रपति का दौरा रद्द होने पर उनका स्थान फ्रांस के नेता लेंगे.

1975 में भारत में आपातकाल की घोषणा के कारण अमेरिकी राष्ट्रपति जेराल्ड फोर्ड ने अपनी भारत यात्रा स्थगित कर दी थी. पश्चिम में भारत के प्रति कटुता बढ़ रही थी, इसके बावजूद जनवरी 1976 में तत्कालीन प्रधानमंत्री याक शिराक गणतंत्र दिवस के मुख्य अतिथि बनकर आए.

शिराक के बाद निकोलस सरकोज़ी, फ्रांस्वा होलां से लेकर इमैनुएल मैक्रों तक सभी राष्ट्रनेताओं ने भारत के साथ रिश्ते बनाकर रखे है. भारत के गणतंत्र समारोह में फ्रांस के छह राष्ट्रनेता भाग ले चुके हैं. किसी भी देश के राष्ट्राध्यक्षों की यह सबसे बड़ी संख्या है.

Saturday, October 31, 2020

स्वतंत्र अभिव्यक्ति ही कट्टरपंथ से लड़ाई है


फ्रांस को लेकर दुनियाभर में जो कुछ हो रहा है, उसे कम से कम दो अलग वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। इस्लामोफोबिया से शुरू होकर सभ्यताओं के टकराव तक एक धारा जाती है। दूसरे, धर्मनिरपेक्षता, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और धार्मिक भावनाओं के सिद्धांत और उनके अंतर्विरोध हैं। दोनों मसले घूम-फिरकर एक जगह पर मिलते भी हैं। इनकी वजह से जो सामाजिक ध्रुवीकरण हो रहा है, वह दुनिया को अपने बुनियादी मसलों से दूर ले जा रहा है।

तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोआन, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों पर मुसलमानों के दमन का आरोप लगाया है। दुनिया के मुसलमानों के मन में पहले से नाराजगी भरी है, जो इन तीन महत्वपूर्ण राजनेताओं के बयानों के बाद फूट पड़ी है।

यह सब ऐसे दौर में हो रहा है, जब दुनिया के सामने महामारी का खतरा है। इसका मुकाबला करने की जिम्मेदारी विज्ञान ने ली है, धर्मों ने नहीं। बहरहाल इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक का विमर्श जिस मुकाम पर है, उसे लेकर हैरत होती है। क्या मैक्रों वास्तव में मुसलमानों को घेरने, छेड़ने, सताने या उनका मजाक बनाने की साज़िश रच रहे है? या देश के बिगड़ते अंदरूनी हालात से बचने का रास्ता खोज रहे हैं या वे यह साबित करना चाहते हैं कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बुनियादी तौर पर जरूरी है?