इस मसले को राजनीतिक दलों ने सबसे पहले अपना मसला बनाया। फिर
मीडिया ने इसमें सनसनी का रस घोला। गरीब बच्चों की असहाय तस्वीरें देखने में आईं। फिर
देखते ही देखते देशभर के मिड डे मील में साँप, छिपकली और चूहे निकलने लगे। ऐसा लगता
है कि मिड डे मील में जहर घोलने की साजिश है। दो दिन की रस्म अदायगी के बाद गाड़ी अगले
मामले की ओर बढ़ गई। असल सवाल जस का तस पड़ा है। सरकार गरीब बच्चों को मिड डे मील दे
रही है। देश के लगभग 65 फीसदी लोगों को अब भोजन की गारंटी दे रही है। पर बुनियादी सवाल
छूट गया है। आखिर बीमारी क्या है? और इलाज क्या है? बीमारी है गरीबी, अज्ञान और कुशासन।