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Friday, September 29, 2017

हर वक्त प्रासंगिक गांधी


कुछ लोग कहते हैं, मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। उनके जन्मदिन को राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने और तमाम शहरों की सड़कों को महात्मा गांधी मार्ग बनाने के बावजूद हमें लगता है कि उनकी जरूरत 1947 के पहले तक थी। अब होते भी तो क्या कर लेते? सन 1982 में रिचर्ड एटनबरो की फिल्म गांधी ने दुनियाभर का ध्यान खींचा, तब इस विषय पर एकबार फिर चर्चा हुई कि क्या गांधी आज प्रासंगिक हैं? वह केवल भारत की बहस नहीं थी।

शीतयुद्ध खत्म होने और सोवियत संघ के विघटन के करीब दस साल पहले चली उस बहस का दायरा वैश्विक था। गांधी अगर प्रासंगिक हैं, तो दुनिया के लिए हैं, केवल भारत के लिए नहीं, क्योंकि उनके विचार सम्पूर्ण मानवता से जुड़े है। फिर भी सवाल है कि क्या उनका देश भारत आज उन्हें उपयोगी मानता है?

Tuesday, October 6, 2015

गोबध पर गांधी की राय

25 जुलाई 1947 की प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी ने गोबध को लेकर कुछ बातें कहीं थीं। उनकी सलाह थी कि जबरन कोई कानून किसी पर थोपा नहीं जा सकता। कलेक्टेड वर्क्स ऑफ़ गांधी, गांधी हेरिटेज पोर्टल से लेकर 'दि वायर' ऑनलाइन पत्रिका ने उनके इस भाषण का तर्जुमा अंग्रेजी में छापा। यह वक्तव्य मूल रूप में हिन्दी में है। इसे हिन्दी में ही पढ़ना ज्यादा उपयोगी होगा। सबसे नीचे वह लिंक भी दिया है जहाँ इसे आप सीधे पढ़ सकते हैं।